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उड़ता गुजरात पार्ट 1: गुजरात में चरमराती स्वास्थ व्यवस्था

“ वाड्स बहुत ज्यादा भरे हुए थे , मरीज़ जमीन पर लेटे थे , दो मरीज़ आयरन सयूसीरओसइ के ट्रांसफ्यूज़न के दौरान एक ही बेड पर लेटे थे और कुछ मरीज़ बेड उपलब्ध ना होने की वजह से कॉरिडोर में ही लेटे हुए थे ’’.
गुजरात मॉडल की सच्चाई
Image Courtesy: Huffington Post

गुजरात की सरकारी स्वास्थ व्यवस्था लगातार बिगड़ती जा रही है , जो की अत्यंत चिंता का विषय है . इस ख़राब स्तिथि का आलम ये है कि गुजरात में 77% स्पेशलिस्ट डॉक्टर और 69 % जनरल डॉक्टर के पद ख़ाली हैं साथ ही वहाँ 72 % तक नर्सों की कमी है . इसके आलावा गुजरात के अस्पतालों में 73 % बेड्स कम हैं और 41 % पैरामेडीकल स्टाफ की भी कमी है . दवाईयों के लिए दिए गए फंड्स का इस्तेमाल नहीं होता , ज़रूरी दवाईयों की सप्लाई बहुत कम है और मरीजों का ख़राब दर्ज़े की दवाइयां डी जाती है . दुर्घना और इमरजेंसी सुविधाएँ भी या तो उपलब्ध नहीं हैं या आंशिक रूप से उपलब्ध हैं .

ये भयानक सच्चाई कॉमपट्रोलर और ऑडीटर जनरल (CAG) की 2016  की एक रिपोर्ट से उजागर हुई है जिसमें 2010 से 2015 तक की अवधि के आंकड़े हैं .औद्योगिक और कृषि उत्पादन में काफी अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य होने के बावजूद गुजरात या फिर जिसे प्रधानमंत्री बार बार गुजरात मॉडल कहते हैं , गुजरात के नागरिकों को मूलभूत सुविधाएँ देने में नाकाम रहा है . सार्वजनिक स्वास्थ व्यवस्था के लगभग विघटनस से न सिर्फ स्वास्थ संकेतकों के आंकड़े बिगड़ रहे हैं , बल्की लगातार निजीकरण के कारण ये सेवाएँ बहुत महँगी होती जा रही हैं . CAG रिपोर्ट ने आदिवासी इलाकों में स्वास्थ व्यवस्था की अत्यंत दयनीय दशा की ओर विशेष संकेत किया है . रिपोर्ट के मुताबिक इन इलाकों की स्थिति बाकि जिलों से भी ख़राब है .

CAG की टीम ने इसकी जाँच 8 जिलों में की .जिससे पता चलता है कि मार्च 2015 तक गुजरात के लोगों की स्वास्थ ज़रूरते पूरी करने के लिए राज्य में  34 डिस्ट्रिक्ट अस्पतालों , 42 सब डिस्ट्रिक्ट अस्पतालों ,321 कम्युनिटी अस्पतालों ,1265 प्राइमरी अस्पतालों और 8121 सब सेंटर थें .

इंडिया पब्लिक हेल्थ (IPH) के मानकों के हिसाब से गुजरात में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की 29 से 77 % तक और मेडिकल ओफ्फिसरों की 7 से 69 % तक कमी पाई गयी . इसमें सुरेन्द्रनगर ,गोधरा , पेटलेड और वरोदरा के जिला अस्पतालों की स्तिथी चिंता जनक थी , जहाँ 60% से ज्यादा डॉक्टरों की कमी थी . इसी तरह IPH के मानकों हिसाब से वहां 72 % स्टाफ नुरसों के पद खली थे और पैरामेडिकल और अन्य स्टाफ 31 से 89 % तक कम थी. .

11 जिलों के जिला स्तरीय अस्पतालों में मौजूद 13833 बैडों में से सिर्फ 10645 ही उपलब्ध थे . ये 10000 बैड राज्य की 23 % आबादी यानी 3.35 करोड़ लोगों के लिए मुहैया कराये गए हैं . बाकी 22 जिलों में जहाँ राज्य की11 डिस्ट्रिक्ट के 3.55 कारोड ( 23% राज्य की आबादी ) के लिए 13833 बेड्स में सिर्फ 10645 बेड्स उपलब्द्ध थे . बाक़ी 22 जिलों के लिए जहाँ राज्य की 41 %  आबादी यानी 2.49 करोड़ लोग रहते हैं , में सिर्फ 3188 बैड ही उपलब्ध थे .की जनसंक्या के लिए सिर्फ 3188 बेड्स हैं . CAG की ने रिपोर्ट में दर्ज किया है कि “ वाड्स बहुत ज्यादा भरे हुए थे , मरीज़ जमीन पर लेटे थे , दो मरीज़ आयरन सयूसीरओसइ के ट्रांसफ्यूज़न के दौरान एक ही बेड पर लेटे थे और कुछ मरीज़ बेड उपलब्ध ना होने की वजह से कॉरिडोर में ही लेटे हुए थे ’’. राज्य सरकार के पास स्वास्थ सेवाओं के संरचना निर्माण करने के लिए 732.64 करोड़ का बजट था . मार्च 2015 तक सिर्फ 580.08 करोड़ ही खर्च किये गए थे .

जिन अस्पतालों की जाँच की गयी वहाँ पाया गया कि चार महीनों से ज्यादा अवधि से ज़रूरी दवाओं जैसे Amoxycilin, Diclofenac Sodium, HepatitisB Vaccine, Injection Ceftazimide,  insulin आदि उपलब्ध नहीं थीं .CAG रिपोर्ट के मुताबिक अगस्त 2015 तक 12 से 76 % तक ज़रूरी दवाईयों की कमी थी . ये कमी 4 महीनों तक थी और इसकी वजह से मरीजों को मार्किट से दवाइयां खरीदनीं पड़ रही थीं .अस्पताल प्रशासनों का कहना था कि दवाईयों के स्टॉक में कमी  गुजरात मेडिकल सर्विसेज कोरपोरेशन लिमिटेड GMSCL की सप्लाई में देरी की वजह से थी . इसके आलावा उनका कहना था कि IPD के लिए ज़रूरी दवाईयों की खरीद ज़रुरत पड़ने पर आस पास से ख़रीदी जाती है . 2012 में CMSO को ख़तम कर GMSCL की स्थापना की गयी . GMSCL ने साल 2012 – 2013 में आवंटित फण्ड में से 86% का उपयोग किया जो साल 2014 -15 में गिरकर 55 % तक रह गया . जबकी इस अवधि में GMSCL का फण्ड तिगुना कर दिया गया था . साल 2014  में उपयोग ना होने की वजह से 47 करोड़ रुपये लौटा दिये .

जाँच किये गए अस्पतालों में CAG ने पाया कि GMSCL नीचे स्टैण्डर्ड क्वालिटी (NSQ )की दवाइयां प्रदान कर रही थी और ये दवाइयां मरीजों को भारी मात्रा में दी जा रही थीं . उन्होंने पाया कि 399 NPQ के बैच में से 221मरीजों द्वारा इस्तेमाल की गयी थी .

CAG ने रिपोर्ट गया की जिन जिला अस्पतालों की जाँच की वहाँ ‘’ दुर्घटना ,आपातकाल और ट्रौमा केयर सेवाएं या तो उपलब्ध ही नहीं थी या उनमें आवश्यक उपकरणों की मौजूद नहीं थे .

 सात में से तीन जिला अस्पतालों में आई सी यू यूनिट नहीं थीं. बाकी के चार जिला अस्पतालों में  38 से 40% बैडों की कमी थी और केवल एक या दो बिस्तर गंभीर केसों से निपटने के लिए जीवन रक्षक उपकरणों से लैस थे. सिविल अस्पतालों (सी एच) में भी स्थिति बहुत शोचनीय थी. सी एच भावनगर अस्पताल में  केवल 11 में से  5  बिस्तर और  सी एच वड़ोदरा अस्पताल में  केवल 36 में से  9 बिस्तर पूरी तरह से जीवन रक्षक उपकरणों से लैस थे.

CAG रिपोर्ट के अनुसार कई अस्पतालों में नवजात शिशु और बच्चों की ऊँची मृत्युदर दर्ज की है क्यूंकि “ जाँच किये गए जिला अस्पतालों के डायगनोसिस और इमेजिग विभागों में टेस्ट उपकरणों की अनुपलब्धता दर्ज की गई .गोधरा , सुरेंद्रनगर और हिम्मतनगर जिला अस्पतालों के आलावा बाकि जाँच में शामिल सभी जिला अस्पतालों में था तो ब्लड बैंक थे ही नहीं और यदि थे तो इस्तेमाल में नहीं थे .

 

 

 

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