गरमाने लगा बनारस: किसान आंदोलन के समर्थक छात्रों के खिलाफ FIR, सिंधोरा थाने पर प्रदर्शन
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों को रौंदे जाने की अमानवीय घटना के बाद बनारस सुलगने लगा है। इस घटना के विरोध में प्रदर्शन करने वाले छात्र-छात्राओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाने से आंदोलन के समर्थक गुस्से में हैं। 12 अक्टूबर की शाम काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के गेट पर बड़ी संख्या में जुटे किसानों ने कैंडल जलाकर शहीद किसानों को याद किया और भारी पुलिस फोर्स की मौजूदगी में अल्टीमेटम दिया कि अगर फर्जी रिपोर्ट वापस नहीं ली गईं तो समूचे पूर्वांचल में बड़े पैमाने पर आंदोलन-प्रदर्शन शुरू होगा। वाराणसी में कैंडल मार्च में वो सभी छात्र भी शामिल हुए जिन्हें परेशान करने के लिए पुलिस ने लंका थाने में एफआईआर दर्ज की है। इन्हीं आंदोलनकारी छात्रों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस कई दिनों से इनके ठिकानों पर छापेमारी कर रही थी। कैंडल मार्च रोकने के लिए कई दिनों से घेराबंदी कर रही बनारस पुलिस ने कई किसान नेताओं को भले ही हाउस अरेस्ट कर लिया, लेकिन आंदोलन-प्रदर्शन को नहीं रोक पाए।
लखीमपुर-खीरी में हुए किसान नरसंहार के बाद से किसान आंदोलन की लहर ने अब उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में भी जोर पकड़ लिया है। बीएचयू के छात्रों और किसानों ने 12 अक्टूबर को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लंका गेट पर कैंडल जलाकर शहीद किसानों को याद किया गया। साथ ही मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। वाराणसी पुलिस ने आंदोलनकारियों को मौन जुलूस निकालने से रोकने के लिए कई किसान नेताओं को हाउस अरेस्ट कर लिया और उन्हें परेशान किया। पुलिस ने 12 अक्टूबर को दोपहर में ही लंका इलाके को छावनी में तब्दील कर दिया था।
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बीएचयू के मुख्य गेट के बाहर सैकड़ों पुलिस के जवान तैनात किए गए थे। पुलिस की भारी नाकाबंदी के बावजूद बीएचयू के तमाम छात्र और किसान नेता लंका गेट पर पहुंच गए। आंदोनकारियों ने केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा 'टेनी' की बर्खास्तगी की मांग उठाई। आंदोलन में वह सभी छात्र भी शामिल हुए जिनके खिलाफ लंका थाना पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी।
लंका गेट पर पुलिस और आंदोलनकारी किसान नेताओं के बीच तीखी झड़पें हुईं। आंदोलनकारी रविदास गेट तक कैंडल मार्च निकालना चाहते थे, लेकिन भारी पुलिस फोर्स ने उन्हें आगे नहीं बढ़ने दिया। डिप्टी एसपी प्रवीण कुमार सिंह और संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े लोगों के बीच काफी देर तक जिरह चलती रही। आंदोलनकारियों ने पुलिस पर आरोप लगाया कि पुलिस जानबूझकर उन्हें परेशान कर रही है।
आंदोलन का नेतृत्व कर रहे अफलातून ने कहा कि उन्हें हाउस अरेस्ट करने के लिए पुलिस घर पर पहुंची, मगर वह उस समय मौजूद नहीं थे। पुलिस वालों ने उनके परिजनों और जरूरी अभिलेखों की तस्वीरें भी उतारीं। उनकी निजता का भी उलंघन किया। किसान आंदोलन के नाम बनारस पुलिस किसानों-मजदूरों और छात्रों के दमन पर उतारू है।”
पुलिस अफसरों के साथ गरमा-गरमी के बीच किसान नेता चौधरी राजेद्र सिंह, प्रो. महेश विक्रम, सुनील सहस्रबुद्धे, मिर्जा रिजवान बेग मौन जुलूस के साथ कैंडल मार्च निकलाने पर अड़ गए। आंदोलनकारियों ने कहा, “बीएचयू के छात्रों पर दर्ज की गई फर्जी एफआईआर को पुलिस तत्काल वापस ले और अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी और सही ढंग से करें। ऐसा न होने पर हम सभी लंका थाने का घेराव करेंगे।” कैंडल मार्च निकालने पहुंचे किसानों ने कहा, “जब तक मोदी सरकार काले कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती है, तब-तक हम आंदोलन जारी रखेंगे। किसानों-नवजवानों के आगे सरकार और सत्ता को नतमस्तक होना ही पड़ेगा।”
'क्षुब्ध हृदय है, बन्द जबान'
प्रदर्शन के दौरान आंदोलनकारी 'क्षुब्ध हृदय है, बन्द जबान' का बैनर लिए हुए थे। सभी के हाथों में लखीमपुर खीरी में शहीद पत्रकार और किसानों की तस्वीरें थीं। उनके पास अपनी बात कहने वाली कविताओं के बैनर भी थे। किसानों के कैंडल मार्च को रोकने के लिए भारी पुलिस फोर्स तैनात की गई थी। लंका, चितईपुर, रामनगर, भेलूपुर समेत कई थानों की पुलिस लाठी-डंडे और घेराबंदी के लिए रस्सी लेकर मौके पर मौजूद रही।
लखीमपुर खीरी में किसानों के संहार के खिलाफ हाथों में जली हुई मोमबत्तियां लेकर आंदोलनकारी छात्र और किसान अपने मनोभावों को व्यक्त कर रहे थे। पूरी तरह से शांतिपूर्ण इस प्रदर्शन के दौरान शहीदों की याद में क्रांति गीत गाए गए। दो मिनट मौन रहकर शहीद किसानों का नमन किया गया।
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बीएचयू के लंका गेट पर जैसे ही किसानों का आंदोलन खत्म हुआ, तभी इलाकाई डिप्टी एसपी प्रवीण कुमार सिंह, छात्रों और किसान नेताओं से उलझ गए। छात्रों का आरोप है, “डिप्टी एसपी ने उन्हें अल्टीमेटम दिया कि वह उन्हें इस लायक नहीं छोड़ेंगे कि दोबारा आंदोलन कर सकें।” आंदोलनकारियों ने पुलिस को चुनौती देते हुए कहा कि निर्दोष छात्रों के खिलाफ मामला तो दर्ज कर लिया गया है, लेकिन अगर उन्हें गिरफ्तार किया गया तो पूर्वांचल को आंदोलन की आंच में उबलने से कोई नहीं रोक सकेंगे। कार्यक्रम में महेश विक्रम सिंह, सुनील सहस्रबुद्धे, अरुण कुमार, प्रबाल सिंह, अजय राय, रामजी सिंह, शिवशंकर शास्त्री, काशीनाथ, आनंद यादव, रामजनम, युद्धेश, प्रज्ञा सिंह, आकांक्षा आजाद, शशांक, चौधरी राजेन्द्र, अफ़लातून, चंचल मुखर्जी, भुवाल यादव, रत्नेश सिंह, बेबी पटेल समेत तमाम आंदोलनकारी मौजूद थे।
हिरासत में लिए गए किसान नेता
दूसरी ओर, जब कई किसान नेताओं को अकारण हिरासत में ले लिया गया, तब बनारस के सिंधोरा बाजार में संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले ऐपवा और सभी वामदलों ने पुलिस के खिलाफ तब मोर्चा खोल दिया। पुलिस ने जिन किसानों को 12 अक्टूबर की सुबह हिरासत में लिया उनमें सीपीआई के जयशंकर, सीपीएम के नंदा शास्त्री और सीपीआई (एमएल) के अमरनाथ राजभर शामिल थे। सभी को थाने में जबरिया बैठाए जाने पर ऐपवा और वाम दलों ने संयुक्त रूप से बनारस के सिंधोरा बाजार में प्रतिरोध मार्च निकाला।
बाद में सिंधोरा थाने के सामने आयोजित सभा संबोधित करते हुए जनसभा का संचालन कर रहीं ऐपवा की राज्य सचिव कुसुम वर्मा ने कहा, “जब तक लखीमपुर नरसंहार के हत्यारे आशीष मिश्रा को कड़ी सजा और उनके मंत्री पिता अजय मिश्रा टेनी को बर्खास्त नहीं किया जाएगा, तब तक यूपी के अमनपसंद किसान-मजदूर आंदोलन करते रहेंगे।”
जनसभा में कृपा वर्मा, प्रो. निहार भट्टाचार्य, डॉ. नूर फतिमा, विभा वाही, साकेत, रूखसाना, अशोक, इनौस के प्रदेश उपाध्यक्ष कमलेश यादव ने संबोधित किया और बाद में मौन रखकर शहीद किसानों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
कैसे देश के दुश्मन हो गए किसान?
लखीमपुर की घटना के बाद से पूर्वांचल के किसानों में जबर्दस्त आक्रोश है। आलम यह है कि किसानों के सख्त रुख को देखते हुए पुलिस और सरकारी मशीनरी की नींद उड़ गई है। 12 अक्टूबर की सुबह बनारस के सारनाथ थाना क्षेत्र की सरायमोहाना पुलिस चौकी के दरोगा और सिपाहियों ने कामरेड लक्ष्मण वर्मा को हाउस अरेस्ट कर लिया। लक्ष्मण वर्मा ने पुलिस की घेराबंदी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल करते हुए कहा, “समझ में नहीं आ रहा है कि किसानों से मोदी-योगी सरकार क्यों डरी हुई है। हमने कभी किसी हिंसात्मक गतिविधि में हिस्सा नहीं लिया, फिर देश के दुश्मन कैसे हो गए? खेती-किसानी करने वाले लोग आखिर देश के लिए खतरा कैसे बन सकते हैं? मोदी के बनारस में क्या पुलिस के साये में शहीद किसानों को नमन करना पड़ेगा?”
आंदोलनों से गरम हो रहा बनारस
किसान आंदोलन को लेकर बनारस लगातार गरम होता जा रहा है। इसकी बड़ी वजह खुद पुलिस है। तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में आंदोलनकारी किसानों को रौंदे जाने की घटना हुई तो अगले दिन चार अक्टूबर की शाम बनारस के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर छात्र-छात्राओं का जत्था विरोध प्रदर्शन करने पहुंचा। इनकी तादाद बहुत कम थी। नारेबाजी और विरोध प्रदर्शन करने के बाद आंदोलनकारी छात्र लौट गए, लेकिन लंका थाना पुलिस ने उसी रात करीब 1.20 बजे छात्र नेता राज अभिषेक, भुवाल यादव और आकांक्षा आजाद आदि के खिलाफ धारा 188, 341 और उत्तर प्रदेश महामारी अधिनियम 15 (4) के तहत मामला एफआईआर दर्ज कर लिया।
इन छात्रों को गिरफ्तार करने के लिए लंका थाना पुलिस दबिश दे रही है। दीगर बात है कि पुलिस की नाकाबंदी के बावजूद ये सभी छात्र 12 अक्टूबर की शाम बीएचयू के मुख्य गेट पर आयोजित कैंडल मार्च में शामिल होने पहुंच गए। भगत सिंह छात्र मोर्चा से जुड़ीं आकांक्षा आजाद ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, “किसान आंदोलन में हमारा संगठन तभी से है जब से दिल्ली में संघर्ष तेज हुआ है। पुलिस ने महामारी कानून को आंदोलन के खिलाफ हथियार बना लिया है। पुलिसिया दमन के आगे हम न झुकने वाले हैं, न डरने वाले हैं।”
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किसानों के संहार के खिलाफ मशाल जुलूस निकाले जाने पर दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि राज अभिषेक, भुवाल यादव, नितिन कुमार और आकांक्षा आजाद समेत आठ-दस लोगों ने लंका स्थित मालवीय प्रवेश द्वार के सार्वजनिक रास्ते को अवरुद्ध कर धरना दिया और प्रदर्शन किया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने न तो मास्क पहना था और न ही सार्वजनिक दूरी का पालन किया। समझाने के बावजूद प्रदर्शनकारी जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे लगाते रहे।
पुलिस के मुताबिक प्रदर्शन के चलते जनता को आवागमन में काफी दिक्कतें आईं। छात्रों के खिलाफ लंका थाने के दरोगा गौरव उपाध्याय ने दर्ज कराई है। दिलचस्प बात यह है कि लंका थाने के जिन पुलिस अफसरों ने छात्रों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई है, वो 12 अक्टूबर के कैंडल मार्च के समय खुद बिना मास्क के आंदोलनकारी किसानों को नियंत्रित करने की कवायद में जुटे थे।
बलिया पहुंची सत्याग्रह पदयात्रा
चंपारण से बनारस तक निकाली गई किसान सत्याग्रह पदयात्रा 12 अक्टूबर को पूर्वांचल के बलिया जिले में प्रवेश कर गई। संयुक्त किसान मोर्चा ने किसानों के खिलाफ लाए गए तीनों काले कानूनों को रद्द कराने और एमएसपी की गारंटी देने की मांग को लेकर निकले किसानों ने करीब 200 किमी से ज्यादा दूरी पार कर ली। बलिया के फेफना के एक विद्यालय में रात्रि विश्राम करने के बाद 13 अक्टूबर की सुबह पदयात्रा रसड़ा के लिए रवाना हुई। पदयात्रा में शामिल किसान पीएम नरेंद्र मोदी से सवाल पूछ रहे हैं कि पढाई, कमाई, दवाई, महंगाई, उचित मूल्य जैसे जरूरी सवाल सत्ता में आने के बाद भी आपके एजेंडे में क्यों नहीं हैं?
पदयात्रा के संयोजक हिमांशु तिवारी ने कहा, “मोदी-योगी सरकार किसानों का दमन कर रही है। सैकड़ों किसानों की मौत के लिए जिम्मेदार मोदी सरकार के गृहराज्य मंत्री ने किसानों को धमकी और बेटे ने लखीमपुर में निर्दोष किसानों को कुलच दिया, फिर भी मंत्री को बर्खास्त नहीं किया गया। किसानों का लहू बर्बाद नहीं जाएगा। किसानों के लहू के हर कतरे की मोदी-योगी सरकार को कीमत चुकानी पड़ेगी।”
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