Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

यूपी: बीआरडी अस्पताल में नहीं थम रहा मौत का सिलसिला, इस साल 907 बच्चों की हुई मौत

जैसे ही मानसून आएगा एन्सेफलाइटिस से मौत की संख्या में अचानक वृद्धि हो जाएगी।
गोरखपुर

गोरखपुर स्थित बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में पिछले साल बड़ी संख्या में हुई बच्चों की मौत के बाद ये अस्पताल एक बार फिर योगी सरकार के लिए चुनौती बन गई है। ज्ञात हो कि पिछले साल अगस्त महीने में क़रीब 60 बच्चों की मौत हो गई थी जिसके बाद पूरे देश में हंगामा खड़ा हो गया था।

 

इसी अस्पताल में इस वर्ष जनवरी से अब तक 900 से अधिक बच्चों ने अपनी जान गंवा दी। नाम न बताने की शर्त पर इससे जुड़े एक व्यक्ति ने न्यूज़क्लि को बताया कि "इस साल जनवरी से लेक 4 जून तक कुल 907 बच्चे की मौत हो गई है। इनमें से 63 बच्चों की मौत एन्सेफलाइटिस के कारण हुई जबकि अन्य बच्चों की मौत दूसरे कारणों से हुई।"

 

उन्होंने कहा कि नवजात शिशु इकाई (एनआईसीयू) में सबसे ज्यादा मौत (587) हुई है, जबकि पैडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) में 320 बच्चों की मौत हुई है। उन्होंने कहा कि "पीआईसीयू में मरने वालों में से तिरसठ बच्चे एन्सेफलाइटिस से ग्रसित थें।"

 

brd 1

 

राज्य सरकार के इस अस्पताल में बच्चों की मौतों की संख्या में मामूली कमी आई है। उन्होंने कहा कि इसी अवधि (जनवरी से जून की शुरुआत में) में पिछले साल कुल 993बच्चे की मौत हुई थी। अधिकारी ने कहा कि रिकॉर्ड के मुताबिक एनआईसीयू में 642 और पीआईसीयू में 351 बच्चों की मौत हुई थी।

 

brd2

 

पिछले साल 11-12 अगस्त को बीआरडी में ऑक्सीजन की कमी के चलते 60 से अधिक बच्चों की कथित तौर पर हुई मौत की घटना के बाद डॉक्टरों और कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई थी। इस कार्रवाई के बाद डॉक्टर और मेडिकल कॉलेज के अन्य कर्मचारी इतने डरे हुए हैं कि वे ऑन रिकॉर्ड बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।

 

पिछले साल इसी अवधि के दौरान 63 बच्चों की मौत के मुकाबले अब तक एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) वार्ड में भर्ती कराए गए 62 बच्चों की मौत हो गई।

 

brd3

बीआरडी अस्पताल का बुनियादी ढांचा बेहद ख़राब स्थिति में है। जैसे ही मानसून आएगा अस्पताल में भर्ती कराने के लिए बीमार बच्चों की संख्या में अचानक वृद्धि होगी। अस्पताल कर्मचारियों की संख्या बेहद कम है।

 

बीआरडी अस्पताल के पूर्व प्राचार्य राजीव मिश्रा पिछले साल हुई घटना को लेकर पिछले 9 महीनों से जेल की सजा काट रहे हैं। उन्होंने अस्पताल में अपर्याप्त बुनियादी ढांचे,कर्मचारियों की कमी और सुविधाओं की अनुपलब्धता को लेकर राज्य के स्वास्थ्य विभाग को पत्र लिखा था। लेकिन अब तक संबंधित अधिकारियों द्वारा कोई क़दम नहीं उठाया गया है। ये पत्र न्यूज़क्लिक के पास मौजूद है।

सूत्रों का कहना है कि आउट पेशेंट विभाग (ओपीडी) में 50-60 मरीजों को देखने के लिए केवल चार ही डॉक्टर हैं। एक साल बाद भी बीआरडी अस्पताल में कोई सुधार नहीं हुआ है और संबंधित अधिकारी द्वारा पिछले साल किए गए दावे झूठे साबित हो रहे हैं।

 

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के डिप्टी कमिश्नर (टीकाकरण) डॉ एमके अग्रवाल, नई दिल्ली स्थित वीएमएमसी और सफदरजंग अस्पताल के बाल चिकित्सा के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ हरीश चेल्लानी और नई दिल्ली स्थित लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज और एसोसिएटेड अस्पताल के निदेशक, नवजात विज्ञान की प्रोफेसर और प्रमुख डॉ सुषमा नांगिया की एक उच्च स्तरीय समिति ने घटना के दो दिनों बाद 13 अगस्त, 2017 को बीआरडी कॉलेज का दौरा किया था। समिति ने पाया कि सीनियर रेजिडेंटेस(पोस्ट एमडी रेजिडेंट्स) की संख्या "बेहद कमी है, 12 पदों में केवल 4 ही" थें और 24X7 सेवा देने की ज़रूरत है न कि केवल नियमित घंटों के लिए।

एमडी सीनियर रेजिडेंट्स रोगी की देखभाल के संबंध में निर्णायक कार्रवाई करते हैं और मरीज़ों को दिए जाने वाली सुविधा की गुणवत्ता में अहम भूमिक निभाते हैं। समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के मुताबिक "वर्तमान में नियमित घंटों के अलावा रोगियों को जूनियर रेजिडेंड्स देखभाल किया जाता है जो स्वयं भी छात्र हैं और रोगियों की देखभाल करना सीख रहे हैं। नर्सिंग स्टाफ की संख्या पर्याप्त है, लेकिन उचित देखभाल के लिए उन्हें समुचित तरीके से तैनात करने की आवश्यकता है। इसके अलावा नवजात बच्चों की देखभाल में प्रशिक्षित नर्स नगण्य है। नवजात ईकाई में काम कर रहे 31 नर्सों में से केवल तीन नर्स ही एफबीएनसी (फैसिलिटी बेस्ड न्यूबॉर्न केयर) प्रशिक्षित हैं।"

 

 

रिपोर्ट में आगे कहा गया कि नवजात रोगियों के क्लिनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल को मज़बूत और बेहतर करने की आवश्यकता है। डॉक्टरों की टीम ने पाया कि "हाथ धोने,कीटाणुनाशक के इस्तेमाल, बच्चे को डिस्चार्ज करने या मौत के बाद बिस्तर की सफाई जैसे नियमित कार्यों में एसेप्सिस (बैक्टीरिया, वायरस और अन्य सूक्ष्मजीवों की अनुपस्थिति) का ध्यान कम रखा जाता है।"

 

इन डॉक्टरों ने पाया कि "एंटिबायोटिक दवाओं और इंट्रावेनस फ्लूड थेरेपी के ज़्यादा इस्तेमाल के साथ-साथ दिए जाने वाले खाद्य पदार्थों में न्यूट्रीशन की बेहद कमी थी।"

 

 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest