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तिरछी नज़र: आख़िर गांधी जी ने हमें दिया ही क्या है

आख़िर गांधी ने हमें दिया ही क्या है जो हम उन्हें इतना पूजते हैं। आज़ादी तो असलियत में आरएसएस ने, हिन्दू महासभा ने दिलवाई थी।
तिरछी नज़र: आख़िर गांधी जी ने हमें दिया ही क्या है

आज गांधी जयंती है। आज ही के दिन, यानी दो अक्टूबर को आज से एक सौ तिरेपन साल पहले गांधी जी का जन्म हुआ था। बापू का जन्म हुआ था। बापू, अरे वही गांधी, मोहनदास करमचंद गांधी, महात्मा गांधी। एक ही आदमी को कई कई नाम दिए हुए हैं।

मैं सोचता हूं, बापू नहीं होते तो क्या होता। देश को आजादी तो मिल ही जाती। 1947 में नहीं तो 2014 में मिल जाती। वैसे भी यह 2014 वाली आजादी मिली है, 1947 में मिली आजादी की वजह से ही मिली है। अब सही इतिहास लिखा जा रहा है। जब सारा इतिहास सही सही लिख लिया जाएगा तो सारे जनों को पता चल जाएगा कि 1947 की आजादी और 2014 की आजादी, दोनों ही आरएसएस के स्वतंत्रता सेनानियों की वजह से ही मिली हैं। 

आखिर गांधी ने हमें दिया ही क्या है जो हम उन्हें इतना पूजते हैं। आजादी तो असलियत में आरएसएस ने, हिन्दू महासभा ने दिलवाई थी। उनके कार्यकर्ता अंग्रेजों की चापलूसी करते थे, माफी मांगते थे, कसमें खाते थे कि हम आजीवन वफादारी निभाएंगे। वे नारे लगाते थे कि अंग्रेजों, भारत मत छोड़ो। मी लॉर्ड, आप भारत छोड़ कर मत जाओ, हम अनाथ हो जाएंगे। अंग्रेज न तो गांधी और कांग्रेस के आंदोलनों से भारत छोड़ कर गए और न ही भगतसिंह, सुखदेव जैसों की कुर्बानी से। अंग्रेज तो आरएसएस की चापलूसी से, जी हजूरी से इतने परेशान हुए कि उन्हें भारत छोड़ कर जाने में ही भलाई लगी। नया इतिहास रचा जाने दो, सब दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। गांधी, पटेल और भगतसिंह, सब आरएसएस के कार्यकर्ता घोषित हो जाएंगे।

मुझे कभी भी समझ नहीं आया कि गांधी ने हमें दिया ही क्या है जो हम उन्हें राष्ट्रपिता मानते हैं, उनके जन्मदिन पर छुट्टी मनाते हैं। स्वतंत्रता तो आरएसएस ने दिलवाई थी। मैंने बहुत सोचा विचारा, दिमाग पर जोर डाला, कि गांधी जी ने हमें क्या दिया है? बहुत जोर डाला तो गांधी जी द्वारा दी गई कुछ चीजें मेरे दिमाग में आईं। 

एक तो गांधी जी ने, बापू ने हमें अपनी फोटो दी है, मूर्ति दी है। जिसे हम कहीं भी लगा कर असली गांधी जी को भूल सकते हैं। जब जरूरत पड़े, उस फोटो या मूर्ति को धो, पोंछ कर, साफ कर, उस पर फूल मालाएं चढ़ा सकते हैं। और जरूरत पड़ने पर, अपना मंतव्य साधने के लिए उस फोटो या मूर्ति के सामने धरना प्रदर्शन भी कर सकते हैं। मतलब कोई शराब के ठेके खुलवाने के लिए धरना दे सकता है तो कोई दूसरा ठेके बंद करवाने के लिए। हम किसी भी बात के लिए गांधी जी की फोटो या मूर्ति के आगे धरना दे सकते हैं।

यही सब काम करने के लिए गांधी जी ने अपनी समाधि भी दी है लेकिन उसके साथ दिक्कत यह है कि समाधि सिर्फ दिल्ली में है इसलिए बाकी जगह के लोगों को फोटो या मूर्ति से ही काम चलाना पड़ता है। गांधी समाधि का एक अतिरिक्त लाभ और है। दो अक्टूबर और तीस जनवरी को, क्या सरकार और क्या विपक्ष, सभी के नेता गांधी समाधि के चक्कर लगा आते हैं। हां, एक बात और, कोई विदेशी मेहमान आए तो हम उसे गांधी समाधि दिखा सकते हैं। देखो, हमारे पास यह है। तुम्हारे पास क्या है?

अरे हां! एक और चीज याद आई। उन्होंने जो एक और बड़ा काम और किया था। वह यह कि उन्होंने सावरकर से माफीनामे लिखवाए थे। सावरकर तो लिखना ही नहीं चाहते थे परन्तु गांधी जी ने सावरकर का हाथ पकड़ कर लिखवाए। सावरकर को बार-बार संदेश भेज कर मजबूर किया कि वे अंग्रेजों को माफीनामे लिखें। पहले तो समझा जाता था कि गांधी और सावरकर के बीच में संदेश वाट्सएप पर आदान प्रदान होते होंगे पर नई रिसर्च में सामने आया है कि ये संदेश एक बुलबुल के जरिए भेजे जाते थे। यह गांधी जी का ही किया धरा था कि सावरकर ने अंग्रेजों को इतने सारे माफीनामे लिखे। गांधी जी का यह अचीवमेंट नया नया ही पता चला है। 

दूसरा बड़ा काम जो गांधी जी ने किया वह यह कि उन्होंने नाथूराम गोडसे को 'गोडसे जी' बनाया। आज जो नाथूराम गोडसे बहुत से लोगों के लिए गोडसे जी है, वे जो लोग उसे देशभक्त मानते हैं, वे जो गोडसे के मंदिर बनवाते हैं, वे जो लोग गोडसे जिंदाबाद बोलते हैं, और वे भी जो गोडसे को देशभक्त मानने वालों को दिल से माफ नहीं कर पाते हैं, वे सब गांधी जी की वजह से ही हैं। जरा सोचो, अगर गांधी जी नहीं होते तो गोडसे किस की हत्या कर इतना महान बनता कि उसकी पूजा करने वाले संसद में बैठे होते। सब गोडसे भक्तों को गांधी जी का शुक्रगुजार होना चाहिए। अगर गांधी जी नहीं होते तो गोडसे, गोडसे ही रह जाता। 

गोडसे ने जब गांधी जी की हत्या की, वह सैंतीस अड़तीस साल का था। मतलब भगतसिंह को जिस उम्र में फांसी हुई, उससे पंद्रह साल बड़ा। गांधी जी की हत्या से पहले उस गोडसे ने किसी अंग्रेज़ को थप्पड़ तक नहीं मारा था। वह तो आरएसएस का, हिन्दू महासभा का एक साधारण सा कार्यकर्ता ही था और अंग्रेजों के शासन में भी गांधी जी की ही हत्या की कोशिश करता रहा था। गांधी जी नहीं पैदा हुए होते तो यह गोडसे भी नहीं पैदा हुआ होता। गांधी जी ने यह अहसान तो गोडसे प्रेमियों पर अवश्य ही किया है कि गोडसे को उनके लिए पूजनीय बनाया है।

और हां, गांधी जी का एक अहसान और है। वे हमें अपना जन्मदिन मनाने दे रहे हैं। उनके जन्मदिन पर सरकार जी जो मन में आए घोषणा कर सकते हैं। कभी न पूरी होने वाली कोई भी घोषणा। और उस दिन भी कभी सत्य न बोलने की अपनी पृथा निभाते रह सकते हैं। सात साल पहले गांधी जयंती के दिन ही स्वच्छ भारत योजना की घोषणा हुई थी। क्या हुआ? सबको पता है। हर वर्ष दो अक्टूबर को कोई न कोई नई घोषणा होती ही है। सुना है, इस बार भी एक घोषणा होनी है। इस बार भी घोषणा तो होनी ही है। सुना है, सरकार जी विदेशी चश्मा पहन, विदेशी पेन लगा, विदेशी घड़ी सजा, देशी को अपनाने की घोषणा करने वाले हैं।

(व्यंग्य स्तंभ तिरछी नज़र के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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