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“बड़े-बड़े लोग आइसोलेट हो रहे हैं, महामारी के समय हम फील्ड में हैं, हमारा मेहनताना मज़ाक है”

ललितेश विश्वकर्मा कहती हैं कि इतनी असुरक्षा के बीच हम घर-घर जाकर सर्वे कर रहे हैं। सुरक्षा तो दूर हमें बुनियादी सुविधाएं तक नहीं दी जा रहीं। वह बताती हैं कि आशा कार्यकर्ताओं को एक-एक मास्क और दस्ताने दिए गए हैं। उनके अधिकारियों ने कहा है कि इसी मास्क को रोज़ धोकर पहनो।
आशा कार्यकर्ता

हरिद्वार के मंगलौर क्षेत्र के एक मोहल्ले में आशा कार्यकर्ता अर्चना त्यागी एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के साथ सर्वे के लिए गई थीं। ये सर्वे कोरोना को लेकर हो रहा है। सभी आशा कार्यकर्ताओं को अपने-अपने क्षेत्र में ऐसे लोगों की सूची बनानी है जिन्हें खांसी-ज़ुकाम जैसे कोई लक्षण हों। जो विदेश या दूसरे राज्यों से लौटे हों। जो किसी जमात से लौटे हों। जो लोग इस दौरान क्वारंटीन किए गए हैं, उनकी मॉनीटरिंग की ज़िम्मेदारी भी आशा कार्यकर्ताओं की ही है। वे क्वारंटीन नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं। इस दौरान उनकी तबीयत कैसी रही। इसके अलावा लोगों को कोरना से बचाव के लिए जागरुक करना भी उनकी ज़िम्मेदारी में शामिल है।

हरिद्वार में आशा कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यवहार

8 अप्रैल को अर्चना और उनकी साथी इसी कार्य को कर रही थीं। वैसे इस टीम में एक एएनएम (सहायक नर्स मिडवाइफरी) और एक सुरक्षाकर्मी भी होना चाहिए था। लेकिन एएनएम ने फील्ड पर जाने से मना कर दिया था और सुरक्षाकर्मी उपलब्ध ही नहीं है। वह बताती हैं कि मोहल्ले के लोगों को लगा कि ये सर्वे एनआरसी-एनपीआर को लेकर किया जा रहा है। इसलिए उन्होंने आपत्ति जतायी। उनसे आई-कार्ड दिखाने को कहा। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की फाइल छीन ली। उस पर जो कुछ नोट किया गया था, पेन चलाकर बिगाड़ दिया और दोनों कार्यकर्ताओं से बदतमीजी से बात करने लगे। अर्चना कहती हैं कि हम दोनों बेहद डर गए। वहां भीड़ जुट गई थी। मेरे पास कोऑर्डिनेटर का नंबर नहीं था। मेरी एएनएम ने फोन नहीं उठाया। फिर आशा कार्यकर्ताओं के संगठन की अध्यक्ष को फ़ोन किया। उन्होंने मौके पर स्वास्थ्य विभाग के लोगों को भेजा। उसी समय उन्होंने एक अन्य आशा कार्यकर्ता बबीता को फोन किया। जिसने पुलिस को इस वाकये की खबर दी।

स्वास्थ्य विभाग से आशा कार्यकर्ता नाराज़

अर्चना कहती हैं कि फील्ड में बदतमीजी करने वाले लोग हमारे अनजान थे। लेकिन मौके पर आए स्वास्थ्य विभाग के लोगों ने उलटा हमसे ही बदतमीजी की। हमसे रजिस्टर छीन लिया और हमारे काम करने के तरीके पर सवाल उठाने लगे। लोग उनसे कहने लगे कि हमें चांटा लगाओ। हम वहीं रोने लग गए। मौके पर पहुंची पुलिस सबको थाने ले गई। वहां कुछ और आशा कार्यकर्ताएं भी पहुंच गईं। बदतमीजी करने वाले लड़के पर एफआईआर दर्ज की गई। इस पूरे घटनाक्रम में स्वास्थ्य विभाग का रवैया आशा कार्यकर्ताओं को सबसे अधिक नागवार गुज़रा। फील्ड पर कार्य के दौरान असुरक्षा की भावना घर कर गई। इस घटना के बाद एएनएम को भी फील्ड पर भेजा जाने लगा। लेकिन सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं हुई।

आशा कार्यकर्ताओं को एक हजार की प्रोत्साहन राशि.jpeg

एक मास्क रोज़ धोकर पहनो, सेनेटाइज़र खुद खरीदो

प्रदेश के आशा स्वास्थ्य कार्यकत्री एसोसिएशन की महामंत्री ललितेश विश्वकर्मा कहती हैं कि इतनी असुरक्षा के बीच हम घर-घर जाकर सर्वे कर रहे हैं। सुरक्षा तो दूर हमें बुनियादी सुविधाएं तक नहीं दी जा रहीं। वह बताती हैं कि आशा कार्यकर्ताओं को एक-एक मास्क और दस्ताने दिए गए हैं। उनके अधिकारियों ने कहा है कि इसी मास्क को रोज़ धोकर पहनो। जिस मास्क को छह घंटे बाद उतार फेंकना चाहिए, उसे हम रोज़ धोकर कैसे पहनें। ऋषिकेश की आशा कार्यकर्ता ललितेश कहती हैं कि हम सेनेटाइज़र और दस्ताने अपने खुद के पैसों से खरीद रहे हैं। हम उन क्षेत्रों में जा रहे हैं जिसे कोरोना के चलते पूरी तरह सील कर दिया गया है। हमारे पास खुद की सुरक्षा के ज़रूरी सामान नहीं हैं। स्वास्थ्य विभाग और डॉक्टर तक हमें डिस्पोजबल मास्क को धोकर पहनने के लिए कह रहे हैं।

वह बताती हैं कि एक आशा कार्यकर्ता के पास दो-चार हज़ार तक की आबादी है। कहीं-कहीं इससे भी ज्यादा। ललितेश कहती हैं कि कोरोना के इस समय में जब सबकुछ बंद है। हम फील्ड में जा रहे हैं। हमें इसके लिए अलग से मेहनताना मिलना चाहिए।

कोरोना के जोखिम के बदले मात्र एक हज़ार रुपया

3 अप्रैल को देहरादून में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की निदेशक अंजलि नौटियाल ने सर्वे कार्य के लिए आशा कार्यकर्ताओं को एक हज़ार रुपये की प्रोत्साहन राशि और आशा फैसेलिटेटर को पांच सौ रुपये देने के आदेश जारी किए।

ललितेश विश्वकर्मा कहती हैं कि एक हज़ार रुपये का क्या मतलब बनता है। इतने के तो हम सेनेटाइज़र ही खरीद लेंगे। वह कहती हैं कि जब हम फील्ड में लोगों के हालात देखते हैं तो कई बार अपनी जेब से और दूसरों से पैसे लेकर उनके लिए भोजन का इंतज़ाम करते हैं। ऐसे में हज़ार रुपये तो हमारी मेहनत का मज़ाक ही है। उनके एसोसिएशन ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर 18 हज़ार रुपये मेहनताने की मांग की है।

हरिद्वार की एक अन्य आशा कार्यकर्ता बबीता और गीता पांडे कहती हैं कि हम पूरी तरह सील क्षेत्र में जाने को तैयार हैं लेकिन हमें मास्क, गल्ब्स और सेनेटाइज़र तो दो। अर्चना त्यागी के साथ हुई घटना ने सभी आशा कार्यकर्ताओं को डरा भी दिया है। देहरादून के डोईवाला क्षेत्र की आशा कार्यकर्ता शशि पैन्यूली भी यही मांग करती हैं।

याद करो सरकार, हमने 60 दिनों तक मेहनताना बढ़ाने के लिए धरना दिया था

वहीं, आंगनबाड़ी, कार्यकत्री सेविका, मिनी कर्मचारी संगठन की अध्यक्ष रेखा नेगी कहती हैं कि जब राज्य में बड़े-बड़े अधिकारी अपने परिवार के साथ आइसोलेट हो रहे हैं, हर किसी को संक्रमण का डर है, स्वास्थ्य महकमा इस महामारी में हमें झोंकने को तैयार है। उन्हें पता है कि हम बहुत गरीब तबके के हैं। हममें से ज्यादातर विधवा, विकलांग ,परित्यक्ता, तलाकशुदा, बीपीएल श्रेणी के हैं। यदि कोरोना जैसी बीमारी हमें लग गई तो हमारे परिवार का क्या होगा।

रेखा नेगी कहती हैं कि सरकार ने अपनी तानाशाही दिखाते हुए हम महिलाओं को इस जोखिम में डालने का फरमान जारी किया है लेकिन जब हम 60 दिनों तक देहरादून के परेड ग्राउंड में मानदेय बढ़ाने को लेकर गुहार लगा रहे थे, तो इन्होंने हमारी पूरी तरह अनदेखी की। धरने के दौरान हमारा मानदेय काट दिया गया। साथ ही  बागेश्वर, रुद्रप्रयाग, चमोली में कुछ आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की सेवा समाप्ति के लेटर भी जारी कर दिए गए।

रेखा कहती हैं कि जब सरकार आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को जीने लायक वेतन और उनकी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम नहीं कर सकती तो हमसे हमारी सेवाओं के इतर और कार्य क्यों लिए जा रहे हैं। हमसे पोषाहार तो बंटवाया ही जा रहा है। कोरोना के समय में राशन देने की अतिरिक्त ज़िम्मेदारी भी डाल दी गई।

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को कोई अतिरिक्त भुगतान नहीं

उत्तराखंड महिला सशक्तिकरण और बाल विकास विभाग की उपनिदेशक सुजाता सिंह बताती हैं कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताएं कोरोना के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए बहुत खूबसूरत पोस्टर्स बना रही हैं। वह ये भी बताती हैं कि कोरोना को लेकर फील्ड वर्क के लिए उन्हें अलग से कोई मेहनताना नहीं दिया जा रहा है। वे लोगों को कोरोना के प्रति जागरुक कर रही हैं। स्वच्छता, सोशल डिस्टेन्सिंग की जानकारी दे रही हैं। पोषाहार बांट रही हैं। फील्ड वर्क दौरान यदि उन्हें कोरोना संक्रमण होता है तो उनका बीमा किया गया है।

हमें मेहनताना दो, 50 लाख का बीमा किसे मिलेगा

केंद्र सरकार ने आशा कार्यकर्ताओं का 50 लाख रुपये का बीमा देने की घोषणा की है। आशा कार्यकर्ता कहती हैं कि कोरोना के जोखिम को उठाकर हम दिन-रात कार्य कर रहे हैं और हमें महज एक हजार रुपया दिया जा रहा है। जिसमें हमारी सुरक्षा की कोई जिम्मेदारी नहीं ली जा रही। 50 लाख तो मौत के बाद की रकम है जो उन्हें नहीं मिलनी।

आशा कार्यकर्ताओं को दस हज़ार के आकस्मिक भुगतान की मांग

सीपीआई एमएल के राज्य सचिव राजा बहुगुणा कहते हैं कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा निर्धारित सारे कार्य करने के बाद भी आशाओं की सुरक्षा की सुध लेने वाला कोई नहीं है। उनकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। सीपीआई-एमएल ने मांग की है कि आवश्यक कार्य में जुटी आशाओं को सुरक्षा किट उपलब्ध कराई जाए। जिसमें मास्क, ग्लब्स, सेनेटाइजर और कोरोना से बचाव संबंधी अन्य उपकरण हों। बिना वेतन कार्य कर रही आशाओं को कोरोना महामारी के बीच कार्य करने के लिए कम से कम दस हजार रुपये का आकस्मिक भुगतान किया जाय। साथ ही उनका स्वास्थ्य बीमा तत्काल प्रभाव से किया जाए।

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