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एम्स महिला डॉक्टर के उत्पीड़न से उठा सवाल, आख़िर हम कब सबक़ लेंगे?

यौन उत्पीड़न और जातिसूचक टिप्पणी की शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई न होने से परेशान एम्स की महिला डॉक्टर ने आत्महत्या की कोशिश की। पीड़ित डॉक्टर ने अपने सीनियर फैकल्टी सदस्य पर कथित यौन उत्पीड़न और बार-बार जातिगत टिप्पणी करने का आरोप लगाया है।
फाइल फोटो

‘पीड़ित महिलाओं की तब तक नहीं सुनी जाती, जब तक उनकी मौत न हो जाए ’

ऑल इंडिया प्रोगेसिव वुमेन एसोसिएशन की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने ये बात देश में महिलाओं के उत्पीड़न और समाज में इसकी अनदेखी के लेकर कुछ महीने पहले कही थी। लेकिन हाल ही में दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में एक महिला डॉक्टर की आत्महत्या की कोशिश ने इसे एक बार फिर सही साबित कर दिया है।

पीड़ित महिला एम्स में डेंटल सर्जन हैं। उन्होंने अपने सीनियर फैकल्टी सदस्य पर यौन उत्पीड़न और बार-बार जातिगत टिप्पणी करने का आरोप लगाया है। ख़बरों के अनुसार इस कथित प्रताड़ना से तंग आकर महिला डॉक्टर ने बीते शुक्रवार आत्महत्या करने की कोशिश की। फिलहाल वो एम्स के आईसीयू में भर्ती हैं और उनकी स्थिति गंभीर बतायी जा रही है।

क्या है पूरा मामला?

इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के मुताबिक पीड़ित महिला डॉक्टर ने 10 दिन पहले अपने साथ हो रहे उत्पीड़न और जातिगत टिप्पणी का मुद्दा एम्स निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया के सामने उठाया था। इसके बाद भी उन्होंने 16, 22 और 23 मार्च को एम्स प्रशासन को कई चिट्ठियां लिखी थीं। उन्होंने संस्थान के महिला शिकायत सेल (डब्ल्यूजीसी) और एससी-एसटी कल्याण सेल को भी चिट्ठी लिखी थी।

इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय एससी/एसटी कमीशन, दिल्ली को भी पत्र लिखकर मामले से अवगत कराया था, लेकिन इन संस्थाओं ने समय रहते तत्काल कोई कदम नहीं उठाया, शोषण का सिलसिला जारी रहा। महिला डॉक्टर लगातार प्रताड़ना का शिकार होती रहीं और उधर प्रताड़ित करने वाले पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद आखिरकार तंग आकर महिला डॉक्टर ने बीते शुक्रवार 17 अप्रैल को अपनी जान लेने की कोशिश की। उनके इस कदम ने देश के सबसे प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान एम्स के प्रशासन पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन से एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि “पीड़ित महिला डॉक्टर दलित समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। विभाग के वरिष्ठ फैकल्टी मेंबर द्वारा उन्हें लगातार परेशान किया जा रहा था। फैकल्टी मेंबर उनके सामने जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते थे, महिला होने को लेकर उनके काम और काबिलियत पर भी कमेंट करते थे, जैसे ‘रहने दो तुमसे कुछ नहीं होगा’ आदि। ऐसी बातें सुनकर कई बार महिला डॉक्टर ने इग्नोर भी किया। लेकिन जब ये सब कुछ ज्यादा ही होने लगा तो उन्होंने शिकायत की, लेकिन उन्हें यहां भी निराशा ही हाथ लगी।”

किसने क्या कहा?

एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने इस संबंध में मीडिया को बताया कि यौन उत्पीड़न जांच कमेटी ने फैकल्टी को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और मामले की जांच शुरू कर दी है।

एम्स रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए) ने स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्ष वर्धन को लिखे पत्र में आरोप लगाया है कि कई पत्र भेजने के बाद भी इस मसले पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। प्रशासन और संस्थान कमेटी के अनदेखी की वजह से महिला डॉक्टर को आत्महत्या जैसा कदम उठाने का मजबूर होना पड़ा। आरडीए की मांग है कि मंत्रालय और एम्स प्रशासन मामले को जल्द से जल्द संज्ञान में लेकर तत्काल कार्रवाई करें, जिससे महिला डॉक्टर को न्याय मिल सके। साथ ही ऐसे कदम उठाए जाएं जिससे भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।

रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. आदर्श प्रताप सिंह ने मीडिया से बातचीत में कहा, “एम्स देश का सबसे बड़ा मेडिकल संस्थान और यदि यहां पर किसी महिला डॉक्टर को यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, जातिसूचक टिप्पणी सुननी पड़ती है, तो इससे शर्मनाक कुछ नहीं है। पीड़ित डॉक्टर एक महीने से प्रशासन को कई चिट्ठियां लिखती रहीं और प्रशासन ने कुछ नहीं किया। अभी भी इस मामले पर प्रशासन की तरफ़ से कोई सख्त प्रतिक्रिया सामने नहीं आयी है। इससे बुरा क्या हो सकता है?”

महिला आयोग ने लिया संज्ञान

राष्ट्रीय महिला आयोग ने घटना पर संज्ञान लेते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय की सचिव प्रीति सूडान और एम्स के निदेशक को नोटिस भेजा है। इस नोटिस में लिखा है कि इस मामले पर जल्द से जल्द कार्रवाई कर रिपोर्ट राष्ट्रीय महिला आयोग को भेजी जाए।

उधर, दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) ने भी इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर 25 अप्रैल तक जवाब मांगा है। डीसीडब्ल्यू ने नोटिस में कहा है कि पीड़िता ने एम्स सेंटर फॉर डेंटल एजुकेशन एंड रिसर्च के एक वरिष्ठ संकाय सदस्य पर परेशान करने का आरोप लगाया है। पहले भी उसने प्रशासन के सामने मामले को उठाया था।

अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने बताया कि आयोग ने भी मामले की जांच शुरू कर दी है। उन्होंने पुलिस से इस मामले में दर्ज एफआईआर की कॉपी और विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है। पुलिस से 25 अप्रैल तक बताने को कहा गया है कि इस मामले में क्या गिरफ्तारी हुई और यदि गिरफ्तारी नहीं हुई है तो इसके कारण बताए जाएं। साथ ही, जांच पूरी करने की समय सीमा भी पूछी गई है।

आख़िर हम कब सबक़ लेंगे?

इस पूरे मामले पर महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली शबनम कहती हैं, “हमारे देश में लोग तभी कैंडल लेकर सड़कों पर उतरते हैं, जब कोई महिला उत्पीड़न की सूली चढ़ चुकी होती है। कानून व्यवस्थाएं और तमाम संस्थान तभी जागते हैं, जब कोई बड़ा हादसा हो जाए। इससे पहले हम सब खामोशी से देखते रहते हैं, कई बार पीड़िता को ही सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है, उसके चरित्र पर उंगली उठाई जाती है।”

वो आगे सवाल उठाती हैं, “आखिर हम कब सबक़ लेंगे, कब किसी कि हत्या या बलात्कार से पहले दोषी को सज़ा मिलेगी। क्या एम्स प्रशासन तमाम शिकायतों के बाद दूसरी पायल तड़वी जैसे मामले का इंतजार कर रहा था।”

गौरतलब है कि देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में महिलाओं के साथ यौन और जाति उत्पीड़न के कई मामले देखने को मिले हैं। बीते वर्ष 2019 में मुंबई के बीवाईएल नायर हॉस्पिटल से गायनोकोलॉजी की पढ़ाई करने वाली दलित छात्रा पायल तड़वी ने सीनियर्स की रैगिंग और जातिवादी टिप्पणियों से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी। पायल ने अपने सुसाइड नोट में आत्महत्या की वजहें बताई थी।

डॉक्टर पायल की चिट्ठी के कुछ अंश

इस मुकाम पर चीजें असहनीय हो गई हैं। मैं उनके साथ एक मिनट भी नहीं रह सकती हूं। पिछले एक साल से हम उन्हें सह रहे थे, इस उम्मीद में कि एक दिन ये सब खत्म हो जाएगा। लेकिन मैं अब केवल अंत देख रही हूं। वास्तव में इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है, मुझे इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा है। मैं फंस गई हूं। ऐसा क्यों है? हम लोगों में ऐसा क्या है जिससे ये परेशानी झेलनी पड़ रही है…।”

बार-बार वही पीड़ा, वही उत्पीड़न

इसी तरह की पीड़ा का इज़हार हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पीएचडी छात्र रोहित वेमुला ने किया था। अपने अंतिम पत्र में उन्होंने लिखा था- मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था। विज्ञान पर लिखने वालाकार्ल सगान की तरह, लेकिन अंत में मैं सिर्फ़ ये पत्र लिख पा रहा हूं... एक आदमी की क़ीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नज़दीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है। एक वोट तक। आदमी एक आंकड़ा बन कर रह गया है। एक वस्तु मात्र। कभी भी एक आदमी को उसके दिमाग़ से नहीं आंका गया। एक ऐसी चीज़ जो स्टारडस्ट से बनी थी। हर क्षेत्र मेंअध्ययन मेंगलियों मेंराजनीति मेंमरने में और जीने में...।

लेकिन असल सवाल यही है कि क्या हम, हमारा समाज, हमारा शासन-प्रशासन इस सबसे कोई सबक़ लेगा?

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