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फेलोशिप की जगह 'धैर्य' से रिसर्च स्कॉलर्स का कब तक चलेगा काम!

बीते छह महीने से डीएसटी शोधार्थियों से कह रही है कि 'धैय रखें, फेलोशिप का मुद्दा हमारी प्राथमिकता में शामिल है।'
AIRSA

देश के प्रतिष्ठित संस्थानों के रिसर्च स्कॉलर्स बीते लंबे समय से फेलोशिप बढ़ोत्तरी सहित अपनी अन्य मांगों को लेकर सरकार से गुहार लगा रहे हैं। ऑल इंडिया रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन (AIRSA) की ओर से इस संबंध में भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग यानी डीएसटी और उच्च शिक्षा विभाग को भी ज्ञापन सोंपे गए हैं, जिस पर अभी तक कोई ठोस नतीज़ा सामने नहीं आया है। ऐसे में इन शोधार्थियों का कहना है कि सरकार यदि ऐसे ही उनकी मांगों की अनदेखी करती रही, जो जल्द ही प्रयोगशालाओं का काम छोड़ ये लोग राजधानी के जंतर-मंतर में बड़ा आंदोलन करने को मजबूर होंगे।

कल यानी मंगलवार, 9 मई को AIRSA के ट्विटर हैंडल से अलग-अलग संस्थानों के शोध छात्रों ने अपने हाथों में प्लेकार्ड लेकर कई तस्वीरें पोस्ट कीं, जिसमें Higest degree with lowest pay, मेरे और मेरे परिवार के खर्चों का क्या, फेलोशिप बढ़ाओं, देश का भविष्य बचाओ जैसे अनेक स्लोगन लिखे हुए थे। डीएसटी ने इस पर रिस्पांस करते हुए अपने आधिकारिक ट्विटर से ट्वीट किया कि छात्र धैय रखें, फेलोशिप का मुद्दा उनकी प्राथमिकता में शामिल है। हालांकि शोधार्थियों का कहना है कि विभाग की ओर से ऐसा ट्वीट लगभग 6 महीने पहले भी किया गया था, जिसमें हाई लेवल मीटिंग की बात भी हुई थी, लेकिन अब तक मामला ज्यों का त्यों ही बना हुआ है।

 

प्रीमियर संस्थानों के रिसर्च स्कॉलर्स की दिक्कतें

बता दें कि फेलोशिप को लेकर तमाम दिक्कतें झेल रहे छात्रों में आईआईएसईआर, आईआईटी और एनआईटी जैसे प्रीमियर संस्थानों के रिसर्च स्कॉलर्स भी शामिल हैं। जो पहले तो अपनी कड़ी मेहनत से इन संस्थानों में दाखिला पाते हैं और फिर फेलोशिप न मिलने से मानसिक और आर्थिक दिक्कतों का भी सामना कर रहे हैं। हाल ही में ऐसे संस्थानों में अवसाद के चलते छात्रों के बीच बढ़ते आत्महत्या के मामले भी देखे गए हैं, जिसे लेकर भी AIRSA लगातार आवाज़ उठा रहा है।

ध्यान रहे कि फेलोशिप या ग्रांट केंद्र सरकार उन छात्रों को देती है, जो शोध और विकास के काम में जुटे हैं, और उन्हें भी जिनका चयन जूनियर रिसर्च फेलोशिप द्वारा किया जाता है इनमें खासकर वे छात्र शामिल होते हैं जो बेसिक साइंस में पोस्ट ग्रेजुएट हैं। इस फेलोशिप में वो छात्र भी शामिल हैं जो नेट (नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट) और गेट (ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग) की परीक्षा को पास कर किसी प्रोफेशनल कोर्स या फिर पोस्ट ग्रेजुएट या स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं।

 

क्या मांगें हैं रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन की?

* बढ़ती महंगाई और वित्तीय स्थिरता के मद्देनजर भारत सरकार पूरे देश के पीएचडी शोधार्थियों की फेलोशिप में 62 प्रतिशत की वृद्धि करे।

* बिना किसी व्यवधान के पीएचडी शोधार्थियों को पूरे पांच साल हर महीने फेलोशिप दी जाए। इसके साथ ही टीचिंग असिस्टेंटशिप की राशि भी सुनिश्चित हो और एचआरए यानी हाउस अलाउंस भी वर्तमान दर से लागू किया जाए।

* पीएचडी शोधार्थियों का उत्पीड़न बंद हो। सुपरवाइजर द्वारा रिसर्च के अलावा कोई अन्य घरेलू, व्यक्तिगत कार्य न दिया जाए। सुपरवाइजर/संस्थान प्रबंधन द्वारा पीएचडी शोधार्थियों के किसी तरह के शोषण पर तुरंत कार्यवाही हो और उन्हें तत्काल प्रभाव से सस्पेंड किया जाए।

गौरतलब है कि फेलोशिप को लेकर शोधार्थियों का लंबा संघर्ष रहा है। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि साल 2014 से पहले उन्हें 16 हजार रुपये प्रति महीने फेलोशिप मिलती थी। इसको लेकर कई धरना प्रदर्शन हुए, जिसके बाद फेलोशिप बढ़ाकर 25 हजार रुपये प्रति महीना करने के साथ ही हर चार साल में फेलोशिप बढ़ाए जाने का वादा भी किया गया। लेकिन मार्च 2018 में चार साल पूरे होने के बाद भी जब सरकार की तरफ से फेलोशिप बढ़ाने को लेकर कोई पहल नहीं की गई, तो इन लोगों को फिर से सड़क पर उतरना पड़ा, जिसके दबाव में सरकार ने साल 2019 की शुरुआत में जूनियर रिसर्च फेलोशिप की राशि को 25 हज़ार से बढ़ाकर 31 हज़ार रुपये कर दिया गया, वहीं सीनियर रिसर्च फेलोशिप की राशि 28 हज़ार से 35 हज़ार करने की घोषणा की गई, जोकि इन छात्रों के मुताबिक इतिहास में सबसे कम थी।

आईआईएससी बेंगलुरु, आईआईटी,एनआईटी, जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के शोध छात्रों का कहना है कि पिछली बार भी सरकार ने कई बड़े प्रदर्शनों के बाद ही बढ़ोत्तरी का ऐलान किया था। ऐसे में अब एक बार फिर चार साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद ये रिसर्चर्स प्रदर्शन को मजबूर हैं।

 

सरकार बिना प्रदर्शन के किसी की सुनती क्यों नहीं?

ऑल इंडिया रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष लाल चंद्र विश्वकर्मा ने न्यूज़क्लिक से कहा कि सरकार पिछले 6 महीनों से केवल बड़ी-बड़ी बातें ही कर रही है, लेकिन वास्तव में रिसर्च स्कॉलर्स के अभी तक किया कुछ भी नहीं है। जब तक रिसर्च स्कॉलर्स की बेसिक जरूरतें नहीं पूरी होंगी, रिसर्च का काम आगे कैसे बढ़ेगा, देश आगे कैसे बढ़ेगा।

लाल चंद्र विश्वकर्मा आगे कहते हैं, “पीएचड़ी को दुनिया की सबसे बड़ी डिग्री कहा जाता है, लेकिन सरकार की इसके प्रति गंभीरता ज़ीरो दिखाई देती है। सरकार ने जेआरएफ की सीटें कम कर दीं। एचआरए घटा दिया, रिसर्च स्कॉलर्स की फेलोशिप छह महीने-साल भर में मिलती है, ये उन्हें आर्थिक तौर पर परेशानी देती है। इसके अलावा एचआरए, मेडिकल और तमाम सुविधाओं तक उनकी कठिन पहुंच, उन्हें मानसिक तौर पर प्रभावित भी करती हैं। ऐसे में कोई बीते कुछ समय में कई संस्थानों के छात्रों की खुदकुशी का मामला भी सामने आया है, जो गाइड और शोधार्थी के बीच के संबंधों का काला सच भी सामने रखता है। अब अगर जल्द ही सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया, तो शोध छात्र बड़ा प्रदर्शन कर सकते हैं और इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ सरकार होगी। "

आंकड़ों पर नज़र डालें तो शिक्षा मंत्रालय के अनुसार साल 2014-21 में आईआईटी,एनआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य केंद्रीय संस्थानों के 122 छात्रों ने आत्महत्या की। ये आंकड़े खतरनाक इसलिए भी हैं क्योंकि इन संस्थानों तक पहुंचने के लिए छात्र दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं, ऐसे में इनकी मानसिक स्थिति को संस्थान का वातावरण किस तरह प्रभावित करता है, इस पर सरकार को ध्यान देना होगा। इसके अलावा शिक्षा पर सरकार को अपना बजट भी बढ़ाने की जरूरत है, जिससे ज्यादा से ज्यादा छात्र शोध कर सकें।

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