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आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?

मोदी सरकार अच्छे ख़ासी प्रॉफिट में चल रही BPCL जैसी सार्वजानिक कंपनी का भी निजीकरण करना चाहती है, जबकि 2020-21 में BPCL के प्रॉफिट में 600 फ़ीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है। फ़िलहाल तो इस निजीकरण को टाल दिया गया है, लेकिन यह प्रक्रिया कब तक स्थगित रहेगी कहना मुश्किल है।
bpcl
Image courtesy : FI

भारतीय वित्त मंत्रालय के निवेश और लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) ने गुरुवार को बयान जारी कर कहा है कि भारत पेट्रोलियम (BPCL) के निजीकरण प्रकिया को फिलहाल टाल दिया गया है। आपको बता दें कि BPCL, इंडियन आयल के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी आयल मार्केटिंग कंपनी है। साथ ही रिलायंस और इंडियन आयल कंपनी के बाद तीसरी सबसे बड़ी रिफाइनिंग क्षमता वाली कंपनी है। जिसमें भारत सरकार की 52.98% की हिस्सेदारी है।

सरकार ने मार्च 2020 में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचने का लक्ष्य निर्धारित किया था। जिसके लिए सरकार ने खरीदने योग्य लोगों से लेटर ऑफ़ इंटरेस्ट की मांग की थी। BPCL को खरीदने के लिए Vedanta Group के चेयरमेन अनिल अग्रवाल, Apollo Global Management Inc और, Squared Capital Advisors ने रुचि जाहिर की थी। 

बताया जा रहा की मौजूदा समय में रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक ऊर्जा बाजार में अस्थिरता का माहौल बना हुआ है। जिसके कारण 3 बिडर्स में से 2 बिडर्स पीछे खिसक गए हैं। इस बारे में निवेश और लोक परिसंम्पत्ति प्रबंधन विभाग का कहना है कि वैश्विक स्तर पर ऊर्जा बाजार के हालातों को देखते हुए एलिजिबल बिडर्स ने मौजूदा प्रक्रिया के तहत BPCL को खरीदने में असमर्थता जताई है। लेकिन हकीकत यह है की BPCL और HPCL के कर्मचारियों के भारी विरोध के बाद 2 बिडर्स ने BPCL को ख़रीदने से पीछे हट गए है |

आपको बता दे की भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (HPCL) के करीब 22 हजार कर्मचारी 28 नवंबर 2019 को हड़ताल पर रहे थे | केंद्र सरकार के BPCL के निजीकरण के फैसले के खिलाफ तमाम कर्मचारी यूनियन लामबंद हुए थे | यह हड़ताल BPCL के केंद्र सरकार के विनिवेश के फैसले के विरोध में हुई थी | जिसमे BPCL की सभी रिफाइनरी डिपो और बॉटलिंग प्लांट के सभी कर्मचारी इस हड़ताल में हिस्सा लिया था | जोकि बिडर्स के पीछे हटने का सबसे बड़ा कारण रहा है |

जबकि सरकार का कहना है की रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक ऊर्जा बाजार में अस्थिरता के चलते 3 बिडर्स में से 2 बिडर्स ने BPCL को खरीदने में असमर्थता जताई है। जिसके चलते विनिवेश के लिए वर्तमान EOI प्रक्रिया को बंद करने का निर्णय लिया है। ऐसे में जो बोलियां अब तक मिली हैं, वो रद कर दी जाएंगी। हालांकि सरकार ने फिर से BPCL को बेचने के संकेत दिए है और कहा है कि स्थिति की समीक्षा के आधार पर विनिवेश प्रक्रिया को फिर से शुरू करने लिए नए सिरे से योजना बनाएगी। 

अब हम बात कर लेते है BPCL के आर्थिक हालात के बारे में - आखिर क्या कारण है कि सरकार को भारत की तीसरी सबसे बड़ी रिफाइनिंग क्षमता वाली कंपनी को बेचने की जरूरत पड़ गई है। आंकड़ों की मानें तो BPCL के सकल बिक्री कारोबार में पिछले पांच सालों में अच्छी ख़ासी ग्रोथ हुई है। हालांकि 2019-20 में आर्थिक मंदी और 2020-21 में कोरोना के चलते पिछले दो सालों से सकल बिक्री कारोबार में 2019-20 में 2.97 प्रतिशत और 2020-21 में 7.83 प्रतिशत की गिरावट सामने आयी है। यह तो सर्वविदित है कि आर्थिक मंदी और कोरोना के चलते काफी हद तक लोगों के व्यापार में कमी आयी है।  लेकिन इसके चलते एक अच्छी खासी सरकारी कंपनी को बेचना सरकार की कामचोरी को दर्शाता है। 

2016-17 में BPCL का सकल बिक्री कारोबार 2,41,859 करोड़ रुपये था जोकि 2017-18 में 14.28 प्रतिशत बढ़कर 2,76,401 करोड़ रुपये हो गया था | वही 2018-19 में सकल बिक्री कारोबार 21.70 फ़ीसदी बढ़कर 3,36,384 रुपये करोड़ हो गया था।  हलाकि 2019-20 में आर्थिक मंदी और 2020-21 में कोरोना के कारण पिछले दो सालों से सकल बिक्री कारोबार में गिरावट हुई है। जैसा की निचे चित्र में दिखाया गया है |

वहीं हम BPCL के प्रॉफिट की बात करे तो BPCL सरकार की अच्छी ख़ासी आमदनी करने वाली कंपनी है। हालाँकि ये बात अलग है कि जब से मोदी सरकार केंद्र में आयी है, तब से मोदी सरकार का सार्वजानिक कंपनियों के प्रति रवैया बहुत ही निराशाजन रहा है। मोदी सरकार लगातार सार्वजानिक कंपनियों का निजीकरण कर रही है | जबकि 2020-21 में BPCL के प्रॉफिट में 600 फ़ीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है।  2019-20 में BPCL का प्रॉफिट 2,683 करोड़ रुपये था जोकि 2020-21 में बढ़कर 19,042 करोड़ रुपये हो गया है।  जैसा की निचे चित्र में दिखाया गया है

दरअसल मोदी सरकार का मॉडल निजीकरण को बढ़ावा देना है। जिसके चलते मोदी सरकार सारी सम्पत्तियों को बेचने में लगी है। अभी आने वाले समय में दो और सरकारी बैंको का निजीकरण करने की बात चल रही है।

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