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एंगेल्स को पढ़ने की तीन समस्याएं और आज उन्हें पढ़ने की ज़रूरत
फ़्रेडरिक एंगेल्स के जन्म के दो सौ साल पूरे होने पर हमें उन विचारों के संघर्ष की प्रवृत्ति को समझने की ज़रूरत है, जिनसे एंगेल्स अपने वक्त में जूझ रहे थे और हमें यह भी जानना होगा कि आज इनकी क्या अहमियत है।
प्रबीर पुरकायस्थ
30 Nov 2020
एंगेल्स को पढ़ने की तीन समस्याएं और आज उन्हें पढ़ने की ज़रूरत

फ़्रेडरिक एंगेल्स के जन्म के दो सौ साल पूरे होने पर उनके योगदान के बारे में सोचते हुए तीन मुद्दे मेरे दिमाग में आते है। हम आज के दौर में उनके लेखन को कैसे पढ़ें? उनके लेखन का बड़ा हिस्सा तत्कालीन दौर की व्यवस्था का बचाव करने वालों के ख़िलाफ़ था। यह वह लोग थे, जो कामगार वर्ग द्वारा एक नए और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के संघर्ष के ऊपर मार्क्स और एंगेल्स द्वारा लिखे विचारों के विपक्ष में तर्क दे रहे थे। हमारे पास यहां तीन समस्याएं हैं; पहली यह जानने की है कि एंगेल्स किसके ख़िलाफ़ लिख रहे थे, इसमें से एक डुहरिंग थे, जो केवल एंगेल्स की "एंटी डुहरिंग" किताब के चलते ही आज तक चर्चा में जिंदा हैं। दूसरी समस्या उस लेखन की भाषा की है। वह लेखन अपने वक़्त के लिए लिखा गया था और इसलिए बहुत सारी ऐसी चीजों को स्वाभाविक मान लेता है, जिनके बारे में हम आज नहीं जानते। तीसरी समस्या यह है कि जब विज्ञान की बात आती है, तो हम बमुश्किल ही वह ज़मीन पहचान पाते हैं, जिसके आधार पर एंगेल्स लिख रहे थे। एंगेल्स के वक़्त की दुनिया से आज विज्ञान बहुत आगे बढ़ चुका है।

तो आज हमें मार्क्स और एंगेल्स के तार्किक लेखन में खुदाई करने की ज़रूरत क्यों है, जबकि वह ऐसे लोगों के खिलाफ़ लिखा गया था, जिन्हें आज भुलाया जा चुका है? आज इन बुनियादी मुद्दों पर लौटने के लिए दो कारण हैं, खासकर तब जब विज्ञान को समाज से तटस्थ और स्वायत्त बताया जाता है। इसके बजाए विज्ञान उन वर्गों से मजबूती से जुड़ा हुआ है, जो समाज को नियंत्रित करते हैं और इसलिए विज्ञान के विकास को भी नियंत्रित करते हैं।

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पूंजीवादी देशों में बड़े स्तर का विज्ञान या तो युद्ध से जुड़ा हुआ है या फिर पूंजीवादियों के लालच से। यह कोरोना महामारी के दौरान और भी साफ़ हो गया, जब हमने पाया कि ज़्यादातर वैक्सीन मुनाफ़े के लिए बनाई गई हैं, भले ही उनमें निवेश सार्वजनिक पैसे से किया गया हो। या फिर जब हम विश्वविद्यालयों में हथियारों और विज्ञान शोध देखते हैं। भारतीय-अंग्रेज वैज्ञानिक JBS हाल्डेन ने कहा था, "... अगर प्रोफ़ेसर राजनीति को छोड़ भी दें, तो राजनीति प्रोफ़ेसरों को नहीं छोड़ेगी।" इसलिए विज्ञान और वैज्ञानिक शोध हमेशा राजनीतिक रहे हैं, भले ही व्यक्तिगत तौर पर वैज्ञानिक खुद के बारे में ऐसा ना मानते हों। 

दूसरा यह कि विज्ञान और तकनीकी हमेशा से सिर्फ़ अकादमिक विषय नहीं रहे हैं। आज वे विकास के वाहक के तौर पर काम करते हैं, भले ही यह विकास हमें ख़तरनाक दिशा में ले जाए। बिना इन मुद्दों की जानकारी के परमाणु हथियारों, हॉयपरसोनिक या अंतरिक्ष आधारित हथियारों के ख़तरे के बारे में बात करना संभव नहीं होगा। या फिर इस पर चर्चा करना कि कैसे गूगल या फ़ेसबुक और उनके प्रकार का सर्विलांस पूंजीवाद खुद पूंजीवाद को ही बदल रहा है।

अमेरिका लगभग हर तरह की हथियार निरोधक संधियों से हट चुका है। उसके द्वारा स्पेस कमांड के गठन से अब नए ख़तरे पैदा हो गए हैं। लेकिन इसके बावजूद उस तरह के विरोध प्रदर्शन नहीं हुए, जैसे हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने या 1980 में न्यूट्रॉन बम बनाए जाने  या फिर रीगन के स्टार वॉर प्रोग्राम के खिलाफ़ हुए थे। इस शांति आंदोलन की कमजोरी वैज्ञानिक समुदाय में राजनीति की पूर्ण कमी के चलते ही नहीं है, लेकिन यह एक बड़ी कमी है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद वैज्ञानिक शांति और परमाणु हथियार विरोधी आंदोलन का अहम हिस्सा थे। वामपंथ को अब विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में उतरने की ज़रूरत है, यह काम सिर्फ़ इसके नतीज़ों के बारे में बात कर नहीं होगा, बल्कि मार्क्सिस्ट विचार पर आधारित विज्ञान और तकनीक के ज़रिए इसके प्रयोगकर्ताओं की कल्पना बढ़ानी होगी। समाज के इन वर्गों के बिना, हम कई मुद्दों पर विमर्श में कमजोर रहेंगे, जिनमें परमाणु युद्ध, सार्वजनिक स्वास्थ्य और कोरोना महामारी से लेकर सर्विलांस पूंजीवाद तक शामिल हैं।

मार्क्सिज़्म ने हमेशा वैज्ञानिकों, डॉक्टरों और तकनीकविदों को आकर्षित किया है, क्योंकि यह विज्ञान और तकनीक में व्यापकता की बात करता है और इसे समाज के सामने मौजूद समस्याओं से जोड़ता है। इसी तरह हम तकनीक का इतिहास, उसका विज्ञान और उत्पादन से संबंध कोरोना महामारी के दौर में साफ़ तौर पर देख सकते हैं, हमने देखा कि जब उन्नत पूंजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था खतरे में आती है, तो वे क्या-क्या कर सकते हैं। लेकिन अगर यह संक्रामक बीमारी सिर्फ़ गरीब़ देशों की समस्या होती तो इस पर ध्यान नहीं दिया जाता। 

क्या इससे अपने आप लोग पूंजी, मुनाफ़े और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बीच संबंध को समझ जाएंगे? यह तब तक नहीं होगा, जब तक एक वृहद जनविज्ञान आंदोलन या सार्वजनिक स्वास्थ्य आंदोलन के ज़रिए हम अपनी समझ लोगों तक नहीं पहुंचाएंगे। और इसके लिए हमें ज़्यादा बड़े वैज्ञानिक समुदाय तक पहुंचने की ज़रूरत है।

यहीं एंगेल्स और उनका भौतिक द्वंदवाद (मटेरियलिस्ट डॉयलेक्टिक्स) हमारे लिए अहम हो जात है। एंगेल्स और मार्क्स, दोनों की ही अपने दौर के विज्ञान में गहरी रुचि थी। उन्होंने नज़दीकी से उस पर नज़र बनाए रखी। मार्क्स की तकनीकी में गहरी रुचि थी, जैसा उनकी इंग्लैंड की कपड़ा मिलों में बदलती तकनीकी पर लेखन से पता भी चलता है। ज़मीन पर लगने वाले किराये पर उनके द्वारा किए गए काम में मार्क्स मिट्टी की उत्पादकता पर कीटनाशकों के प्रयोग का असर देखना चाहते थे। लेकिन जब विज्ञान पर लिखने की बात आई, तो उन्होंने एंगेल्स को नेतृत्व करने दिया, जो ज़्यादा नज़दीकी से विज्ञान पर नज़र बनाए रखते थे। एंगेल्स ने ही अपनी किताब “एंटी डुहरिंग” में द्वंदवाद पर लिखा, उन्होंने डुहरिंग की अध्यात्मिक सोच के साथ इसका विरोधाभास बताया। एंगेल्स ने “लुडविग फ्यूरबाक एंड द एंड ऑफ क्लासिकल जर्मन फिलॉसफी” और प्रकृति के द्वंदवाद पर अपनी अधूरी किताब में भौतिक द्वंदवाद को बताया था।

अगर ‘हेगेलवादी आदर्शवादी द्वंदवाद’ अपने कानून प्रकृति पर थोपता है, तो दार्शनिक तौर पर सोचें, तो प्रकृति के द्वंदवाद व भौतिक नज़रिए से अब सामान्य वापसी होना चाहिए। इसके बजाए, यथार्थवादी संप्रदाय, जो भौतिकवाद के सबसे करीब है, वो दुनिया की बाहरी वास्तविकता को स्वीकार करते भी हुए खुद को भौतिकवादी कहने से इंकार करता है। मार्क्स, एंगेल्स और बाद में साम्यवादियों से जुड़ा शब्द भौतिकवाद अपने आप में एक “प्रदूषित” शब्द है। द्वंदवाद से वापसी, वैज्ञानिकों में उस दर्शन के इंकार के ज़रिए भी हुई है, जिसके तहत यह नजरिया रखा जाना चाहिए कि विज्ञान अपने-आप में काफ़ी है, उसे आगे विज्ञान के किसी तरह के प्रबंधन सिद्धांतो की ज़रूरत नहीं है।

द्वंदवाद ज़्यादा व्यापक स्तर के संयोजित सिद्धांतों को उपलब्ध करता है, जिनके ज़रिए हम विज्ञान के अलग-अलग हिस्सों को जोड़ सकते हैं। द्वंदवाद के नीचे यह विश्वास है कि हर चीज अपनी गति में है या बदलने की प्रक्रिया में है। जब हम समाज और प्रकृति की तरफ देखते हैं, तो हमें उन्हें वक्त और जगह पर थमे होने के बजाए, बदलाव के नज़रिए वाले बिंदु से देखना चाहिए।

‘एंटी डुहरिंग’ किताब में एंगेल्स ने द्वंदवाद के तीन नियम बताए हैं: मात्रात्मक से गुणात्मक बदलाव (या जिसे भौतिकशास्त्री ‘फेस चेंज’ कहेंगे), प्रकृति में विरोधाभासों की अहमियत और बढ़ती जटिलताओं से पैदा होने वाले नई उभरती संपत्तियां। इन्हें नियम कहने के बजाए, इन्हें व्यापक स्तर के संगठन सिद्धांतों के तौर पर देखा जाना चाहिए, जिनके दायरे में हम वैज्ञानिक नियमों को समझते हैं।

मार्क्स ने लिखा कि उन्होंने अपने आर्थिक नियम द्वंदवाद से नहीं निकाले। बल्कि उन्होंने पूंजी के नियम बनाने के बाद बताया कि उनके आर्थिक नियम, द्वंदवाद के सिद्धांतों का पालन करते हैं। एंगेल्स ने भी इसी तरह विज्ञान के लिए द्वंदवाद के सिद्धांत नहीं बताए, बल्कि एंगेल्स ने बताया प्रकृति के सिद्धांत विज्ञान में मिलते हैं, जिन्हें एक द्वंदवादी ढांचे में ढाला जा सकता है।

एंगेल्स कभी प्रकृति के द्वंदवाद पर अपने काम को पूरा नहीं कर पाए। जाने-माने विकासवादी जीवविज्ञानी और ब्रिटिश मार्क्सवादी हाल्डेन ने 1939 में “डॉयलेक्टिक्स ऑफ नेचर” के परिचय में लिखा कि उन्हें इस बात का खेद है कि यह किताब इतने लंबे वक़्त तक प्रकाशित नहीं हो पाई। उन्होंने लिखा, “अगर डार्विनवाद पर यह टिप्पणियां सार्वजनिक होतीं, तो कुछ हद तक मैं भी बहुत सी उलझन भरी सोच से बच जाता।” उस किताब का एक अधूरा हिस्सा मानव विकास में श्रम की भूमिका पर है, खासकर हाथ के विकास पर। श्रम की प्रक्रिया के ज़रिए हुआ हाथ का विकास ही इंसान को बंदरों से अलग बनाता है। एंगेल्स ने लिखा, “हाथ के चलते हमारी प्रजाति का विकास नहीं हुआ, लेकिन हाथ और श्रम का का सहविकास एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है।”

विकास पर लेमार्कवाद के विचारों को मानने के लिए एंगेल्स की आलोचना होती है, इसके चलते उस प्रक्रिया की आलोचना भी की जाती है, जिसके ज़रिए एंगेल्स ने ‘श्रम के कौशल के उत्तराधिकार (इनहेरिटेंस ऑफ स्किल ऑफ लेबर)’ की व्याख्या को परिभाषित किया है। लेकिन लोग यह भूल जाते हैं कि डार्विन जब ‘प्राकृतिक चयन’ की व्याख्या कर रहे थे, तब उन्होंने भी लेमार्क के विकासवादी विचारों को मान्यता दी थी। जिनके मुताबिक़, गुणों का उत्तराधिकार, विकास का वाहक होता हैं। 1868 में प्रकाशित अपने ‘अनुवांशिकता के सिद्धांत’ में डार्विन ने अपने विकासवादी सिद्धांत “पैनजेनेसिस” की व्याख्या की। इस विकासवादी सिद्धांत में प्राकृतिक चयन और लैमार्कवादी ‘गुणों के उत्तराधिकार सिद्धांत’ से भी चीजें शामिल की गई थीं। जीवविज्ञानियों के लिए मैंडेलिन जेनेटिक्स उपलब्ध नहीं थी। बहुत बाद में जाकर जीवविज्ञान में मैंडेलिन के जेनेटिक्स को शामिल किया गया।

एंगेल्स का मुख्य योगदान यह था कि उन्होंने बताया कि प्रकृति सिर्फ़ स्थिर और रुकी हुई प्रकृति या अपने इतिहास की पृष्ठभूमि तक सीमित नहीं है। उन्होंने बताया कि प्रकृति भी विकास के क्रम में है, बिलकुल वैसे ही जैसे प्रकृति में शामिल जीव विकास कर रहे हैं। प्रकृति और मानव समेत उसके तमाम जीव इस ऐतिहासिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं।

मार्क्स और एंगेल्स के अध्ययन के केंद्र में एक अहम विषय विज्ञान और तकनीकी के साथ इसका उत्पादन से संबंध था। जहां मार्क्स ने उद्योग और कृषि में तकनीकी बदलावों पर ध्यान केंद्रित किया, वहीं दूसरी तरफ उन्हें किसी ऐसे शख्स की तलाश थी, जो ना केवल तकनीकी बदलावों को समझ सके, बल्कि विज्ञान में आने वाली उन्नति को भी समझ सके। मार्क्स ने विज्ञान के विकास पर गहराई से नज़र रखी, लेकिन अक्सर वह विज्ञान के नई खोजों के तकनीक पर प्रभाव को समझने के लिए एंगेल्स का रुख करते थे।

एंगेल्स ने ना केवल औद्योगिक क्रांति के चलते इंग्लैंड में कामग़ार वर्ग की स्थिति के बारे में लिखा, बल्कि उन्होंने मैनचेस्टर की एक कपड़ा मिल में बतौर साझेदार काम भी किया। वह इंग्लैंड में जारी औद्योगिक क्रांति का हिस्सा थे और इस दौरान उनकी दोस्ती कार्ल स्कॉरलेमर से थी, जो एक केमिस्ट और जीवनपर्यंत साम्यवादी थे। अपने वक़्त के एक अग्रणी वैज्ञानिक स्कॉरलेमर, जो रॉयल सोसायटी के सदस्य थे, उन्होंने मार्क्स और एंगेल्स की विज्ञान की समझ बनाने में मदद की।

मार्क्स और एंगेल्स के बीच विज्ञान के लेखन पर श्रम का बंटवारा तो था ही, दोनों उस अध्यात्मिक चिंतन से लड़ने में भी साझेदार थे, जो प्रकृति और समाज में बदलाव को एक बुनियादी गुण मानने से इंकार करता है। अगर “कैपिटल” और उसका पहला संस्करण औद्योगिक क्रांति के दौरान तकनीक के इतिहास पर सबसे तीक्ष्ण दृष्टि रखता है, तो “डॉयलेक्टिक्स ऑफ नेचर” किताब अपने अधूरे रूप में ही एंगेल्स की उनके जीवनकाल में हो रहे वैज्ञानिक बदलावों की गहरी समझ के स्तर को प्रदर्शित करती है।

मार्क्स और एंगेल्स के बहुत सारे आलोचक हुए हैं, जो कहते हैं कि मार्क्सवाद ‘उत्पादकता पूर्वाग्रह (प्रोडक्टिविस्ट बॉयस)’ से ग्रसित है, जो प्रकृति को उत्पादक शक्तियों के विकास के लिए एक अनंत संसाधन मानता है। हमारे देश के गांधीवादी लोग भी यही आलोचना करते हैं कि मार्क्सवाद और पूंजीवाद दोनों ही औद्योगिक विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो प्रकृति को बदल देगा और एक पर्यावरणीय संकट पैदा कर देगा।

बल्कि इसके उलट, मार्क्स और एंगेल्स ने प्रकृति को हुए नुकसान और असीमित विस्तार वाले उत्पादन को बनाए रखने में अक्षमता के ऊपर बहुत लिखा है। इसके उदाहरण मेसोपोटामिया के मरुस्थलीकरण से लेकर भारत में ब्रिटिश नीतियां हैं, जिनसे भारत के जुलाहे बर्बाद हो गए। कैपिटल, वॉल्यूम 1 में लिखते हैं, “अंग्रेजी कपास मशीनरी ने भारत में न्यूनता का प्रभाव पैदा कर दिया। 1834-35 में गवर्नर जनरल ने लिखा, ‘यहाँ का जैसा संकट है, शायद ही इतिहास में कोई वैसा उदाहरण हो। जुलाहों की हड्डियां भारत के मैदानों को सफेद कर रही हैं।”

एंगेल्स, प्रकृति की उत्पादक क्षमता के लिए पूंजीवाद के खतरे से पूरी तरह वाकिफ़ थे। मंथली रिव्यू में बेलॉमी फोस्टर लिखती हैं, “एंगेल्स ने एंटी डुहरिंग में संकेत दिया था कि ‘पूंजीवादी वर्ग, वह वर्ग है, जिसके नेतृत्व में समाज एक जाम हो चुके लोकोमोटिव की स्थिति में आ रहा है, जिसके सेफ्टी वॉल्व को खोलने के लिए चालक काफ़ी कमज़ोर हो चुका है।’ उत्पादक शक्तियों को नियंत्रित करने में पूंजी की अक्षमता, जिसका प्रभाव प्राकृतिक और सामाजिक पर्यावरण पर पड़ रहा है, इससे पूरा बुर्जुआ समाज खात्मे या क्रांति की ओर बढ़ रहा है।’ इसलिए अगर पूरा आधुनिक समाज नष्ट होना नहीं चाहता, तो उत्पादन और वितरण के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव होने जरूरी हैं।

पूंजी, प्रकृति को जो नुकसान पहुंचा रही थी, उससे बेखबर होने के बजाए एंगेल्स और मार्क्स उस संकट से परिचित थे। पर्यावरणीय-सामाजिक आंदोलन ने कामग़ार वर्ग के आंदोलन की ज़रूरत को पैदा किया, जिससे पूंजीवादी उत्पादन की समस्याओं को हल किया जा सके। क्योंकि यह पूंजीवादी उत्पादन अगली तिमाही के मुनाफ़े और स्टॉक बाज़ार में अपने शेयर के परे नहीं सोचता।

सबसे उन्नत वैज्ञानिक और तकनीकी दिमागों में वामपंथी आंदोलन लाना होगा ताकि उस संकट से निपटा जा सके, जो पूंजीवाद के लालच के चलते पैदा हो रहा है। हमने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यही किया था।  हमें बताना होगा कि विज्ञान, तकनीकी और समाज में दूसरे विकल्प भी मौजूद हैं। यह सही है कि विज्ञान और तकनीकी अपने आप समाज और प्रकृति की समस्याओं का समाधान नहीं करेंगे। लेकिन ऐसे समाधान बिना विज्ञान और तकनीकी के संभव भी नहीं होंगे। एंगेल्स ने हमारे सामने यही उदाहरण पेश किया था। हमें इसी का पालन करने की आज ज़रूरत है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Three Problems of Reading Engels and the Reasons Why We Need To

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