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सावधान! संविधान पर हावी होता मनु विधान

बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर ने 25 दिसंबर, 1927 को मनुस्मृति जलाई थी, लेकिन आज उन्हीं के बनाए संविधान पर मनुविधान हावी होता जा रहा है। एक विवेचन--
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राजस्थान हाईकोर्ट परिसर में लगी मनु की मूर्ति। कई संगठनों ने इसे तुरंत हटाने की मांग की है।

 

मनुस्मृति किस तरह से हमारे संविधान की धज्जियाँ उड़ा रही है इसकी ताज़ा मिसाल अयोध्या के स्वघोषित जगद गुरु परमहंस आचार्य हैं, जो पठान फिल्म का पोस्टर जलाते हुए कहते हैं कि इस फिल्म में भगवा की बेइज्जती की गई है। इससे हिन्दुओं की भावनाएं आहत हुई हैं। इसलिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अभिनेता शाहरुख खान को जिन्दा जलाने की धमकी देते हैं और यह ऐलान करते हैं कि कोई सनातनी शाहरुख खान को जिन्दा जला दे तो वे उसके परिवार की आर्थिक सहायता करेंगे। उन्होंने मीडिया के सामने तीन खानों आमिर खान, सलमान खान और शाहरुख खान के मृत्युदंड की घोषणा की है।

परमहंस आचार्य के इस गैर कानूनी वक्तव्य पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई है। जबकि हम सब जानते हैं कि इस तरह का वक्तव्य न केवल गैर कानूनी है बल्कि अमानवीय भी है। इससे पता चलता है कि मनुस्मृति किस तरह संविधान पर हावी हो रही है। और यह सिर्फ दलित और महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि पूरे भारतीय समाज के लिए कितनी खतरनाक है। यही सोच बिलकीस बानो के बलात्कारियों को संस्कारी ब्राहमण बताती है। सरकारी उपक्रमों का निजीकरण कर और अन्य विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपना कर आरक्षण को ख़त्म करती है। ये स्थिति 2022 की है। आज भी राजस्थान के हाई कोर्ट में मनु की मूर्ति विराजमान है। यह किस मानसिकता का परिचायक है।

हाल ही में (12 दिसंबर 2022) उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के वजीरगंज में एक शादी समारोह में थाली छू लेना मात्र एक दलित का इतना बड़ा गुनाह हो गया कि न केवल उसे जाति सूचक शब्दों से अपमानित किया गया बल्कि उसकी बुरी तरह पिटाई की गयी। ये छुआछूत का उदाहरण नहीं तो और क्या है।

राष्ट्रीय दलित मानव अधिकार अभियान (NCDHR) का ट्वीट दर्शाता है कि गुजरात के वड़ोदरा में एक दलित लड़के को एक लड़की के साथ बैठने की सज़ा में सात कथित उच्च जाति के लड़के उसकी बेल्टों से बुरी तरह पिटाई कर के देते हैं। वायरल हुए एक वीडियो में इसे देखा जा सकता है। दबंग जातियों की तानाशाही की मिसाल है यह।

इस देश में डिलीवरी बॉय से उसकी जाति जानने पर उससे खाना नहीं लिया जाता बल्कि यह पता लगने पर कि वह दलित है उसके मुंह पर थूका जाता है। और यह इसी साल 2022 में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में होता है।

जब वाराणसी में महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ में कोई दलित गेस्ट लेक्चरर नव रात्रि के दौरान दलित स्त्रियों से यह कहता है कि यदि महिलाएं इन दिनों में नवरात्रि के व्रत न रखकर संविधान पढ़ें और बाबा साहेब का हिन्दू कोड बिल पढ़ें तो उनका जीवन गुलामी से मुक्त हो जाएगा। वैज्ञानिक सोच की वकालत करने वाले इस लेक्चरर का न केवल बहिष्कार किया जाता है बल्कि उनका कॉलेज में प्रवेश निषेध हो जाता है।

आरोप है कि राजस्थान में 13 अगस्त 2022 को दलित छात्र इंद्र कुमार मेघवाल को सिर्फ इस जुर्म में अपनी जान गंवानी पड़ी कि उसने प्यास लगाने पर सवर्ण अध्यापक के घड़े से पानी पी लिया था। 18 मार्च 2022 को राजस्थान में ही जितेंद्रपाल मेघवाल की सवर्णों की तरह मूंछ रखने पर हत्या कर दी जाती है। सोचने वाली बात यह है कि यह सब किस विधान के अंतर्गत किया जाता है।

देश की राजधानी दिल्ली में दलित उत्पीड़न की घटनाएं होती हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कॉलेज में एक दलित महिला एसोसिएट प्रोफेसर को सवर्ण महिला प्रोफेसर द्वारा सरेआम थप्पड़ मारने का आरोप है। दलित महिला प्रोफेसर का कसूर यह बताया जा रहा है कि उसने मीटिंग मिनट पर बिना पढ़े हस्ताक्षर नहीं किए थे। इससे पहले भी दलित प्रोफेसर और सवर्ण प्रोफेसर की कॉलेज में आंबेडकर का चित्र लगाने को लेकर झड़प हो चुकी थी। दलित महिला सिर्फ एसोसिएट प्रोफेसर ही नहीं बल्कि अपने विभाग की टीचर इंचार्ज भी हैं। दुखद है कि राजधानी के उच्च शिक्षा संस्थान में जब यह हाल है तो अन्य जगह के हालात की कल्पना की जा सकती है।

उपरोक्त घटना वर्चस्वशाली दबंग सवर्णों द्वारा दलितों को यही सन्देश देती है कि जो भी कहा जाए चुपचाप मानो, जहां भी हस्ताक्षर करने को कहा जाए, कर दो, मुंह खोलोगे, नियम से चलने की बात कहोगे, तो थप्पड़ खाओगे। क्या ये तानाशाही, जातिवादी, फासीवादी मानसिकता नहीं है? ये थप्पड़ सिर्फ एक दलित प्रोफेसर के ही नहीं बल्कि दलित अस्मिता के गाल पर भी लगा है।

शिक्षा का भगवाकरण

शिक्षा हर इंसान की बुनियादी जरूरत है। यही वजह है कि माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाने की कोशिश करते हैं। पर दिक्कत यह है कि शिक्षा के पाठ्यक्रम में ही गड़बड़ हो तो माता-पिता क्या कर सकते हैं। अभी कुछ दिन पहले खबर आई कि गुजरात में छठीं से बारहवीं तक के पाठ्यक्रम में भगवद गीता को शामिल किया जाएगा। आज का युग तकनीक का युग है। विज्ञान का युग है। ऐसे में होना तो ये चाहिए कि हमारे बच्चों को वैज्ञानिक शिक्षा मिले पर हो इसका उल्टा रहा है। उन्हें एक धर्म विशेष की शिक्षा दी जा रही है वह भी इस देश में जहां देश का कोई धर्म नहीं है। संविधान में धर्म निरपेक्ष शब्द का उल्लेख है।

दुनिया जहां विज्ञान और तकनीक के सहारे आगे बढ़ रही है वहीं हमारा देश पुराने समय की ओर लौट रहा है। दिल्ली के सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में छठी –सातवीं के बच्चों को “संक्षिप्त रामायण” और “संक्षिप्त महाभारत” पढाई जाती है। इन पौराणिक ग्रंथों में अवैज्ञानिक बातों की भरमार है। यहां ऋषि- मुनियों द्वारा दी जाने वाली खीर से महिलाएं गर्भवती हो जाती हैं। हनुमान जी सूरज को अपने मुंह में रख लेते हैं। हिंदी की पुस्तक में बच्चों को पढ़ाया जाता है कि गंगा शिव जी के जटा से निकलती है वहीं भूगोल में पढ़ाया जाता है कि गंगा का उदगम स्थल हिमालय की गंगोत्री है। अब बच्चे कंफ्यूज हो जाते हैं। परिणाम यह होता है कि हमारे देश के पढ़े-लिखे युवक-युवतियां भी अन्धविश्वासी होते हैं।

सोचने वाली बात यह है कि इस देश में हिन्दुओं के अलावा मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध , जैन आदि अनेक धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। सबकी अपनी-आपनी सभ्यता संस्कृति होती है पर जब भारतीय संस्कृति की बात होती है तो सिर्फ हिन्दू संस्कृति का ही बखान किया जाता है।

बाबा साहेब ने क्यों जलाई थी मनुस्मृति

जरा सोचिए, मनुवाद आपको कैसा इंसान बनाता है। यह आपको दम्भी, अक्खड़ और मिथ्याभिमानी बनाता है। आपको इंसान, इंसान में भेदभाव करना सिखाता है। दलितों और स्त्रियों का उत्पीड़न और शोषण करना सिखाता है। कुल मिलकर आपको अमानवीय बनाता है। बताइए, ऐसे मनुवाद पर कैसे गर्व किया जा सकता है। बाबा साहेब ने 25 दिसम्बर 1927 में मनुस्मृति को अकारण नहीं जलाया था।

जब हम धर्म शब्द का उच्चारण करते हैं, इस शब्द में पवित्रता और मानव कल्याण की भावना ध्वनित होती है। पर जो धर्म एक इंसान को श्रेष्ठ और दूसरे को नीच बताए, वह धर्म कैसे हो सकता है। जो धर्म, जातियों की ऊंच-नीच पर आधारित हो, उसे धर्म कैसे कहा जा सकता है। यह दुनिया स्त्री और पुरुष दोनों से मिलकर बनी है। दोनों का बराबर का महत्व है। जो धर्म पुरुष को श्रेष्ठ और स्त्री को नीचा समझे क्या उसे धर्म कहा जा सकता है। जो धर्मग्रंथ स्त्री-पुरुष, इंसान-इंसान में भेदभाव करें, उन पर अत्याचार करने को प्रेरित करें, उन्हें धर्मग्रंथ भी कैसे कहा जा सकता है।

आज समय की मांग है कि हम इस तरह की मानसिकता का परित्याग करें और अपने अन्दर मानवीय मूल्यों का विकास करें। हमारे यहां ही “वसुधैव कुटुम्बकम” की बात कही जाती है। यानी पूरा विश्व एक परिवार है। जहां हम पूरे विश्व को परिवार समझते हैं फिर अपने ही परिवार पर अत्याचार कैसे कर सकते हैं। परिवार के प्रति तो प्रेम, सद्भाव और आदर-सम्मान की भावना होनी चाहिए। जब हम इंसानियत को, मानवता को तवज्जो देने लगते हैं। हर मानव की मानवीय गरिमा का आदर करने लगते हैं। उनके हित-कल्याण के कार्य करने लगते हैं। यही कर्म श्रेष्ठ धर्म होता है। और ये सब मानवीय मूल्य हमारे संविधान में निहित हैं। इसलिए मनुवादी होने की बजाय संविधानवादी होने में ही समझदारी है। निष्कर्ष आज के समय में मनुवादी मानसिकता को बदलना ही श्रेयस्कर है।

क्या आज जलाई जा सकती है मनुस्मृति?

आज हमारे संविधान पर मनुविधान हावी होता जा रहा है। इस बात की तस्दीक इस से की जा सकती है कि बाबा साहेब ने उस जमाने में जलाई थी, क्या आज जलाई जा सकती है मनुस्मृति? इस बात की चर्चा मात्र से मनुवादियों की धार्मिक आस्था को चोट पहुंचेगी उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हो जाएंगी। वे मनुस्मृति जलाने वालों के खिलाफ फतवा जारी कर देंगे। जिस तरह आम आदमी पार्टी के पूर्व मंत्री राजेंद्र पाल गौतम का, बाबा साहेब की 22 प्रतिज्ञाओं को अपनाने पर, सिर काटने का फतवा जारी किया गया था। मनुस्मृति जलाने वालों की सोच को देशद्रोह माना जाएगा और उन्हें सलाखों के पीछे भेज दिया जाएगा। आज हम देख ही रहे हैं कि दलितों को अपनी मर्जी से अपना धर्म बदलने की भी आजादी नहीं है। ऐसे में चिंतनीय यह है कि मनुस्मृति जो दलितों और महिलाओं को अपना गुलाम बनाने की सोच विकसित करती है, दूसरे सम्प्रदाय के लोगों से नफ़रत करने के लिए प्रेरित करती है, क्या इसे अप्रसांगिक सिद्ध नहीं कर दिया जाना चाहिए?

(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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