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यूपी: बेहतर कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा पर उठते सवाल!, दलित-नाबालिग बहनों का शव तालाब में मिला

परिवार वालों के मुताबिक लड़कियों को रेप के बाद धारदार हथियार से मारा गया है। इस घटना के बाद एक बार फिर यूपी में योगी सरकार के ‘रामराज’ और दलितों पर अत्याचार के बीच कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
Image Courtesy:  Amar Ujala
Image Courtesy: Amar Ujala

उत्तर प्रदेश में दलित नाबालिग बच्चियों के खिलाफ अपराध की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रहीं हैं। पहले हाथरस फिर बाराबंकी और अब फतेहपुर से दो दलित नाबालिग बहनों के साथ कथित दुष्कर्म और निर्मम हत्या का मामला सामने आया है। परिजनों का कहना है कि दोनों लड़कियों की आंखें फोड़ दी गई हैं, सिर पर वार किए गए हैं और एक कान भी काट दिया गया है। परिवार वालों के मुताबिक लड़कियों को रेप के बाद धारदार हथियार से मारा गया है।

हालांकि पुलिस का कहना है कि दोनों की मौत तालाब में डूबने से हुई है। फिलहाल, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतज़ार है, लेकिन इस घटना के बाद एक बार फिर यूपी में योगी सरकार के ‘रामराज’ और दलितों पर अत्याचार के बीच कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक घटना असोथर थाना क्षेत्र के गांव छिछनि की है। यहां सोमवार 16 नवंबर की दोपहर दो सगी बहनें चने का साग तोड़ने के लिए घर से निकली थीं। दोनों जब शाम तक घर नहीं लौटीं तो परिवार वालों ने तलाश शुरू कर दी। जिसके बाद जंगल से वापस आ रहे कुछ गांव वालों को दोनों बहनों की लाशें गांव के पास वाले तलाब में मिलीं। बड़ी बहन की उम्र 11 साल और छोटी बहन सात-आठ साल बताई जा रही है।

पीड़ित परिजनों ने मीडिया से बातचीत में कहा, “दोनों बहनों के हाथ पुआल से बंधे थे। सिर और कान पर किसी धारदार हथियार से चोट के निशान थे। दोनों बच्चियों की एक-एक आंख भी फोड़ दी गई थी।”

कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मौके पर मौजूद लड़कियों के चाचा ने शव देखने के बाद रेप और हत्या की आशंका जताई तो पुलिस उन पर भड़क गई। उनकी बातों का दबाने का प्रयास किया। जब चाचा नहीं माने तो पुलिस उन्हें हिरासत में लेकर थाने लेकर चली गई। इसके बाद परिवारवालों ने पुलिस की कार्रवाई का विरोध किया तो पूरा गांव पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया।

गांव वालों के मुताबिक बच्चियों के पिता मुंबई में मजदूरी करते हैं। पीड़ित परिवार में कुल पांच बच्चे थे, जिसमें से दो बच्चे अब नहीं रहे। परिवार के लोग इस घटने के बाद सदमे में हैं और दोनों बहनों के लिए इंसाफ की मांग कर रहे हैं।

Image Credit- local media

पुलिस का क्या कहना है?

पुलिस अधीक्षक प्रशान्त वर्मा के मुताबिक बच्चियां तलाब में सिंघाड़ा तोड़ने के लिए उतरी थीं लेकिन गहरे पानी में चले जाने के कारण उनकी मौत हो गई। फिलहाल रेप की कोई बात सामने नहीं आई है।

मंगलवार 17 नवंबर को भी एसपी प्रशांत वर्मा ने एक वीडियो जारी कर कहा, “सोशल मीडिया पर चल रही बच्चियों के हाथ पैर बंधे होने और आंखें फोड़ देने की बात पूरी तरह से गलत है। प्रथम दृष्टया डूबने से हुई मौत का मामला है। लेकिन फिर भी पैनल के द्वारा पोस्टमार्टम किया जा रहा है। जिसमें सारे तथ्य साफ हो जाएंगे। पुलिस इस मामले में विधिक कार्रवाई करेगी।”

हालांकि पुलिस जब सूचना पर गांव पहुंची तो उसे काफी विरोध का सामना करना पड़ा। गांव के लोगों का कहना है कि पुलिस रात में ही दोनों शवों को ले जाना चाहती थी। गांववालों के विरोध के बाद पुलिस की रात गांव में ही गुजरी। सीओ अनिल कुमार के साथ काफी फोर्स गांव में मौजूद रही।

विपक्ष का सरकार पर निशाना

इस घटना के बाद महिला सुरक्षा और कानून व्यवस्था को लेकर बीजेपी की योगी आदित्यनाथ सरकार एक बार फिर से विपक्ष के निशाने पर आ गई है। ट्विटर पर लोग इस घटना को शेयर कर रहे हैं और यूपी पुलिस व यूपी सरकार से सवाल पूछ रहे हैं।

समाजवादी पार्टी ने ट्वीट कर कहा, “फतेहपुर में 2 सगी बहनों से रेप की आशंका के साथ उनकी निर्मम हत्या कर शव तालाब में फेंकने की नृशंस घटना ने एक बार फिर यूपी को दहला दिया है! बीजेपी राज में बेटियां कहीं भी सुरक्षित नहीं रह गई हैं! शोकाकुल परिवार से गहन संवेदना, शीघ्र हो न्याय। दरिंदों को मिले महादंड, बेटियों को सुरक्षा।”

पूर्व राज्य मंत्री और सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता आईपी सिंह ने अपने सोशल मीडिया पर एक बयान जारी कर योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “रेप प्रदेश में यूपी में गैंगरेप से हाहाकार एक बाद एक जिले में रेप के बाद हत्याओं का दौर बढ़ता जा रहा है कल संतकबीरनगर,आज हाथरस और फतेहपुर में गैंगरेप बाद दो सगी बहनों की हत्या कर दी गई सीएम अपने गृह राज्य उत्तराखंड के दौरे पर है जोगी की आत्मनिर्भर पुलिस आत्महत्या बता देगी।”

वहीं इस मामले में कांग्रेस ने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए उत्तर प्रदेश को बेटियों के लिए सबसे असुरक्षित जगह बताया।

कांग्रेस नेता तनुज पुनिया ने जंगलराज हैशटैग का इसेतमाल करते हुए ट्वीट किया कि उत्तर प्रदेश में बच्चियों के साथ दरिंदगी की घटनाओं की बाढ़ आ चुकी है। बेटियों के लिए सबसे असुरक्षित प्रदेश बन चुका है।”

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दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा

गौरतलब है प्रदेश में महिलाओं-दलितों की सुरक्षा को लेकर सत्ताधारी पार्टी के तमाम दावे हक़ीक़त से कोसों दूर नज़र आते हैं। बीते दिनों उत्तर प्रदेश के हाथरस में 19 साल की एक दलित युवती के साथ कथित गैंगरेप और हत्या का मामला सामने आया। आनन-फानन में पुलिस ने शव का अंतिम संस्कार तक दिया। जिसके बाद हाईकोर्ट ने शासन-प्रशासन को फटकार लगाते हुए कहा था कि क्या पीड़िता किसी रसूखदार की बेटी होती, तो उसके साथ ऐसा ही किया जाता। 

इस घटना के बाद एक बार फिर दलितों के शोषण-उत्पीड़न पर सवाल उठने लगे। कहा जाने लगा कि आज़ादी के सात दशकों बाद भी आज दलित सामनता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। साल दर साल की ऐसी कई घटनाओं का जिक्र होने लगा जो दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा की एक नई कहानी बयां करती हैं।

साल 2015 में राजस्थान के डंगावास में दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा की खबर हो या 2016 में हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में दलित स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या। इसी साल तमिलनाडु में 17 साल की दलित लड़की का गैंगरेप और हत्या राष्ट्रीय सुर्खी बना। 2017 में सहारनपुर हिंसा, 2018 में भीमा कोरेगांव हिंसा जिसकी जांच में कई नागरिक समाज और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी भी हुई। साल 2019 में डॉक्टर पायल तड़वी की आत्महत्या की पूरे देश में चर्चा हुई लेकिन सिलसिला फिर भी रुका नहीं। साल 2020 हाथरस की घटना और आंदोलन के लिए याद रखा जाएगा।

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एनसीआरबी के आंकड़े भयावह

अगर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के हालिया आंकड़ों की बात करें तो वो भी यही बयां करते हैं कि दलितों के ख़िलाफ़ अत्याचार के मामले कम होने के बजाय बढ़े हैं।

एनसीआरबी ने हाल ही में भारत में अपराध के साल 2019 के आँकड़े जारी किए जिनके मुताबिक अनुसूचित जातियों के साथ अपराध के मामलों में साल 2019 में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जहां 2018 में 42,793 मामले दर्ज हुए थे वहीं, 2019 में 45,935 मामले सामने आए।

इनमें सामान्य मारपीट के 13,273 मामले, अनुसूचित जाति/ जनजाति (अत्याचार निवारण) क़ानून के तहत 4,129 मामले और रेप के 3,486 मामले दर्ज हुए हैं।

राज्यों में सबसे ज़्यादा मामले 2,378 उत्तर प्रदेश में और सबसे कम एक मामला मध्य प्रदेश में दर्ज किया गया है। अनुसूचित जनजातियों के ख़िलाफ़ अपराध में साल 2019 में 26.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। जहां 2018 में 6,528 मामले सामने आए थे वहीं, 2019 में 8,257 मामले दर्ज हुए हैं।

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