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फ़ेलोशिप में 'मामूली बढ़ोतरी' से नाराज़ रिसर्च स्कॉलर्स 30 जून को करेंगे देशभर में प्रदर्शन!

शोधार्थियों का कहना है कि सरकार पहले ही फ़ेलोशिप हाइक को लेकर देरी कर चुकी है, ऐसे में अब ये नई बढ़त 'ऊंट के मुंह में जीरे' के समान है और उन्हें ये बिल्कुल मंज़ूर नहीं है।
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देश के आईआईएसईआर, आईआईटी और एनआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के रिसर्च स्कॉलर्स एक बार फिर फेलोशिप में उचित बढ़ोतरी की मांग को लेकर आगामी शुक्रवार, 30 जून को देशव्यापी प्रदर्शन के लिए तैयार हैं। इन शोधार्थियों ने आज यानी गुरुवार, 28 जून को भी इस संबंध में एक ट्विटर कैंपेन के माध्यम से अपनी बात भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग यानी डीएसटी तक पहुंचाने की कोशिश की। इससे पहले भी ये रिसर्च स्कॉलर्स कई बार अलग-अलग माध्यमों से गुहार लगा चुके हैं।

बता दें कि बीते लंबे समय से रिसर्च स्कॉलर्स, फेलोशिप बढ़ोतरी समेत अपनी कई अन्य मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। इस संबंध में कई बार ऑल इंडिया रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन (AIRSA) की ओर से भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग यानी डीएसटी और उच्च शिक्षा विभाग को कई पत्र लिखे गए, संस्थानों में प्रदर्शन हुए और ट्विटर पर अनेकों कैंपेन चले जिसके बाद डीएसटी ने 22 जून को फेलोशिप में बढ़ोतरी की घोषणा की। इसे लेकर अब एक बार फिर शोधकर्ता प्रदर्शन को मजबूर हैं।

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क्या है पूरा मामला?

दरअसल, डीएसटी की ओर से इस बार साल 2023 में शोधार्थियों के लिए फेलोशिप में मात्र 19.4 प्रतिशत बढ़ोतरी की गई जोकि बीते सालों के मुकाबले बेहद कम है। नई बढ़ोतरी के अनुसार जूनियर रिसर्च फेलो (जेआरएफ) को पहले मिलने वाली 31,000 रूपये की फेलोशिप की तुलना में अब 37,000 रुपए मिलेेंगे। जबकि सीनियर रिसर्च फेलो को 35,000 रूपये की तुलना में अब 42,000 रूपये की राशी दी जाएगी। इसी तरह रिसर्च असोसिएट (RA 1, RA 2, RA 3) को अब क्रमश: 58 हज़ार, 61 हज़ार और 63 हज़ार रुपये प्रतिमाह की फेलोशिप दी जाएगी। शोधार्थी इसे मामूली बढ़ोतरी बताते हुए इसका विरोध कर रहे हैं।

शोधार्थियों का कहना है कि "महंगाई के इस दौर में 20 प्रतिशत से भी कम बढ़ोतरी सरकार का उनके साथ मज़ाक है। पहले ही सरकार फेलोशिप हाइक को लेकर एक साल से अधिक की देरी कर चुकी है, ऐसे में अब ये नई बढ़त 'ऊंट के मुंह में जीरे' के समान है और उन्हें ये बिल्कुल मंज़ूर नहीं है।" शोधार्थियों ने चेतावनी दी है कि वे जल्द ही इसके ख़िलाफ़ अपनी प्रयोगशालाओं का काम छोड़कर बड़ा आंदोलन करने को मजबूर होंगे।

"इंफ्लेशन के दौर में ये बढ़ोतरी बिल्कुल भी जायज़ नहीं है"

ऑल इंडिया रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष लाल चंद्र विश्वकर्मा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "डीएसटी के साथ हुई मीटिंग में भी उन लोगों ने रिसर्च स्कॉलर्स की समस्याओं और 60 प्रतिशत फेलोशिप हाइक के मुद्दे को डिटेल में समझाते हुए अपनी पूरी बात रखी थी जिसके बाद डीएसटी के सचिव डॉ. श्रीवारी चंद्रशेखर ने उनकी मांगों पर अमल करने का आश्वासन भी दिया था। हालांकि अब जो बढ़ोतरी हुई है, ये बढ़ते हुए इंफ्लेशन के दौर में बिल्कुल भी जायज़ नहीं हैं।"

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लाल चंद्र कहते हैं, “हम पूरे 60 प्रतिशत बढ़ोतरी की डीएसटी से आशा नहीं रखते, लेकिन 19.4 प्रतिशत की भी हमें उम्मीद नहीं थी। ये बहुत कम हाइक है, जिसमें आगे आने वाले चार साल काटने बहुत मुश्किल हैं। रिसर्च स्कॉलर्स पहले ही समय पर फंड न मिलने और संस्थानों की हर साल बढ़ती फीस से परेशान हैं, ऐसे में ये नाम मात्र की बढ़ोतरी उनके विश्वास के लिए एक धक्के की तरह है और टूटे हुए मनोबल से कोई रिसर्च कैसे कर सकता है। सरकार को एक बार फिर से इस बढ़ोतरी को देखना और समझना चाहिए, जिससे हमारी दिक्कतें कम हो सकें और हम मन लगाकर काम कर सकें।"

ध्यान रहे कि जेएनयू समेत बाक़ी दूसरी सेंट्रल यूनिवर्सिटीज के नॉन नेट रिसर्च स्कॉलर्स को अभी भी फेलोशिप के तौर पर मात्र 8,000 रुपये ही मिलते हैं, जिसके ख़िलाफ़ भी AIRSA का संघर्ष जारी है। संगठन का कहना है कि "इन शोधार्थियों को कम से कम 30,000 रुपए तो मिलने ही चाहिए, जिससे ये अपने अनुसंधान में अपना बेस्ट दे सकें क्योंकि साल दर साल जिस तरह से मुद्रास्फीति और सरकारी संस्थानों की फीस बढ़ रही है, ये अपने आप में चिंताजनक है।"

"संस्थानों में बेतहाशा बढ़ रही है फीस"

आईआईटी के कई छात्रों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि संस्थानों की फीस में बीते कुछ सालों में कई गुना इज़ाफा हुआ है। जेएनयू, बीएचयू और आईआईटी दिल्ली के छात्रों का प्रदर्शन तो सुर्खियों में भी रहा है लेकन आरोप है कि "बावजूद इसके सरकार लगातार छात्रों और शोधकर्ताओं की अनदेखी कर रही है। हर बार प्रदर्शन करने के बाद ही सरकार जागती है और फिर आनन-फानन में केवल नाम मात्र की फेलोशिप वृद्धि कर फिर से शांत बैठ जाती है। जबकि शोधार्थी 10-12 घंटे से लेकर 16 घंटे या उससे भी ज़्यादा अपना समय प्रयोगशालाओं में ही लगा देते हैं।"

शोधार्थियों के मुताबिक "ये फेलोशिप हाइक सिर्फ इस साल के लिए नहीं बल्कि अगले चार सालों के लिए भी है और अगर महंगाई दर ऐसे ही बढ़ती रही, तो रिसर्च स्कॉलर्स के लिए शोध और जीवनयापन बहुत मुश्किल हो जाएगा। और ये भविष्य में कई शोधकर्ताओं को अपनी रिसर्च बीच में ही अधूरा छोड़ने पर मजबूर कर देगा।"

शोधकर्ताओं का कहना है कि उन लोगों ने अपने तमाम प्रदर्शनों, पत्रों और सोशल मीडिया कैंपन में फेलोशिप में कम से कम 60 प्रतिशत बढ़ोतरी की मांग की थी, लेकिन सरकार ने सब कुछ अनदेखा करते हुए केवल 19 प्रतिशत की मामूली बढ़ोतरी की है, जो बेहद निराशाजनक है। अब शोधार्थी इस बढ़ोतरी से जरा भी संतुष्ट नहीं हैं और इसके ख़िलाफ़ 30 जून को राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन के लिए तैयार हैं।

आंकड़ों को देखें, तो साल 2014 में इन रिसर्च स्कॉलर्स की फेलोशिप में 56 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई थी जबकि 2018 में ये घटकर 24 प्रतिशत हो गई और अब 2023 में ये 20 प्रतिशत से भी कम हुई है। शोधार्थियों की मानें, तो ये अब तक की सबसे कम फेलोशिप हाइक है, जो देश भर के रिसर्च स्कॉलर को स्वीकार्य नहीं है और इसलिए सभी संस्थानों के शोधकर्ता एकजुट होकर इसके ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।

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