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बनारस: “कॉरिडोर बनने के बाद पुराने कारोबार की सांसे आख़िर क्यों थम रहीं?”

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत अपनी इस रिपोर्ट में बता रहे हैं कि आख़िर कैसे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के बनने के बाद आधुनिकता की इस चकाचौंध में बनारस की पुरानी विरासत और पुराना जमा-जमाया कारोबार ख़त्म होने की कगार पर है। पढ़े एक्सक्लूज़िव रिपोर्ट :
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बनारस के वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत अपनी इस रिपोर्ट में बता रहे हैं कि आख़िर कैसे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के बनने के बाद आधुनिकता की इस चकाचौंध में बनारस की पुरानी विरासत और पुराना जमा-जमाया कारोबार ख़त्म होने की कगार पर है। आरोप है कि कॉरिडोर बनने के बाद से इसने बड़ी संख्या में सैलानियों को आकर्षित किया है जिसके कारण फूल-माला, प्रसाद और खानपान की दुकाने ज़रूर फल-फूल रहीं हैं लेकिन इसके उलट यहां के पुराने कारोबार की सांसे उखड़ने सी लगी हैं। पढ़े एक्सक्लूज़िव रिपोर्ट :

साल दर साल चुनाव। वादे पर वादे। दशकों से बनारस की तरक्की के सपने दिखाए जा रहे हैं। पिछले कुछ सालों से बनारस की तरक्की को बदलाव और उम्मीदों की चाशनी में लपेटकर जिस तरह से पेश किया जा रहा है उससे इस शहर की सांसें उखड़ने लगी हैं। जाम और भीड़-भाड़ के चलते गोदौलिया से बुलानाला के बीच के दशकों पुराने कारोबार की धड़कने बंद होने लगी हैं। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के आसपास फूल-माला, पूजा-सामग्री के अलावा खाने-पीने के रेस्टोरेंट आदि को छोड़ दिया जाए तो समूचा कारोबार चौपट होता नज़र आ रहा है।

बनारस में गोदौलिया से चौक-बुलानाला तक का इलाका सिर्फ़ पूर्वांचल ही नहीं, पश्चिमी बिहार तक के लोगों की सबसे बड़ी थोक मंडी हुआ करती थी। पीएम नरेंद्र मोदी के सांसद बनने के बाद से दावा किया जा रहा है कि यहां ढांचागत सुविधाएं आसमानी छलांग लगा रही हैं और शहर स्मार्ट हो रहा है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद पर्यटकों का सैलाब उमड़ रहा है, लेकिन सच्चाई इससे उलट है। कॉरिडोर बनने से पहले जौनपुर, केराकत, गाजीपुर, मऊ, दोहरीघाट, चंदौली, सोनभद्र, मिर्जापुर, भदोही, बलिया, सलेमपुर, देवरिया आदि जिलों के व्यापारी इसी इलाके से थोक सामानों की ख़रीदारी किया करते थे। इन मंडियों में हर रोज़ करोड़ों का कारोबार होता था, लेकिन अब वहां सन्नाटा छाया रहता है।

काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप सालों पुरानी दुकानें - जनरल इलेक्ट्रिक, जोशी इलेक्ट्रिक, प्रशांत फैब्रिक, सिल्को साड़ी की दुकानें बंद हो गई हैं। मशहूर खन्ना रेडियो की दुकान बंद होने की कगार पर है। क़रीब अस्सी साल पुरानी वीआईपी सूटकेस बेचने वाली दुकान जर्नी फ्रेंड, ललित सेल्स एजेंसी, पांडेय इलेक्ट्रिक में अब सामान नहीं हालांकि फूल-माला और पूजा-पाठ के सामान ज़रूर बिक रहे हैं। इस इलाके का मशहूर आरके ग्लास बंद होने की कगार पर है। इसके मालिक सारा कारोबार समेटकर मंडुआडीह चले गए। स्पोट्स का सामान बेचने वाली राजपूत एजेंसी में ग्राहक नहीं दिखते। आनंज मेडिकल की वर्षों पुरानी दुकान नहीं चल पा रही है। विश्वनाथ मंदिर के गेट नंबर-4 पर अब फूल-माला, रेस्टोरेंट के अलावा कोई कारोबार बचा ही नहीं है।

मेडिकल स्टोर पर बिकता है फूल-माला

क्यों भाग रहे कारोबारी?

बनारस के जाने-माने कारोबारी केशव जालान ने अपने होलसेल कारोबार जालान सिंथेटिक्स को रोहनिया में खोल लिया है। इनकी रिटेल की दुकानें मुनाफे के बजाय घाटे में चल रही हैं। बांसफाटक इलाके में पतंजली स्टोर और स्टैंडर्ड वॉच की दुकान में अब फूल-माला बिक रहा है। इसी क्रम में मेहरोत्रा इलेक्ट्रिक बंद हो चुकी है। उर्वसी साड़ी सेंटर, अरविंद स्टोर और बनारस आर्ट्स पैलेस पर भी ताला लग गया है। रोमर वॉच की दुकान में अब घड़ी नहीं, मिठाइयां बिक रही हैं। भीड़-भाड़ के चलते धंधा नहीं चला तो इस प्रतिष्ठान के मालिक, मिठाई बेचने वाले एक दुकानदार को दुकान बेचकर चले गए। यह दुकान गुरुबाग के एक सिंधी परिवार की थी। हरी चश्मा प्रतिष्ठान के मालिक ने अपना कारोबार अब सिगरा में साजन सिनेमा के पास शिफ्ट कर लिया है।

घड़ी की दुकान पर फूल-माला

गोदरेज सामानों के बनारस के सबसे बड़े डिस्ट्रीब्यूटर - नालंदा एंड कंपनी - बंद होने की कगार पर पहुंच गई तो दुकान को बेचकर इस प्रतिष्ठान को भेलूपुर में शिफ्ट कर दिया गया। अब वहां रेस्टोरेंट खोल दिया गया है, जहां सैलानियों की भारी भीड़ दिखती है। इस इलाके के मशहूर सर्राफा कारोबारी यूएस ज्वैलर्स ने अपनी दुकान को फूल-माला बेचने वालों के हवाले कर दिया है। हालांकि मणिकर्णिका गेट से कोतवालपुरा स्थित हरी चश्मे की दुकान तक फूल-माला, प्रसाद आदि बेचने वालों के पास बड़ी संख्या में लोग आते हैं। इसके अलावा कचौड़ी-जलेबी, लस्सी, ठंडई, खानपान आदि दुकानों पर भारी भीड़ उमड़ रही है। बनारस के कई नामी कारोबारी और व्यवसायी मजबूरीवश इस व्यवसाय में उतरने के लिए बाध्य हो गए हैं।

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद गोदौलिया से चौक-बुलानाला के बीच के इलाके को ‘नो व्हीकिल ज़ोन’ घोषित कर दिया गया है। नतीजा, पुराने कारोबारियों का जमा-जमाया कारोबार बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है। जिन दुकानों में पहले में साड़ी, कपड़ा, रेडीमेड परिधान, सर्राफा, इलेक्ट्रॉनिक्स गुड्स, कागज़, स्टेशनरी, पुस्तक, कॉपी, रेशम, दवा, ब्रीफकेस, घरेलू सामान आदि की जमकर बिक्री हुआ करती थी, वहां अब सन्नाटा पसरा नज़र आता है। गोदौलिया चौक से लगायत बुलानाला तक कारोबार इस कदर ठंडा पड़ा कि पिछले डेढ़ बरस के अंदर दर्जनों बड़े और पुराने व्यवसायी अपना कारोबार समेटकर दूसरे इलाकों में चले गए। कुछ ने तो इस शहर को ही अलविदा कह दिया।

साड़ी की दुकान में सन्नाटा

बनारस के रेशम कटरा, ठठेरी बाज़ार, दालमंडी, नारियल बाज़ार, बांसफाटक, हड़हा सराय, दालमंडी, चौक से लगायत गोदौलिया तक के कारोबारियों का बुरा हाल है। पहले शादी-विवाह के बाबत लोग इसी इलाके में सामानों की ख़रीदारी करने आया करते थे। विश्वनाथ कॉरिडोर देखने के लिए देशभर से आ रही भारी भीड़ और गोदौलिया व बुलानाला के बीच वाहनों की आवाजाही बंद होने से ख़रीदारों एवं व्यापारियों ने इस इलाके में आना ही बंद कर दिया है।

शादी के कार्ड बेचने की ये थी मशहूर दुकान

"हमारी किस्मत अब फूल-माला के धंधे में सिमटकर रह गई"

सूटकेस बेच रहे एक कारोबारी ने कहा, "हुज़ूर..! काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद हम व्यापारी से माली बन गए हैं। पहले हमारी दुकानों में पैर रखने तक की जगह नहीं होती थी। ख़रीदारों का रेला लगा रहता था लेकिन अब हमारी किस्मत फूल-माला के धंधे में सिमटकर रह गई है। फूल-माला की दुकानें इतनी ज़्यादा खुल गई हैं कि दर्शनार्थियों को पकड़-पकड़कर लाना पड़ रहा है। अपने स्वाभिमान को बचाना चाहें तो हमें भूखों मरना पड़ेगा। समूचा परिवार सड़क पर आ जाएगा। हमारी लाचारी भी अजीब है। इस कदर ख़ौफ़ज़दा हैं कि हम चाहकर भी सरकार को दोष नहीं दे सकते। किसी को अपना दुखड़ा भी नहीं सुना सकते।"

काशी विश्वनाथ मंदिर इलाके के पत्रकार ऋषि झिंगरन सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं, "बनारस के जिस पुराने कारोबार से सरकार को भारी टैक्स मिलता था, उसका भट्ठा क्यों बैठाया जा रहा है।"

आगे वह कहते हैं, "आख़िर बनारस में यह विकास का कौन सा मॉडल पेश किया जा रहा है? दशकों पुराने जमे-जमाए प्रतिष्ठान और वो दुकानें बंद हो रही हैं जो हर साल लाखों-करोड़ों का कारोबार किया करती थीं। इस इलाके में पहले वन-वे था, लेकिन काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में भीड़ बढ़ने की वजह से अब पूरी तरह बंद कर दिया गया है, जिससे कारोबारियों की सांसें उखड़ती जा रही हैं। सरकार से कोई यह पूछने वाला नहीं है कि आख़िर एसएनडी और जीडीएस जैसे प्रतिष्ठान अपने कारोबार को रथयात्रा पर क्यों ले गए? सरदार पापड़, लाडली लस्सी, अग्रवाल कार्ड की दुकानों में अब सिर्फ़ फूल-माला ही क्यों बिक रहा है? हाल यह है कि इस इलाके में अब कोई कारोबार बचा ही नहीं है। पुराने बाज़ार को उजाड़कर फूल-माला, खानपान की दुकानों में क्यों तब्दील किया जा रहा है?”

पापड़ कम, फूल-माला ज्यादा बिकता है

वीवीआईपी कल्चर का बोलबाला?

बनारस के चौक इलाके में जिन कारोबारों का एक सुनहरा अतीत था, उसका वर्तमान आज अंधेरे में डूबा नज़र आता है। पैर में फैक्चर होने के बावजूद किसी तरह से पैदल चलकर सूटकेस ख़रीदने बांसफाटक पहुंचे मऊनाथ भंजन निवासी अफज़ल अहमद ने ‘न्यूज़क्लिक’ के लिए कहा, "मैदागिन से हम घिसटते हुए बांसफाटक पहुंचे और हमारा काफ़ी समय सिर्फ़ इसलिए बर्बाद हो गया, क्योंकि रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह दर्जन भर गाड़ियों के काफिले के साथ विश्वनाथ मंदिर की ओर आ रहे थे, जिस वजह से जाम लग गया। दिक्कत काशी विश्वनाथ कोरिडोर के बनने से नहीं, सत्तारूढ़ दल के नेताओं की धमा-चौकड़ी से है। नेताओं के अलावा पुलिस, प्रशासन, न्यायिक अधिकारियों और उनके रिश्तेदारों की गाड़ियों की आवाजाही पर कोई रोक-टोक नहीं है। हम कई सालों से इस इलाके में ख़रीदारी करते आ रहे थे। वीवीआईपी कल्चर के बढ़ने की वजह से व्यापारी भाग रहे हैं।"

बनारस के लोगों को याद है कि मई 2015 में अखिलेश सरकार ने मैदागिन-गोदौलिया मार्ग को ‘नो व्हीकल ज़ोन’ बनाने का ऐलान किया था। उस समय वाराणसी व्यापार मंडल से जुड़े व्यापारियों ने मैदागिन से ज़बरदस्त जुलूस निकाला और दुकानें भी बंद करा दी थी। वाराणसी व्यापार मंडल के संरक्षक मोहनलाल सरावगी और मंडल अध्यक्ष अजीत सिंह बग्गा की अगुवाई में मैदागिन, बुलानाला, चौक, बांसफाटक और गोदौलिया के अलावा रेशम कटरा, ठठेरी बाज़ार, दालमंडी, बांसफाटक तक की दुकानें बंद रहीं। आरोप है कि इस जुलूस में मुखर आवाज़ उठाने वाले लोग आज मौन हैं।

दशाश्वमेध इलाके में व्यापारियों के हितों के लिए मुखर आवाज़ उठाने वाले गणेश शंकर पांडेय कहते हैं, "बनारस व्यापार मंडल वाले भाजपा के पिछलग्गू हैं। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद टूरिस्ट से संबंधित कारोबार बढ़ा है, लेकिन बाक़ियों की सांसें थमती जा रही है। व्यापारी संगठनों के लोग सरकार का जयकारा लगाने में मगन है। गोदौलिया से बुलानाला तक ट्रैफिक बंद है। इस वक्त कोई यह सवाल नहीं पूछ रहा है कि आख़िर क्यों चौक और बांसफाटक इलाके के पंखा, घड़ी, इलेक्ट्रानिक, कपड़ा आदि के व्यापारी इलाका छोड़कर भाग रहे हैं? दिक्कत यह है कि कॉरिडोर में भीड़ का आंकड़ा गिनाने में मगन अफसरों के पास यह सोचने की फुर्सत ही नहीं है कि बनारस का एक बड़ा कारोबार रसातल में क्यों मिलता जा रहा है। यह स्थिति तब है जब डबल इंजन की सरकार यूपी के औद्योगिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए निवेशकों की चिरौरी करती नज़र आ रही है।"

"घर की मुर्गी दाल बराबर"

बनारस की औद्योगिक अर्थव्यवस्था में पारंपरिक हुनर और कारीगरी पर आधारित हथकरघा, जरदोजी, इत्र, पीतल, कांच, पॉटरी, ताले, जूते, लकड़ी के फर्नीचर और खिलौने से संबंधित उद्योगों की प्रधानता रही है।

इकोनॉमिक्स की जानकार प्रज्ञा सिंह कहती हैं, "जापान से अगर कोई एक हज़ार करोड़ रुपये का निवेशक आ जाए तो समूची सरकारी मशीनरी उसके स्वागत-सत्कार में जुट जाती है। तब सरकार की कोशिश होती है कि वह किसी भी तरह निवेश करे, कहीं और न जाने पाए। बनारस के उद्यमी सैकड़ों करोड़ का निवेश करें तो ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’ वाली कहावत चरितार्थ होती है। औद्योगिक विकास के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है-राजनीतिक बॉस, नौकरशाही और उद्योगपतियों के बीच लगातार संवाद। जो बाधाएं आ रही हैं, उनका रियल टाइम में समाधान हो। निवेशक को यह महसूस कराया जाए कि नौकरशाही और पूरा सिस्टम आपकी समस्याओं के समाधान के लिए है। सिर्फ़ बंदरगाह का ढांचा खड़ा करने और टेंट सिटी बना देने भर से कुछ नहीं होगा।"

प्रज्ञा कहती हैं, "वाराणसी में 70 के दशक में लगे रेल कारखाने के अलावा आज तक कोई मेगा इंडस्ट्री नहीं आई। सरकार चाहे जिसकी रही हो, नीतियां अच्छी मंशा से बनाई गईं पर, नीतियों को अमलीजामा पहनाने की स्थिति अच्छी नहीं रही। एक ओर सरकार विश्वनाथ मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का आंकड़ा गिनाने में मगन है, वहीं, बनारस के कारोबारियों की सुनी ही नहीं जा रही है। उनके सुझाव तक नहीं लिए जा रहे हैं। इन्वेस्टर्स मीट करके उद्योगपतियों से निवेश कराने में जुटी सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए व्यापारियों और कारोबारियों को नेताओं का पिछलग्गू बनना पड़ता हैं या फिर धक्के खाने पड़ते हैं। सरकारें बदल जाती हैं, मंत्री और नेता बदल जाते हैं, लेकिन अधिकारी नहीं बदलते। दरअसल, नौकरशाह, उद्यमियों को सरकारी चंगुल से बाहर नहीं जाने देना चाहते।"

वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में भीड़ जुटाकर सरकार ने पर्यटन से जुड़े व्यवसायियों को पंख तो दिया, लेकिन यहां के बाक़ी पुराने कारोबारियों को भगवान भरोसे छोड़ दिया। हड़हा सराय से दालमंडी तक का पूरा इलाका पश्चिमी बिहार और पूर्वांचल की सबसे बड़ी थोक मंडी रहा है, लेकिन इन इलाकों में व्यापारियों का आगमन लगभग ठप सा पड़ गया है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कॉरिडोर में आने वाले सैलानियों की बढ़ी भीड़। अब कोई भी कारोबारी, इस भीड़-भाड़ में आने के लिए तैयार नहीं है। इस वजह से यह सैकड़ों साल पुरानी मंडी अब दूसरे शहरों में शिफ्ट हो रही है, जिसका असर सीधे-सीधे बनारस के आर्थिक ढांचे पर पड़ रहा है। नई योजनाओं को लाने वाले लोगों को बनारस के मूल स्थापत्य चरित्र का ज्ञान ही नहीं है। पुरातन काशी अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष को ध्यान में रखकर बसाई गई थी। इसका प्रमाण है गंगा और काशी विश्वनाथ मंदिर जो धर्म और मोक्ष का केंद्र रहा, वही चौक से लेकर दालमंडी तक का इलाका अर्थ का केंद्र रहा है। इसकी बसावट और बनावट से छेड़छाड़ का सीधा असर बनारस के आर्थिक व सामाजिक ढांचे पर साफ़-साफ़ दिखने लगा है।"

वह आगे कहते हैं, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद वीवीआईपी की तादाद में ज़बरदस्त इज़ाफा हुआ है। मंदिर के गेट नंबर-4 से रोज़ाना बड़ी संख्या में वीआईपी दर्शन के लिए आते हैं। पुलिस प्रोटोकॉल की बात करें तो रोज़ाना इनकी तादाद 60 से 70 तक रहती है। प्रशासन की ओर से प्रतिदन 10 से 15 प्रोटोकॉल दर्शन कराए जाते हैं। इस दौरान मंदिर में बाक़ी श्रद्धालुओं के अलग उन्हें आसानी से स्पर्श दर्शन होते हैं।"

देसी पर्यटक बढ़े, विदेशी घट गए

बनारस आने वाले पर्यटकों से सरकार की कमाई कितनी बढ़ी है, इसका कोई पुख्ता आंकड़ा नहीं है। हालांकि पिछले पांच सालों में पर्यटकों की तादाद में कितना इज़ाफा हुआ है, इसका ब्यौरा मौजूद है। केंद्रीय पर्यटन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक़, "अक्टूबर महीने में देव-दीपावली और गंगा दशहरा आदि त्योहारों के चलते भीड़ ज़्यादा होती है। साल 2017 में यहां अक्टूबर महीने में ‘18 लाख 07 हज़ार 117 देसी' और ‘73 हज़ार 429 विदेशी' पर्यटक आए। अगले साल इसी महीने में ‘18 लाख17 हज़ार 810 देसी' और ‘77 हज़ार 209 विदेशी' पर्यटकों को सूचीबद्ध किया गया।

साल 2019 में अक्टूबर महीने में देसी पर्यटकों की तादाद ‘17 लाख 29 हज़ार 098' थी, लेकिन विदेशी पर्यटक घट गए। अक्टूबर में क़रीब ‘30 हज़ार' और नवंबर में ‘43 हज़ार' से ज़्यादा विदेशी पर्यटक आए। साल 2020 में कोरोना संकट के चलते पर्यटकों का ब्यौरा दर्ज नहीं किया जा सका। साल 2021 में अक्टूबर में क़रीब 'पौने चार लाख' और 'नवंबर' में 11.58 लाख से ज़्यादा देसी पर्यटक बनारस आए, जबकि विदेशी पर्यटकों की तादाद कम रही। साल 2022 के जुलाई महीने में 40 लाख से ज़्यादा देसी पर्यटक आए। इसके मुकाबले विदेशी पर्यटकों की संख्या 12.57 हज़ार रही।"

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय राय कहते हैं, "हम मानते हैं कि बनारस में देसी सैलानियों का बूम आया है, लेकिन उनमें ज़्यादातर ऐसे हैं जो आज आ रहे हैं और कल चले जा रहे हैं। अर्थव्यवस्था को फ़ायदा पहुंचाने वाले कारोबारी विश्वनाथ मंदिर के इलाके को छोड़कर चले जाएंगे इससे किसका और कितना भला होगा? बनारस में पहले विदेशी सैलानी आते थे तो कई-कई दिन रुकते थे। बनारस की गलियां, इमारतों का स्थापत्य और भारतीय संगीत का लुफ़्त उठाते थे। विदेशियों को बनारस की पांच हज़ार साल पुरानी सभ्यता खींच लाती थी। विदेशी पर्यटक यहां रुद्राक्ष की माला, पीतल के सामान, मूर्तियां, साड़ियां, खिलौना, हैंडिक्राफ्ट आदि खोजा करते थे, लेकिन अब उनका आना बंद हो गया है। नतीजा, बनारस में अब विदेशी करेंसी नहीं के बराबर आ रही है।"

वह आगे कहते हैं, "सुनियोजित तरीके से उठाए गए ज्ञानवापी-मंदिर विवाद, जाम और प्रदूषण से विदेशी सैलानियों का इस शहर से मोह भंग होता जा रहा है। इस शहर का जैसा विकास होना चाहिए, नहीं किया गया। बनारस को मेट्रो चाहिए, तो हवाई यातायात रोप-वे लाया जा रहा है। शायद हमारे हुक्मरान भूल गए हैं कि विदेशी सैनाली हमारी उस पुरातन संस्कृति का दीदार करने आते थे, जिसे वो तोड़कर नए मॉडल के रूप में पेश कर रहे हैं। नक्काशी वाले घर-मकान तोड़ दिए जा रहे हैं। पुरातन स्थापत्य और पक्के महाल की गलियों का वजूद मिटता जा रहा है।"

पूर्व विधायक अजय राय यह भी कहते हैं, "बनारस की गलियों का कारोबार भी उखड़ता जा रहा है। विदेशी सैलानी सिर्फ़ गलियां ही नहीं घूमते थे, सामान भी खरीदते थे। पहले यहां जो भीड़ आती थी वो यहां रुकती थी। वो सैलानी विश्वनाथ मंदिर, और विश्वनाथ गली देखने आते थे। टेंट सिटी हवा-हवाई हो गई है। समूचे पक्का महाल का स्ट्रक्चर डिस्टर्ब हो गया है। कई मकानों में सिर्फ़ इसलिए दरारें आ गईं, क्योंकि स्मार्ट सिटी के नाम पर गलियों के पिलर का काम करने वाले सालों पुराने मजबूत पत्थर उखाड़ दिए गए। उनकी जगह पतली पटिया लगा दी गईं जो जगह-जगह दरकती जा रही है। भाजपा सरकार ने जहां-जहां भी विकास का नया मॉडल पेश किया है, वह अनुपयोगी साबित हो गया। बनारस को क्योटो बनाने और गंगा को प्रदूषणमुक्त करने का दावा सिर्फ़ जुमला व ढोंग साबित हो रहा है।"

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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