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बंगाल की बड़जोड़ा कोयला खदानें बन सकती हैं बड़ी आपदा का कारण!

कोयले को तोड़ने के लिए गंभीर विस्फोट किए जाते हैं जिन से चार गांव के लोगों का जीवन ख़तरे में पड़ गया है। सब कुछ जानने के बावजूद खदान प्राधिकरण ने चुप्पी साध रखी है।
Coal mines
घुटगरिया के मनोहर गांव के नज़दीक कोयले की खुली खदानें

इस बात की काफ़ी संभावना है कि घरों के धसने से 720 परिवारों के 4000 लोगों का जीवन ख़त्म हो सकता है। पश्चिम बंगाल में दामोदर वैली कॉर्पोरेशन(DVC) के नज़दीक बांकूड़ा ज़िले के उत्तरी बड़जोड़ा के पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्र में दो कोयला खदानों की वजह से यह दुर्घटना हो सकती है। अभी वक्त है कि इस होने वाली भयंकर दुर्घटना से बचा जाए।

कोयले को तोड़ने के लिए किए जाने वाले भयंकर विस्फोटों की वजह से चार गांव इस ख़तरे की ज़द में हैं। यह ख़तरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। सब कुछ जानने के बावजूद खदान प्राधिकरण शांत है। जब प्रभावित लोग पुनर्वास के लिए आवाज़ उठाते हैं तो मनमाने ढंग से उन्हें गिरफ़्तार किया जाता हैं। यहां तक कि महिलाओं को भी नहीं बख्शा जाता। प्रशासन का यह रवैया इस क्षेत्र के प्रभावित लोगों का संकट और बढ़ाता है। अभी, चुनपुरा, मनोहर, केशवपुर और टेंटुलपुया गांव के लोग मौत के साये में जी रहे हैं।

पुनर्वास के लिए बड़जोड़ा कोयला खदानों के सामने प्रदर्शन

वर्ष 1990 के भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वे से जानकारी मिलती है कि बड़जोड़ा क्षेत्र में उच्च-गुणवत्ता वाला कोयला मौजूद है। इसके लगभग एक दशक बाद 2006 में बड़जोड़ा ब्लॉक में बड़जोड़ा और घुटगरिया पंचायत क्षेत्र में दो कोयला खदान स्थापित करने के लिए भूमि अधिग्रहण की अधिसूचनाएं जारी की गईं थीं। भूमि अधिग्रहण का काम आसानी से हो गया। बांकूड़ा और दुर्गापुर रोड के दाहिनी तरफ, कई गांवों के हिस्से कोयला खदान के लिए अधिग्रहित कर लिए गए जिनमें पहाड़पुर, कृष्णानगर, रोनालेबेरा, सीतारामपुर, भगबानपुर, शालगारा, चुनपोरा, किशोरीपुर,गौरबेरा और रघुनाथपुर शामिल हैं।

इस प्रोजेक्ट के लिए 694 एकड़ भूमि अधिग्रहित की जानी थी जिसमें से 183 एकड़ भूमि शुरू में अधिग्रहित की गई। पहाड़पुर निवासी संतोष खान कहते हैं, ‘‘बाद में कई ज़मीनें खरीदी गईं।’’ इसी प्रकार घुटगरिया क्षेत्र के मनोहर, बगुली, टेंटुलपुरा, केशबपुर और हिदुरडंगा गांव की ज़मीनें अधिग्रहित की गईं। इनमें मोलबोना और लाहोरबोनी गांव पूरी तरह से कोयला खदानों की ज़द में आ गए।

वाम मोर्चे की सरकार के समय, कोयला खदान प्राधिकरण से बातचीत कर के दो गांवों के लोगों को घुटगरिया गांव के नज़दीक पुनर्वास के लिए शिफ्ट किया गया। वर्ष 2008 में डीवीसी और ईस्टर्न मिनेरल ट्रेडिंग एजेंसी निजी कंपनियों ने साथ मिलकर इस खदान से कोयला निकलना शुरू किया।

मिट्टी और कोयला पत्थर से ढकी अपनी ज़मीन पर संतोष खान और अमृत खान

बड़जोड़ा के सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन(सीटू) के वरिष्ठ नेता बनेश्वर गुप्ता कहते हैं, ‘‘मुआवज़े के रूप में किसानों को प्रति एकड़ 11 लाख रुपये दिए गए। उस समय प्रशासन की ओर से कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। किसानों ने ज़मीन के मुआवज़े की कीमत तय करने के लिए डीवीसी प्राधिकरण के साथ बैठक की। उस समय मुआवज़ा बाज़ार मूल्य से 10 गुना अधिक था। मुआवज़े के रूप में कोई नौकरी नहीं दी गई लेकिन पहाड़पुर कोयला खदान क्षेत्र के किसानों को 14 लाख रुपये  प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवज़ा दिया गया। इसके साथ ही जिनकी ज़मीनें चलीं गईं उनके परिवार से एक व्यक्ति को नौकरी की सुरक्षा दी गई।

सीटू के नेता बनेश्वर गुप्ता कहते हैं , ‘‘ज़िला प्रशासन ने हस्तक्षेप किया और दोनो जगहों के लिए एक एग्रीमेंट बनाया गया कि ज़मीन जाने की वजह से जिन खेतिहर मज़दूरों का काम ख़त्म हो गया है या आजीविका समाप्त हो गई है उनको 500 दिनों तक मज़दूरी दी जाएगी। इसके अलावा सूची में शामिल उन खेतिहर मज़दूरों को इस समयावधि में करीब 50,000 रुपये मिलेंगे। यह एग्रीमेंट वाम सरकार के समय बना था। लकिन सरकार बदलने के बाद, यानी तृणमूल कांग्रेस (TMC) के आठ साल के शासन के दौरान किसी खेतिहर मज़दूर को कोई मुआवज़ा नहीं मिला। मुआवज़े के बारे में प्रशासन सिर्फ झूठे वादे किए जा रहा है।”

साल 2010 में एक निजी कंपनी, जिसका नाम ट्रांसदामोदर है, ने कोयला निकालना शुरू किया जिसका उद्घाटन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किया था। दो कोयला खदान 2015 तक चलीं फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ये बंद कर दीं गई। इसके बाद 2020 में इन खदानों से कोयला निकालना शुरू किया गया।

इस नए फेज़ में कोयला तोड़ने के लिए बलास्ट ख़तरनाक होता गया। बड़जोड़ा में कोयला खदान में बलास्ट का समय प्रतिदिन सुबह 9 से 9:30 बजे और घुटगरिया में दोपहर 2 से 2:30 बजे है। विस्फोट की आवाज़ भयंकर होती हैं। विस्फोट के दौरान घर में रहना मुश्किल होता हैं। घर भूकंप आने की तरह हिलने लगते हैं।

घर की छत और दीवारों में दरारे आने लगी हैं। विस्फोट के दौरान लगता है कि घर अब ढहने वाले हैं। और यह किसी भी दिन सच हो सकता है। लोग डर से घर से बाहर निकल आते हैं। इन गांवों के निवासी कहते हैं कि हम रोज़ मौत के डर के साए में रहते हैं।

मनोहर गांव के सोरोमा राय का दरारों वाला घर

सोरोमा राय की पत्नी लक्ष्मीकांतो राय कहती हैं कि, ‘‘जब हम इसकी शिकायत करते हैं तो खदान प्राधिकरण हमारे पास पुलिस भेज देते हैं जैसे कि हम ने कोई गंभीर अपराध कर दिया हो। विस्फोट के दौरान जो कोयले के टुकड़े उनके घर और आसपास गिरते हैं उनसे अब तक कई लोग घायल हो चुके हैं।

मनोहर गांव की निधु बौरी। उनकी चार पुत्रवधुओं पर पुलिस ने मामले दर्ज किए हैं।

खेती करने की जो ज़मीन है वहां खेती करना भी मुश्किल है। 34 एकड़ भूमि कोयला खदान की मिट्टी और कोयला पत्थर से भर गई है। पिछले 10 साल से किसान खेती नहीं कर पा रहे हैं। इसको लेकर मुआवज़े की मांग की गई। संतोष खान कहते हैं, ‘‘लंबे समय से आंदोलन के बाद हमें 64,000 रुपये प्रति वर्ष एकड़ मुआवज़ा मिला। पिछले दो साल से वह भी नहीं मिला है।”

बड़जोड़ा क्षेत्र के लोगों का सवाल है कि क्या ये दोनों कोयला खदान क्षेत्र उनके लिए मौत की घाटियां बनने जा रहे हैं।

(लेखक पश्चिम बंगाल में 'गणशक्ति' अखबार के लिए बांकुड़ा क्षेत्र को कवर करते हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

Bengal’s Barjora Coal Mines- A Disaster in Waiting

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