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लखनऊ : कौन जीतेगा यूपी का दिल?

यूपी चुनाव के चौथे चरण का मतदान जारी है। इस चरण पर सभी की निगाहें हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में हर पार्टी की गहरी हिस्सेदारी है।
लखनऊ

हिंदुत्व के प्रयोग को लागू करने वाली मूल प्रयोगशाला उत्तर प्रदेश थी। 2002 के गुजरात नरसंहार से बहुत पहले, भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य, बाबरी मस्जिद विध्वंस से पहले की  अवधि के दौरान देश को एक हिंदू राष्ट्र बनाने के आरएसएस का लक्ष्य को हासिल करने का एक खेल का मैदान बन गया था।

प्रो रूप रेखा वर्मा लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति हैं, वह बताती हैं, "उत्तर प्रदेश हिंदुत्व ब्रिगेड के लिए एक पुराना शिकारगाह है। तहज़ीब और विभिन्न संस्कृतियों का शहर लखनऊ, बाबरी मस्जिद विध्वंस से पहले यानि अस्सी के दशक से इस विभाजनकारी राजनीति और नफरत के महौल का सामना कर रहा था। यह गुजरात नरसंहार से एक दशक से अधिक समय के पहले की बात है।"

वर्मा वर्तमान में साझी दुनिया चलाती हैं, जो बेहद गरीबों के बीच काम करती है। 78 वर्षीय वर्मा हर सुबह लखनऊ और उसके आसपास की उन बस्तियों का दौरा करती हैं, जो 23 फरवरी को अपना वोट डालेंगी। मैं उन क्षेत्रों का दौरा करती हूं जहां अल्पसंख्यक रहते हैं और साथ ही जो बहुत गरीब भी हैं। वर्मा कहती हैं कि, मैं अपना पूरा समय भाजपा विरोधी वोट को मजबूत करने की कोशिश में बिता रही हूं।

वर्मा लखनऊ में एक जानी-मानी हस्ती हैं, जिन्होंने पांच दशक से अधिक समय तक वंचितों और हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए काम किया है।

लखनऊ में कट्टर हिंदुत्व समूह हैं जो लगातार चुनावों में भाजपा को वोट देते रहे हैं। लेकिन कोविड-19 महामारी के दौरान महंगाई/मुद्रास्फीति और अस्पताल की सुविधाओं की कमी ने उनके  मुख्य वोट बैंक का मोहभंग कर दिया है। वर्मा का मानना ​​है कि, अगर विपक्ष बड़ी संख्या में उन युवाओं को अपने साथ जोड़ लेते हैं जो नौकरियों की कमी को लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार से नाराज हैं, तो हिंदुत्ववादी ताकतें हार जाएंगी।

23 फरवरी को चौथे चरण का मतदान लखनऊ, पीलीभीत, रायबरेली, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, उन्नाव, सीतापुर, हरदोई और फतेहपुर की 59 विधानसभा क्षेत्रों में होगा जो 624 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेगा। इनमें से 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 51 जबकि समाजवादी पार्टी ने चार और बहुजन समाज पार्टी के खाते में तीन सीटें गई थीं।

लखनऊ से सरोजिनी नगर सीट से लड़ने वाले प्रमुख उम्मीदवारों में प्रवर्तन निदेशालय के पूर्व अधिकारी राजेश्वर सिंह हैं, जो समाजवादी सरकार में मंत्री अभिषेक मिश्रा के खिलाफ मैदान में हैं। एक और महत्वपूर्ण मुकाबला लखनऊ पूर्व की सीट पर होगा जिसे भाजपा ने 1991 में जीता था। भाजपा नेता भगवती प्रसाद शुक्ला ने यहां राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान जीत हासिल की थी, और दो साल बाद, शुक्ला ने यह सीट जीती थी, हालांकि भाजपा तब सत्ता में नहीं थी। पांच साल बाद, कलराज मिश्रा ने 2012 में लखनऊ पूर्व सीट जीती, भले ही समाजवादी पार्टी ने चुनावों में जीत हासिल की थी।

योगी सरकार में मंत्री आशुतोष टंडन इस बार यहां से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री बृजेश पाठक का सामना लखनऊ सेंट्रल सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार से है। कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले रायबरेली में बीजेपी ने अदिति सिंह को मैदान में उतारा है, जिन्होंने इससे पहले 2017 में कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ा था।

उत्तर प्रदेश पुलिस के सेवानिवृत्त महानिरीक्षक एसआर दारापुरी कहते हैं, "लखनऊ सिटी सेंटर में भाजपा का अच्छा प्रदर्शन रहेगा, क्योंकि वहां उनका आधार है, लेकिन वे लखनऊ के ग्रामीण इलाकों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे।"

दारापुरी, जो ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं, जिन्होंने दो उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, ने कहा, “मुझे विश्वास है कि मायावती का मुख्य मतदाता, यानि जाटव और दलित उनसे दूर हो गए हैं और वे समाजवादी पार्टी को वोट देने का विकल्प चुनेंगे।"

उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि मायावती का यह आखिरी चुनाव होने जा रहा है। तराई, लखीमपुर खीरी और पीलीभीत में बड़ी संख्या में सिख किसान, समाजवादी पार्टी का समर्थन कर रहे हैं और हिंदू किसान भी उनके विचारों से प्रभावित हैं।"

दारापुरी ने आगे विस्तार से बताया कि, "हम देख रहे हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मतदान पैटर्न को दोहराया जाएगा, और जैसे-जैसे हम पूर्व की ओर बढ़ते हैं, जहां दलितों और पिछड़े वर्गों का एक बड़ा प्रतिशत है, सत्ताधारी पार्टी की स्थिति और भी कठिन हो जाएगी।" उत्तर प्रदेश दलितों पर हो रहे अत्याचारों, विशेषकर दलित महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार और हत्या सहित अत्याचारों की बढ़ती संख्या को भूलने के मूड में नहीं है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2020 तक के आंकड़ों के अनुसार, अपराध, डकैती, बलात्कार, छेड़छाड़ और अपहरण में वृद्धि हुई हैं, उत्तर प्रदेश अपराध अनुपात के मामले में मध्य प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कोविड-19 और कोविड के बाद के आर्थिक संकट को कैसे संभाला, यह और भी भयावह कहानी है। स्वास्थ्य कर्मी पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का हवाला देते हैं जिसमें उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग को राज्य के 75 जिलों में सरकारी अस्पतालों में बड़ी संख्या में खाली पड़े पदों का विवरण देने के लिए कहा गया था।

एक स्वास्थ्य कर्मी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने मांग की है कि, "बताओ कि कितने पद खाली पड़े हैं उनका विवरण दो," क्यों संभल के अस्पताल में मेडिकल और पैरामेडिकल स्टाफ की 60 प्रतिशत की रिक्ति है। कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। अफसोस की बात है कि इसके वोटों में तब्दील होने की संभावना नहीं है।

लखनऊ सेंट्रल से चुनाव लड़ रही कांग्रेस उम्मीदवार सदाफ़ जाफरी को भरोसा है कि वह जीत हासिल करेंगी, हालांकि इससे पहले कोई भी महिला इस सीट पर नहीं जीती है। अपने प्रतिद्वंद्वियों के पैसे और बाहुबल की बराबरी करने में असमर्थ, जाफरी का दावा है कि उसने "लोगों का दिल जीतने" पर ध्यान केंद्रित किया है।

जिन मुद्दों पर वे ध्यान केंद्रित कर रही हैं, उनमें स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है, जिसमें कुछ मोहल्ला क्लीनिक और इस सीट पर कम स्टाफ वाले अस्पताल शामिल हैं। जाफरी ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि "ठोक-दो" और "बदला लेंगे” की मानसिकता से काम कर रही पुलिस अधिकारियों की बहुत कम जवाबदेही है।

हमसफ़र एनजीओ के साथ काम करने वाली एक पूर्व पत्रकार शाहिरा नईम का मानना है कि सभी राज्य और केंद्रीय संस्थानों सत्तारूढ़ शासन का समर्थन कर रहे हैं जिससे "यह एक असमान खेल का मैदान बन गया है, इसलिए विपक्षी दल अपनी उपस्थिति का एहसास कराने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।" राष्ट्रीय लोक दल के नेता जयंत चौधरी सहित कई राजनीतिक दलों ने चिंता व्यक्त की है कि उत्तर प्रदेश में 80 वर्ष से अधिक आयु के 24 लाख बुजुर्ग मतदाताओं के साथ "हेरफेर" नहीं किया जाना चाहिए।

नईम की दूसरी चिंता यह है कि मौजूदा सरकार ने किस तरह से नागरिकों के अधिकारों को  नष्ट किया है। गरीबों को घर और शौचालय बनाने के लिए वित्तीय सहायता, मुफ्त राशन दिया गया है। यह कुछ नया नहीं है। यह सब पिछली सरकारों के तहत भी किया गया था। लेकिन योगी सरकार गरीबों को यह महसूस कराने पर जोर दे रही है कि यह दान उनकी ओर से दिया जा रहा है और वे लाभार्थी हैं, जिन्हें उन्हें वोट देकर बदला उतारना चाहिए।

2017 की जीत से संघ परिवार में पैदा हुए उत्साह ने अहंकार की भावना पैदा कर दी है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जैसे शुभंकरों के रूप में, वे आश्वस्त थे कि उनकी जीत का सिलसिला कभी खत्म नहीं होगा। स्थिति नाटकीय रूप से बदल गई है, और ऐसा लगता है कि भाजपा कार्यकर्ताओं यह अब समझ आ रहा है। 

प्रो वर्मा ने स्थिति को संक्षेप में समझाते हुए कहा, "सबसे अच्छी योजनाएँ भी विफल हो सकती हैं और मुझे विश्वास है कि उत्तर प्रदेश को आरएसएस के सपने के तहत पूरे देश को एक हिंदू राष्ट्र में बदल देने का मुख्य स्रोत बनाना कामयाब नहीं होगा क्योंकि जल्द ही इसे रोक दिया जाएगा।"

लेखिका एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

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