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अमेरिका और ब्रिटेन के चुनावों में 'भारतीय राष्ट्रवाद': खतरे और खामियां

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ''ऱाष्ट्रवाद'' के इज़हार की अपनी समस्याएं हैं।
howdy modi

दो गलत मिलकर एक सही नहीं बनाते। जैसा तर्क दिया जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर में भारतीय कार्रवाई पर ब्रिटेन में लेबर पार्टी ने प्रस्ताव पास करवा कर गलत किया, उसी तरह ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ भारतीय जनता पार्टी (OFBJP) द्वारा लेबर पार्टी के खिलाफ सोशल मीडिया कैंपेन लॉन्च भी बेहद गलत है। यह कैंपेन 12 दिसंबर को होने वाले चुनावों में लेबर पार्टी को हराने के लिए चलाया जा रहा है।

एक बात समझना जरूरी है कि भारतीय मूल के कथित दस लाख लोग पहले ब्रिटेन के नागरिक हैं। कोई उनसे यह अपेक्षा नहीं रख सकता कि वे किसी ऐसे संगठन से प्रभावित हो जाएं, जो उनके देश से बाहर के किसी राजनीतिक दल से जुड़ा हो। यह सच है कि जम्मू-कश्मीर के विशेष प्रावधान हटाए जाने की भारतीय कार्रवाई के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों में लेबर पार्टी के कुछ सांसदो द्वारा हिस्सा लेने से भारतीय मूल के बहुत सारे लोग नाराज़ हैं। बताया जा रहा है कि यह प्रदर्शन ब्रिटेन में पाकिस्तान और खालिस्तान समर्थक तत्वों की तरफ से आयोजित करवाए गए थे।

भारतीय मूल के ब्रिटेन के नागरिक भारत सरकार के पक्ष में समर्थन जुटा सकते हैं, सार्वजनिक जगहों पर अपनी नाराजगी जाहिर कर सकते हैं। लेकिन सवाल है कि इसकी कोई लक्ष्मण रेखा या हद भी तो होगी। कोई भी देश किसी दूसरे देश के राजनैतिक संगठन से संबंधित संस्था का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगा।

22 सितंबर में हाउडी मोदी कार्यक्रम में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुलकर भारतीय मूल के लोगों को चुनाव में डोनल्ड ट्रंप को वोट देने का इशारा किया। बता दें अमेरिका में अगले साल चुनाव होने हैं। इसके चलते भविष्य में अमेरिका से भारत के संबंधों में नकारात्मकता भी आ सकती है।

दक्षिण एशिया, अफ्रीकी मूल और दूसरे भाषायी, धार्मिक और जातीय (जैसे यहूदी, अमेरिका में लैटिन) लोग पारंपरिक तौर पर ब्रिटेन में लेबर पार्टी और अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी को वोट देते आए हैं। हालांकि यह कोई तय नियम नहीं है और कुछ लोग कंजर्वेटिव और रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक भी रहे हैं। फिर भी ऐतिहासिक और राजनैतिक कारणों के चलते अपने मत देने के तरीकों में भारतीय लोग जहां कहीं भी हों, वहां अपनी मजबूरी समझते हैं। आखिर जब भारत को स्वतंत्रता मिली तो लेबर पार्टी के क्लीमेंट एटली प्रधानमंत्री थे।

ठीक इसी तरह सब जानते हैं कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और दूसरे डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता भारत के अच्छे दोस्त हैं। कोई नहीं जानता कि अगले चुनावों में इन दोनों देशों में कौन सत्ता में आएगा। हो सकता है कि लेबर और डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता जम्मू-कश्मीर पर भारतीय मत से अलग विचार रखते हों। लेकिन अतीत की तरह विदेश मंत्रालय इन चुनौतियों से निपट सकता है। उदाहरण के लिए कई मौकों पर भारत ने किसी बाहरी ताकत के हस्तक्षेप को रोका है, चाहे वह अमेरिका रहा हो या ब्रिटेन।

मुख्य बात यह है कि भारत में कभी किसी पार्टी ने अपने समर्थकों द्वारा किसी दूसरे देश खासकर, अमेरिका और ब्रिटेन में किसी पार्टी की हार के लिए काम नहीं करवाया है। अब अतीत में कंजर्वेटिव और रिपब्लिकन पार्टी की स्थिति पर गौर करें। 1962 में चीन से युद्ध के वक्त जॉन एफ कैनेडी ने भारत का समर्थन किया था, लेकिन इसके उलट रिपब्लिकन पार्टी से प्रेसिडेंट बने रिचर्ड निक्सन ने 1971 के युद्ध में खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया था। यह भी सब जानते हैं कि इंदिरा गांधी की अमेरिका यात्रा के वक्त रिचर्ड निक्सन ने उनका अपमान किया था।

इसी तरह ट्रंप का भारत पर कई बार पलटी खाना भी जगजाहिर है। 13 नवंबर को उन्होंने भारत पर लॉस एंजेल्स को ''कचरा'' निर्यात करने का आरोप लगाया। ब्रिटेन में 48 चुनाव क्षेत्रों में भारतीय मतदाताओं का वोट अहम है। वैसे तो इन वोटो की संख्या बहुत कम है, लेकिन करीबी मुकाबले में यह निर्णायक हो सकते हैं।

दक्षिण एशियाई मूल के ब्रिटिश नागरिक भी अपना 'क्रिकेट राष्ट्रवाद' आजकल खुलकर दिखा रहे हैं। जब भी कभी ब्रिटेन में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश या श्रीलंका का मुकाबला इंग्लैंड से होता है, तो वे अपने मूलदेश का खुलकर समर्थन करते हैं। हमारे उपमहाद्वीप में ऐसे लोगों को निश्चित ही राष्ट्रद्रोही घोषित कर दिया जाता। (एक-दो मौकों पर इंग्लैंड के लिए खेलने वाले लोगों का भी मजाक बनाया गया है)। विडंबना है कि भारतीय मूल के बहुत सारे लोगों ने चैंपियन्स ट्रॉफी में पाकिस्तान और इंग्लैंड के बीच हुए मुकाबले में खुलकर पाकिस्तानी टीम का समर्थन किया था। उनका तर्क बेहद अजीब था। वे चाहते थे कि पाकिस्तान, इंग्लैंड को हरा दे। ताकि फाइनल में भारत और पाकिस्तान का मुकाबला हो सके। उनकी इ्च्छा पूरी हुई, पर अधूरी। इंग्लैंड को सेमीफाइनल में हराने के बाद पाकिस्तान ने फाइनल में भारत हरा दिया। हालांकि लीग मैच में भारत ने पाकिस्तान को हराया था।

राजनीतिक वजहों से एक-दूसरे के जानी दुश्मन, अरब और यहूदी भी अमेरिका में ज़्यादातर डेमोक्रेटिक पार्टी को वोट देते हैं। भारत और पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश नागरिकों के वोटिंग पैटर्न को अलग करना आसान नहीं है। क्रिकेट मैच में किसी टीम के समर्थन को समझा जा सकता है, लेकिन किसी को यह अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए कि इसी तरह का ''ऱाष्ट्रवाद'' वैश्विक परिदृश्य में भी दिखाया जाएगा।

सुरूर अहमद स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Why International Diplomacy is no Cricket Match

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