कौन हैं गोटाबाया राजपक्षे, जिसने पूरे श्रीलंका को सड़क पर उतरने को मजबूर कर दिया है
श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के दफ़्तर के बाहर एक ऐसी टेंट सिटी उग आयी है, जहां उनके इस्तीफ़े की मांग को लेकर पांच दिनों से ज़्यादा समय से बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं। इस गॉल फ़ेस, जहां राष्ट्रपति का दफ़्तर है, वहां देश के सामने पेश आ रही मुश्किलों में राष्ट्रपति की केंद्रीय भूमिका को उजागर करते हुए साइन बोर्ड का नाम बदलकर 'गोटागोमा' या 'गोटागो गांव' कर दिया गया है।
तीन महीने से चल रहे इस ज़बरदस्त आर्थिक संकट में श्रीलंका के बाज़ार डीज़ल, दूध पाउडर और औषधीय दवाओं जैसी ज़रूरी चीज़ों से ख़ाली हो गये हैं। 9 से 11 अप्रैल के बीच देश भर में ईंधन के लिए लगी कतारों में तीन और लोगों की मौत हो गयी थी। श्रीलंका नागरिक समाज के दबाव में और संकट पर लगातार बढ़ते जा रहे अंतर्राष्ट्रीय ध्यान के साथ ही 18-22 अप्रैल तक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ बातचीत में लगा रहा। उस बातचीत के बाद आईएमएफ़ ने एक बयान जारी किया। उस बयान में आईएमएफ़ ने "अपने आर्थिक कार्यक्रम पर अधिकारियों के साथ मिलकर काम करके और संकट के इस समय समाधान की दिशा में बाक़ी सभी प्रभावितों के साथ मिलकर काम करके मौजूदा आर्थिक संकट को दूर करने के लिए श्रीलंका के प्रयासों का समर्थन करने” का वादा किया।
"It's a Test match, We are ready to wait until we get rid of these corrupt leaders" Sri Lanka Galle Face Green protest against President and Government continues pic.twitter.com/akzaKrRLRQ
— NewsWire 🇱🇰 (@NewsWireLK) April 10, 2022
इस समय जो संकट चल रहा है, उसके पीछे की वजह लोकलुभावन कर कटौती से लेकर अदूरदर्शी नीति निर्माण, कोविड-19 और रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष के बाद वैश्विक तेल की क़ीमतों में इज़ाफ़े जैसे कई कारण हैं। नागरिकों की मांग तो यही रही है कि राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे अपने पद से इस्तीफ़ा दें। कुछ लोग तो प्रभावशाली राजपक्षे परिवार के राजनीतिक रूप से बाहर होने की भी मांग कर रहे हैं।
पीपल्स डिस्पैच संकट से घिरे श्रीलंका के इस राष्ट्रपति की ज़िंदगी और करियर पर एक नज़र डाल रहा है, क्योंकि वह इस समय अपने राष्ट्रपति पद को बनाये रखने के लिए संघर्ष करते हुए दिख रहे हैं।
राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे 'द टर्मिनेटर'
गोटाबाया राजपक्षे को 2019 में मैत्रीपाला सिरिसेना की जगह श्रीलंका के सातवें कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में चुना गया था। वह सैन्य पृष्ठभूमि से आने वाले पहले ऐसे निर्वाचित राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने श्रीलंका में 26 साल तक चले लंबे गृह युद्ध के दौरान एक कामयाब सैन्य अधिकारी के रूप में कार्य किया है। सैनिक से राजनेता बने गोटाबाया ने अपने बड़े भाई महिंदा राजपक्षे के राष्ट्रपति काल के दौरान 2005 से लेकर 2009 में अलगाववादी आतंकवादी समूह लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE) के ख़िलाफ़ चले युद्ध के अंत तक इस युद्ध के समय रक्षा सचिव के रूप में भी काम किया था।
श्रीलंका का गृहयुद्ध 1983 में उस समय शुरू हुआ था, जब लिट्टे ने सरकार के ख़िलाफ़ रुक-रुककर चलने वाला एक विद्रोह शुरू कर दिया था। इससे इस द्वीप पर तमिल भाषी और सिंहली भाषी आबादी के बीच लंबे समय तक जातीय संघर्ष होता रहा।
लिट्टे को अक्सर क्रूरता से दबाने में गोटाबाया की भूमिका के लिए उन्हें 'द टर्मिनेटर' के रूप में जाना जाता है। श्रीलंका के मौजूदा राष्ट्रपति पर गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन और युद्ध के अंत में उत्तर-पूर्वी श्रीलंका के तमिल क्षेत्रों में कम से कम 40,000 नागरिकों (जैसा कि संयुक्त राष्ट्र का आकलन है) की मौत के घाट उतारे जाने का आरोप है। । कहा जाता है कि 2009 में संडे लीडर के संपादक लसंथा विक्रमतुंगे की हत्या से भी उनका नाम जुड़ा था।
लगभग 1 करोड़ 60 लाख सिंहली बौद्ध आबादी के बीच इन दोनों राजपक्षे भाइयों को बतौर 'नायक' पेश किया जाता है, जिन्होंने देश को गृहयुद्ध से बाहर निकाला। यह भावना 2019 के राष्ट्रपति चुनावों में उस समय भी दिखायी दी, जब गोटाबाया ने ईस्टर संडे के उन हमलों के तुरंत बाद काफ़ी ध्रुवीकृत जनादेश के साथ जीत हासिल की, जिनके निशाने पर ईसाई और मुसलमान जैसे अल्पसंख्यक थे।
श्रीलंका पर लम्बे समय से नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार एमआर नारायण स्वामी लिखते हैं, "यह दुखद है, लेकिन सच है कि उस तबाही को उस बहुसंख्यक सिंहली समुदाय का व्यापक समर्थन हासिल था,जिसमें से एक बड़े वर्ग ने भारी भरकम सिंहली सेना के साथ लिट्टे के ख़िलाफ़ लड़ते हुए ख़ुद की पहचान बना पाया था।
People outside St. Anthony’s Church waiting for those marching from Negombo to Colombo today. Their boards insinuate that the Rajapaksas are the masterminds behind Easter Sunday attacks in 2019. pic.twitter.com/1TmdDXO53v
— Thyagi Ruwanpathirana (@ThyagiR) April 9, 2022
श्रीलंका की राजनीति में राजपक्षे परिवार
साल 2009 के बाद से श्रीलंका के राजनीतिक इतिहास में ज़्यादातर समय राजपक्षे परिवार का ही वर्चस्व रहा है। यह परिवार महिंदा राजपक्षे के राष्ट्रपति काल में प्रमुखता से उभरा। इस अवधि में राजपक्षे परिवार के सदस्यों को 40 मंत्री पद (सात कैबिनेट पदों सहित) दिये गये। वंशवादी सत्ता की इस राजनीति ने उस भाई-भतीजावाद और निरंकुशता के आरोपों को जन्म दिया है, जो कि गोटाबाया की हुक़ूमत में भी जारी है।
वरिष्ठ पत्रकार अमंथा परेरा ने 2010 में टाइम पत्रिका में लिखा था, "अपने पूरे करियर में राजपक्षे (महिंदा) के मुख्य विशिष्टताओं में से एक विशिष्टता परिवार के करीबी सदस्यों पर उनकी निर्भरता रही है। विपक्ष की ओर से भाई-भतीजावाद की शिकायत के बावजूद उनकी सरकार में शीर्ष और प्रभावशाली पदों पर रहने वाले परिवार के नज़दीकी लोग लगातार बढ़ते रहे हैं। ” यह बात आज भी सच है।
4 अप्रैल को गोटाबाया सरकार के कैबिनेट सदस्यों के सामूहिक इस्तीफ़े से पहले अहम विभाग उनके परिवार के महिंदा (प्रधान मंत्री), तुलसी (वित्त) और चमल (सिंचाई), और भतीजे नमाल (खेल) जैसे नज़दीकी लोग ही संभाल रहे थे।
शासन और नीतियां
2019 में राष्ट्रपति के रूप में ख़ुद के चुने जाने के समय चर्च हमलों के झटके के बाद सत्ता में आने वाले एक सैन्य व्यक्ति के रूप में उनकी छवि को देखते हुए गोटाबाया के आर्थिक पुनरुद्धार और सुरक्षा मुहैया कराने जैसे वादों ने उनकी चुनावी जीत में अच्छी भूमिका निभायी थी। हालांकि, तीन साल बाद उनकी सरकार न सिर्फ़ आर्थिक मोर्चे पर नाकाम रही है, बल्कि 'सुरक्षा' को लोगों पर नज़र रखने और सैन्यीकरण के एक हथियार के रूप में बदल दिया है।
इसकी एक मिसाल विरोध पर अंकुश लगाने और मुसलमान जैसे अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए आतंकवाद विरोधी क़ानून रोकथाम अधिनियम (PTA) का इस्तेमाल है। तमिल भाषी अल्पसंख्यक प्रांतों के राज्यपालों के रूप में पूर्व सैन्य कर्मियों की नियुक्ति प्रांतीय परिषदों की स्वायत्तता को और बाधित करने वाला साबित हुई है, जो कि युद्ध के बाद की शांति प्रक्रिया के एक हिस्से के रूप में उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में प्रशासन की अनदेखी करते हैं।
गोटाबाया की नीतियों की अदूरदर्शिता के लिए उनकी काफ़ी आलोचना हुई है। मसलन, कई कार्यकर्ताओं ने कोलंबो को सुंदर बनाने की परियोजना के लिए झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को जबरन बेदखल करने की निंदा की है।
22 अप्रैल, 2021 को गोटाबाया की सरकार ने देश को "दुनिया का पहला 100 प्रतिशत जैविक खाद्य उत्पादक" बनाने के लिए रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल और आयात पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने का ऐलान कर दिया था। मुख्य रूप से आयात पर निर्भर कृषि अर्थव्यवस्था होने के कारण रातोंरात जैविक खेती में ख़ुद के बदल दिये जाने से श्रीलंका के किसानों के सामने एक गंभीर चुनौती पैदा हो गयी थी। इसने खाद्य पदार्थों की उस कमी में योगदान दिया है, जिसे कि इस समय देश भर में देखी जा रही है।
साभार : पीपल्स डिस्पैच
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