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2022-23: भारत के मज़दूर-किसानों का संघर्ष अनवरत जारी

हताश और निराश आर्थिक हालात के मद्देनज़र नए साल में व्यापक संघर्षों की उम्मीद की जा सकती है।
India’s Workers and Peasants

भारत में जो साल अभी बीता है, उसकी शुरुआत बड़ी उम्मीदों के साथ हुई थी लेकिन इस साल का अंत गुस्से और असंतोष के साथ हुआ है। आशा इसलिए बंधी थी क्योंकि यह सोचा गया था कि महामारी का प्रकोप कम हो रहा है और अर्थव्यवस्था फिर से जीवित हो जाएगी और इसलिए नए रोज़गार पैदा होंगे तथा आमदनी बढ़ेगी। मुख्यधारा के मीडिया ने वी-आकार की रिकवरी की बात की थी, सरकार ने फिर से 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था (जो भी इसका मतलब हो) की बात करना शुरू कर दिया था। हालांकि इसके पीछे का कोई कारण नज़र नहीं आता है, लेकिन मेहनतकश लोग, जो दो साल से विभिन्न किस्म की कठिनाई झेलकर अब हताश हो चले हैं, वे आशा के विरुद्ध आशा लगाए बैठे हैं। तीन कृषि कानूनों पर सरकार को पीछे हटने पर मजबूर करने में किसान आंदोलन की जीत से भी मनोबल बढ़ा था-और लगा था कि शायद सरकार लोगों की बात मानने लगी थी। हालांकि, यह सपना कुछ ही देर में टूट गया।

न केवल नौकरियों का संकट गहरा गया है, बल्कि गेहूं और खाना पकाने के तेल जैसी स्टेपल वस्तुओं सहित कई महीनों से जारी बेलगाम महंगाई ने कामकाजी लोगों, स्वरोजगार में शामिल लोगों और किसानों की पहले से ही कम आय को काफी कम कर दिया है। अर्थव्यवस्था में ठहराव है, लेकिन निवेश नहीं हो रहा है, निर्यात नीचे जा रहा है और आयात ऊपर। रुपये का अवमूल्यन हो रहा है, अप्रत्यक्ष कर बढ़ रहे हैं (पेट्रोलियम उत्पादों पर भारी उत्पाद शुल्क की वजह से)- और असमानता तेजी से बढ़ रही है। यह वैसा कुछ नहीं था जिसकी उम्मीद की जा रही थी।

हालांकि मजदूर और किसान वर्ग ने, वास्तव में समाज के विभिन्न अन्य वर्गों की तरह, दो साल से महामारी की तबाही से बेहतर आर्थिक स्थितियों के प्रति अपनी लड़ाई जारी रखी थी, घटनाओं के इस मोड़ ने गहरे और व्यापक गुस्से को जन्म दिया है। यह आईसीडीएस और मनरेगा जैसे विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रमों से आवंटन में कटौती करके लोगों पर शिकंजा कसने के भाजपा सरकार के प्रयासों, बढ़ती ठेके प्रथा के कारण नौकरियों की बढ़ती असुरक्षा, और ऐतिहासिक स्मारकों से लेकर सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और अस्पतालों और स्कूलों, रेलवे स्टेशन यानि हर चीज के निजीकरण में तेजी आई हैं।

पूरे देश में, तत्काल स्थानीय मांगों को लेकर संघर्ष उभरे - शिक्षकों और स्कूल में कार्यरत रसोइयों ने पिछले वेतन के भुगतान की मांग की, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने मानदेय में वृद्धि की मांग की,नगरपालिका के ठेका श्रमिकों ने नियमितीकरण की मांग की, इस्पात श्रमिकों ने निजीकरण को खत्म करने की मांग की, किसानों ने बेहतर कीमतों या भूमि अधिग्रहण को वापस लेने की मांग की, आदिवासी ने अपने परांपारिक वन और भूमि अधिकारों के लिए लड़े, और इसी तरह सभी तबके संघर्ष में शामिल रहे हैं।

दो दिवसीय ऐतिहासिक हड़ताल

जन-आक्रोश के ये तार 28-29 मार्च 2022 को एक विशाल, ऐतिहासिक दो दिवसीय आम हड़ताल में दिखाई दिए। क्योंकि यह माना जाता है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे बड़ी हड़तालों में से एक थी जिसमें व्यापक और विविध औद्योगिक क्षेत्रों के असंगठित और अनौपचारिक क्षेत्र के बड़े हिस्से ने शिरकत की थी। जिस बात ने इसे इतना प्रभावशाली बनाया वह यह था कि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया को भी इस पर ध्यान देने पर मजबूर होना पड़ा क्योंकि इन दो दिनों में बड़ी संख्या में किसान और खेतिहर मजदूर भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए थे। स्टील, कोयला, बंदरगाह और डॉक मजदूर, परिवहन (सड़क, रेल और पानी सहित), वित्तीय क्षेत्र, दूरसंचार, बिजली, बिक्री प्रतिनिधि और लाखों स्कीम श्रमिक,(जो आईसीडीएस,एनएचएम, आदि जैसी सरकारी स्कीमों में काम कर रहे हैं) ने भाग लिया,और देश भर में हुई हड़ताल और विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए। हड़ताल का आह्वान संयुक्त रूप से 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (आरएसएस/बीजेपी से संबद्ध बीएमएस को छोड़कर) और संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने संयुक्त रूप से किया था, एसकेएम 500 से अधिक किसान संगठनों का एक संयुक्त मंच है,जिसने किसानों के विजयी आंदोलन का नेतृत्व किया था।

हड़ताल करने वाले मज़दूरों और आंदोलन में शामिल होने वाले किसानों की मांगों में, न्यूनतम मजदूरी बढ़ाकर 26,000 रुपये प्रति माह करना, टैक्स अदा न करने वाले परिवारों को महामारी से प्रेरित मंदी से निपटने के लिए 7500 रुपये प्रति माह का अनुदान देना, ठेकेवाली नौकरियों को समाप्त कर नियमित रोज़गार मुहैया करना,विनिवेश नीतियों को वापस लेना, कृषि फसलों की एक श्रृंखला के लिए वैधानिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी, बिजली संशोधन विधेयक को खत्म करना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली का विस्तार और सार्वभौमिकरण, आदि शामिल है।

दोनों दिनों में हड़ताल की जो उल्लेखनीय बात थी वह यह कि कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में निजी संगठित क्षेत्र के श्रमिकों की बड़े पैमाने पर हिस्सेदारी रही थी। इसमें स्कीम श्रमिक, वृक्षारोपण क्षेत्र के श्रमिक, और विविध असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों जैसे निर्माण, बीड़ी, हेड लोड श्रमिकों, सड़क विक्रेताओं, घरेलू श्रमिकों, आईटी कर्मचारियों, सड़क परिवहन श्रमिकों आदि की भारी भागीदारी देखी गई। इसके अलावा रेलवे अनुबंध श्रमिकों, विशेष रूप से माल शेड श्रमिकों, सफाई श्रमिकों, बेडरोल कर्मचारियों, ट्रैक रखरखाव कर्मचारियों ने कई राज्यों के भीतर 28 और 29 मार्च को हुए प्रदर्शनों आदि में भाग लिया।

क्षेत्रीय संघर्ष और हड़तालें

इसके बाद, देश ने विभिन्न क्षेत्रों में संघर्षों की लहर देखी, जो पहले के वर्षों में भी संघर्ष कर रहे थे और आगे भी जारी रहा।

ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स के आह्वान पर हजारों आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने 26-28 जुलाई 2022 के दौरान नई दिल्ली में संसद के सामने 3 दिवसीय आंगनवाड़ी अधिकार महापड़ाव में भाग लिया, जिसे मजदूर विरोधी, जनविरोधी, केंद्र सरकार की स्कीम कर्मचारी विरोधी नीतियोंके खिलाफ आयोजित किया गया था। हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड आदि में अतिरिक्त पारिश्रमिक की मांग को लेकर आशा श्रमिकों की स्वतंत्र और संयुक्त हड़तालें आंशिक रूप से सफल रहीं।

8 अगस्त 2022 को केंद्र सरकार के निरंकुश कदम के विरोध में पूरे देश में दस लाख से अधिक बिजली कर्मचारी, इंजीनियर और पेंशनभोगी सड़कों पर उतर आए थे। संसद में विद्युत संशोधन विधेयक 2022 पेश करने के खिलाफ बिजली कर्मियों की हड़ताल/काम के बहिष्कार की कार्रवाई और संसद के भीतर मजबूत विपक्ष ने सरकार को मजबूर कर दिया और इस विधेयक को संसद की स्थायी समिति को जांच के लिए भेज दिया गया। इस बीच, विभिन्न केंद्र शासित प्रदेशों में विरोध प्रदर्शन जारी रहे जहां केंद्र सरकार बिजली के निजीकरण पर जोर दे रही थी।

10 अगस्त, 2022 को डाक कर्मचारियों ने अपने राष्ट्रीय महासंघ एनएफपीई और जीडीएस (ग्रामीण डाक सेवक) यूनियन के आह्वान पर देश भर के सभी 23 सर्किलों में अभूतपूर्व हड़ताल की। 

विजाग (Vizag) स्टील प्लांट के इस्पात श्रमिकों ने बड़े पैमाने पर जनता का समर्थन हासिल करते हुए, निजीकरण के खिलाफ अपना वीरतापूर्ण संघर्ष जारी रखा। वाईएसआरसीपी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार, जिसने पहले विजाग स्टील प्लांट की भूमि सौंपने के लिए पोस्को के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे, को भी इसके निजीकरण के खिलाफ संघर्ष का समर्थन करने पर मजबूर होना पड़ा। कोयला श्रमिकों ने निजी क्षेत्र के माध्यम से कोयले के वाणिज्यिक खनन को बढ़ावा देने के सरकार द्वारा पहले एफडीआई के ज़रिए खोलने के बाद विधायी कार्रवाई के खिलाफ अभियान और विरोध प्रदर्शन किए गए। बीएसएनएल के दूरसंचार कर्मचारियों ने संयुक्त रूप से काम करने वाली विभिन्न यूनियनों के नेतृत्व में सरकार द्वारा संचालित दूरसंचार सेवा प्रदाता के खिलाफ सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियों के खिलाफ विभिन्न रूपों में अपना विरोध दर्ज़ किया।

रक्षा उत्पादन कर्मचारियों ने निगमीकरण मार्ग के माध्यम से निजीकरण के लिए आयुध कारखानों के नेटवर्क को खत्म करने के सरकार के कदमों के खिलाफ कई विरोध कार्यक्रम आयोजित किए और रक्षा क्षेत्र में हड़ताल पर रोक लगाने के लिए सरकार की तरफ से आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश की घोषणा की और सरकार को रक्षा से जुड़े क्षेत्रों में हड़तालों को प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है और क्षेत्र की उत्पादन गतिविधियाँ को चलाने की इजाजत देता है जिन्हें बाद में ईडीएस अधिनियम के रूप में अधिनियमित किया गया था।

फार्मास्यूटिकल्स उद्योग के लगभग दो लाख चिकित्सा और बिक्री प्रतिनिधियों (एसपीई) ने अपनी 16 सूत्रीय मांगोंको लेकर 19 जनवरी 2022 को एक दिवसीय देशव्यापी हड़ताल की।

परिवहन क्षेत्र में, ईंधन की कीमतों में वृद्धि और नए मोटर वाहन अधिनियम के खिलाफ सड़क परिवहन श्रमिकों का संघर्ष जारी रहा। जल परिवहन कर्मचारियों ने राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) के खिलाफ बड़े पैमाने पर संयुक्त अभियान और आंदोलन चलाया,जो सभी प्रमुख बंदरगाहों और मुख्य बंदरगाह प्राधिकरण अधिनियम का निजीकरण करना चाहता है। पीपीपी रूट के जरिए पोर्ट अस्पताल को बंद करने के खिलाफ संबंधित कर्मचारियों और उनके यूनियनों द्वारा पोर्ट स्तर पर भी संघर्ष किया गया।

मध्य प्रदेश, हिमाचल और राजस्थान में सीमेंट उद्योग में भी कई संघर्षों हुए। मप्र में, जेएस सीमेंट में सीटू यूनियन के अध्यक्ष को हाल ही में प्रबंधन के प्रायोजित हुड़दंगियों ने मार दिया था और श्रमिकों की भारी प्रतिक्रिया ने प्रशासन को वरिष्ठ प्रबंधन अधिकारियों को गिरफ्तार करने पर मजबूर किया और साथ ही कंपनी को भी पर्याप्त मुआवजा देने पर मजबूर होना पड़ा।

केंद्र और राज्य, दोनों सरकारों के कर्मचारियों ने अपने-अपने परिसंघों और फेडरेशनों की पहल पर मांगों को लेकर कई विरोध आंदोलन भी किए हैं और किसानों के संघर्षों के समर्थन में एकजुटता कार्यक्रम भी आयोजित किए हैं।

परिवहन क्षेत्र (उबर, ओला) में गिग श्रमिकों ने पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर आंदोलन किया और नियोक्ता और सरकार को बातचीत और समझौते के लिए आगे आने के लिए मजबूर किया। इसके अलावा स्विगी के कार्यकर्ताओं ने सीटू यूनियन की पहल पर पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु और झारखंड में अपनी मांगों को लेकर और अपनी कामकाजी परिस्थितियों पर हमलों के खिलाफ सफल आंदोलन का आयोजन किया।

इनके अलावा, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों में निजी क्षेत्र के उद्योगों में महत्वपूर्ण और जुझारू संघर्ष और हड़तालें हुईं।

सरकार की प्रतिगामी "अग्निपथ योजना" के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में आंदोलन/प्रदर्शन के कई सहज उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए चले।

किसानों आंदोलन

एसकेएम के तत्वावधान में, किसानों ने विभिन्न स्थानीय मुद्दों के लिए संघर्ष करना जारी रखा, साथ ही वैधानिक एमएसपी गारंटी, केंद्रीय मंत्री को बर्खास्त करने, जिनके बेटे पर लखीमपुर खीरी में किसानों को कुचलने का आरोप लगाया गया है, आदि केंद्रीय मांगों पर भी ध्यान केंद्रित रखा।

जून में, देश भर में किसान अग्निपथ विरोधी प्रदर्शनों में शामिल हुए। जो सशस्त्र बलों में अल्पकालिक भर्ती की योजना है जिसने उन लाखों लोगों की आकांक्षाओं पर पानी फेर दिया जो सशस्त्र बलों में एक कैरियर की तलाश कर रहे थे। किसानों, विशेष रूप से कुछ भारतीय राज्यों में सशस्त्र बलों के साथ गहरे संबंध हैं और फलस्वरूप इस कुख्यात योजना का भारी विरोध किया गया।

नवंबर में, किसान आंदोलन की दूसरी वर्षगांठ पर (जो 26 नवंबर 2020 को शुरू हुआ था) राज्य की राजधानियों में किसान संगठनों, ट्रेड यूनियनों और अन्य लोगों के संगठनों के समर्थन से बड़े पैमाने के विरोध प्रदर्शन किए गए।

किसान भूमि अधिग्रहण (जैसा कि आजमगढ़, यूपी में हुआ है), उत्पादन के लिए बेहतर कीमतों और बकाये का भुगतान (पश्चिमी यूपी में गन्ना किसान), यूपी में किसानों से बिजली की मीटर दरों पर शुल्क वसूलने और ऐसे कई अन्य मुद्दों के खिलाफ लगातार लड़ाई लड़ रहे हैं जो खेती की आर्थिक व्यवहार्यता को नुकसान पहुंचाते हैं। कई राज्यों में उर्वरकों की कमी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी हुए।

5 अप्रैल 2023 को मज़दूर किसान संघर्ष रैली पार्ट-2

5 सितंबर 2022 को नई दिल्ली में एक विशाल मजदूर-किसान सम्मेलन आयोजित किया गया था जिसमें सभी राज्यों के 6000 से अधिक श्रमिकों-किसानों-कृषि-श्रमिकों ने भाग लिया था। इसे अखिल भारतीय किसान सभा, अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन तथा सीटू ने  आयोजित किया था। यह मोदी सरकार की जन-विरोधी नीतियों को अस्वीकार करने और जन-समर्थक नीतियों का एक वैकल्पिक सेट पेश करने के लिए औद्योगिक श्रमिकों, किसानों और कृषि श्रमिकों के बीच पहले से ही बढ़ती एकता के निर्माण में एक और बड़े कदम का प्रतिनिधित्व करता है।

कन्वेंशन ने 5 अप्रैल 2023 को संसद के बजट सत्र के दौरान अभियान-आंदोलनों की श्रृंखला के तहत, एक विशाल मजदूर-किसान संघर्ष रैली का आह्वान किया है। सत्ता की कुर्सी के सामने इस अभूतपूर्व शक्ति प्रदर्शन की तैयारी अभी से चल रही है। कुल मिलाकर, इस रैली में भारत के श्रमिक वर्गों की इतनी बड़ी लामबंदी जो इस रैली में होने जा रही है शायद वह पहले कभी नहीं देखी गई होगी। 2023 का नया साल दृढ़ संकल्प और व्यापक संघर्षों का वर्ष होने का वादा करता नज़र आता है, जो इस विशाल रैली का प्रतीक है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

2022: India’s Workers and Peasants Fight Back – and Fight on

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