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यूपी उपचुनाव: मैनपुरी, रामपुर सपा के भविष्य का सवाल तो खतौली में भाजपा की परीक्षा

इन उपचुनावों के नतीजों से 2024 के आम चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश की ज़मीनी हक़ीक़त का अंदाज़ा भी हो जाएगा।

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उत्तर प्रदेश में होने वाले उप-चुनावों को लेकर सरगर्मी तेज़ हो गई हैं। उप-चुनावों में भी विधानसभा चुनाव 2022 की तरह, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच कड़ा मुकाबला होने की सम्भावना है। हालाँकि सपा के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा और भविष्य का सवाल है।

मैनपुरी लोकसभा सीट सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की मृत्यु से रिक्त हुई है। रामपुर और मुज़फ्फ़रनगर खतौली की विधानसभा सीटें वहाँ के विधायकों आज़म खां और विक्रम सैनी क्रमश: को “हेट स्पीच” के मामले में सज़ा होने वजह से छोड़नी पड़ी हैं। इन सभी सीटों पर 5 दिसंबर को वोट पड़ेंगे और मतगणना गुजरात और हिमाचल विधानसभा के साथ 8 दिसंबर को होगी।

मैनपुरी संसदीय क्षेत्र और रामपुर और खतौली  विधानसभा के उप-चुनाव को लेकर 10 नवम्बर को नोटिफिकेशन जारी हुआ था। नामांकन की अन्तिम तारीख 17 नवम्बर है। नामांकन पत्रों की जाँच 18 नवम्बर को की जाएगी और नाम वापसी 21 नवम्बर तक हो सकेगी।

नामांकन शुरू होते ही मैनपुरी से सपा की उम्मीदवार डिम्पल यादव ने 14 नवम्बर को अपना पर्चा  दाखिल कर दिया है।

मैनपुरी सीट

सपा के लिए यह चुनौती है कि वह अपने गढ़ मैनपुरी को बचाए, क्योंकि वह अपने दो गढ़ रामपुर और आजमगढ़ पिछले उप-चुनावों में हार चुकी है। रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा में जीत के बाद से बीजेपी के हौसले बुलंद हैं और वह 2024 से पहले यह सन्देश देना चाहती है की सपा एक कमज़ोर विपक्षी दल है। जबकि, बहुजन समाज पार्टी  और कांग्रेस पहले से ही अपेक्षाकृत कमज़ोर स्थिति में हैं।  

बीजेपी को विधानसभा चुनाव 2022 में सपा से कड़ी चुनौती मिली थी। सपा चुनाव नहीं जीत सकी थी। लेकिन उसने बीजेपी का काफी नुकसान किया था। सपा 403 सीटों वाली विधानसभा में 48 सीटों से 111 सीटों पर आ गई और उसका वोट प्रतिशत भी ऊपर गया।  इसी तरह बीजेपी 324 सीटों से 255 सीटों पर आ गई।

सपा के संथापक मुलायम सिंह यादव की मृत्यु के बाद पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव  के लिए यह उप-चुनाव पहली चुनौती हैं। मैनपुरी चुनाव में अखिलेश यादव ने सपा की तरफ से अपनी पत्नी डिम्पल यादव को चुनाव मैदान में उतारा है। पूर्व सांसद डिम्पल यादव मुलायम सिंह की  बड़ी बहू हैं। उन्हें 2012 में कन्नौज निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए निर्विरोध चुना गया था।

मुलायम की राजनीतिक विरासत

मैनपुरी सीट 1996 से सपा का गढ़ मानी जाती है। इस सीट पर कभी भी बीजेपी ने विजय नहीं दर्ज की है। मैनपुरी चुनाव मुलायम सिंह “नेताजी” की राजनीतिक विरासत का भी सवाल है। क्योंकि स्वयं मुलायम सिंह यहाँ से पांच बार चुनाव जीते थे।

यादव परिवार में 2016 से चल रही कलह को देखते हुए, माना जा रहा था कि मुलायम सिंह के भाई शिवपाल यादव की नज़र भी इस सीट पर थी। क्योंकि मुलायम के साथ कई दशकों तक ज़मीन पर काम करने वाले शिवपाल स्वयं को “नेताजी”  का उत्तराधिकारी मानते हैं।

हालाँकि शिवपाल तो फिलहाल चुनावी मैदान में नहीं हैं, लेकिन बीजेपी  यादव परिवार की कलह का पूरा फायदा उठाना चाहती है। बीजेपी ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल यादव के क़रीबी रहे रघुराज शाक्य को मैनपुरी से अपना प्रत्याशी बनाया है।

रघुराज शाक्य ने इसी साल फरवरी में  प्रसपा छोड़ दी  थी और बीजेपी का दामन थाम लिया था। शाक्य दो बार सांसद रह चुके हैं और वह प्रसपा के प्रदेश उपाध्यक्ष के पद पर भी रहे हैं। शाक्य 1999 और 2004 में समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर इटावा से लोकसभा के लिए चुने गए थे। इसके अलावा उन्होंने 2012 में सपा के टिकट पर इटावा (सदर) सीट से विधानसभा का चुनाव भी जीता था। उन्होंने सपा से 27 जनवरी 2017 को इस्तीफा दे दिया था।

एटा, बदायूं, मैनपुरी, इटावा तथा इसके आसपास जनपदों में “शाक्य” समाज काफी प्रभावी है। इसीलिए बीजेपी ने यादव परिवार के गढ़ में सेंध लगाने के लिए जाति समीकरण को देखते हुए “शाक्य” समुदाय का उम्मीदवार मैदान में उतारा है।

रामपुर सीट

सपा और बीजेपी में रामपुर विधानसभा सीट पर भी कड़ा मुकाबला होता नज़र आ रहा है।  रामपुर में मुस्लिम वोटरों का वर्चस्व है। लेकिन जून 2022 के लोकसभा उप-चुनाव में सपा यहाँ से हार गई थी। यह  कहा जा रहा है की यह सीट हारने का मुख्य कारण अखिलेश यादव  की मुस्लिम मुद्दों पर ख़ामोशी थी और प्रचार के लिए उनका मैदान में न उतारना था।

इस बार भी रामपुर सीट पर अभी तक सपा ने किसी उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। माना जा रहा है कि सपा प्रमुख ने पार्टी के कद्दावर नेता व मुस्लिम चेहरा आज़म खां को इस सीट पर कोई भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र रखा है। क्योंकि रामपुर को आज़म खां का गढ़ माना जाता है। आज़म खां यहाँ  से आठ बार जीते हैं और उनकी पत्नी तज़ीन फ़ातिमा एक बार रामपुर से विधायक रही हैं। लोकसभा सीट पर आज़म खां के इस्तीफे की वजह से ही उपचुनाव हुए थे, क्योंकि वे 2022 के विधानसभा चुनाव में रामपुर से ही विधायक चुने गए थे, लेकिन हेट स्पीच के आरोप में उनकी विधानसभा सदस्यता भी समाप्त हो गई थी, इसी वजह से यहां विधानसभा के भी उपचुनाव हो रहे हैं।

हालाँकि जून 2022 के लोकसभा उप-चुनाव में आज़म अपने क़रीबी असीम रज़ा को नहीं जिता सके थे। इस सीट पर बीजेपी के घनश्याम सिंह लोधी का क़ब्ज़ा है। लेकिन कहा जा रहा है आज़म खां विधानसभा अपनी बहु सिदरा खां के नाम पर विचार कर सकते हैं। सिदरा ने आज़म  खां के जेल में रहते 2019 के आम चुनाव में उनका प्रचार संभाला था।

इस सीट पर बीजेपी ने आकाश सक्सेना को अपना प्रत्याशी बनाया है। आकाश सक्सेना ने ही पूर्व मंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) के आज़म  ताज़ीन  खां  के ख़िलाफ़ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी।

उल्लेखनीय है कि आकाश सक्सेना आज़म खां, अब्दुल्ला आज़म और  फात्मा के ख़िलाफ़ दर्ज कई मुकदमों में वादी है। आकाश ने आज़म खां के सामने 2022 का विधानसभा चुनाव भी लड़ा था, जिसमें उनको 76,084 वोट मिले थे लेकिन वह हार गए थे।  बीजेपी हर संभव प्रयास करेगी की रामपुर से आज़म खां का वर्चस्व ख़त्म किया जाये ताकि मुस्लिम बाहुल्य सीट पर भी सपा को कमज़ोर किया जा सके।

खतौली सीट

मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले की खतौली विधानसभा सीट से बीजेपी ने पूर्व विधायक विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमारी सैनी को अपना उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर सपा की सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) चुनाव लड़ रही है।  रालोद के अध्यक्ष  जयंत चौधरी ने खतौली सीट पर “जाट-मुस्लिम” समीकरण बनाने के लिए “गुर्जर” समुदाय से आने वाले चार बार के विधायक रहे, मदन भैया को प्रत्याशी बनाया है। इस चुनाव से 2024 के लोकसभा चुनाव से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ज़मीनी हकीक़त का अंदाज़ा होगा।

माना जा रहा है कि जहाँ यह उप-चुनाव सपा के लिए प्रतिष्ठा और भविष्य का सवाल हैं वहीं बीजेपी के लिए सपा के किलों में सेंध लगाने का मौक़ा है।  इन चुनावों से 2024 के आम चुनावों से पहले प्रदेश की राजनीतिक स्थिति का अंदाज़ा भी होगा।

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