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दिल्ली दंगे के 3 साल : अभी तक जेल में बंद हैं कई प्रदर्शनकारी, परिवारों को इंसाफ़ का इंतज़ार!

करीब तीन साल से जेलों में बंद CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों के परिवारों का जीवन पूरी तरह से बदल गया है। दिल्ली दंगे की तीसरी बरसी पर हमने कुछ परिवारों से बात की। जानिए क्या है इनका कहना....
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एडिटर नोट : उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए दंगों की तीसरी बरसी पर, न्यूज़क्लिक एक सीरीज़ प्रकाशित कर रहा है। यह हमारी पांच-भागों वाली सीरीज़ की दूसरी स्टोरी है। पहली स्टोरी यहां पढ़ें।

नई दिल्ली : करीब तीन साल से जेलों में बंद CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों के परिवारों का जीवन पूरी तरह बदल गया है। परिवारों का कहना है :

उनकी आज़ादी का रास्ता अनिश्चित और मुश्किल है, लेकिन इससे लड़ते हुए जीवन मे बड़ी हिम्मत मिली है। जेल मे बंद लोगों पर फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगों की साज़िश रचने के आरोप हैं। इसी के तहत उन्हें सख्त आतंकवाद विरोधी कानून-Unlawful Activities (Prevention) Act यानी UAPA जैसी संगीन धाराओं में जेल मे बंद किया हुआ है।

राष्ट्रीय राजधानी के ट्रांस-यमुना क्षेत्र में साल 2020 में 23 से 27 फरवरी तक संपत्ति के विनाश, दंगे, हिंसा और रक्तपात के कई दौर देखे गए। इस दंगे में 53 लोग मरे या मारे गए जिनमें से दो-तिहाई मुसलमान थे जिन्हें या तो गोली मारी गई, या बेरहमी से पीटा गया या उन्हें आग के हवाले कर दिया गया।

पीड़ितों में एक पुलिसकर्मी, हेड कांस्टेबल रतन लाल और इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के कर्मचारी अंकित शर्मा भी शामिल थे। एक दर्जन से अधिक हिंदू भी गोली का शिकार हुए या उन पर जानलेवा हमला किया गया।

विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 यानी CAA के खिलाफ जाफराबाद में महिलाओं द्वारा धरना देने के बाद दंगे शुरू हुए जहां से कुछ दूर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक नेता कपिल मिश्रा के भड़काऊ भाषण के बाद कथित तौर पर धरने पर हमलें शुरू हो गए। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के बगल में खड़े होकर मिश्रा ने दिल्ली पुलिस से सड़कों को खाली कराने के लिए कहा और धमकी देते हुए कहा कि अगर जल्द सड़के खाली नही होती हैं तो वे 'सड़कों पर उतरेंगे।'

कथित तौर पर हेलमेट पहने हुए और साथ ही लाठी, पत्थर, तलवार और पिस्तौल लिए जय श्री राम के नारे लगाते हुए दंगाइयों ने मुस्लिम इलाकों में प्रवेश किया। कई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस दौरान पुलिस वहां पर मौजूद थी।

ट्रायल कोर्ट में दिल्ली पुलिस द्वारा दी गई दलीलों के अनुसार, कुल 758 FIR (FIR) दर्ज की गईं और 2,456 गिरफ्तारियां की गईं, जिनमें से 1,053 लोगों को ज़मानत पर रिहा कर दिया गया। जबकि 1,356 लोग अभी भी न्यायिक हिरासत में हैं। 1,610 अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई है और 338 मामलों में संज्ञान लिया गया। दायर की गई कुल चार्जशीट में से 100 मामलों में आरोप तय किए गए हैं। ट्रायल शुरू हो गया है, और अब तक, केवल दो लोगों को दोषी ठहराया गया है।

सलीम खान का जीवन पूरी तरह बदल गया

27 साल की साइमा खान 25 फरवरी, 2020 को डेंटल सर्जरी के लिए अपनी क्लास अटेंड कर रही थीं, तभी उनका फोन ज़ोर-ज़ोर से बजने लगा। यह उनके पिता का फोन था। पिता ने उन्हें कॉलेज में थोड़ी देर और रुकने के लिए कहा क्योंकि चांद बाग में हिंसा भड़क गई थी।

मोहम्मद सलीम खान की सबसे बड़ी बेटी ने कहा, "मैंने भी उन्हें सुरक्षित रहने के लिए कहा।"

बता दें कि 50 वर्षीय सलीम को हिंसा के आरोप में 13 मार्च, 2020 को गिरफ्तार किया गया था। बाद में उन्हें कथित तौर पर दंगों की साज़िश रचने के लिए UAPA के तहत भी आरोपी बनाया गया था।

उनकी सबसे बड़ी बेटी ने न्यूज़क्लिक को बताया, “लिंक ओवरसीज़ नाम से मेरे पिता की एक कंपनी है, जो हैंड़ी क्राफ्ट (हस्तशिल्प वस्तुओं) का निर्यात करती है। वह चांद बाग की गली नंबर 3 में एक ऑफिस चलते हैं। चांदबाग मे CAA प्रोटेस्ट का विरोध स्थल हमारे ऑफिस से पास ही था। 24 फरवरी, 2020 को जब दंगे हुए तब वह अपने ऑफिस में ही थे। हंगामा होते ही उन्होंने मेरी मां को फोन किया और कहा कि वहां हंगामा हो रहा है। मां ने उनसे कहा कि उन्हें घर नहीं आना चाहिए क्योंकि घर आने का एक ही रास्ता है और वहां हिंसा हो रही है जिसमें वो फंस सकते हैं। इसलिए वह वहीं रुक गए। अचानक खबर आई कि रतन लाल जी (दिल्ली पुलिस के एक हेड कांस्टेबल) की गोली मारकर हत्या कर दी गई। जब मेरे पिता ने यह सुनिश्चित कर लिया कि उनके सभी कर्मचारी सुरक्षित घर चले गए हैं, तो उन्होंने शटर गिरा दिया और मुस्तफाबाद में हमारे एक रिश्तेदार के घर चले गए। जब तनाव थोड़ा कम हुआ तो वह रात में यमुना विहार घर लौट आए।"

वो आगे बताती है, "उन्हें छह-सात बार पूछताछ के लिए बुलाया गया था। उन्होंने हमेशा जांच में सहयोग किया। एक बार उन्हें पूछताछ के नाम पर लोधी कॉलोनी स्थित स्पेशल सेल के ऑफिस में करीब 24 घंटे तक हिरासत में रखा गया था। अगली सुबह जब वह लौटे, तो उन्हें एक बार फिर पुलिस ने बुलाया, और आखिरकार उन्हें गिरफ्तार कर लिया।”

इसके बाद अगले तीन महीने इस परिवार के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थे क्योंकि कोविड-19 के कारण लॉकडाउन लगाया गया था, और उन्हें उनके(सलीम खान) बारे में कोई जानकारी नहीं थी। परिवार ने आरोप लगाया, "पुलिस ने हमें उनकी गिरफ्तारी और उनके खिलाफ लगे आरोपों के बारे में औपचारिक रूप से सूचित करना भी ज़रूरी नहीं समझा।"

उन्होंने कहा, “हमें बाद में अपने वकीलों से पता चला कि उन्हें रतन लाल जी की हत्या के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है। इसके अलावा उन्हें दो और मामलों में फंसाया गया।"

इनमें से दो FIR में दंडात्मक आरोप हैं, जिनमें आपराधिक साज़िश, गैर इरादतन हत्या और जानबूझकर चोट पहुंचाने के साथ-साथ आर्म्स एक्ट के तहत आरोप शामिल हैं।

उन्होंने बताया, “तीन महीने के बाद, हमें पुलिस का फोन आया, जिसमें हमें बताया गया कि मेरे पिता को भी UAPA के तहत दर्ज FIR नंबर 59 में गिरफ्तार किया गया है। हमें नहीं पता था कि यह कानून उनपर क्यों लगाया गया है। उनकी गिरफ्तारी तब की गई थी जब FIR में उनके नाम या मामले में उनकी भूमिका का उल्लेख तक नहीं था। लोधी कॉलोनी में गिरफ्तारी के तीन महीने बाद आखिरकार हम उनसे मिले, जहां उन्हें अन्य सह-आरोपियों के साथ ज़मीन पर बिठाया गया था। वह बहुत कमज़ोर और दुबले पतले हो गए थे। वह पहले जैसे नहीं दिख रहे थे। यहां तक कि मैं भी उन्हें पहली नज़र में पहचान भी नहीं पाई थी। जब उन्होंने मुझे मेरे नाम से पुकारा, तब मुझे एहसास हुआ कि वह फर्श पर बैठे हैं।”

सलीम खान की गिरफ्तारी के महीनों बाद, कभी संपन्न रहे परिवार पर आर्थिक संकट आ गया। साइमा, जो डेंटल सर्जरी (बीडीएस) में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने वाली थी, उन्हें मास्टर्स (एमडीएस) करने की अपनी इच्छा छोड़नी पड़ी। उनके छोटे और इकलौते भाई ने उसी साल बीबीए पूरा किया था। उनके भाई को भी, परिवार के गुज़ारे के लिए एमबीए (मास्टर्स ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन) में प्रवेश लेने के प्लान को टालना पड़ा।

सलीम खान की सबसे छोटी बेटी जो एक निजी स्कूल में नौवीं कक्षा में पढ़ती थी, उसकी फीस भी वो कई महीनों तक नहीं भर पाए थे।

साइमा और उसके भाई उच्च शिक्षा के विचार को छोड़कर प्राइवेट नौकरी करने लगे जिससे परिवार की आर्थिक मदद हुई और कुछ स्थिरता आई। साइमा एक निजी बीमा कंपनी में एक मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम करती है, इसके अलावा वह अपने पिता के कारोबार को भी देखती हैं और उनका भाई एक निजी फर्म में काम करता है।

उन्होंने कहा "हम सभी बाधाओं के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं और इससे निपटने की पूरी कोशिश कर रहे हैं ।"

उन्होंने आरोप लगाया, "रतन लाल जी को गोली मारने वाले असली अपराधियों को तो पुलिस पकड़ नहीं पाई और अपराधियों को बचाने और दुनिया को दिखाने के लिए, उन्होंने मेरे पिता और कई अन्य लोगों को बलि का बकरा बनाया।"

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस उनके प्रति दुश्मनी भरा व्यवहार करती है और जांच के नाम पर उनके साथ 'बुरा व्यवहार' करती है।

साइमा कहती हैं, “जब हम अपने पिता से मिलने अदालत जाते हैं, तो वे(पुलिस) हमें उनके करीब नहीं आने देते। जब हम आपत्ति करते हैं तो वे तर्क देते हैं कि वे मेरे पिता की सुरक्षा के लिए ऐसा कर रहे हैं। क्या यह अजीब नहीं है? मेरे पिता के जीवन और भलाई के लिए वे खुद खतरा हैं, हम नहीं।”

वो आगे कहती हैं, "जेल से टेलीफोन कॉल के समय को घटाकर तीन दिन कर दिया गया है। अब हम उन्हें महीने में मुश्किल से एक बार वीडियो कॉल पर देखते हैं।" उन्होंने आरोप लगाया की, "वे (पुलिस) मेरे पिता को कुछ प्रदर्शनकारियों के खिलाफ गवाही दिलाना चाहते थे और जब उन्होंने मना कर दिया, तो उन्हें फंसाया गया और सलाखों के पीछे भेज दिया गया है।"

अपनी रुंधी आवाज़ में उन्होंने दावा किया कि, “जेल में पुलिस अक्सर उनके सेल में जांच के नाम पर जाती है और उनके साथ मारपीट करती है । लेकिन उन्होंने कभी भी इस बारे में कुछ भी साझा नहीं किया। एक बार जब उन्होंने न्यायाधीश को पुलिस के व्यवहार के बारे में बताया, तो उन्हें बताया गया कि परिवार ही नैतिक शिक्षा देता है।”

वह कहती हैं, “आपने (पुलिस ने) जो चाहा किया-आपने उन्हें परेशान किया, प्रताड़ित किया और उन्हें गंभीर आरोपों के तहत सलाखों के पीछे डाल दिया। अब उन्हें वहां तो चैन से रहने दो। अदालत को तय करने दीजिए कि क्या वह तथाकथित साज़िश में शामिल थे।"

"मेरी 48 साल की ज़िंदगी" शीर्षक से, सलीम खान ने न्यायपालिका और मीडिया को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने अपनी जीवन यात्रा का वर्णन करते हुए, उन्होंने अपना व्यवसाय कैसे स्थापित किया, कैसे एक कंपनी स्थापित की, भविष्य की योजनाएँ और वह जेल में कैसे पहुँचे, इन सब का ज़िक्र किया है।

जज को संबोधित करते हुए उन्होंने लिखा, "सर, मैं वकील नहीं हूं और न ही मैंने कानून की ए-बी-सी-डी पढ़ी है, लेकिन मैंने फिल्मों में देखा है कि कानून सबकी सुनता है। मैंने एक कहावत सुनी है कि एक बेगुनाह को बचाने के लिए भले ही 10 अपराधी बच जाएं, लेकिन एक बेगुनाह को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए। मैं निर्दोष हूं, लेकिन मैं कई महीनों से जेल में हूं।"

उन्होंने कहा कि 2004 के बाद जब उन्होंने फ्रांस में पेरिस का दौरा किया तो इसके बाद उन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय दौरे किए। उन्होंने लिखा, 2015 में उन्हें यूनाइटेड किंगडम में शिफ्ट होने और वहां बसने का मौका मिला लेकिन उन्होंने भारत में रहना पसंद किया। खत में वे लिखते हैं, "आज जब मैं जेल में अपने फैसले पर दोबारा गौर करता हूं तो हंसता भी हूं और रोता भी हूं।"

उन्होंने लिखा कि वह एक ऐसा अस्पताल बनाना चाहते थे जहां गरीब और ज़रूरतमंद मुफ्त में इलाज करा सकें। उनका सपना था कि वे अपने बेटे को एमबीए के लिए यूनाइटेड किंगडम भेज सकें। लेकिन ये सपने उनकी कैद के बाद चकनाचूर हो गए।

24 फरवरी को चांद बाग में हुई हिंसा की टाइमलाइन बताते हुए उन्होंने पत्र में लिखा है कि वह हमेशा की तरह सुबह करीब 9:30-10:00 बजे अपने ऑफिस पहुंचे। इसके बाद वह किसी काम से गली नंबर 7 में चले गए। जब वह अपने कार्यालय वापस आ रहे थे, तो उन्होंने चांद बाग में 25-फुटा सड़क पर कुछ हलचल महसूस की। उन्होंने लिखा कि वह यह पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि वहां क्या हो रहा है, उन्होंने कहा कि वह सड़क के करीब गए और वहां एक विशाल भीड़ देखी।

उन्होंने लिखा, “मैं जल्द ही अपने ऑफिस पहुंचा। इसी बीच पार्थ नाम का एक युवक मेरे ऑफिस के करीब आया। वो घायल था। लोग उसपर पर बेहद भड़के हुए थे। मैंने भीड़ को शांत किया। पार्थ को प्राथमिक उपचार दिया। उसकी मां सुनीता देवी भी उसे खोजते हुए वहां आ गईं। अपने बेटे को सकुशल देख वो निश्चिंत हो गई। हमने उनकी सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की। जब हिंसा और बढ़ी तो मैं ऑफिस बंद कर मुस्तफाबाद में अपने एक रिश्तेदार के यहां चला गया। मैं रात में, जब तनाव थोड़ा कम हुआ, तो यमुना विहार स्थित अपने घर वापस लौटा।"

उन्होंने कहा कि इसके बाद क्राइम ब्रांच ने उन्हें कई बार पूछताछ के लिए बुलाया और आखिरकार 13 मार्च को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। दो दिन की पुलिस हिरासत के बाद उन्हें जेल भेज दिया गया, जहां तब से वह सड़ रहे हैं।

उन्हें 25 जून, 2020 को 'बड़ी साज़िश' मामले में नामजद किया गया और उन पर कथित रूप से दंगों की साज़िश रचने और लोगों को भड़काने के लिए UAPA की धारा 13, 16, 17, 18 के तहत मामला दर्ज किया गया। वहीं कई अन्य गंभीर धाराओं जैसे-हथियार रखने के लिए आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27, हिंसा के CCTV कैमरा फुटेज को 'नष्ट' करने के लिए पब्लिक प्रॉपर्टी डैमेज एक्ट, 1984 की धारा 3 और 4 के तहत भी उनपर मामला दर्ज किया गया। इसके अलावा उन पर भारतीय दंड संहिता के विभिन्न अपराधों के तहत भी आरोप लगाए गए हैं।

जहां उन्हें दो FIR में ज़मानत दी गई, वहीं मार्च 2020 में एक विशेष अदालत ने "सरकार को बदनाम करने की साज़िश" के एक मामले में उनकी ज़मानत याचिका खारिज़ कर दी।

उनकी ज़मानत अर्ज़ी दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है और जल्द ही इसपर सुनवाई होने की उम्मीद है।

तीन बच्चों की मां ने अकले घर संभाला

मरियम(8), ताहा(12), और यासा(13), खालिद सैफी के तीन बच्चे हैं जो पूर्वी दिल्ली के खुरेजी खास में तीसरी मंजिल के अपार्टमेंट में एक कमरे में खेल-कूद रहे थे।

यूनाइटेड अगेंस्ट हेट ग्रुप के संस्थापकों में से एक, खालिद 26 फरवरी, 2020 से राष्ट्रीय राजधानी की मंडोली जेल में बंद है। खुरेजी खास विरोध स्थल पर पुलिस द्वारा क्रूर कार्रवाई शुरू करने के बाद उन्हें हिरासत मे लिया गया था।

उनकी पत्नी नरगिस ने दावा किया कि जब उन्होंने, उन्हें (खालिद को) मंडोली जेल में व्हीलचेयर पर देखा तो उनका दिल टूट गया, उनके दोनों पैरों पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था, दो अंगुलियां टूटी हुई थीं और उनकी दाढ़ी नोची हुई थी।"

कुछ हफ्तों के बाद, उन पर भी UAPA लगा दिया गया। लेकिन तीन साल की पीड़ा ने नरगिस को और मजबूत बना दिया है। उन्होंने कहा कि वह लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं।

उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने जीवन को उनके(खालिद) बिना व्यवस्थित करना सीख लिया है। "मैंने इस बात को मान लिया है कि यह एक लंबी लड़ाई है, जिसे मुझे साहस और धैर्य से लड़ने की ज़रूरत है।"

उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, “मैं अब किसी के सामने नहीं रोती। अल्लाह ने मुझे हिम्मत दी है। मेरे बच्चे मेरी प्राथमिकता हैं, और यह एक चुनौती है कि मैं उन्हें उनके पिता की कमी महसूस न होने दूं।”

नरगिस ने हाल ही में नई चीज़े सीखीं हैं। वो 30 साल की हैं लेकिन वे ऑनलाइन लेन-देन से अनजान थीं और बिलों का भुगतान कैसे करें ये भी नहीं जानती थीं लेकिन अब वो अपने पति को याद रखते हुए नियमित रूप से सप्ताह में एक बार अपने बच्चों के साथ किसी मॉल या रेस्तरां में जाती हैं।

उसने लोगों की शक भरी निगाहों से बचने के लिए विवाह समारोहों में भाग लेना भी बंद कर दिया है। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि वह ख़ालिद की पत्नी होने पर गर्व महसूस करना चाहती हैं और वह नहीं चाहतीं कि लोग उनपर तरस करें।

खालिद के दोस्त उनका मजबूत सहारा हैं। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि परिवार की मासिक ज़रूरतें बिना किसी रिमाइंडर के उनके घर तक पहुंचाई जाएं। कोई बच्चों के लिए केक, चिप्स, चाकलेट आदि हर महीने लाते हैं, तो कोई खिलौने लाता है। उन्होंने(खालिद के दोस्तों ने) पिछले साल एक कॉन्वेंट स्कूल में मरियम का दाखिला कराया और ताहा और यासा की ट्यूशन फीस का भुगतान भी समय पर कर दिया।

नरगिस और उनके परिवार की मदद करने वालों में हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल हैं।

नरगिस ने कहा, “बच्चे खालिद को याद करते हैं, जो एक पिता से ज़्यादा उनके दोस्त थे। मरियम ईद पर अब्बू के लिए रोई थी। खालिद की तरह ही मैंने सबसे पहले उसे ईदी दी थी। लेकिन वह उम्मीद कर रही थी कि काश उसके पिता भी उसके साथ होते।”

उन्हें पुलिस से बहुत सारी शिकायतें हैं। वह पुलिस पर "बेहद पक्षपाती" होने का आरोप लगाती हैं। वो बताती हैं कि जेल सुरक्षा के नाम पर बेहद बुरे व्यवहार के कारण उन्होंने खालिद से मिलने के लिए जेल जाना बंद कर दिया।

अदालत में खालिद के साथ अपनी एक मुलाकात को याद करते हुए वो भावुक हो जाती हैं।

उन्होंने कहा, “उनके चेहरे के हाव-भाव से मुझे लगा कि वह तकलीफ में हैं। मैं उनका हालचाल पूछने उनके पास गई, लेकिन उनके साथ चल रहे पुलिस अधिकारियों ने मुझे ज़्यादा करीब नहीं आने दिया। मैंने गलती से उसकी शर्ट पीछे से उठाई, और मुझे एकदम से झटका लगा, उसकी त्वचा छिल गई थी। वह त्वचा के गंभीर संक्रमण से पीड़ित थे। फोन पर हमारी बातचीत के दौरान उन्होंने मुझे बताया कि संक्रमण के कारण वह लेट भी नहीं पा रहे हैं। जब मामला अदालत के संज्ञान में लाया गया, तो उन्हें चिकित्सा दी गई।”

13 दिसंबर, 2022 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने "बड़ी साज़िश" मामले में खालिद की ज़मानत अर्ज़ी पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। उनकी याचिका को पहले कड़कड़डूमा कोर्ट ने खारिज़ कर दिया था।

उनके खिलाफ दर्ज तीन मामलों में से दो में खालिद को पहले ही ज़मानत मिल चुकी है।

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