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उत्तराखंड: हेलंग गांव का हादसा बना बड़े विवाद का मुद्दा

राज्य की महिलाओं को पेड़ों, जंगल और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करने में सबसे आगे माना जाता है, इसलिए पारंपरिक अधिकारों का इस्तेमाल करने पर किए गए उनके उत्पीड़न को कई लोगों ने गंभीरता से लिया है।
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24 जुलाई को उत्तराखंड के चमोली जिले के हेलंग गांव में कई सामाजिक, पर्यावरणीय और राजनीतिक निकायों ने विरोध प्रदर्शन किया, वे दो महिलाओं के साथ हुई बदसलूकी की घटना को बड़ा मुद्दे मान रहे हैं, जो पहाड़ी निवासियों और राज्य की आसपास की पारिस्थितिकी की दयनीय स्थिति को उजागर करता है।

विवाद तब उठा जब, इन दो स्थानीय महिलाओं की पीठ पर बंधे चारे के ढेर को कुछ स्थानीय पुलिस और सीआईएसएफ के उन सुरक्षा कर्मियों ने जबरन उनसे छिन लिया था, जो आसपास के क्षेत्र में निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजना स्थल की रक्षा के लिए नियुक्त किए गए हैं।  सुरक्षा कर्मियों के इस व्यवहार से दुखी होकर महिलाएं रोने लगी, उसके बाद उन्हें एक स्थानीय पुलिस स्टेशन में ले जाया गया, जहां घंटों इंतजार कराया गया और बाद में उनके खिलाफ शांति भंग करने का मुक़दमा दर्ज़ कर लिया गया। टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन द्वारा विष्णुगढ़ पीपलकोटी (444 मेगावाट) परियोजना के लिए मलबा डंपिंग साइट के रूप में अधिगृहीत की गई गांव की एकमात्र चारागाह भूमि से महिलाओं को चारा काटने से रोक दिया गया था, यह परियोजना पिछले 15 वर्षों से बनाई जा रही है।

उक्त घटना का वीडियो हरेला उत्सव के दिन वायरल हुआ, तब, जब पूरा राज्य वृक्षारोपण के माध्यम से हरियाली का जश्न मना रहा था। राज्य में महिलाओं को पेड़ों, जंगल और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करने में सबसे आगे माना जाता है, इसलिए पारंपरिक अधिकारों का इतेमाल करने पर उनके उत्पीड़न को कई समूहों ने गंभीरता से लिया है। 

स्थानीय कार्यकर्ता अतुल सती ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "उत्तराखंड में महिलाओं को मातृशक्ति माना जाता है, ये वे हैं जिन्होंने राज्य के लिए लड़ाई लड़ी और जंगल, जमीन और पानी की रक्षा के लिए चिपको आंदोलन जैसे आंदोलन का नेतृत्व किया था। चारा इकट्ठा करने के अपने पारंपरिक अधिकारों का इस्तेमाल करने पर किसी बाहरी कंपनी के इशारे पर उन्हें परेशान होते देखना असहनीय लगता है।

इन दो महिलाओं में से एक मंदोदरी देवी ने बताया कि, "हमें डंपिंग साइट से चारा इकट्ठा करने से रोका गया, जो अलकनंदा नदी के ठीक ऊपर है। कोई भी मूसलाधार बारिश वाली नदी खुदाई से निकाले गए उस सैकड़ों टन मलबे को साफ करने के लिए काफी होती है, जिस मलबे को नदी में निर्माण स्थल से बहा दिया जता है और जो बाढ़ जैसी स्थिति पैदा कर देता है।"

उन्होंने कहा कि टीएचडीसी ने सार्वजनिक सुविधा केंद्र बनाने का भी आश्वासन दिया है। हालांकि, साइट की अस्थिरता के कारण कुछ भी होने की संभावना नहीं है।

हेलंग गांव कल्पगंगा और अलकनंदा नदियों के संगम के ऊपर स्थित है। मेगा तपोवन विष्णुगढ़ (520 मेगावाट) जलविद्युत परियोजना की सुरंग गांव में है, जो इस परियोजना का अंतिम बिंदु है। जैसे ही यह परियोजना पूरी होगी, इस परियोजना में इस्तेमाल होने वाली धौली गंगा नदी का पानी इस सुरंग से निकेलगा। यह पानी फिर कुछ दूरी पर एक अन्य सुरंग में प्रवेश करेगा, जो टीएचडीसी के विष्णुगढ़ पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना से संबंधित है।

परियोजना शुरू करने से पहले एक अनिवार्य जन-सुनवाई के दौरान परियोजना के संबंध में सार्वजनिक शिकायतों के निवारण जैसे सभी मानदंडों को टीएचडीसी ने धता बता दिया था। स्थानीय लोग गांव की जमीन को कूड़ाकरकट डंपिंग साइट के रूप में चुनने का विरोध कर रहे थे। सती ने कहा, फिर भी, टीएचडीसी ने विभाजनकारी राजनीति की और कुछ शक्तिशाली स्थानीय ठेकेदारों को प्रभावित करने में कामयाब रहे और सरपंच और ग्राम प्रधान को अपने पक्ष में ले लिया, जिन्होंने कूड़ा डंपिंग साइट पर एक खेल का मैदान बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। यह और कुछ नहीं बल्कि आंदोलनकारी ग्रामीणों को चुप कराने की एक चाल थी।

चमोली पुलिस ने अपने ट्वीट में बताया कि, 'ग्राम सभा की सहमति और ग्राम प्रधान और सरपंच के समर्थन से हेलंग गांव के बच्चों के लिए खेल का मैदान बनाया जा रहा है।  हालांकि, कुछ 23 परिवार अपने निहित स्वार्थो के चलते काम में बाधा डाल रहे हैं। पुलिस ने जिला प्रशासन के अनुरोध पर हस्तक्षेप किया है।'

जिला प्रशासन ने उक्त घटना को लेकर राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल को भी यही तर्क दिया है। कंडवाल ने जिला प्रशासन को निर्देश दिए हैं कि भविष्य में गांव की किसी भी महिला से दुर्व्यवहार न करें। 

विभिन्न संगठन घटना के विरोध में आ गए हैं। आरएसएस से जुड़े भारतीय किसान संघ के महासचिव अनूप सेमवाल ने आगाह करते हुए कहा कि अगर स्थानीय लोगों को इसी तरह से प्रताड़ित किया जाता रहा तो गांवों से पलायन और तेज होगा। 

महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष ज्योति रौतेला ने घटना की निंदा की और कहा कि उत्तराखंड की महिलाएं अपने मवेशियों के लिए चारा इकट्ठा करती हैं ताकि उनके परिवार को आजीविका कमाने में मदद मिल सके।

उन्होंने कहा कि एक तरफ राज्य सरकार ने घास्यारी कल्याण योजना को लेकर बयानबाजी कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ सरकार ही घास्यारियों के हाथ से चारा छीन रही है। रौतेला ने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को घटना के लिए माफी मांगनी चाहिए और राज्य सरकार को घटना में शामिल लोगों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करनी चाहिए। 

हमारी बहुत सी कीमती जमीन जो जंगल, चारागाह, पंचायत और अन्य उद्देश्यों के लिए थी, जिसे पहले ही जलविद्युत संयंत्रों के नाम पर कंपनियों को सौंप दी गई है, लेकिन फिर भी, ये कंपनियां ग्रामीणों से उनकी जमीन हड़पने की योजना बना रही हैं। सती ने कहा कि, इसने ग्रामीणों के लिए चारे और जलाऊ लकड़ी के लिए एक बड़ा संकट पैदा कर दिया है, और हेलंग घटना इसी संकट का परिणाम है।

सती का विचार है कि ग्रामीणों को अब इन विशाल कंपनियों के झूठे वादों पर भरोसा नहीं करना चाहिए जो स्थानीय संसाधनों का इस्तेमाल करके धन की उगाही करते हैं और स्थानीय लोगों के साथ कुछ भी साझा नहीं करते हैं। स्थानीय लोगों को इन परियोजनाओं के हानिकारक पर्यावरणीय परिणाम भुगतने पड़ते हैं। ये परियोजना प्रस्तावक स्थानीय लोगों से परियोजना के लिए उनकी सहमति लेने के लिए झूठे वादे करते हैं लेकिन शायद ही उन्हें पूरा करते हैं।"

उन्होंने ऐसे ही कुछ मामलों का जिक्र किया। "लंबे समय से आंदोलन कर रहे लोगों की चिंताओं को शांत करने के लिए, जेपी कंपनी ने चमोली जिले के चायी गांव के लोगों को उनके  प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल के बदले एक नया खेल का मैदान, अस्पताल, स्कूल आदि के माध्यम से गांव में विकास लाने का आश्वासन दिया था। आश्वासन जिला प्रशासन के अधिकारियों की मौजूदगी में दिया गया था, लेकिन उनकी परियोजना को पूरा हुए 15 साल हो चुके हैं और ग्रामीणों के लिए जमीन पर अभी तक भी कुछ नहीं किया गया है। 

उन्होंने कहा कि, "राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम ने 2010 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे की उपस्थिति में जलविद्युत परियोजना सुरंग के आसपास 250 मीटर क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए बीमा की सुविधा का वचन दिया था, लेकिन कागज पर बने इस समझौते को आज तक लागू नहीं किया गया है।

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