Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

समान नागरिक संहिता के बारे में अम्बेडकर ने क्या कहा था?

एक नवगठित राष्ट्र, जो अभी भी विभाजन से उबर रहा था, उसमें यह पहचानने की संवेदनशीलता और समझ थी कि नागरिक सामाजिक सुधार और धार्मिक पहचान दोनों कितने महत्वपूर्ण हैं।
AMBEDKAR
छवि सौजन्य: विकिमीडिया कॉमन्स

9 दिसंबर को, राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी के सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने, समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को तैयार करने और इसे पूरे भारत में लागू करने के लिए एक राष्ट्रीय निरीक्षण और जांच समिति की मांग करने वाला निजी सदस्य विधेयक पेश किया जिसका विपक्षी सदस्यों ने विरोध किया और अंततः इसे ध्वनि मत के ज़रिए सदन में पेश किया गया। विपक्ष ने मीणा से अपना प्रस्ताव वापस लेने को कहा और साथ ही राज्यसभा के सभापति, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से देश की धर्मनिरपेक्ष नींव को नष्ट करने की ताक़त  रखने वाले विधेयक को पेश न करने देने का अनुरोध किया था।

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिट्स ने सदन में भारत के विधि आयोग की हालिया रिपोर्ट का हवाला दिया, जो स्पष्ट रूप से कहती है कि देश में यूसीसी "न तो जरूरी है और न ही वांछनीय" है। उन्होंने यूसीसी को एक "असभ्य संहिता" के रूप में वर्णित किया जो समाज का ध्रुवीकरण करेगी। विधि आयोग के हालिया परामर्श पत्र में कहा गया है कि, "आयोग ऐसे कानूनों से निपटा है जो समान नागरिक संहिता प्रदान करने के बजाय भेदभावपूर्ण हैं जो इस स्तर पर न तो जरूरी है और न ही वांछनीय है। अधिकांश देश अब समाज में मौजूद भिन्नता को मान्यता देने की ओर बढ़ रहे हैं, और केवल भिन्नता होना भेदभाव नहीं है, बल्कि एक मजबूत लोकतंत्र का संकेत है।"

द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के तिरुचि शिवा ने कहा कि यूसीसी को लागू करने के प्रस्तावों को पहले भी कई बार सूचीबद्ध किया गया है, लेकिन सदन के अन्य सदस्यों द्वारा इसका विरोध करने  के बाद पेश नहीं किया जा सका। उन्होंने कहा कि देश को एक साथ रखने वाली धर्मनिरपेक्षता और संघवाद की नींव दांव पर लगी है, और यदि यह निजी सदस्य का विधेयक पारित हो जाता है तो देश के सामने एक अंधकारमय भविष्य खड़ा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि सदन को यूसीसी के संबंध में अल्पसंख्यकों की चिंताओं के प्रति सचेत रहना होगा ताकि “उनके मन में कोई आशंका पैदा न हो।"

तिरुचि शिवा ने देश के विभाजन की याद दिलाते हुए कहा कि, एमए जिन्ना ने मुसलमानों को पाकिस्तान जाने का आह्वान किया था, लेकिन उन्होंने देश में रहने, स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में योगदान देने और बाद में अपने योगदान से देश की अर्थव्यवस्था का निर्माण करने को चुना था। सदन में तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व कर रहे शिवा ने राज्यसभा के सभापति से देश के भविष्य को ध्यान में रखते हुए मीणा के विधेयक को पेश करने की अनुमति नहीं देने की अपील की थी।

हालांकि, केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता पीयूष गोयल ने मीणा के बिल का समर्थन किया और कहा कि परिचय के स्तर पर विधेयक का विरोध करने वालों की टिप्पणियों ने उन्हें पीड़ा दी है। गोयल ने पहले कानून मंत्री और भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति के प्रमुख बीआर अंबेडकर का हवाला देते हुए कहा कि, "संविधान के राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों के तहत मुद्दे को उठाना किसी भी सदस्य का वैध अधिकार है।"

यह सर्वविदित है कि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत या डीपीएसपी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने के प्रयास में राज्य को आदेश देते हैं। हालाँकि, संसद के विपक्षी सदस्यों का दृढ़ विश्वास है कि यूसीसी देश में धार्मिक और अन्य पहचानों को विभाजित करने की प्रक्रिया को बढ़ाने और उनके इर्द-गिर्द संघर्षों को भड़काने की एक रणनीति है। यह वह डर और चिंता है जिसे वे संसद में उठा रहे थे जब वे उस बिल का विरोध कर रहे थे जिसे मीणा पेश करना चाहते थे। उन्हें डर है कि सत्तारूढ़ शासन यूसीसी को स्वीकार कर लेगा और संसद के दोनों सदन इसे पारित कर देगा, क्योंकि भाजपा को संसद में भारी बहुमत हासिल है।

यूसीसी पर अम्बेडकर का सतर्क समर्थन

बीजेपी के नेता बिल को पेश करते वक़्त, यूसीसी पर अंबेडकर के समर्थन का हवाला दे सकते हैं, लेकिन क्या यह वास्तव में भारत के संविधान को तैयार करने वाले व्यक्ति की दृष्टि के अनुरूप है? अम्बेडकर ने डीपीएसपी में एक समान नागरिक संहिता को शामिल करने का समर्थन किया था, लेकिन वे संविधान सभा के कई मुस्लिम सदस्यों की गंभीर आपत्तियों को ध्यान में रखते थे। अम्बेडकर ने यह भी उम्मीद की थी कि कोई भी सरकार एक समान कोड को इस तरह से लागू करने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं करेगी जो "मुस्लिम समुदाय को विद्रोह करने के लिए उकसाए"।

23 नवंबर 1948 को, अम्बेडकर ने यूसीसी पर चर्चा के दौरान संविधान सभा में अल्पसंख्यक सदस्यों को आश्वस्त करने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा था, "यह [अनुच्छेद 35] यह नहीं कहता है कि संहिता तैयार होने के बाद राज्य इसे सभी नागरिकों पर केवल इसलिए लागू करेगा क्योंकि वे नागरिक हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि यह "पूरी तरह से संभव" है कि भविष्य की संसद शुरुआत में एक ऐसा प्रावधान कर सकती है कि संहिता केवल उन लोगों पर लागू होगी जो घोषणा करते हैं कि वे "इससे बाध्य होने के लिए तैयार हैं"। दूसरे शब्दों में, प्रारंभ में, "संहिता का अनुप्रयोग विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक हो सकता है।"

दूसरे शब्दों में, अम्बेडकर ने महसूस किया था कि, यूसीसी को शुरू में एक स्वैच्छिक संहिता  के रूप में पेश किया जा सकता है और संसद निश्चित रूप से नागरिकों को इसका पालन करने के लिए बाध्य नहीं करेगी।

2 दिसंबर 1948 को, अंबेडकर ने संविधान के मसौदे के अनुच्छेद 13 पर एक लंबी चर्चा के दौरान किसी भी धर्म को मानने के मौलिक अधिकार के बारे में कहा था कि "किसी के लिए यह कल्पना करना बिल्कुल असंभव है कि पर्सनल लॉ को राज्य के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा जाएगा।” उनका तात्पर्य यह था कि भारत में धार्मिक अवधारणाएँ इतनी विशाल हैं कि वे जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन के हर पहलू को अपने भीतर समेटे रहती हैं। अंबेडकर ने कहा था कि राज्य को धार्मिक मामलों में बिल्कुल भी हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देना समाज को "एक ठहराव" में लाने जैसा होगा। "हमारे पास यह स्वतंत्रता हमारी सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए है, जो इतनी असमानताओं, भेदभावों और अन्य चीजों से भरी हुई है जो हमारे मौलिक अधिकारों के साथ टकराव पैदा करती हैं।"

इसलिए, उन्होंने कहा था कि, ... राज्य इस मामले में दावा कर सकता है कि कानून बनाने की शक्ति उस में है। व्यक्तिगत कानूनों को समाप्त करने का राज्य पर कोई दायित्व नहीं है। यह केवल उसे एक शक्ति दे रहा है। इसलिए, किसी को भी आशंकित होने की जरूरत नहीं है कि यदि राज्य के पास शक्ति है, तो वह तुरंत उस शक्ति को निष्पादित या लागू करेगा जो मुसलमानों या ईसाइयों या भारत में किसी अन्य समुदाय को कबूल नहीं है। अंबेडकर ने शरीयत कानून में बदलाव का भी जिक्र किया था जिससे महिलाओं के लिए तलाक लेना आसान हो जाए। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया था कि एक उन्नत समाज के लिए पर्सनल लॉ में राज्य की किसी भी भूमिका को खारिज करना "अव्यावहारिक" होगा, "यहां तक कि जो सदस्य किसी विशेष समुदाय से संबंधित हैं, वे अपने पर्सनल लॉ को बदलने की इच्छा कर सकते हैं।"

इसलिए, यूसीसी और धर्म की स्वतंत्रता के संदर्भ में, अम्बेडकर ने यूसीसी के बारे में आशंका रखने वाले सभी सदस्यों, विशेषकर मुस्लिम नेताओं की भावनाओं की सराहना की थी। बदले में, उन्होंने उन्हें याद दिलाया कि संप्रभुता हमेशा सीमित होती है। उन्होंने कहा था कि, "...इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप दावा करते हैं कि यह असीमित है, क्योंकि उस शक्ति के प्रयोग में संप्रभुता को खुद को विभिन्न समुदायों की भावनाओं से मेल खाना चाहिए," उन्होंने कहा कि, "कोई भी सरकार इस तरह से अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकती है जिससे कि मुस्लिम समुदाय को विद्रोह के लिए उकसाया जा सके। मुझे लगता है कि अगर ऐसा होता है तो यह एक पागल सरकार होगी। लेकिन यह एक ऐसा मामला है जो शक्ति के प्रयोग से संबंधित है न कि खुद सत्ता से।”

दूसरे शब्दों में, भले ही राज्य पर्सनल लॉ से संबंधित मामलों पर कानून बना सकता है, फिर भी खुद के धर्म को मानना और मानने का अधिकार एक मौलिक अधिकार बना रहेगा, और संघ अपनी शक्तियों का इस्तेमाल अल्पसंख्यकों की भावनाओं या आशंकाओं को अनदेखा करने के लिए नहीं करेगा। अम्बेडकर ने इस प्रकार यह भी स्पष्ट किया था कि वे समझते हैं कि पर्सनल लॉ पर कानून बनाना भारत में एक संवेदनशील मुद्दा क्यों है।

जैसा कि भाजपा अंबेडकर को हथियाने की कोशिश करती है, क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार यूसीसी पर अंबेडकर की गहन और संवेदनशील टिप्पणियों के प्रति सचेत हो सकती है और उनकी दृष्टि के अनुरूप काम कर सकती है? उन्होंने संविधान सभा में जो कहा था, उसमें इसके सदस्यों की विधायी मंशा शामिल है। यदि संसद के दोनों सदन यूसीसी को मंजूरी देते हैं और केंद्र इसे नागरिकों पर थोपती है, तो अंबेडकर के हिसाब से यह एक "पागल" सरकार होगी, जो संविधान का मसौदा तैयार करने वालों के विधायी इरादे को रौंद रही होगी।

(एसएन साहु ने भारत के दिवंगत राष्ट्रपति केआर नारायणन के स्पेशल ऑफिसर ऑन ड्यूटि के रूप में कार्य किया है। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest