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वेदांता को 41 तेल ब्लॉक का सौगात, जबकि ओएनजीसी को मिले सिर्फ दो ब्लॉक

नई तथा उदार ओपन एक्रेज लाइसेंसिंग पॉलिसी के तहत 55 तेल तथा गैस अन्वेषण ब्लॉक की नीलामी की गई जिसमें देश की सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी ओएनजीसी को केवल दो ब्लॉक ही आवंटित किए गए।
ONGC

नई तथा बेहद 'उदार' ओपन एक्रेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (ओएएलपी) के तहत भारत सरकार ने आठ वर्षों में देश में तेल तथा गैस अन्वेषण ब्लॉक की पहली नीलामी की। हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) ने 28 अगस्त को इसके नतीजों की घोषणा की। और इस तरह 55 में से 41 ब्लॉक वेदांता को दे दिए गए। ज्ञात हो कि ओडिशा से जाम्बिया तक संसाधनों के लूट और कर्मचारियों के उत्पीड़न के साथ साथ मानव अधिकारों तथा पर्यावरणीय नियमों के बड़े पैमाने पर उल्लंघनों के लिए बहुराष्ट्रीय संसाधन निष्कर्षण समूह वेदांता वैश्विक तौर पर बदनाम है। हाल ही में थूथुकुडी में वेदांता का मामला सामने आ चुका है।

इस बीच कच्चे तेल की उत्पादक सार्वजनिक क्षेत्र की देश की सबसे बड़ी कंपनी ऑयल एंड नेचुरल गैस भारतीय घरेलू उत्पादन में लगभग 70 प्रतिशत योगदान कर रही है और हमारी ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन (ओएनजीसी) को महज़ दो ब्लॉक ही आवंटित किए गए।

लेकिन सबसे पहले यह कि आख़िर ओपन एक्रेज लाइसेंसिंग पॉलिसी क्या है?

ओएएलपी लार्जर हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी (एचईएलपी) का हिस्सा है जिसे मार्च 2016 में मंज़ूरी दी गई थी और न्यू एक्सप्लोरेशन लाइसेंसिंग पॉलिसी (एनईएलपी) की जगह ले ली है। एनईएलपी साल 1999 से प्रभावी हुआ था।

निजी कंपनियों को तेल अन्वेषण में बड़े पैमाने पर शामिल करने के एकमात्र उद्देश्य के साथ एनईएलपी को साल 1997 में तैयार किया गया था। ऐसा इसलिए किया गया कि एक्सप्लोरेशन लाइसेंस केवल प्रतिस्पर्धी निलामी-प्रक्रिया के ज़रिए ही आवंटित किए जाएंगे और राष्ट्रीय तेल कंपनियों को निजी भारतीय और विदेशी कंपनियों के साथ "समान स्तर" पर प्रतिस्पर्धा करना था।

एचईएलपी तेल तथा गैस अन्वेषण नियमों को और उदार बनाता है, और इसके चार मुख्य पहलू हैं:

i) हाइड्रोकार्बन के सभी प्रकारों की खोज और उत्पादन के लिए एक समान लाइसेंस

ii) एक ओपन एक्रेज लाइसेंसिंग पॉलिसी

iii) पूर्ववर्ती प्रोफिट-शेयरिंग मॉडल से रेवेन्यू-शेयरिंग मॉडल में स्थानांतरण

iv) उत्पादित कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के लिए विपणन तथा मूल्य निर्धारण की स्वतंत्रता

ओएएलपी को जून 2017 में प्रारंभ किया गया था। एक्रेज (एकड़ के अनुसार क्षेत्र) का अर्थ भू-क्षेत्र से है। यहां 'ओपन एक्रेज' का मतलब है कि तेल अन्वेषण तथा उत्पादन (ई एंड पी)कंपनियां अब चयन कर सकते हैं कि अन्वेषण और विकास कार्यों को वे किस भौगोलिक क्षेत्रों (ब्लॉक) में करना चाहती है- आरंभ किए गए नए नेशनल डाटा रिपोजिटरी (एनडीआर) में संग्रहीत भारत के तलछट क्षेत्र पर भूवैज्ञानिक और भौगोलिक (जी एंड जी) डेटा की अतिरिक्त सहायता के साथ। ब्लॉक की पहचान करने के बाद ये कंपनियां सरकार को अपनी रुचि दिखाती हैं, तब सरकार उन ब्लॉकों को नीलामी के लिए रखती है और बोली लगाने के लिए अन्य कंपनियों को आमंत्रित करती है।

पूर्व में सरकार तेल अन्वेषण ब्लॉक की पहचान करती थी और उन्हें नीलामी के लिए रखती थी, और कंपनियों की शिकायत यह थी कि भले ही वे ब्लॉक के केवल एक हिस्से में रुचि रखती हो फिर भी उसे पूरे ब्लॉक के लिए बोली लगानी पड़ती थी।

भूमिगत 'भंडार' (छिद्रपूर्ण, पारगम्य या टूटे फूटे चट्टानों में मौजूद हाइड्रोकार्बन) के ऊपर धरातल के ऊपर भौगोलिक रूप से सीमांकित क्षेत्रों को 'ब्लॉक' कहते हैं।

ओएएलपी साल में कई बार बोली लगाने की अनुमति देता है, हालांकि अब तक सरकार ने साल में दो बार का ही संकेत दिया है।

लेकिन हाल की नीलामी में इसकी वापसी हुई। 59,282 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करने वाले कुल 55 ब्लॉक नीलामी के लिए थे। नौ कंपनियों ने इस बोली में हिस्सा लिया था। इनमें से पांच सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां थीं - ओएनजीसी, ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल), गेल इंडिया, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल) और भारत पेट्रो रिसोर्सेज लिमिटेड (बीपीआरएल); जबकि चार निजी कंपनियां थीं - वेदांता, सेलन, हिंदुस्तान ऑयल एक्सप्लोरेशन कंपनी और सन पेट्रोकेमिकल्स।

ओएनजीसी ने 37 ब्लॉक (व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से) के लिए बोली लगाई थी, जबकि वेदांता ने 55 ब्लॉक के लिए बोली लगाई थी। ओआईएल ने 9 ब्लॉक जीता, जबकि गेल,बीपीआरएल और एचओईसी ने एक-एक ब्लॉक को जीता।

बोली लगाने के लिए प्राथमिक मानदंड सरकार को दिए गए राजस्व का हिस्सा था।

कुछ न्यूज़ रिपोर्टों में उल्लेख किया गया है कि ओएनजीसी अपनी बोलियों में "अनुदार" था और उसने "असाधारण जोखिम-विचलन" दिखाया - जबकि वेदांता कथित रूप से आक्रामक बोली लगा रहा था। इससे ओएनजीसी के अधिकारियों को सरकार की फटकार झेलनी पड़ी।

ओएनजीसी को तेल ब्लॉक के लिए आक्रामक बोलियां नहीं लगाने के लिए सरकार की यह फटकार हास्यास्पद है, और संभवतः छिपाना है- क्योंकि सरकार लगातार ओएनजीसी का निजीकरण करने या इसका दिवालिया करने की कोशिश कर रही है।

सरकार (चाहे कांग्रेस की अगुवाई वाली पूर्ववर्ती यूपीए या बीजेपी के नेतृत्व वाली वर्तमान की एनडीए) लाभप्रद संसाधन निष्कर्षण उद्योग विशेष रूप से तेल तथा गैस में निजी/कॉर्पोरेट के प्रवेश के लिए अक्सर आक्रामक रूप से दबाव डाल रही है, जैसा कि उपर दिए गए अन्वेषण मानदंड में किए गए परिवर्तनों से स्पष्ट है।

अगर ओएनजीसी ने "रूढ़िवादी" बोलियां लगाई है तो ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार चाहती थी कि वह रूढ़िवादी बोली लगाए - या बल्कि सरकार ने इस कंपनी को ऐसी वित्तीय स्थिति में रहने को मजबूर कर दिया है कि अगर वह जीवित रहना चाहती है तो वह "जोखिम-विचलन" के लिए बाध्य है।

पिछले साल नवंबर में तेल मंत्रालय ओएनजीसी (11 क्षेत्र) और ओआईएल (4 क्षेत्र) के तेल तथा गैस क्षेत्रों के उत्पादन में निजी कंपनियों को 60% हिस्सेदारी लेने की अनुमति देने के लिए दबाव डाल रहा था। ये पहल लगभग 25 साल बाद हुआ, 1992-93 में ओएनजीसी द्वारा खोजे और विकसित किए गए कुल 28 प्रमुख तेल क्षेत्रों का निजीकरण किया गया। लेकिन राज्य संचालित कंपनियों के सशक्त विरोध के बाद नवीनतम प्रयास असफल साबित हुआ।

निस्संदेह सरकार जिस तरह इससे पूरा धन निकाल लेने के उद्देश्य से नक़द पशु के रूप में ओएनजीसी के साथ व्यवहार कर रही है ऐसे में जब यह लाभप्रद नहीं रह जाएगा तो संभवतः इसे निजीकृत किया जा सकता है। ज्ञात हो कि ओएनजीसी भारत में सबसे बड़ी और ज़्यादा लाभ देने वाली कंपनियों में से एक है।

पिछले साल अगस्त में ओएनजीसी को कृष्णा गोदावरी (केजी) बेसिन के गैस ब्लॉक में जीएसपीसी की 80% हिस्सेदारी हासिल करने के लिए कहा गया था, जो कि घाटे वाला प्रस्ताव था क्योंकि जबसे इसकी खोज हुई तब से साल 2015 के आखिर तक इस ब्लॉक से कोई वाणिज्यिक उत्पादन नहीं हुआ था।

इसके बाद ओएनजीसी को राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने के लिए हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) में केंद्र सरकार की 51.11 प्रतिशत इक्विटी हासिल करने के लिए कहा गया था- जबकि ओएनजीसी को बैंकों से 35,000 करोड़ रुपए क़र्ज़ लेने के लिए मजबूर किया गया था।

ओएनजीसी के चेयरमैन शशि शंकर ने भी स्वीकार किया है और कहा कि कंपनी "पहले से नुकसान में था।"

सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को विभिन्न तरीकों से डूबाने की कोशिश करने के लिए पर्याप्त समानताएं हैं - उदाहरण के लिए, इसी तरह डूबते हुए आईडीबीआई बैंक की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी ख़रीदने के लिए नक़दी समृद्ध जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को कहा गया। और निश्चित रूप से, फिर एयर इंडिया है जिसे निजी एयरलाइंस के लाभ के लिए व्यवस्थित रूप से नष्ट कर दिया गया था, जबकि यह असाधारण तरीक़े से सफल रहा।

इसलिए निश्चित रूप से ओएनजीसी "जोखिम-भरा" होगा, इसे किसी अन्य विकल्प के साथ नहीं छोड़ा गया है। कुल मिलाकर तेल अन्वेषण के लिए बड़ी पूंजी के निवेश की आवश्यकता होती है।

और फिर सरकार का तर्क है कि निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए मानदंडों को आसान किया जा रहा है, क्योंकि काम के लिए और प्रौद्योगिकी लाने के लिए (यद्यपि सरकार के स्वामित्व वाली लाभप्रद तेल कंपनियों को नष्ट कर दिया जाए) तथा उत्पादन बढ़ाने के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होती है।

लेकिन निजी स्वामित्व वाले तेल क्षेत्रों में उत्पादन - यहां तक कि दुनिया की कुछ सबसे बड़ी तेल निष्कर्षण कंपनियों के स्वामित्व में भी - स्थिर हो रहे हैं।

उदाहरण स्वरूप रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के स्वामित्व वाले केजी-डी 6 क्षेत्र में उत्पादन - ब्रिटिश बहुराष्ट्रीय बीपी के साथ साझेदारी के बावजूद भी- एक दशक पहले के दसवें स्थान तक नीचे चला गया था।

इसके बाद पन्ना/मुक्ता और तापी तेल तथा गैस क्षेत्र हैं जिसे साल 1992-93 में ओएनजीसी से लिया गया था और एनरॉन कॉर्प और रिलायंस इंडस्ट्रीज को दे दिया गया था। एनरॉन के ठप्प हो जाने के बाद इन क्षेत्रों को यूके के बीजी ग्रुप द्वारा चलाया जा रहा था और अब रॉयल डच शैल के अधीन है, लेकिन फिर से उत्पादन गिर गया है - इतना गिर गया है कि निजी मालिकों ने इन क्षेत्रों में से एक को छोड़ना बेहतर समझा।

इस बीच इसी वेदांत केयर्न इंडिया- जिसे इस समय 41 तेल ब्लॉक सौंप दिए गए- के स्वामित्व वाले बाड़मेर ब्लॉक में उत्पादन साल 2015-16 में 4 प्रतिशत तक की गिरावट आई थी।

प्रौद्योगिकी के लिए, पूछे जाने पर एक अज्ञात वरिष्ठ कार्यकारी ने बताया कि: "डीजीएच के स्वयं के प्रवेश, प्रौद्योगिकी इत्यादि द्वारा, शामिल किया जा सकता है और उत्पादन बढ़ाने के सरकार के उद्देश्य को क्षेत्रों के स्वामित्व के बिना पूरा किया जा सकता है। फिर निजीकरण पर यह दबाव क्यों है?"

और फिर ऐसे धोखाधड़ी हैं जो निजी कंपनियों को लाभान्वित कर रहे हैं जो नियमित रूप से शामिल होने के लिए जाने जाते हैं - उदाहरण के लिए, केजी बेसिन घोटाला जहां रिलायंस ओएनजीसी क्षेत्र से गैस चोरी कर रहा था, जिसमें संगत भंडार का बहाना कर रहा था। लेकिन सरकार इसके बजाय तेल अन्वेषण कंपनियों को मूल रूप से अनुबंधित तेल तथा गैस ब्लॉक से परे संगत भंडार क्षेत्रों तक पहुंचने की अनुमति देने के लिए नीति लाई।

फिर, नियम में इस बदलाव का तत्काल और सबसे बड़ा लाभार्थी कथित तौर पर वेदांता केयर्न ऑयल एंड गैस के अलावा अन्य कोई नहीं है, क्योंकि इसके बाड़मेर ब्लॉक में अनुबंध क्षेत्र से परे स्पष्ट रूप से महत्वपूर्ण हाइड्रोकार्बन क्षमता के साथ संगत भंडार हैं।

इसलिए यदि वेदांता को 41 तेल तथा गैस अन्वेषण ब्लॉक दिया गया है, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकार इसे हमारे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों और अन्य सभी राष्ट्रीय संपत्तियों को विभिन्न बहानों से स्वतंत्र रूप से इस कंपनी को सौगात पर सौगात देने के लिए प्रतिबद्ध है।

तेल तथा गैस विशेष रूप से बहुमूल्य राष्ट्रीय संपत्तियां हैं, लेकिन आम लोगों की भलाई के लिए इन संपत्तियों से प्राप्त राजस्व का इस्तेमाल करने के बजाय ये सरकार केवल निजी ख़ज़ाने को भरने में रुचि रखती हुई दिखाई दे रही है।

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