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आर्ट गैलरी: प्रगतिशील कला समूह (पैग) के अभूतपूर्व कलासृजक

“प्रगतिशील कला समूह के कलाकारों ने स्वतंत्रता उपरांत आधुनिक भारतीय कला के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इन कलाकारों ने देश की कला को राष्ट्रीय दायरे से बाहर निकाला और पाश्चात्य कला की तकनीक एवं अभिव्यक्ति के समानांतर कला को अंतर्राष्ट्रीयतावाद से पूर्णतया जोड़ दिया।”  
आर्ट गैलरी: प्रगतिशील कला समूह (पैग) के अभूतपूर्व कलासृजक

कला के मूल्यों को लेकर भारतीय कला धारा का रूख ही मोड़ दिया था प्रगतिशील कला समूह (पैग: प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप) के कलाकारों ने। मौलिक कला सृजन के लिए, रचनात्मक एवं कलात्मक स्वतंत्रता को पाने के लिए इस कला समूह ने राष्ट्रीय आदर्शवाद और सामाजिक व पारम्परिक भ्रांतियों को अनदेखा किया। इस कला समूह की परिकल्पना और निर्माण 1948 में बम्बई (मुंबई) में कुछ चुनिंदा कलाकारों ने  किया। वे प्रमुख कलाकार थे फ्रांसिस न्यूटन सूजा, कृष्णा जी हावला जी आरा, मकबूल फिदा हुसेन, हरि अम्बादास गाडे, सैयद हैदर रजा, सदानन्द बाकरे , बी.एस. गायतोंडे और अकबर पद्मसी।

इस कला समूह की स्थापना के बारे में सूजा ने कहा कि ' प्रगतिशील कला ग्रुप की स्थापना और भारत की स्वतंत्रता करीब-करीब एक ही समय हुई। यह बात सांकेतिक जरूर थी, परंतु अनायास थी।' प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप को सौंदर्य शास्त्रीय कलात्मक ऊंचाई की नई दिशा देने में फ्रांसिस न्यूटन सूजा की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही  और उनके अथक प्रयासों द्वारा यह सन् 1948 में अस्तित्व में आ सका था। 

इससे पूर्व  सूजा को बम्बई कला महाविद्यालय से निकाल दिया गया था। इसका प्रमुख कारण था वे विद्रोही प्रवृत्ति के थे और कम्युनिस्ट पार्टी की गतिविधियों में खुलकर भाग लेते थे। इस समय सूजा की पहचान बननी शुरू हो गई थी। वे अपने चित्रों की दो एक प्रदर्शनियां कर चुके थे और लंदन में हुई  भारतीय समकालीन कला की एक प्रदर्शनी में भी उनके कुछ चित्र प्रदर्शित हो चुके थे। अतः सूजा बम्बई के कला जगत में एक कलाकार के रूप में अपने को स्थापित कर चुके थे। सूजा ने, के.एच. आरा से एक कला समूह बनाने के विषय में विचार विमर्श किया । कृष्णा जी हावला जी आरा भी बम्बई में युवा कलाकार के रूप में चर्चित हो रहे थे , उन्हें राज्यपाल पुरस्कार प्राप्त हो चुका था। उनकी एक चौदह फुट बड़ा चित्र 'इंडिपेंडेंस डे प्रोशैसन्स' ,   बम्बई आर्ट सोसाइटी की वार्षिक प्रदर्शनी में अस्वीकृत हो गई थी। आरा सूजा के ग्रुप बनाने के प्रस्ताव से तुरंत सहमत हो गये । तीसरे सदस्य के तौर पर सैयद हैदर रजा से बात की गई । रजा का प्रिय विषय था भू दृश्य चित्रण करना ।

उन्होंने कुछ समय पूर्व ही कला विद्यालय से अध्ययन समाप्त किया था । वे उन दिनों बम्बई के भूदृश्य पर चटख और सुन्दर रंगों में चित्रांकन कर रहे थे । इस समय भारतीय चित्रकार जलरंगों में खूब चित्र बना रहे थे। रजा ने भी सहमति दे दी नई कला समूह बनाने की ।

शुरुआत में ये लोग अपनी बैठकें बम्बई के गिरगाम स्थित 'फ्रेंड्स ऑफ सोवियत यूनियन' के प्रांगण में करते थे। यहाँ ग्रुप के उद्देश्यों एवं विचारधारा को लेकर आपस में विचार विमर्श होता था । इन कलाकारों ने प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप के मैनिफेस्टो में लिखा, इसका उद्गम ' 'प्रोग्रेस'  शब्द से है।  'प्रो ' का अर्थ आगे ( फारवर्ड ) से है , जहां की हम जाना चाहते हैं ।'

दरअसल स्वतंत्रता के पश्चात बंबई के कला माहौल में भी बहुत परिवर्तन हुआ। यद्यपि इसकी पृष्ठभूमि पहले से ही तैयार हो रही थी। युवा कलाकार आज के कलाकारों के बनिस्पत ज्यादा निर्भीक थे, कला क्षेत्र में संघर्षशील थे। सूजा पैग के महासचिव थे और वे कला समूह की विचारधारा और उद्देश्यों के अनुसार के अनुसार सूचीपत्र तैयार करते थे। गाडे संस्था के हिसाब किताब को देखते थे। आरा कला समीक्षकों, पत्रकारों और लेखकों को इस कला समूह के उपर लेखन के लिए प्रेरित करते थे। रजा, देशी कला व विदेशी कला संग्राहकों  को पैग के कलाकारों की कृतियां खरीदने को प्रेरित करते थे ।

प्रगतिशील कला समूह की पहली प्रदर्शनी सात जुलाई 1949 में बम्बई आर्ट सोसाइटी सैलों में हुई जिसका उद्घाटन कला समीक्षक मुल्क राज आनंद ने किया था । इस प्रदर्शनी के कैटलाग में समूह के उद्देश्य के बारे में लिखा ' कलाकारों के विभिन्न वर्गों तथा लोगों में बेहतर समझ तथा संपर्क बनाना ...।' आज हम विषय और तकनीक के मामले में पूर्णतया स्वतंत्र रहते हुए चित्रांकन कर रहे हैं, अराजक होने की हद तक स्वतंत्र हुए। शुक्र यही है कि हम सौंदर्य शास्त्रीय संयम सुघट्यता के समन्वय तथा रंग संयोजन के कुछेक मूल तथा शाश्वत सिद्धांतों से परिचालित हैं। हममें किसी स्कूल या कला आन्दोलन को पुनः जागृत करने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है। एक प्रबल रचनात्मक संश्लेषण तक पहुंचने के लिए हम मूर्ति शिल्प और चित्रकला की

विभिन्न शैलियों का अध्ययन कर चुके हैं ।' (साभारः  भारतीय चित्रकला का विकास , प्रकाशन वर्ष  2019 )

प्रगतिशील कला समूह के इस प्रथम प्रदर्शनी के बारे में बम्बई के पत्र पत्रिकाओं में मिली जुली प्रतिक्रियाएं आईं । लेकिन प्रंशसा ज्यादा मिली और  लोकप्रियता भी खूब मिली । 'टाइम्स ऑफ इण्डिया', ' 'आनलुकर' , 'फोरम ', ' मार्च ', ' संडे स्टैण्डर्ड  ',' फ्री प्रेस जनरल ' आदि ने पैग के कलाकारों की प्रंशसा करते हुए समीक्षाएं लिखीं और लेख प्रकाशित किया।

पैग की इस प्रदर्शनी के सभी कलाकार नये विचारों से समृद्ध थे , इसलिए उनकी कलाकृतियां भी नयी शैली की थी। जिसे ग्रुप के बाहर के कलाकारों के अतिरिक्त अन्य कला मर्मज्ञों ने भी पसंद किया।

चित्रकार: के.एच. आरा, स्टिल लाइफ, तैल रंगों में, साभार: भारत की समकालीन कला एक परिपेक्ष्य।

कृष्णा जी हावला जी आरा ( जन्म 1914 -1985 ) ने स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया था जिसके कारण उन्हें छह महीने के कैद की सजा मिली थी ।  शुरूआत में वे फूलों और भूदृश्य चित्र बनाते थे । परंतु पैग के प्रथम प्रदर्शनी में प्रदर्शित चित्र जुआरियों , भिखारियों और समाज द्वारा पीड़ित पेशेवर महिलाओं के चित्र बनाए । उनके चित्र प्रखर व्यंजक और गहरी चोट करने वाले थे जिससे उनकी संवेदनशीलता और  प्रगतिशीलता ही जाहिर होती है। ज्यादातर चित्रों में उन्होंने चटक और आकर्षक रंगों का इस्तेमाल किया है।

उन्हें यूनेस्को द्वारा पुरस्कृत किया गया । उन्हें और भी महत्वपूर्ण पुरस्कारों से विभूषित किया गया। वे ललित कला अकादमी नई दिल्ली के सदस्य रह चुके हैं । जहांगीर आर्ट गैलरी बम्बई  के ट्रस्टी रह चुके थे । इसके अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण पदों की उन्होंने शोभा बढ़ाई।

चित्रकार: मकबूल फिदा हुसेन, कैनवस पर तैल रंगों में, वर्ष 1989 , साभार: आर्ट इण्डिया, कला पत्रिका , वर्ष 2005

मकबूल फिदा हुसेन ( सन् 1915-2011) ने जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से अध्ययन समाप्त करने के बाद अपने संघर्ष पूर्ण जीवन की शुरुआत में बम्बई में होर्डिंग पेंटिंग बनाई। बाद में प्रभाववादी शैली में चित्रण किया। उनके वास्तविक कलाकार जीवन की शुरुआत प्रगतिशील कला समूह से जुड़ने के बाद ही शुरू हुई। स्वतंत्र भारत में उन्होंने अपने कठिन मेहनत और लगन से जल्दी ही बेहद महत्वपूर्ण कलाकारों में स्थान बना लिया। हुसेन के चित्रों में भारतीय लघु चित्रण शैली, भारतीय मूर्ति शिल्प की अत्यंत समृद्ध परंपरा, मुस्लिम धार्मिक-सामाजिक सरोकार, हिन्दू मिथक शास्त्र और भारतीय ग्रामीण जीवन की परंपरा सुन्दर और गतिशील ढंग से प्रवाहित है। उसमें घोड़े हाथी, मानवाकृतियां ऊर्जावान तूलिका संचालन से बनाए गए हैं। हुसैन के चित्रों में भारतीय नारी के पीड़ा, उनकी असीम करूणा और प्रेम के साथ प्रमुख चरित्र है। हुसैन को भारत का पिकासो माना गया था।

हरी अम्बा दास गाडे (जन्म सन् 1917-16 दिसम्बर 2001) ने 1949 में जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट बम्बई से ललित कला का डिप्लोमा प्राप्त किया था। उनके चित्र आकृति मूलक हैं और आदिम कला से प्रभावित हैं। उनकी कला में भारतीय जनजीवन का चित्रण सरल, सशक्त रेखा , सरल व्यंजना पूर्ण आकृतियों  में और आधुनिक संयोजन शैली में हुआ है। इनके चित्र भी पैग के अन्य कलाकारों के समान देश -विदेश में पुरस्कृत हुए और प्रदर्शित हुए।

सैयद हैदर रजा ( जन्म सन् 1923 - मृत्यु 23 जुलाई 2016 नई दिल्ली ) ने 1948 में ही कला में डिप्लोमा प्राप्त किया। इसी वर्ष बम्बई आर्ट सोसाइटी द्वारा पुरस्कृत किया गया। उन्होंने बम्बई  में  ही कलासृजन और अपने चित्रों की प्रदर्शनी शुरू कर दी। रजा की कलाकृतियों में अमूर्तन है जिसमें रेखा, वृत, त्रिभुज, वर्ग, षष्टभुज सुन्दर रंगों में सृजित हैं। उन्होंने सूरज को काले वृत्ताकार रूप में दिखाया है। रजा के चित्र प्रतीकात्मक हैं। जो मुख्यतः सैराचित्र हैं ।  रजा ने एक फ्रांसीसी मूर्तिकार जानी मौजिता से विवाह किया और वहीं के होकर रह गये । हालांकि भारत हमेशा आते रहे ।

चित्रकार: फ्रांसिस न्यूटन सूजा, कैनवस पर तैल रंग, साभार: आर्ट इण्डिया, कला पत्रिका, वर्ष 2005।

फ्रांसिस न्यूटन सूजा ( जन्म सन् 19 24 -  मृत्यु 28 मार्च 2002 बम्बई) प्रगतिशील कला समूह के सबसे उर्जावान चित्रकार थे । उनका भी शुरुआती जीवन बहुत संघर्ष पूर्ण था । जिसका त्रासदपूर्ण रूप उनके चित्रों में भावनात्मक और आलोचनात्मक रूप से समाहित हैं।

सूजा कोंकणी मूल के कैथोलिक ईसाई  परिवार के थे। उनके पिता की जब मृत्यु हुई वे मात्र तीन माह के थे। सूजा बचपन में ईसाई भक्ति भावना से पूर्ण थे। जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट में अध्ययन के दौरान वे कक्षा के पाठ्यक्रमों के बजाय प्राचीन कलाचार्यों के  चित्रों से स्वयं सीखना शुरू कर दिया । कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित होने और साम्यवादी होने के कारण उन्हें 1943 में कला विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रभाव में उन्होंने सामाजिक चेतना के विषयाधारित चित्र जैसे किसानों, मजदूरों, भिखारियों, और पेशेवर औरतों के चित्र बनाया करते। आक्रोशित और आक्रामक होकर उन्होंने असंख्य चित्र बनाए  जिनके कारण उनपर अश्लीलता का आरोप लगा लेकिन सिद्ध नहीं हो पाया। 1949 में बम्बई आर्ट सोसाइटी के सैलून में आर्टिस्ट एड फंड के सहयोग से उन्होंने अपने चित्रों की प्रदर्शनी आयोजित की और चित्र बेचने से उन्हें जो राशि मिली उसे लेकर 22 जुलाई 1949 में लंदन के लिए रवाना हो गए। उनकी पत्नी का नाम मारिया था।

सूजा के चित्र आकृति मूलक हैं जो गोवा के जीवन और बम्बई के शहरी जीवन पर आधारित हैं। उनके मुख्य विषय हैं स्त्रियां, स्थिर जीवन, तथा व्यक्ति चित्र। उन्होंने अपनी कला में सदैव विद्रोह का स्वर , लालच , अकाल ; बलात्कार, युद्ध, मृत्यु तथा धर्म की आड़ में चलने वाले अनाचारों के प्रति आक्रोश का स्वर । चित्रण में उन्होंने कला की शुद्धता और सभी नियमों की अवहेलना की। इसके बावजूद आज उनके चित्र बहुत महंगे हैं और पसंद किये जाते हैं।

सदानंद बाकरे ( जन्म 10 नवम्बर 1920-मृत्यु 18 दिसम्बर 2007 ) सूजा के समान ही विद्रोही प्रवृत्ति के थे। वह आरंभ से ही ब्रिटिश व यूरोपीय परम्परागत शिक्षा पद्धति के विरूद्ध थे। शुरूआत में वे अपनी मूर्तियों में शक्तिशाली एवं कर्मठ यथार्थवादी थे।

उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों की उत्कृष्ट व्यक्ति शिल्प सृजित किया जिनमें सर कासव जी जहांगीर , मुल्कराज आनंद, कुमारी नारीलवाला आदि के हैं।

प्रगतिशील कला समूह के अन्य कलाकारों में बी.एस. गायतोंडे और अकबर पद्मसी भी थे। प्रगतिशील कला समूह की चित्र प्रदर्शनी बड़ौदा, अहमदाबाद आदि शहरों में भी हुई। लेकिन सूजा के रवाना होने से इस कला समूह को गहरी क्षति हुई।

1950 में प्रसिद्ध कलकत्ता ग्रुप और पैग की संयुक्त प्रदर्शनी बम्बई में आयोजित की गई। जो काफी चर्चित रहा। लेकिन इस प्रदर्शनी के बाद 1950 में ही फ्रांसीसी छात्रवृत्ति मिलने पर रजा पेरिस चले गये पीछे पीछे सदानंद बाकरे भी लंदन में भाग्य आजमाने के लिए रवाना हो गये। जिससे प्रगतिशील कला समूह के बिखरने लगा।

6 दिसम्बर सन् 1952 में बम्बई आर्ट सोसाइटी सेलो द्वारा रेंपोर्ट रोड पर पैग की अंतिम प्रदर्शनी हुई। इस बार कृष्ण खन्ना ने पैग के लिए कैटलाग में लिखा।

हुसैन जो काफी प्रसिद्धि पा चुके थे , सन 1953 में विदेश यात्रा पर निकल पड़े । इसके महत्वपूर्ण कलाकारों के विदेश चले जाने से प्रगतिशील कला समूह निष्क्रिय हो गया ।

'प्रगतिशील कला समूह के कलाकारों ने स्वतंत्रता उपरांत आधुनिक भारतीय कला के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इन कलाकारों ने देश की कला को राष्ट्रीय दायरे से बाहर निकाला और पाश्चात्य कला की तकनीक एवं अभिव्यक्ति के समानांतर कला को अंतर्राष्ट्रीयतावाद से पूर्णतया जोड़ दिया। कला को नये आयाम की ओर अग्रसर करने में पैग ने एक पहलकदमी की थी।'  (साभार: भारतीय चित्रकला का विकास,  प्रकाशन वर्ष 2019 )

(लेखिका डॉ. मंजु प्रसाद एक चित्रकार हैं। आप इन दिनों लखनऊ में रहकर पेंटिंग के अलावा ‘हिन्दी में कला लेखन’ क्षेत्र में सक्रिय हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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