यूपी में मीडिया का दमन: 5 साल में पत्रकारों के उत्पीड़न के 138 मामले
पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति यानी कमेटी अगेंस्ट असॉल्ट ऑन जर्नलिस्ट (CAAJ) ने उत्तर प्रदेश में मीडिया के दमन पर ' मीडिया की घेराबंदी ' नाम से रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट में साल 2017 से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश में मीडिया के दमन की दास्तान दर्ज की गई है। यह रिपोर्ट कोरोना काल में स्वास्थ्य तंत्र के कुप्रबंधन, संसाधनों के अभाव, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार का शिकार हुए 600 से ज्यादा भारतीय पत्रकारों को समर्पित है।
इस रिपोर्ट की पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए CAAJ के सदस्य अभिषेक श्रीवास्तव ने इस रिपोर्ट में लिखा है कि CAAJ ने अपनी आखिरी रिपोर्ट मार्च 2020 में जारी की थी। जिसका शीर्षक ' रिपब्लिक इन पेरिल' था। इस रिपोर्ट में दिसंबर 2019 से मार्च 2020 के बीच दिल्ली में पत्रकारों पर हुए हमलों का ब्योरा दर्ज किया गया था।
उत्तर प्रदेश सत्ता के गलियारों के लिहाज से महत्वपूर्ण तो है ही लेकिन साथ में इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह राज्य भारत सरकार के नवीनतम प्रयोगों की प्रयोगशाला है। कोरोना के काल में नागरिक अधिकारों पर सबसे अधिक डंडा उत्तर प्रदेश में ही चलाया गया। प्रेस के अधिकारों से जुड़े जितनी भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट आईं हैं, उन सब में प्रेस अधिकारों के हनन के मामले में कश्मीर के साथ उत्तर प्रदेश अव्वल रहा है। क्योंकि उत्तर प्रदेश में चुनाव भी जारी हैं इसलिए उत्तर प्रदेश में प्रेस अधिकारों के हनन को लेकर पिछले 5 साल में अभिव्यक्ति की आजादी पर हुए हमले को देखना जरूरी है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हुए हमले की प्रकृति और वारदातें उत्तर प्रदेश में इतनी अधिक हैं कि इसका ठीक-ठाक पता लगा पाना बहुत मुश्किल काम है कि उत्तर प्रदेश में कितने पत्रकारों पर हमले हुए? फिर भी हत्या, शारीरिक हमला, मुकदमेबाजी/गिरफ्तारी, जासूसी/हिरासत/ का आधार बनाकर CAAJ ने पत्रकारों पर हुए उत्पीड़न के आंकड़े को जारी किया है।
CAAJ ने उत्तर प्रदेश में 2017 से लेकर के फरवरी 2022 के बीच पत्रकारों पर उत्पीड़न के कुल 138 मामले दर्ज किए हैं। यह मामले वास्तविक संख्या से काफी कम हो सकते हैं। उन्हीं मामलों को यहां पर दर्ज किया गया है जिनका प्राथमिक और द्वितीयक साक्ष्य मौजूद है। जिसे किसी ना किसी मीडिया संस्थान में रिपोर्ट किया गया है। योगी सरकार के 5 साल के कार्यकाल के दौरान सबसे अधिक तकरीबन 75 फ़ीसदी हमले कोरोना काल में हुए है। कुल 12 पत्रकारों के हत्याओं के आंकड़े सामने आए हैं। हालांकि इससे ज्यादा हत्या की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। सबसे अधिक हमला राज्य प्रशासन की तरफ से हुआ है। यह हमले कानूनी नोटिस, एफ आई आर, जासूसी, धमकी और हिंसा के रूप में सामने आए हैं।
इस रिपोर्ट में अपने निष्कर्ष में लिखा है कि 2019 की जितनी भी घटनाएं रिपोर्ट की गई हैं, उनमें से ज्यादातर साल के अंत के आसपास की हैं, जब नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी आंदोलन देश में जोर पकड़ चुका था। दिल्ली के जामिया मिलिया से शुरू हुए आंदोलन की अनुगूंज उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ से लेकर के अलीगढ़ तक सुनाई दे रही थी। इस आंदोलन को कवर करने वाले पत्रकारों के साथ पुलिस और इलाकाई लोगों की बदसलूकी की खबर आ रहीं थी। यह पहला ऐसा मौका रहा जब पत्रकारों के उनका धर्म और आईडी कार्ड देख कर बख्शा जा रहा था। इसी तरह से उत्तर प्रदेश में जब भी केंद्र और राज्य की सरकार के खिलाफ कोई घटना सामने आ रही थी तो उसके साथ पत्रकारों के उत्पीड़न का मामला भी सामने आ रहा था। ऐसे कई मामलों को इस रिपोर्ट में दर्ज किया गया है।
इस रिपोर्ट को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक पहले लाने का श्रेय पीपल यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज और CAAJ को जाता है। इन दोनों संस्थाओं के सदस्यों ने मिलकर उत्तर प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों के सामने ऑनलाइन मीटिंग की। ऑनलाइन मीटिंग के दौरान राज्य में एक पत्रकार सुरक्षा कानून लाने का प्रस्ताव दिया गया था।
रिपोर्ट को तैयार करने में सीपीजे के भारत संवाददाता कुणाल मजमुदार, समिति के संरक्षक आनंद स्वरूप वर्मा, समिति के यूपी प्रभारी विजय विनीत का प्रमुख योगदान है। बनारस स्थित विजय विनीत लंबे समय से स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर न्यूज़क्लिक के साथ जुड़े हैं और पत्रकारों पर हमले को लेकर लगातार चिंता जताते और लिखते रहे हैं।
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