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बीएचयू : पीएम मोदी के वाराणसी दौरे पर पूरे दिन नज़रबंद रहे छात्र नेता, शासन-प्रशासन पर लगाया कायर होने का आरोप!

बीएचयू एनएसयूआई के अध्यक्ष के मुताबिक "लोकतांत्रिक तरीक़े से सवाल पूछने वाले छात्रों को हाउस अरेस्ट करना दिखाता है कि शासन-प्रशासन कितना गैर लोकतांत्रिक हो चुका है।"
BHU

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार, 7 जुलाई को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के दौरे पर थे। इस दौरान उन्होंने काशी के लोगों की तारीफ करते हुए कहा कि 'अब जे भी बनारस में आइ, खुश होके जाई।' हालांकि ये विडंबना ही रही कि 'देश के प्रधान सेवक' के आगमन पर उसी काशी के सबसे प्रतितिष्ठत विश्वविद्यालय काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र नेता राजीव नयन को पुलिस प्रशासन द्वारा पूरे दिन उनके हॉस्टल के कमरे में नज़रबंद कर दिया गया और पीएम के बनारस से विदा होने के बाद ही उन्हें भी आज़ाद किया गया।

बता दें कि राजीव नयन बीएचयू एनएसयूआई के अध्यक्ष हैं और बीते लंबे समय से शासन-प्रशासन के 'तानाशाही' रवैए के खिलाफ आवाज़ उठाते रहे हैंं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से ठीक पहले 6 तारीख को भी एनएसयूआई ने एक पत्र के माध्यम से पीएम मोदी से कई सवाल पूछे थे, जिसमें बीएचयू में चल रही कथित अव्यवस्था, भ्रष्टाचार और जलते मणिपुर संबंधी चार सवाल थे, जिस पर छात्र अपने प्रधानमंत्री से जवाब चाह रहे थे।

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पीएम मोदी से किए थे कई सवाल

नज़रबंद बीएचयू एनएसयूआई के अध्यक्ष राजीव नयन ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि बीते कुछ समय से बीएचयू में बहुत कुछ गड़बड़ी चल रही है। गांव देहात की पृष्ठभूमि से आने वाले गरीब आदिवासी छात्रों को काउंसलिंग रजिस्ट्रेशन के नाम पर खुली लूट के जरिए शिक्षा के अधिकार से क्यों वंचित किया जा रहा है। लाइब्रेरी में किताबों की कटौती के जरिए छात्रों को बौद्धिक रूप से खोखला बनाने की कोशिश की जा रही है और हाशिए पर खड़े इस देश के छात्रों को बेतहाशा फीस वृद्धि की मार झेलनी पड़ रही है। ऐसे में क्या अपने ही प्रधानमंत्री, जो हमारे सांसद भी हैं, उनसे वाजिब सवाल करना कोई अपराध है?

राजीव ने आगे बताया कि सुबह तड़के की उनके हॉस्टल कमरे के बाहर औऱ अंदर पुलिस तैनात हो गई। उनके कई बार पूछे जाने पर भी उन्हें इसका कारण नहीं बताया गया, नाही कोई प्रशासन का लिखित आदेश ही दिखाया गया। शुरुआत में वो कुछ लोगों से बात करने में समर्थ थे, लेकिन बाद में पुलिस ने उस पर भी पाबंदी लगानी शुरू कर दी। जैसे-जैसे दिन बीता उन पर सख्ती भी बढ़ती गई और उन्हें एक तरीके से पुलिस घेराबंदी के बीच कैद कर दिया गया।

हालांकि राजीव का कहना है कि उनके हौंसले अभी भी बुलंद हैं और वो किसी से डरने वाले नहीं हैं। उनका काम ही छात्रहित और देशहित के मुद्दों को उठाना है, जो वो आगे भी उठाते रहेंगे। राजीव साफ शब्दों में सवाल करते हैं कि महीनों से हमारे ही देश का एक अभिन्न अंग मणिपुर जल रहा है, मोदी जी, आपको चैन की नींद कैसे आ पाती है? क्या ये संभव है कि घर के एक कमरे में लाशों का अंबार लगा हो, हिंसा हो रही हो और घर का मुखिया दूसरे कमरे में उत्सव मनाए और फिर कहीं घूमने निकल जाए? मणिपुर से लोगों की जिम्मेदारी किसकी है?

"शासन-प्रशासन कायर और ग़ैर लोकतांत्रिक हो चुका है!"

राजीव के मुताबिक लोकतांत्रिक तरीके से सवाल पूछने वाले छात्रों को हाउस अरेस्ट करना दिखाता है कि शासन-प्रशासन कितना कायर और गैर लोकतांत्रिक हो चुका है। हम पढ़ने और लोकतांत्रिक लड़ाई लड़ने दोनो में विश्वास करने वाले गांधीवादी छात्र हैं, हम तो चाहते हैं कि आपकी ये पुलिस भी किताबों को पढ़े और बौद्धिक रूप से समृद्ध बने, इसीलिए हमने हाउस अरेस्ट करने आए यूपी पुलिस के सिपाही को भी गांधी की किताबें पढ़ने को दी हैं, ये हमारी संस्कृति है।

गौरतलब है कि बीते कुछ समय से छात्र लगातार बीएचयू प्रशासन के 'तानाशाही' रवैए को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। फिर वो गरीब बच्चों के स्कॉलरशीप का मसला हो या विश्वविद्यालय परिसर में अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करने के लिए प्रशासन से अनुमति लेने का। हाल के दिनों में कई प्रशानिक फैसलों के खिलाफ भी छात्रों की नाराज़गी देखने को मिली है, जिसमें उनके बोलने और आवाज़ उठाने के अधिकार के साथ ही शिक्षा से जुड़े कई मसलों को भी सीमित करने की कोशिश को लेकर कोई फरमान जारी हुआ है।

बीएचयू प्रशासन के 'तानाशाही' रवैया

बीएचयू के पूर्व छात्र राणा रोहित बताते हैं कि बीते साल आखिर में प्रशासन ने बीपीएल बच्चों के लिए स्कॉलरशीप की घोषणा की, जो अच्छी बात है लेकिन साथ ही ये शर्त भी रख दी कि ये छात्रवृत्ति केवल उन्हीं छात्रों को मिलेगी, जो किसी तरह के प्रदर्शन में शामिल नहीं होगे। अब ऐसे में कोई छात्र कैसे अपने लिए आवाज़ उठाएगा। ये साफ-साफ छात्रों के अधिकारों को सिमित करना है, उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिश है।

राणा रोहित ये भी कहते हैं कि विश्विद्यालय के नियम अनुसार किसी भी प्रदर्शन के लिए अब प्रशासन की अनुमति अनिवार्य है, लेकिन यहां ये सवाल उठता है कि क्या जो प्रदर्शन प्रशासन के ही खिलाफ है, प्रशासन उसके लिए अनुमति देगा। ये सब सुनयोजित तरीके से छात्रों के अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन है, ताकि कोई प्रशासन के खिलाफ न जा सके।

बीएचयू के कई छात्रों का कहना है कि जहां लाइब्रेरी में पहले हर साल 5 हजार से अधिक किताबें आती थीं, वहीं अब महज़ इसे 2 हज़ार तक सीमित किया जा रहा है। बीएचयू जैसे परिसर में जहां हज़ारों की संख्या में पूर्व सैनिक अपनी सेवाएं दे रहे हैं, वहां प्रॉक्टोरियल बोर्ड में मौजूद भ्रष्ट और बेइमान उच्च अधइकारियों की मिली भगत से सिर्फ दो सालों में 51 बार से अधिक विश्वविद्यालय की संपत्ति चोरी की गई। बीएचयू में रिजल्ट से पहले ही काउंसलिंग और रेजिस्ट्रेशन के नाम पर 700 रुपए वसूले जा रहे हैं, जो खुलेआम लूट है। ऐसे में जाहिर है इन मुद्दों सहित तमाम मामलों पर विश्वविद्यालय में आए दिन छात्र और प्रशासन के बीच तनातनी नज़र आती है, जो छात्र प्रदर्शन के माध्यम से ही आवाज़ उठाते हैं।

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