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यूपी में बच्चों की मौतें जारी , सरकार और प्रशासन निष्क्रिय

यूपी में पिछले कुछ महीनों से अस्पतालों से बच्चों की मौत की खबरें आ रही हैं। आलम ऐसा हो गया है कि नेशनल हॉरर लिस्ट में यूपी का नाम सबसे ऊपर आ गया है
बीआरडी अस्पताल

बीआरडी मेडिकल कालेज के बालरोग विभाग में मौतों का सिलसिला बदस्तूर जारी है। बालरोग विभाग में बीते चार दिनों में 55 मासूमों की मौत हो गई। मरने वालों में 29 नवजात शामिल हैं। इसके अलावा इंसेफेलाइटिस व एपेडमिक वार्ड में 26 बच्चों की मौत हुई। बीते बुधवार को 13 मासूमों की मौत हुई जिसमें सात नवजात शामिल रहे। गुरुवार को 12, शुक्रवार को 18 व शनिवार को 12 मरीजों की मौत बालरोग विभाग में हुई।

बीआरडी मेडिकल कालेज में ऑक्सीजन त्रासदी के बाद मासूमों की मौत कम नहीं हुई। मरीज़ों को बेहतर इलाज मुहैया कराने के लिए शासन ने दूसरे मेडिकल कालेज व पीएमएस से 20 डॉक्टरों को बीआरडी में लिए तैनात किया। बीआरडी में नवजातों की मौत के बढ़ते ग्राफ से परेशान कॉलेज प्रशासन हलकान हो गया है। बालरोग विभाग में अक्तूबर में भी मौतों के कारण पिछले वर्ष का रिकॉर्ड टूट गया।

बीते तीन महीने में करीब 1,300 बच्चों की मौत बालरोग विभाग में हुई। बीआरडी के आँकड़ों के मुताबिक अगस्त में 418, सितंबर में 433 और अक्तूबर में 458 बच्चों की मौत हो गई।

यूपी में पिछले कुछ महीनों से अस्पतालों से बच्चों की मौत की खबरें आ रही हैं। आलम ऐसा हो गया है कि नेशनल हॉरर लिस्ट में यूपी का नाम सबसे ऊपर आ गया है। जुलाई, अगस्त और सितंबर में गोरखपुर के कई जिलों से लगातार बच्चों की मौत की खबरों ने सबका दिल दहला दिया। यूपी देश का एकमात्र ऐसा राज्य बन गया है जहाँ 5 साल से कम उम्र के बच्चों की सबसे ज्यादा मौत हुई है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक 1000 बच्चों में से 130 बच्चे पाँच साल से कम उम्र में मारे जाते हैं, श्रावस्ती में 1000 बच्चों में से 96 बच्चे 1 साल की उम्र में और 49 बच्चे 28 दिनों के अंदर ही मारे जाते हैं । 

भले ही ये आँकड़ा गोरखपुर का है, लेकिन ऐसी दहशत फैलाने वाले आँकड़े दूसरे जिलों के भी  हैं, यूपी में 7,338 डॉक्टरों की कमी है, ज़्यादातर डॉक्टर अस्पताल में ड्यूटी के दौरान मौजूद नहीं रहते इसलिए ऐसे हादसे होते हैं।

गोरखपुर के ख़स्ता हाल 

गोरखपुर के श्रावस्ती में आबादी के हिसाब से अस्पताल या क्लिनिक नहीं है। 30 बेड वाले अस्पताल में केवल 2 ही एमएमबीएस डॉक्टर हैं और एक भी सर्जन या विशेषज्ञ नहीं हैं। सरकारी आँकड़े भी अगर देखते हैं तो यूपी के अस्पतालों में 84 फीसद डॉक्टरों की कमी है। हालांकि योगी सरकार ने पिछले दिनों दावा किया है कि जल्द ही अस्पतालों में डॉक्टरों के खाली पद भरे जाएंगे, लेकिन कब तक और कितने इसकी कोई जानकारी नहीं है। 

इस स्थिति के क्या है कारण

कुपोषण और गरीबी, डॉक्टरों की कमी

अंतर्राष्ट्रीय खाद्य पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के आधार पर यूपी में 46 फीसद बच्चे 5 साल से कम उम्र में मारे जाते हैं। बिहार और झारखंड भी इस मामले में पीछे नहीं है। श्रावस्ती में 63 फीसदी है, यूपी में गर्भवती महिलाएँ और बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, नवजात और गर्भवती महिलाएँ खतरे में हैं। गरीबी की वजह से गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक खाना नहीं मिल पाता। इसिलए बच्चे भी कमजोर पैदा होते हैं। जुलाई से अगस्त और सितंबर तक गोरखपुर के बीआरडी कॉलेज में हजार बच्चों की मौत हो गई थी।

जुलाई और अगस्त का महीना नवजातों के लिए बहुत ही घातक होता है। गोरखपुर के बीआरडी कॉलेज में केवल अगस्त भर में 1000 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई थी, वहीं, राजस्थान के बांसवाड़ा में दो महीने में 70 बच्चे और जमशेदपुर के अस्पताल में चंद रोज़ में 100 से ज़्यादा बच्चों की मौत हुई। फर्रुखाबाद और बरेली में भी लगातार बच्चों की मौत की खबरें आई थी। इन खबरों ने सबका दिल दहला दिया था और देश के स्वास्थ्य की पोल खोल दी थी। 

इंडिया स्पेंड की ओर से किए गए एक शोध में पाया गया है कि नवजातों की मौत के मामले में झारखंड सबसे आगे है। डॉक्टर कहते हैं कि जुलाई-अगस्त में सबसे ज्यादा शिशुओं की मौत होती है। इस दौरान बारिश की वजह से इंफेक्शन का खतरा बढ़ता है बच्चों को कई तरह की बीमारियाँ होती हैं। झारखंड में इसके सबसे ज़्यादा मामले सामने आते हैं।

डॉक्टरों ने इसके पीछे कई कारण बताए:

  1. छोटी उम्र में शादी होने की वजह से महिलाएँ गर्भ धारण करने में सक्षम नहीं रहती हैं। 
  2. गरीबी और अशिक्षा भी इसके लिए जिम्मेदार है। 
  3. गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक खाना नहीं मिलता, वे और पैदा होने वाले बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं। 
  4. अपनी उम्र के हिसाब से उनका वजन नहीं होता है, ऐसे में बच्चे का वजन भी बहुत कम होता है।

झारखंड में 2015-16 के आँकड़ों के अनुसार पाँच साल से कम के 45.3% बच्चे कम हाइट के थे, 47.8% कम वजन के और 40.3 फीसद लोग गरीबी रेखा से नीचे रहने को मजबूर हैं। ऐसे में अस्पताल में पहुँचने से पहले ही कुछ की मौत हो जाती है तो कुछ अस्पताल में जाकर दम तोड़ देते हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में ये आँकड़ा सामने आया है।

साल 2000 में बिहार से अलग होने के बाद झारखंड ने 2005-06 से 2015-16 के बीच अर्थव्यवस्‍था में काफी तेज़ी से सुधार हुआ। बच्चों की मृत्यु दर में भी गिरावट आई , लेकिन साल 2016- 17 के बीच ये लक्ष्य पीछे रह गया। झारखंड ने मिले हुए फंड को अच्छे से इस्तेमाल नहीं किया और स्वास्थ्य विकास रुक गया।

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