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उत्तराखंड : हिमालयन इंस्टीट्यूट के सैकड़ों मेडिकल छात्रों का भविष्य संकट में

संस्थान ने एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे चौथे वर्ष के छात्रों से फ़ाइनल परीक्षा के ठीक पहले लाखों रुपये की फ़ीस जमा करने को कहा है, जिसके चलते इन छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है।
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image credit- just mbbs.com

जन औषधि दिवस 7 मार्च को जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में आधी सीटों पर सरकारी मेडिकल कॉलेजों के बराबर फीस की बात कही मीडिया में खुशखबरी की हेडलाइन छा गई। कई जगह मोदी है तो मुमकिन है के हैशटैग भी चलने लगे। तो वहीं कई चैनलों पर इसे मोदी सरकार की एक और बड़ी जन उपलब्धि के तौर पर पेश किया जाने लगा। हालांकि इन सब के बीच उत्तराखंड के हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले 140 छात्रों का भविष्य संकट शायद ही कहीं जगह बना पाया। फाइनल परीक्षा से ठीक पहले इन छात्रों से प्रशासन ने मोटी फीस जमा करने को कहा, जिसके चलते ये छात्र प्रदर्शन को मजबूर हुए।

बता दें कि उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने साल 2017 में एक अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत राज्य सरकार की हेमवती नंदन बहुगुणा मेडिकल एजुकेशन यूनिवर्सिटी की ओर से 2017 में नीट परीक्षा पास करने वाले करीब 140 छात्रों को सरकारी कॉलेजों के बराबर फीस पर हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस जौलीग्रांट में एडमिशन लेने का ऑफर दिया गया था।

उस साल जब छात्र इस ऑफर के साथ हिमालयन इंस्टीट्यूट पहुंचे तो उन्हें इतनी कम फीस पर एडमिशन देने से इनकार कर दिया गया। इस पर कुछ छात्रों ने नैनीताल हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर दी। जिसके बाद हाई कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए हिमालयन इंस्टीट्यूट को हेमवती नंदन बहुगुणा मेडिकल एजुकेशन यूनिवर्सिटी द्वारा तय की गई फीस पर एडमिशन देने का आदेश दिया। लेकिन इस याचिका पर अंतिम फैसला अब तक नहीं आया है। और यही कारण है कि अब संस्थान परीक्षा से पहले अंतिम वर्ष के छात्रों से पुरानी फीस वसूलने पर आमादा है।

क्या है पूरा मामला?

वेब पोर्टल डाउन टू अर्थ के मुताबिक साल 2017 में राज्य सरकार की हेमवती नंदन बहुगुणा मेडिकल एजुकेशन यूनिवर्सिटी द्वारा तय की गई फीस को मेडिकल एजुकेशन की ओर से पास किया गया था। जिसके अनुसार मेडिकल की पढ़ाई करने वाले राज्य के छात्रों से चार लाख प्रति वर्ष से अधिक फीस नहीं ली जा सकेगी। मैनेजमेंट कोटा और बाहरी छात्रों के लिए फीस की सीमा 5 लाख तय की गई थी। लेकिन अब

हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस जौलीग्रांट ने अंतिम वर्ष के छात्रों को बकाया फीस जमा करने का फरमान जारी किया है। नोटिस में कहा गया है कि इस याचिका पर अब तक अंतिम फैसला नहीं हुआ है, इसलिए छात्र-छात्राएं अपनी बकाया फीस जमा कर दें। यह भी कहा गया है कि बिना फीस जमा किये उन्हें अंतिम वर्ष की परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

संस्थान का क्या कहना है?

संस्थान के मुताबिक नैनीताल हाई कोर्ट का फैसला अभी तक नहीं आया है। ऐसे में अगर बढ़ी हुई फीस के पक्ष में फैसला आया तो वह इन छात्रों से कैसे वसूलेगा, ये तो कालेज से जा चुके होंगे। इसलिए उनसे चेक मांगा जा रहा है कि अभी चेक दे दें और जब फैसला आएगा तब उसे कैश कराया जाएगा।

अमर उजाला की खबर के अनुसार संस्थान का दावा है कि अभिभावकों को सभी मामले से अवगत करा दिया गया है। जिसके बाद कई अभिभावकों ने सहमति जता दी है। अन्य सभी लोगों को बनी सहमति से अवगत कराया जा रहा है। वहीं जन संपर्क अधिकारी अनूप रावत ने बताया कि हिमालयन मेडिकल कालेज फीस प्रकरण को सुलझा लिया गया है। फीस प्रकरण के विरोध में धरने में पर बैठे छात्र अपने हॉस्टल में वापस लौट गए हैं। छात्र छात्राओं के हितों को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने नो ड्यूज के लिए दो दिनों का समय दिया है।

छात्र क्या कह रहे हैं?

संस्थान के छात्रों का कहना है कि उत्तराखंड के छात्रों को 23 लाख रुपये और बाहरी राज्यों के छात्रों को 27 लाख रुपये जमा करने के लिए कहा गया है। छात्रों का यह भी आरोप है कि यह रकम बिना डेट लिखे चेक के रूप में जमा करने को कहा गया है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या कोई औसत भारतीय परिवार इस तरह से 23 लाख या 27 लाख का चेक दे सकता है?

छात्रों का ये भी कहना है कि उनमें से ज्यादातर के परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि कुछ ही घंटों में 23 या 27 लाख रुपये (उत्तराखंड के छात्रों के लिए 23 लाख और बाहरी राज्यों के छात्रों के लिए 27 लाख रुपये) की व्यवस्था कर सकें। 5 सालों में उन्होेंने 20 लाख रुपये (उत्तराखंड) और 25 लाख रुपये (दूसरे राज्य) फीस भरी है। ज्यादातर के परिवारों ने यह फीस भी काफी कठिनाई से जुटाई है, ऐसे में कुछ घंटों में 25 लाख और 27 लाख रुपये जुटाना उनके परिवार के लिए किसी भी हालत में संभव नहीं है।

इस नोटिस के विरोध में कॉलेज के अंतिम वर्ष के छात्र रात को ही कॉलेज के बाहर हाईवे के किनारे धरने पर बैठे रहे और सुबह छात्रों ने हेमवती नंदन बहुगुणा मेडिकल एजुकेशन यूनिवर्सिटी से भी संपर्क किया, लेकिन यूनिवर्सिटी ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। इसके बाद लगभग 15 छात्र ने तो फीस का चेक जमा करा दिया, लेकिन बाकी लगभग 125 छात्र परीक्षा से वंचित रह गए। अब सूचना है कि इस पूरे मामले में परीक्षा की समय सारणी में बदलाव किया गया है।

मेडिकल कॉलेजों की स्थिति और फीस का संकट

गौरतलब है कि देश में मेडिकल कॉलेजों की स्थिति और फीस का संकट किसी से छुपा नहीं है। देश में शिक्षा का निजीकरण इतना भयावह हो चुका है कि सस्ती शिक्षा के लिए लोग जहां तहां पलायन कर रहे हैं। युद्ध की विभीषिका के बीच यूक्रेन से मेडिकल की पढ़ाई छोड़कर वापस लौट रहे छात्र इन दिनों देशभर में चर्चा के केन्द्र में हैं। इस छात्रों के पक्ष और विपक्ष में तरह-तरह के तर्क दिये जा रहे हैं। प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में सरकारी जितनी फीस वाला प्रधानमंत्री का बयान भी इसी संदर्भ में दिया गया है।

जानकारी के मुताबिक देश में क़रीब 88 हज़ार एमबीबीएस की सीटें हैं जिसके लिए क़रीब आठ लाख बच्चे परीक्षा देते हैं इन सीटों में पचास प्रतिशत सीटें प्राइवेट हैं, जिसमें एडमिशन का खर्चा 70 लाख से 1 करोड़ रुपये है। ऐसे में हर साल हजारों भारतीय छात्र अलग-अलग देशों में मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाते हैं।

हालांकि विदेश से मेडिकल की पढ़ाई ख़त्म करने के बाद बच्चों को भारत में फ़ॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्ज़ामिनेशन (FMGE) की परीक्षा देनी होती है। इसे पास करने के बाद ही भारत में डॉक्टरी करने का लाइसेंस मिलता है और प्रैक्टिस की जा सकती है। 300 नंबर की इस परीक्षा को पास करने के लिए 150 नंबर लाने पड़ते हैं। आंकड़ों की माने तो विदेश से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले सिर्फ पंद्रह प्रतिशत बच्चे ही भारत में फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन पास कर पाते हैं। ऐसे में देश के भीतर चिकित्सा व्यवस्था और चिकित्सकों की हालात निश्चित ही गंभीर विषय बन जाती है, जो शायद हमारी सरकारें समझना नहीं चाहतीं। महामारी के सबक से दूर देश का शिक्षा और स्वास्थ्य बजट लगातार ढलान पर है, जो आने वाले दिनों में और भयंकर तस्वीर पेश कर सकता है।

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