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EXCLUSIVE: खांटी बनारसियों को ही नहीं पसंद आया मोदी का ‘इवेंट’, पुजारी और भक्त भी ख़ुश होने की जगह आहत

"मोदी ने नई परंपरा यह गढ़ी है कि बाबा के दरबार में अब जूता पहनकर गर्भगृह तक आसानी से जाया जा सकता है। कांवड़ के बजाय लक्जरी वाहन में बैठकर चांदी के लोटे में गंगाजल ढोया जा सकता है और बाबा गर्भगृह के पास जूता उतारकर जल चढ़ाया जा सकता है।"
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के सहारे जिस ऐतिहासिक विकास का सब्जबाग समूची दुनिया को दिखाया है, वह आस्था के लिए काफी खतरनाक और उलझनों से भरा है। यह उस लकीर की शिनाख्त भी कर रही है जो अयोध्या में खींची गई थी। एक तरफ विश्वनाथ मंदिर तो दूसरी ओर ज्ञानवापी मस्जिद। मणिकर्णिका घाट के बीच अब न तो छोटी गलियां बची हैं और न ही गलियों में समाया हुआ कोई मोहल्ला। यहां न कोई मकान-दुकान है और न लोग रह गए हैं। करीब 600 परिवारों के विस्थापन और परंपरागत रोजगार एवं हजारों साल से गंगा के तट पर जिंदगी गुजार रहे समाज के ध्वंस के बाद जमींदोज किए जा चुके 300 मकानों की जगह आलीशान गेस्ट हाउस दिखता है और कुछ समतल मैदान।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 13 दिसंबर 2021 को जिस तरह से कारिडोर के लोकार्पण महोत्सव का इवेंट आर्गनाइज किया, उससे शिवभक्त बेहद आहत हैं। सिर्फ शिवभक्त ही नहीं, काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारी भी मोदी की नर्ई परंपराओं को खतरनाक रास्ता बता रहे है। काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत राजेंद्र तिवारी कहते हैं, "विश्वनाथ मंदिर को धाम में बदलने के बहाने पीएम मोदी ने बनारस में कई अजूबी परंपराएं गढ़ डाली हैं। पहली नई परंपरा यह गढ़ी है कि बाबा के दरबार में अब जूता पहनकर गर्भगृह तक आसानी से जाया जा सकता है। दूसरी, नई परंपरा कांवड़ के बजाय लक्जरी गाड़ी पर बैठकर चांदी के लोटे में गंगाजल ढोया जा सकता है और बाबा गर्भगृह के पास जूता उतारकर जल चढ़ाया जा सकता है। पहले बाबा के दरबार में जूता पहनकर जाने की हिमातक कोई नहीं कर पाता था। मोदी ने तीसरी नई परंपरा शुरू की है शिव दीपावली की, जिसमें गंगा घाटों पर दीपों को सजाया जाएगा, लेकिन बाबा के मंदिर और उनके परिसर में सिर्फ आधुनिक फसाड लाइटों की चमक ही बिखेरी जाएगी।"

"चौथी नई परंपरा यह शुरू की गई कि अब मंदिर में असली शंकराचार्यों के बजाए स्वनामधारी बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर और मोरारी बापू सरीखे धनाड्य संतों को ही बुलाया जाएगा। मोदी ने पांचवीं नई रवायत शुरू की है मनमाने ढंग से शिव बारात निकलवाने की। ऐसी बारात जिसमें आस्थावान लोगों की जगह पेशेवर लोग शामिल हो सकेंगे। वो लोग भी जो भाड़े पर बैंड बजाने और नाचने का ठेका लेते रहे हैं।

छठीं नई रवायत शुरू हुई है सनातन परंपराओं को तिलांजलि देने की, जिसमें विग्रहों और मूर्तियों को सामान की तरह कहीं भी, कभी भी हटाया जा सकता है। जिन परंपराओं को मिटाया गया है उनमें एक है ड्योढ़ी (चौखट) लांघने की। विश्वनाथ दरबार में आने के लिए जितने भी रास्ते बनाए गए हैं, उनमें न कहीं ड्योढ़ी है, न गणेश हैं और न ही हिन्दू धर्मावलंबियों का प्रतीक चिह्न स्वास्तिक है।"

"माल बन गया आस्था का मंदिर"

विश्वनाथ मंदिर के महंत राजेंद्र ने "न्यूज़क्लिक" से बेबाक बातचीत की और कहा, " बाबा का दरबार अब आस्था का मंदिर नहीं रहा। इसे व्यापारिक शक्ल देकर "धार्मिक माल" बना दिया गया है। कौन और किससे पूछे कि लोकार्पण महोत्सव में शामिल होने के लिए शास्त्र के परम् ज्ञानी शंकराचार्यों को क्यों नहीं बुलाया गया? सिर्फ स्वनामधारी संतों को ही न्योता क्यों दिया गया? खासतौर पर वो जो धर्म के व्यापारी हैं और जिन्होंने अपना अरबों का साम्राज्य फैला रखा है। अगर 13 दिसंबर को शिव दीपावली मनाई ही जानी थी तो पहला दीपक विश्वनाथ मंदिर में जलाया जाना चाहिए था और वह दीपक खुद मोदी को जलाना चाहिए था, मगर जला घाटों पर। विश्वनाथ मंदिर का दफ्तर भी सूना रहा। मंदिर परिसर को शादी के मंडप की तरह झालरों और बत्तियों से पाटकर दुनिया को यह दिखाने की कोशिश की गई कि अब यहां आस्था का जादू नहीं, सिर्फ अजूबा इवेंट चलेगा। विकृत तरीके से शिवर्चना चलेगी और भौंडे तरीके से श्लोक बांचे जाएंगे। गंगा स्नान करते समय भी मोदी जी हाथ हिला रहे थे। उनकी चिंता पूजा में कम, जनता को लुभाने में ज्यादा थी। जूता पहनकर सबके सामने गर्भगृह तक पहुंच गए। आज तक ऐसा नैरेटिव किसी ने नहीं पेश किया था।

समझ में नहीं आता कि बाबा के दरबार को वह व्यावसायिक माल समझते हैं या फिर पर्यटन केंद्र। पहले मंदिर में प्रवेश करते ही भक्ति की भावना जग जाती थी। दुनिया भर से लोग अब यहां दर्शन करने नहीं, घूमने आया करेंगे। बाबा धाम की आस्था को मोदी ने बाजार में बदल दिया है। मंदिर में पहले भी गलियों और सड़कों पर लाइन लगती थी और अब भी लग रही है। आखिर टैक्स पेयर का 600 करोड़ लगाकर किसके लिए सुविधाएं जुटाई गई हैं?"  

"काशी में बाबा विश्वनाथ युगों-युगों तक अपनी प्रमाणिकता साबित करते आ रहे हैं। काशी प्रलय की परिधि से परे है। यह 28वां कलयुग है और काशी पहले कलयुग से पहले का है। इसके अस्तित्व को चुनौती नहीं दी जा सकती है। शिव कभी वैभव नहीं, त्याग और बलिदान के पुजारी थे। उन्हें वैभव दिखा रहे हो, जिन्होंने सोने लंका बनाई और रावण को दान कर दिया। बाबा विश्वनाथ वैभव नहीं, वैराग्य से खुश होते हैं। वैभव दिखाकर शिव को प्रभावित करने वाला व्यक्ति पतन के द्वार के खड़ा हो जाता है।"

आस्था दरकने से आहत विश्वनाथ मंदिर के महंत राजेंद्र यहीं नहीं रुकते। वह कहते हैं, "गोदी मीडिया ने लच्छेदार नारों और जुमलों से मोदी को साक्षात् विश्वनाथ के रूप में खड़ा करने की कोशिश की। कुछ चैनलों ने तो मोदी को अहिल्याबाई होल्कर और बाबा के शिखर पर सोना चढ़वाने वाले राजा रणजीत सिंह से भी बड़ा पीढ़ा दे दिया और जिंदा दिल कहा जाने वाला बनारस मुर्दों की तरह ताकता रहा। विद्वत परिषद और न्यास में बैठे लोग मुनाफा कूटने के लिए यह धतकरम करा रहे हैं। जिन मंदिरों के विग्रह तोड़े गए, क्या उस समय कलाहरण पद्धति और शास्त्रीय विधान का पालन किया गया?"

"बाबा के दरबार में स्थित बैकुंठनाथ की मूर्ति के पास हौदे में स्थापित स्वयंभू शिवलिंग अचानक कहां गायब हो गयागर्भगृह के आसपास जो पंचायतन मंदिर थे, उनका और वटवृक्ष का वजूद क्यों मिटा दिया गयाइवेंटबाजों को शायद पता नहीं होगा कि काशी में शिव में नहीं, शिव में काशी है। गौर करने की बात है कि काशी साधना की नगरी है, साधन की नहीं। यहां परमात्मा के घर पर बुल्डोजर चला है। मोदी और उनके हां में हां मिलाने वाले भक्त शिवद्रोही हैं, उन्हें माफी नहीं मिलेगी।"

किसने मनाई शिव दीपावली?

विश्वनाथ मंदिर के महंत की बातों पर भरोसा किया जाए तो उनकी बातें सच्चाई के ज्यादा करीब दिखती हैं। "न्यूजक्लिक" को एक ऐसा साक्ष्य हासिल हुआ है जिससे प्रमाणित होता है कि मोदी की शिव दीपावली का जश्न मनाने में बनारस की जनता नहीं, सिर्फ शिक्षक शरीक हुए। उन्होंने ही सरकारी धर्म निभाया और मोदी के शिव दीपावली की लाज बचाई। वाराणसी के जिला बेसिक शिक्षाधिकारी (बीएसए) राकेश सिंह ने 9 दिसंबर 2021 को विधिवत पत्र जारी करके जिले के टीचरों की ड्यूटी लगाई थी। सभी टीचरों को 13 दिसंबर की सुबह नौ बजे ही घाटों पर पहुंच जाने का निर्देश दिया गया था। बीएसए द्वारा जारी कार्यालय आदेश में कहा गया था कि वाराणसी के मुख्य विकास अधिकारी के दिशा-निर्देश के क्रम में श्री काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण महोत्सव के परिप्रेक्ष में 10 से 14 दिसंबर तक विभिन्न घाटों पर साज-सज्जा, रंगोली और दीप प्रज्वलन होगा। इसमें शिक्षक और शिक्षिकाओं की ड्यूटी लगाई जाती है। परिचय-पत्र के साथ घाटों पर उपस्थित होकर अपना योगदान देना सुनिश्चित करें।

शिव दीपावली की पोल खोलती बीएसए की चिट्ठी

इस संदेश के साथ सभी ब्लाकों के शिक्षकों की सूची नत्थी की गई थी। खास बात यह है कि शिव दीपावली मनाने के लिए 88 घाटों के लिए सेक्टर प्रभारियों और घाट उप प्रभारियों की तैनाती की गई थी। कारिडोर और कुछ चुनिंदा घाटों पर दीपक जलवाने की जिम्मेदारी काशी विद्यापीठ के खंड शिक्षा अधिकारी क्षमा शंकर पांडेय को विशेष तौर पर सौंपी गई थी। प्रवीण कुमार यादव, प्रभात रंजन सिन्हा, विकास श्रीवास्तव वगैरह को दीपक जलवाने के लिए घाटवार जिम्मा सौंपा गया था। यह पता नहीं चल पाया है कि दीपक जलाने के लिए तेल-बाती और दिए का पैसा खुद टीचरों ने अपने पॉकेट से खर्च किया अथवा प्रशासन ने उन्हें दिए थे?

आतिशबाजी और लेजर शो के नाम पर लाखों रुपये पानी की तरह बहाए गए। यह सब कारिडोर के मेगा इवेंट को कामयाब बनाने और यह बताने के लिए किया गया था कि मोदी ने बनारस की सूरत और सीरत दोनों ही बदल दी है। खांटी बनारसी अच्छी तरह से जानते हैं कि धर्म और राजनीति अलग-अलग चीजें हैं। जब दो अलग-अलग चीजों को जबरन और स्वार्थवश मिलाने की कोशिश की जाती हैं तो सनातन तत्व और परंपराएं विलुप्त हो जाती हैं। यही काशी विश्वनाथ धाम के साथ हुआ है। यह समझ पाना मुश्किल है कि राजनीति में धर्म का प्रवेश हुआ है या फिर धर्म में राजनीति का?

राजनीतिक विश्वलेषक प्रदीप कुमार कहते हैं, " ऐसा लगता है कि धर्म और राजनीति का घालमेल आगे भी जारी रह सकता है। ऐसे में काशी विश्वनाथ से जुड़ी कोटि-कोटि आस्था पर कितनी खरोंचे आएंगी, यह गिन पाना कठिन है। कनाडा से जिस अन्नुपूर्णा मूर्ति को वोट बटोरने के लिए 22 जिलों में घुमाते हुए बनारस लाया गया उसके बारे में कहा जा रहा है कि उसे जहां स्थापित किया गया था वहां से वह मूर्ति गायब कर दी गई है। उस जगह उस मूर्ति को ठोंक दिया गया है, जो पहले विश्वनाथ मंदिर के बगल के अन्नपूर्णा मंदिर में स्थापित की गई थी। मोदी बनारस आए थे तो यह कहते हुए नहीं अघा रहे थे कि बनारस के चोरी हुई अन्नपूर्णा की मूर्ति को हम कनाडा से लेकर आए। वो मूर्ति अब किस लोक में चली गई, अब यह बताने वाला कोई नहीं है?"

समूचा देश जानता है कि यूपी में वोट बटोरने के लिए खंडित कर्नेश्वरी मूर्ति को 22 जिलों में घुमाया गया और नाराज लोगों को दिल बदलने के लिए हिन्दुत्व की घुट्टी पिलाई गई। जिस मूर्ति को गंगा में प्रवाहित किया जाना चाहिए था उसे कारिडोर में स्थापित कर दिया गया। जब बाबा के भक्तों ने खंडित मूर्ति को स्वीकार नहीं किया और किसी ने पूजा-अर्चना नहीं की तो उसे गायब कर दिया गया। पत्रकार राजीव सिंह कहते हैं, "जिस मूर्ति को कनाडा से लाया गया था उसके बारे में तमाम झूठी कहानियां गढ़ी गईं, जिसे गोदी मीडिया ने बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित किया। बताया गया कि अन्नपूर्णा की मूर्ति बनारस से चोरी हुई थी, जबकि चोरी का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है। एक तरफ अन्नपूर्णा के नाम पर वोट बटोरने की कवायद चल रही थी तो दूसरी ओर अन्नदाताओं पर पुलिस से लाठियां भंजवाई जा रही थी। अन्नदाता और नकली अन्नपूर्णा के फर्क को इस तरह भी समझा जा सकता है कि आंदोलित आन्नदाताओं को कभी आतंकवादी-मवाली बताया जा रहा था तो कभी आंदोलनजीवी। दूसरी ओर, भाजपा और उसके नेता असली अन्नदाताओं को छोड़कर लंदन रिटर्न खंडित अन्नपूर्णा से वोट सहेजने में जुटे थे। इसे बेशर्मी नहीं तो फिर और क्या कहेंगे

विश्वनाथ मंदिर का हश्र देख लीजिए। इसका कर्ता-धर्ता लंदन की एक बदनाम कंपनी को बना दिया गया है। ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह लंदन की यह वही ईवाई कंपनी है जिसके ऊपर अमेरिका में अरबों के फ्रॉड के केस चल रहे हैं। बनारस के लोग तो यह गिनने में जुटे हैं कि अपने पंत प्रधान ने बनारस प्रवास के दौरान कितनी मर्तबा ड्रेस बदली?"

"खींची जा रही सांप्रदायिक रेखा"

करीब 600 सौ करोड़ की लागत से बने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण उत्सव में मोदी ने शिवभक्तों से जो कहा कि वह इस ओर इशारा करता है कि यह काशी विश्‍वनाथ धाम एक प्रकार से भोले बाबा की मुक्ति का पर्व है। जकड़े हुए थे हमारे बाबा। चारों तरफ दीवारों में फंसे हुए थे। सदियों से यह स्थान दुश्मनों के निशाने पर रहा। कितनी बार ध्वस्त हुआकितनी बार अपने अस्तित्व के बिना जियालेकिन यहां की आस्था ने उसको पुनर्जन्म दियापुनर्जीवित कियापुनर्चेतना दी। मोदी के शब्दों में कहें तो, "यहां अगर औरंगजेब आता है तो शिवजी भी खड़ा होते हैं। अगर कोई सलार मसूद इधर बढ़ता है तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा उसे  हमारी एकता की ताकत का एहसास करा देते हैं। और अगर अंग्रेजों के दौर में भी हेस्टिंग का क्या हश्र काशी के लोगों ने किया, ये तो काशी के लोग ही जानते हैं।"

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अतीक अंसारी की चिंता अलग है। उन्हें लगता है कि काशी विश्वनाथ कारिडोर के बहाने भाजपा ने खतरनाक सियासी चाल चली है, जिसका नतीजा आने वाले दिनों में दिखेगा। खासतौर पर तब, जब सियासत में भाजपा के पांव उखड़ने लग जाएंगे। अतीक कहते हैं, "बनारस शहर के मैदागिन इलाके में घुसेंगे तो पता चलेगा कि मंदिर में आ गए, लेकिन जैसे ही गोदौलिया से मदनपुरा की ओर बड़ेंगे तो बनारस घुड़साल जैसा उजाड़खंड नजर आएगा। विश्वनाथ कारिडोर के लोकार्पण समारोह के दिन पूरे शहर में भगवा झंडे-पताके जिस तरह से फहराए गए उससे यह साफ हो गया है कि यहां भी अयोध्या की तरह महीन सी सांप्रदायिक रेखा खींची जा रही है। बनारस के मुसलमानों के दिमाग में यह बात घुस चुकी है कि किसी दिन उनकी ज्ञानवापी मस्जिद जरूर चली जाएगी। हम इस बात से चिंतित नहीं कि ये मस्जिद रहेगी अथवा जाएगी। दुख इस बात का है कि वो एक बार में यह क्यों नहीं बता देते कि उन्हें मुसलमानों के और कितने पूजा स्थल चाहिए? यह ठीक नहीं है कि हमें किस्तों में कत्ल किया जाए। सच तो यह है कि भाजपा को न तो मंदिर चाहिए, न ही मस्जिद। इन्हें तो सिर्फ वोट चाहिए। जैसे ही ये कमजोर दिखते हैं, कोई न कोई बड़ा बितंडा खड़ा कर देते हैं। हमें वो कभी चंगेज खां नजर आते हैं तो कभी नादिरशाह। एक तरफ सहिष्णुता का राग अलापते हैं, तो दूसरी ओर ठीक उसके विपरीत आचरण करते हैं।"

अतीक यहीं नहीं रुकते। वह आगे कहते हैं, "हमने एक पखवाड़े से अखबार पढ़ना बंद कर दिया है, क्योंकि वो कभी "मोदी टाइम्स" सरीखा दिखते हैं तो कभी "योगी टाइम्स"। अखबार से विपक्ष गायब रहता है। इनकी खबरें कहीं रहती भी हैं तो कोने-कतरे में। मीडिया मालिकों के कठपुतली संपादकों को पहले से ही पता होता है कि उन्हें प्रियंका-राहुल, अखिलेश और मायावती को नहीं पढ़वाना है, सो उनकी खबरें में कहीं कोने-अतरे में डाल दी जाती हैं। हमें तो यही लगता है कि मीडिया वाले भाजपा के बनिहार (बंधुआ मजदूर) की तरह हो गए हैं। मोदी पर आरोप लगता है कि मोदी ने सब बेच दिया। नंगा सच यह है कि उन्होंन बहुत कुछ खरीदा है। चौथा खंभा कही जाने वाली मीडिया को खरीद लिया है। सीबीआई-ईडी और आयकर, चुनाव आयोग और न जाने किस-किस संस्था को अपनी मुट्ठी में नहीं कर लिया है। समूचे सिस्टम को खरीदकर वो इतने ताकतवर हो गए हैं कि विपक्ष उनसे खौफ खा रहा है। अब तो अखबार छूने का ही मन नहीं करता। अखबारों के पहले पन्ने पर सीएम योगी की अंगुली दिखाती हुई तस्वीर और धमकी भरे "ठीक कर देंगे" सरीखे बयानों को पढ़कर मन दुखी हो जाता है। कारिडोर के लोकार्पण के दिन तो यह समझ में ही नहीं आया कि ये सरकारी कार्यक्रम है या फिर भाजपा का। शहर भर में भगवा झंडे लगाए गए थे। अब से पहले देश में आयोजित होने वाले किसी भी सरकारी प्रोग्राम में ऐसे झंडे नहीं लगाए जाते थे। बनारस में नया इतिहास लिखा जा रहा है। आने वाली नस्लों के मन में झूठा इतिहास और नफरत भरी बातें भगावन बुद्ध, तुलसी, कबीर और रविदास के शहर में भरी जा रही हैं। कभी ताली-थाली बजवाने के बहाने, तो कभी मोमबत्ती और टार्च जलवाकर।"

गुजराती कंपनी का महिमा मंडन क्यों?

काशी विश्वनाथ मंदिर की कवरेज प्रमुखता से करने वाले पत्रकार ऋषि झिंगरन पीएम मोदी के मेगा इवेंट पर कई तल्ख सवाल खड़ा करते हैं। वह कहते हैं, "काशी विश्वनाथ कारिडोर का यह कैसा लोकार्पण था कि परिसर में न कोई पूजा हुई और न ही हवन। गुजराती कंपनी के जिन मजदूरों ने मंदिर परिसर से मूर्तियां उखाड़ी थी, उनसे ही चिपकवा दिया गया। पूजा के बजाए अगर कुछ हुआ तो सिर्फ भाषण और गुजराती कंपनी के कर्मचारियों पर फूल बरसाने का इवेंट। उद्घाटन से पहले किसी शंकराचार्य की मौजूदगी में धार्मिक अनुष्ठान कराने की जरूरत आखिर क्यों नहीं समझी गई? क्या किसी शंकाराचार्य की मान्यता के बगैर मोदी खुद किसी धार्मिक स्थल को पांचवां धाम बना सकेंगे? जिनके त्याग और दान से विश्वनाथ परिसर में खड़ा हुआ है क्या सभी को न्योता भेजा गया था? संत-महात्माओं को बुलाकर उनका अपमान क्यों किया गया? जिन लोगों की कई पीढ़ियां विश्वनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना करती आ रही हैं और यह मंदिर जिन लोगों के पुरखों की निजी जागीर रही, क्या वो सम्मान के हकदार नहीं थेमंदिर के सेवकों और पुजारियों का क्या कोई रोल नहीं हैलोकार्पण के समय सीएम योगी ने यह झूठ क्यों बोला कि बनारस की गलियां चौड़ी हो गई हैपड़ताल कर लीजिए, सच पता चल जाएगा।"

पत्रकार झिंगरन को लगता है कि मोदी-योगी को पूर्व मुख्यमंत्रियों के काम पर मुहर ठोंकने की आदत सी पड़ गई है। वह कहते हैं, "काशी विश्वनाथ कारिडोर प्रोजेक्ट की नींव पूर्व सीएम मायावती ने रखी थी। उनके समय में तत्कालीन डीएम नितिन रमेश गोकर्ण ने रानी भवानी मंदिर और तारकेश्वर मंदिरों का विलय कराने के बाद बड़ा गलियारा खुलवाया। बाद में पूर्व सीएम अखिलेश ने इस मुहिम को आगे बढ़ाते हुए 30 भवनों का अधिग्रहण कराया। अखिलेश के समय तत्कालीन धर्मार्थ कार्य मंत्री विजय मिश्र ने 156 भवनों को खरीदने की योजना बनाई थी। भाजपा शासित केंद्र सरकार से धन न मिलने की वजह से उस समय यह योजना मूर्त रूप नहीं ले सकी थी।"

जारी है गोदी मीडिया का स्टंट!

काशी विश्वनाथ के अनन्य भक्त वीके त्रिपाठी कहते हैं, "कारिडोर लोकार्पण उत्सव में गोदी मीडिया का स्टंट और दोहरा चरित्र दोनों दिखा। यूपी में चुनाव नजदीक है तो गोदी मीडिया, मोदी-योगी के फेवर में पोलोराइजेशन करती नजर आई। जब कारिडोर बनाया जा रहा था तभी दावा किया किया जा रहा था कि भक्तों को सड़क पर लाइन नहीं लगानी पड़ेगी। देख लीजिए, गरीब भक्तों की लाइन तो अभी भी सड़क और गलियों में ही लग रही है। कारिडोर में जो भी इंतजाम किया गया है वह सिर्फ वीवीआईपी के लिए। पैसा देकर कारिडोर उत्सव को ट्विटर पर ट्रैंड करा दिया गया और डंका पीटा गया कि मेगा इवेंट देखने के लिए लोग टूट पड़े हैं।"

पत्रकार अमितेष पांडेय कहते हैं, "कारिडोर महोत्सव में बनारस की जनता ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अगर कोई उछलता नजर आया तो वो थे भाजपा व उसके अनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ता और गोदी मीडिया, जो गोदी के बाहर थी, गोदी के अंदर भी थी। मीडिया ने किसी से यह सवाल नहीं किया कि विश्वनाथ कारिडोर सनातन परंपरा और शास्त्र के हिसाब से चलेगा या फिर मोदी उसे अपने ढंग से चलाएंगे13 दिसंबर को शहर में बड़े पैमाने पर वैवाहिक कार्यक्रम थे। सोचिए कि शहर भर का रास्ता रोके जाने से लोगों ने कितने कष्ट सहे होंगे? जिन रास्तों से पीएम मोदी को गुजरना था उन रास्तों पर पड़ने वाले सभी वैवाहिक लानों पर तो ताले ही जड़ दिए गए थे, जिसके चलते न जाने कितनों की खुशियां छिन गईं। 

(बनारस स्थित विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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