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यूपी : वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के बाद कौन लेगा लगाए गए पौधों की सुध?

करीब 4,20,000 रुपये से पंचवटी योजना के तहत 10 हजार पौधे लगाए गए थे। लेकिन आठ दिन बाद हीइनमें बहुत से पौधे देखरेख के अभाव में सूख गए और बहुत से मवेशी चर गए।
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Image courtesy:Uttarpradesh.org

देश में आजकल किसी भी योजना का शुभारंभ बड़े ज़ोर-शोर से किया जाता है, लेकिन वास्तव में वो योजना अपने लक्ष्य में कितनी सफल हुई, इसकी कोई खोज़-ख़बर नहीं लेता। कुछ ऐसे ही हालात हैं उत्तर प्रदेश सरकार के 'वृक्षारोपण महाकुंभ' कार्यक्रम में हुए पौधारोपण का। दरअसल 9 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन की 77वीं वर्षगांठ पर 'वृक्षारोपण महाकुंभ' के अंतर्गत उत्तर प्रदेश सरकार ने एक दिन में 22 करोड़ पौधे लगा कर अपने नाम रेकॉर्ड तो दर्ज करा लिया लेकिन अब इन करोड़ो पौधों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।

नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक 'वृक्षारोपण महाकुंभके तहत लगाए गए पौधे देख-रेख के अभाव में अब मुरझाते नज़र आ रहे हैं। खबर के अनुसार लखनऊ के पास बक्शी के तालाब (बीकेटी) में हुए पौधरोपण की हकीकत हैरान करने वाली है। यहां करीब 4,20,000 रुपये से पंचवटी योजना के तहत 10 हजार पौधे लगाए गए थे। लेकिन आठ दिन बाद ही इन पौधों की शक्ल बदल गई।

प्रदेश में नौ अगस्त को बंजर भूमि सुधारने व पर्यावरण दुरुस्त करने के नाम पर वृक्षारोपण महाकुंभ के ही तहत पंचवटी योजना में बीकेटी बीडीओ अरुण कुमार सिंह ने गुलालपुर व मुसपिपरी गांव में खाली पड़ी ज़मीन पर 10 हजार पौधे लगवाए थे। इन दस हजार पौधों की कीमत लगभग चार लाख बीस हजार रुपये है। आठ दिन बाद ही यहां पर एक भी पौधा ऐसा नहीं बचा जो जीवित दिख रहा हो। ज्यादातर पौधों को अधिकारियों की उदासीनता के कारण छुट्टा मवेशी अपना निवाला बना गए तो कुछ पौधे देखरेख के अभाव व पानी न मिलने के कारण सूख गए।

ऐसे में बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर इन पौधों के सूखने का जिम्मेवार कौन हैआखिर हम इन महत्वकांक्षी योजनाओं के नाम कब तक बड़े-बड़े पोस्टरों और बैनरों को देखकर हकीकत से अजान खुश होते रहेंगे?

स्थानय लोगों के अनुसार हर साल की तरह इस बार भी अधिकारियों द्वारा करोड़ों का बजट खर्च कर एक विशाल कार्यक्रम के तहत प्रचार प्रसार करके पंचवटी योजना के तहत हजारों पेड़ लगाए गए और हमेशा की तरह आठ दिन में ही वह नष्ट हो गए। मुसपिपरी के ग्रामीणों का आरोप है कि अधिकारियों ने सिर्फ पौधे लगाए उनकी देखरेख का कोई इंतजाम नहीं किया। इस कारण ही यह सभी पौधे एक सप्ताह में ही सूख गए।

गौरतलब है कि प्रदेश सरकार का पंचवटी योजना के तहत हर ग्राम पंचायत को पंचवटी के तौर पर विकसित करने का लक्ष्य है। इसके अंतर्गत पांच वृक्ष आवंलाबेलपीपलबरगदशीशम और अशोक के पौधे लगाए जाते हैं। ग्राम समाज की जमीन पर दिशाओं के अनुसार विशेष कोण में इन पौधों को लगाया जाता है। इस योजना को पर्यावरण संरक्षण की मुहिम के तौर पर शुरू किया गया था।

इसी पंचवटी योजना के आधार पर बीकेटी तहसील ब्लॉक व नगर पंचायत प्रशासन ने आठ अगस्त से 10अगस्त के बीच लाख 62 हजार पौधे लगवाए थे। बीडीओ अरुण सिंह के अनुसार लाख 80 हजार पौधे मनरेगा के तहत लगवाए गए थेजबकि 19 हजार पौधे पंचायती राज विभाग, 19 हजार पौधे तहसील प्रशासन तथा 25 हजार पौधे नगर पंचायत ने लगवाए गए थे। कुल लाख 62 हजार पौधे लगवाने में 42 रुपये प्रति पौधे के हिसाब से एक करोड़ दस लाख चार हजार रुपये खर्च किए गए थे। 

वहीं ग्रामणों का आरोप है कि वृक्षारोपण तो किया गया लेकिन देखरेख का कोई इंतजाम नही हुआ जिसके चलते ये पौधे सूख गए।

गुलालपुर गांव के ग्रामीणों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि योजना के तहत अधिकारी पौधे लगाकर चले गए थे। उसके बाद कोई देखने नहीं आया और न ही इस काम मे किसी ग्रामीण को लगाया गया। इससे अधिकतर पौधे एक सप्ताह में ही मुरझा गए या मवेशी चर गए।

जब इस संबंध में बीडीओ अरुण सिंह मीडिया को गोलमोल जवाब देते ही नज़र आए।उन्होंने पहले कहा कि गांव के सचिव इस पर नजर बनाए हैं। लेकिन जब पौधों की इतनी संख्या बताई गई तो उन्होंने कहा कि 200 पौधों पर मनरेगा से एक मजदूर रखा जाएगा जो देखरेख करेगा। वहीं तहसीलदार राकेश पाठक ने बताया कि देखरेख के लिए अभी कोई टीम नहीं बनाई गई हैलेकिन प्रधानों से बात कर टीम बनाई जाएगी।

भारतीय वन सेवा विभाग में अधिकारी रह चुके जतिन व्यास ने न्यूज़क्लिक को बताया कि कई बार ऐसा होता है कि भारी संख्या में लगाए गए पौधों में से कई पौधे सूख जाते हैं या जीवित नहीं रह पाते। लेकिन इतनी बड़ी संख्या में इन पौधों का सूखना निश्चित तौर पर चिंताजनक है। जब पौधों का रोपण होता है तो इसके रख-रखाव और देखभाल की जिम्मेदारी भी तय होती है लेकिन इस तरह की लापरवाही बहुत दुखद है।

इस योजना के खस्ता हाल को देखकर तो यही लगता है कि हमें पौधरोपण अभियान की जगह पौधों की सुरक्षा का अभियान चलाना चाहिए। हमारा ज़ोर पौधों की सुरक्षा तय करने की व्यवस्था पर होना चाहिए और इसकी ज़िम्मेदारी भी तय होनी चाहिए। साथ ही आज-कल बढ़ते सोशल मीडिया के दौर में किसी भी अभियान का मतलब सिर्फ मुस्कुराती हुई तस्वीर खिंचाना न रहे अपितु उस अभियान के प्रति गंभीरता भी हो तो शायद सही मायनों में हम अपने लक्ष्य में सफल हो सकते हैं।

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