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भारत माता की जय और भारतीय राष्ट्रवाद

भारत को धार्मिक संस्कृति के ईर्द गिर्द निर्माण नहीं किया गया जैसा कि हिंदू राष्ट्रवादी हमें यकीन दिलाने की कोशिश करते हैं।
भारत माता की जय और भारतीय राष्ट्रवाद

ज़्यादातर राजनीतिक अवधारणाओं की तरह राष्ट्रवाद भी स्थिर नहीं होता। यह बदलते राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से बदलता रहता है और इसकी अभिव्यक्ति के कई आयाम होते हैं। राष्ट्रवाद की यात्रा बुहत पुरानी है। राज्य इसका इस्तेमाल लोगों और दूसरे देशों से शक्ति-संबंधों के लिए करता है।

भारत में पिछले कुछ सालों में राज्य की प्रवृत्ति लगातार बदल रही है। यह प्रवृत्ति इतनी बदल चुकी है कि राष्ट्रवाद का मतलब भी बदल गया है। चुनावों में हिंदू राष्ट्रवाद पर आधारित पार्टी बीजेपी को जबसे सत्ता मिली है, तबसे नीतियों में इतना बदलाव आया है कि राष्ट्रवाद का मतलब और इसका इस्तेमाल भी पूरी तरह बदल गया है। खासकर अल्पसंख्यक समुदाय के लिए यह नीतियां साफ समझ में आती है। इसी तरह मानवाधिकार की रक्षा करने वालों और उदारवादियों के लिए भी राष्ट्रवाद का इस्तेमाल बदला हुआ नज़र आता है।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस पर खूब प्रहार किया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद और भारत माता की जय के नारे का गलत इस्तेमाल हो रहा है। इसके ज़रिए भारत के एक ''उग्र और भावनात्मक'' नज़रिए को गढ़ा जा रहा है, जिसमें देश के लाखों लोग शामिल नहीं हैं। उन्होंने यह बातें ''हू इज़ भारत माता'' किताब के विमोचन के दौरान कहीं। यह किताब पुरुषोत्तम अग्रवाल ने संपादित किया है और राधाकृष्ण प्रकाशन ने प्रकाशित की है। इस किताब में पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के लेखन से कुछ अंशों का संपादन है। इसमें अहम लोगों द्वारा नेहरू के योगदान के विश्लेषण को भी शामिल किया गया है।

मनमोहन सिंह ने यह भी कहा, ''एक अनुकरणीय तरीके से शासन करते हुए नेहरू ने आधुनिक भारत के विश्वविद्यालयों और सांस्कृतिक संस्थानों की नींव रखी। लेकिन नेहरू के नेतृत्व के हिसाब से स्वतंत्र भारत वैसा कभी नहीं बनना चाहिए था, जैसा आज हो गया है।''

मौजूदा वक़्त में मनमोहन सिंह की बात काफी अहम है, क्योंकि हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा सभी समस्याओं के लिए नेहरू को जिम्मेदार बताते हुए, उनका लगातार अपमान किया जा रहा है। उनके किरदार को नीचा दिखाया जा रहा है। इसके लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल का ‘गुणगान’ किया जाता है। मनमोहन सिंह का यह कथन इसलिए भी अहम है, क्योंकि इससे हमें पता चलता है कि नेहरू कैसा भारत चाहते थे।

जैसे ही मनमोहन सिंह ने बीजेपी और उसकी सोच के लोगों द्वारा अपनाए जा रहे राष्ट्रवाद की आलोचना की, हिंदू राष्ट्रवादियों ने उनपर हमले शुरू कर दिए। हिंदू राष्ट्रवादियों ने मनमोहन सिंह पर जेएनयू और जामिया मिलिया इस्लामिया में भारत विरोधी गतिविधियों के समर्थन का आरोप लगाया। हिंदू राष्ट्रवादियों ने पूछा कि क्या मनमोहन सिंह, शशि थरूर और मणिशंकर अय्यर की तरह के राष्ट्रवाद का समर्थन करते हैं, जो शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन को लगातार बढ़ावा दे रहे हैं। हिंदू राष्ट्रवादियों ने पूछा कि क्या मनमोहन सिंह जेएनयू या जामिया में जारी देश विरोधी प्रदर्शनों का समर्थन करते हैं?

उनके मुताबिक़ कांग्रेस पार्टी में बिल्कुल राष्ट्रवाद नहीं है। इस संबंध में शत्रुध्न सिन्हा का उदाहरण भी दिया जा रहा है। जिन्होंने बीजेपी के साथ लंबी पारी खेलने के बाद पिछले साल कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी। हिंदू राष्ट्रवादी अपनी दलील में शत्रुध्न सिन्हा की पाकिस्तान यात्रा और वहां उनके पीएम इमरान खान से मुलाकात का जिक्र करते हैं।

मनमोहन सिंह के विरोध के लिए जो तर्क दिए जा रहे हैं, वे निहायत मनगढंत हैं। जिस चीज का जिक्र किया जा रहा है, वो भारतीय राष्ट्रवाद और उसके केंद्रीय मूल्यों का विरोध नहीं है। यह चीजें तो औपनिवेशिक संघर्ष के मूल में थी। भारत माता की जय का नारा एक वर्ग के लिए मान्य नहीं हो सकता, लेकिन इस किताब के शीर्षक में ही भारत माता है। हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा ‘’भारत माता की जय’’ के नारे को जिस तरीके से तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है, दरअसल मनमोहन सिंह उस चीज का विरोध कर रहे थे। आज भारत माता की जय के नारे का इस्तेमाल अल्पसंख्यकों और दूसरे धर्मों को लोगों को डराने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

भारतीय राष्ट्र जिन मूल्यों पर उभर कर आया, उन्हें संविधान का आधार बनाया गया। संविधान में बहुत सावधानी से ऐसी चीजों से बचा गया है, जो हिंदू या मुस्लिम राष्ट्रवाद से जुड़ी हों। इस तरह हमारे देश को ‘भारत’ कहा गया। हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक अहम मुद्दा था, इसलिए संविधान में इसे एक खास जगह दी गई। संविधान भारत की बहुलता का सम्मान करता है और ऐसे नियम बनाता है, जो किसी धर्मविशेष पर आधारित नहीं हों। सांस्कृतिक बहुलता को संविधान का मूल माना गया। साथ में पड़ोसियों और दूसरे देशों से अच्छे संबंधों का मूल्य भी संविधान में शामिल है।

जेएनयू, जामिया और एएमयू को आज बदनाम किया जा रहा है, क्योंकि ज़्यादातर संस्थान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भारतीय लोकतंत्र का मूल मानते हैं। यह संस्थान विचार और विमर्श से आज लहलहा रहे हैं, यह विमर्श उदारवाद पर आधारित है।

संविधान पड़ोसियों से अच्छे संबंधों की बात कहता है, लेकिन कई न्यूज चैनलों और मीडिया के एक हिस्से का काम ‘’पाक को लेकर डर’’ फैलाना है। यह चीज सत्ताधारी पार्टी के वैचारिक हिसाब से सही बैठती है। यह चैनल पत्रकारिता के बुनियादी उसूलों को तोड़ते हैं। पत्रकारिता में सत्ताधारी पार्टी की आलोचना एक अहम हिस्सा है ताकि सत्ता अपनी ज़मीन से जुड़ी रहे।

पिछले 6 सालों में दमघोंटू माहौल बना दिया गया है। प्रधानमंत्री अपनी यात्रा के बीच में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के साथ चाय पीने के लिए रुक जाते हैं, लेकिन एक कांग्रेस नेता का पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से बात करना देशद्रोह कहा जाता है। संविधान की प्रस्तावना पढ़ते हुए मार्च निकालने वाले छात्रों को देशद्रोही कहकर रोका जाता है। जबकि शाहीन बाग और जामिया के पास बंदूकें दिखाने वालों को खुले आम घूमने दिया जाता है।

राष्ट्रवाद को लोगों के बीच प्यार और सद्भावना फैलाने वाला होना चाहिए। इससे विकास का रास्ता खुलता है। फिलहाल राष्ट्रवाद बेहद आक्रामक है। इसने भाईचारे को नुकसान पहुंचाया है, जिससे भारतीय लोकतंत्र का एक आधार स्तंभ कमजोर हुआ है। नेहरू बताते हैं कि भारत माता हमारे पहाड़, नदियां या ज़मीन नहीं है। यह इस ज़मीन पर रहने वाले लोग हैं। हम किस राष्ट्रवाद का पालन करेंगे, इसका फैसला आजादी की लड़ाई में ही हो गया था।

जब देश के ज़्यादातर लोगों ने हिंदू या मुस्लिम राष्ट्रवाद के विचार को ख़ारिज कर गांधी, नेहरू, पटेल और मौलाना आज़ाद के विचार वाले राष्ट्रवाद को अपनाया था। इस राष्ट्रवाद में अल्पसंख्यक बराबरी के नागरिक होते हैं और कमजोर लोगों के लिए सकारात्मक कदम उठाए जाते हैं। आज के माहौल में तो हिंदू राष्ट्रवादी अपनी नीतियों के बारे में कोई आलोचना सुनना ही पसंद नहीं करते।

लेखक सोशल एक्टिविस्ट और कमेंटेटर हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

BMKJ and Contemporary Indian Nationalism

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