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ख़बरों के आगे-पीछे : भाजपा अब जी-20 के नाम पर भी वोट मांगेगी

अब यह तय हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी जी-20 की अध्यक्षता को राजनीतिक तौर पर भुनाते हुए और अगले एक साल तक इसके नाम पर आयोजन करेगी।
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फ़ोटो साभार: Indian express

कर्नाटक-महाराष्ट्र के विवाद में फंसी भाजपा

भाजपा कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच चल रहे सीमा विवाद में फंस गई है। कर्नाटक में आगामी मई में विधानसभा चुनाव होने वाला है और उससे पहले सीमा विवाद शुरू हो गया है। इस वजह से भाजपा खुल कर स्टैंड नहीं ले पा रही है। भाजपा के साथ-साथ शिव सेना का एकनाथ शिंदे गुट भी फंस गया है। शिंदे भाजपा की मदद से मुख्यमंत्री बने हैं और इस वजह से वे कर्नाटक या वहां की सरकार को निशाना नहीं बना सकते।

पिछले दिनों कर्नाटक के मराठी बहुल इलाके में एक कार्यक्रम होना था, जिसमे महाराष्ट्र के दो बड़े मंत्रियों को शामिल होना था लेकिन कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने महाराष्ट्र सरकार को मना किया वह मंत्रियों को नहीं जाने दे तो दोनों मंत्री उस कार्यक्रम में नहीं गए। इस बात का महाराष्ट्र में बड़ा विवाद बना है। शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट के नेता संजय राउत ने दोनों मंत्रियों पर निशाना साधते हुए पूरी सरकार को कायर बताया और कहा कि वे महाराष्ट्र के गौरव से समझौता कर रहे हैं।

कर्नाटक में महाराष्ट्र के नंबर वाली गाड़ियों पर हमले हुए तो पुणे में उद्धव ठाकरे के शिव सैनिकों ने कर्नाटक के नंबर की गाड़ियों को रोक कर उन पर जय महाराष्ट्र लिख दिया। कर्नाटक में भाजपा की सरकार होने और छह महीने में होने वाले चुनाव को देखते हुए भाजपा और एकनाथ शिंदे की पार्टी कुछ नहीं कर पा रही है। इसका फायदा उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टी उठा रही है। सीमा का यह विवाद महाराष्ट्र में भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है।

सबको लगा ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बनाने का चस्का

कुछ समय पहले केंद्र सरकार और भाजपा नेताओं ने यह शिगूफा छोड़ा था कि भारत 2024 में पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर जगह यह बात कहते थे और नीति आयोग ने तो इसे मूलमंत्र बना लिया था। हालांकि अब केंद्र सरकार की ओर से यह बात नहीं कही जाती है। काफी समय से न नीति आयोग ने कुछ कहा है और न प्रधानमंत्री या किसी मंत्री ने इसे लेकर कोई बयान दिया है। भाजपा के सबसे वाचाल प्रवक्ता संबित पात्रा तो एक टेलीविजन बहस में इसी बात में उलझ गए थे कि पांच ट्रिलियन में कितने शून्य होते हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने उनको उलझाया था। उसके बाद से भाजपा के प्रवक्ताओं ने चुप्पी साध ली है।

लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि राज्यों को इसका चस्का लग गया है। राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टियां राजनीतिक नारे के रूप में ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी का वादा कर रही हैं। पिछले दिनों ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने मेक इन ओडिशा कॉन्क्लेव में कहा कि उनका राज्य निकट भविष्य में एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला राज्य बन जाएगा। हैरानी की बात है कि कहां तो भारत को पांच ट्रिलियन का बनाना था और कहां ओडिशा जैसा एक बेहद पिछड़ा राज्य एक ट्रिलियन डॉलर की बात कर रहा है! एक तरफ सबसे पिछड़े राज्य ने दावा किया तो दूसरी ओर सबसे विकसित राज्य कहे जाने वाले गुजरात में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि उनकी पार्टी का लक्ष्य गुजरात को एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने तो पूरा रोडमैप समझाया कि गुजरात कैसे एक ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनेगा। इस तरह हर राज्य एक-एक ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी वाले बनने लगे तो सोचें कि भारत कहां से कहां पहुंच जाएगा!

उद्योगपतियों के भी बढ़-चढ़ कर दावे

ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत सरकार पांच ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने का दम भर रही थी या गुजरात और ओडिशा में एक-एक ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने की बात हो रही है। राजनीतिक दलों और सरकारों की तरह देश के कारोबारी भी इस बात को समझ गए हैं कि किस तरह से देश के लोगो को ऊंचे सपने दिखा कर उनको उसमें उलझाए रखा जा सकता है या उन सपनों के जरिए यह समझाया जा सकता है कि सरकार इतना अच्छा काम कर रही है कि देश की अर्थव्यवस्था जल्दी ही दुनिया की दूसरी या तीसरी अर्थव्यवस्था बनने वाली है। विपक्षी पार्टियों की आलोचना का निशाना बन रहे देश के दो सबसे बड़े कारोबारियों ने भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर नेताओं की तरह दावे किए। उनका दावा इस मकसद से था कि आर्थिक मुश्किलों से लोगों का ध्यान हटे और लोगों को लगे कि सब ठीक चल रहा है। एशिया के सबसे अमीर कारोबारी गौतम अडानी ने कहा कि भारत को एक ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने में 58 साल लगे थे लेकिन अब 12 से 18 महीने में देश की अर्थव्यवस्था मे एक ट्रिलियन डॉलर जुड़ेगा और 2050 तक भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। उन्होंने तब तक भारत के 30 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने का दावा किया। अभी तक भाजपा या केंद्र सरकार ने ऐसा दावा नहीं किया है। जब गौतम अडानी ने यह दावा किया तो देश के दूसरे सबसे अमीर कारोबारी मुकेश अंबानी कैसे पीछे रहते। सो, उन्होंने कहा कि 2047 तक यानी जब देश की आजादी के सौ साल पूरे होंगे तब तक भारत 40 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी वाला देश बन जाएगा।

जी-20 को सियासी तौर पर भुनाने की तैयारी

अब यह तय हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी जी-20 की अध्यक्षता को राजनीतिक तौर पर भुनाते हुए और अगले एक साल तक इसके नाम पर आयोजन करेगी। कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों को पहले से इसका अंदेशा है, इसीलिए कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि इसको लेकर भाजपा को राजनीतिक आयोजन नहीं करना चाहिए। लेकिन भाजपा इसे अपना आयोजन बनाने की तैयारी में लग गई है। पिछले सोमवार को भाजपा के पदाधिकारियों और बड़े नेताओं की एक बैठक मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कहा कि भाजपा पूरे देश में इसे एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश करे। दो दिन की इस बैठक का उद्घाटन करते हुए मोदी ने कहा कि पार्टी के नेता और कार्यकर्ता भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिलने को बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश करे और लोगों को गर्व का अहसास कराएं। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी के कार्यकर्ता देश के नागरिकों को इस ऐतिहासिक आयोजन का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित करें और उन्हें इससे जोड़े। जाहिर है जी-20 की अध्यक्षता और पूरे साल में देश के विभिन्न शहरों में होने वाले दो सौ से ज्यादा कार्यक्रमों में जी-20 की अध्यक्षता को प्रधानमंत्री मोदी की उपलब्धि के तौर पर पेश किया जाएगा। भाजपा इसके जरिए यह नैरेटिव स्थापित करेगी कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दुनिया में भारत का मान सम्मान बढ़ा है और भारत विश्व गुरू बना है।

सहयोगी दलों के दबाव में कांग्रेस

यूपीए में शामिल कांग्रेस की सहयोगी पार्टियां भले कांग्रेस की बात नहीं सुनती हो, लेकिन कांग्रेस को उनकी बात सुननी और माननी पड़ती है। ताजा मामला आरक्षण का है। कांग्रेस गरीब सवर्णों को मिले 10 फीसदी आरक्षण के मसले पर अपनी पुरानी राय से पीछे हट रही है। कांग्रेस ने संसद में इस बिल का विरोध नहीं किया था और पिछले दिनों जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर मुहर लगाई तब भी कांग्रेस ने इसकी स्वागत किया। कांग्रेस ने एक कदम आगे बढ़ कर इसका श्रेय भी लिया। पार्टी की ओर से कहा गया कि मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते इसकी शुरुआत की थी और उनकी पहल पर ही यह कानून बना है। लेकिन अब कांग्रेस पार्टी अपनी इस राय से पीछे हट रही है और पुनर्विचार की बात कर रही है। कांग्रेस पार्टी ने अपनी दो सहयोगियों- डीएमके और राजद के दबाव में अपनी राय बदली है। ये दोनों पार्टियां खुल कर इसका विरोध कर रही है। बताया जा रहा है कि डीएमके ने जब इसका विरोध किया तो तमिलनाडु के कांग्रेस नेताओं ने भी पार्टी आलाकमान के सामने इस कानून को लेकर विरोध दर्ज कराया। डीएमके और राजद दोनों का कहना है कि वे ईडब्ल्यू एस आरक्षण के खिलाफ नहीं हैं है लेकिन चाहते हैं कि यह आरक्षण सिर्फ सवर्णों को नहीं मिले, बल्कि हर जाति और समूह के गरीबों को मिले। यानी ओबीसी, एससी और एसटी को मिल रहे जातीय आरक्षण के अलावा भी इन समूहों को ईडब्ल्यूएस कोटे में भी आरक्षण मिले। कांग्रेस के नेता इस पर विचार के लिए तैयार हो गए हैं। बताया जा रहा है कि सोनिया गांधी की अध्यक्षता मे हुई रणनीतिक समूह की बैठक में इस पर विचार हुआ और संसद मे यह मुद्दा उठाने का फैसला हुआ।

विपक्षी एकता बनने की संभावना बढ़ी

गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजों से समूचा विपक्ष बैकफुट पर है। गुजरात में कांग्रेस का सफाया हो गया है और हिमाचल में भी वह बड़ी मुश्किल से मुकाबले में बनी रही। दिल्ली नगर निगम में 15 साल के राज के बाद भाजपा हारी पर उसका वोट प्रतिशत कम होने की बजाय बढ़ गया। सीटों की संख्या के मामले में भी एक्जिट पोल के तमाम अनुमान ध्वस्त हो गए। भाजपा 104 सीट जीतने में कामयाब रही है। इसलिए अब विपक्षी पार्टियां सबक लेगी और भाजपा के खिलाफ मजबूत मोर्चा बनाने का प्रयास करेंगी ताकि उसे आगे टक्कर दी जा सके। चूंकि अरविंद केजरीवाल की राजनीति इस समय में भी फल फूल रही है, इसलिए वे अब भी विपक्ष की राजनीति से दूर रहेंगे। हालांकि संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने विपक्षी दलों की बैठक बुलाई तो उसमें बाकी दलों के साथ-साथ तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेता भी शामिल हुए।

तृणमूल कांग्रेस अब तक विपक्षी राजनीति से दूरी बनाए हुए थी लेकिन अब उसे भी आशंका होगी कि भाजपा पश्चिम बंगाल में अपना प्रदर्शन दोहरा सकती है। सो, संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष पहले की तरह बिखरा हुआ नहीं है और सत्र के बाद सारी पार्टियां विपक्ष का एक मोर्चा बनाने के बारे में गंभीरता से विचार करेंगी। इस सत्र में भी लोकसभा मे कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने मुद्दा उठाया कि तृणमूल कांग्रेस को एक भी संसदीय समिति की अध्यक्षता नहीं दी गई है। सुदीप बंदोपाध्याय भी इस मसले पर उनके साथ खड़े हुए।

बंगले के नाम पर क्या खड़गे बने रहेंगे?

ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस पार्टी मल्लिकार्जुन खड़गे को राज्यसभा में नेता विपक्ष बनाए रखने पर विचार कर रही है। उच्च सदन यानी राज्यसभा में नेता विपक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्ज़ा और जो तमाम सुविधाएं मिलती हैं, उनमें सबसे बड़ी सुविधा बड़े बंगले की है। गौरतलब है कि खड़गे को बहुत बडा बंगला आवंटित हुआ है। राजाजी मार्ग पर 10 नंबर के जिस बंगले मे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी रहते थे, वह बंगला उनको मिला है। इसमें दो बड़े लॉन है और साथ ही बंगले से अलग कार्यालय के लिए कमरे बने हुए है। सो, खड़गे को पार्टी अध्यक्ष के तौर पर काम करने के लिए पार्टी दफ्तर में जाकर बैठने की जरूरत नहीं होगी। लेकिन सवाल है कि क्या कैबिनेट मंत्री के दर्जे, सुविधाओं और बंगले के नाम पर पार्टी अपने सिद्धांत से समझौता कर सकती है? कांग्रेस ने इसी साल उदयपुर में हुए नव संकल्प शिविर में एक व्यक्ति, एक पद का सिद्धांत तय किया था। इसी सिद्धांत के तहत अशोक गहलोत को कहा गया था कि वे अध्यक्ष के लिए नामांकन करने से पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे। इसी नियम के तहत खड़गे ने नामांकन से पहले राज्यसभा में पार्टी के नेता पद से इस्तीफा दे दिया था। अब अगर उनका इस्तीफा स्वीकार नही होता है और उनको नेता पद पर बने रहने दिया जाता है तो एक गलत मिसाल बनेगी।

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने भी जोर देकर कहा था कि एक व्यक्ति-एक पद का सिद्धांत लागू होगा। सो, खड़गे को नेता बनाए रखने पर विपक्ष को तो मुद्दा मिलेगा ही पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच भी अच्छा संदेश नहीं जाएगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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