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बिहार-झारखंड : संकल्प के साथ याद किये गये फ़ादर स्‍टेन स्वामी

उनकी मौत के दोषियों को सज़ा देने और जेलों में बंद सभी विचाराधीन राजनीतिक-एक्टिविस्‍ट बंदियों की रिहाई की फिर उठी मांग।
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यह सामूहिक शोक का समय है
इसलिए हमें अपना अपना दुख लेकर विपक्ष में चले आना चाहिए
हमारा वजूद एक दूसरे के कंधों पर ही टिका रह सकता है

चर्चित युवा आदिवासी कवि अनुज लुगुन की उक्त पंक्तियां जब पढ़कर सुनाई जा रही थी, वहां उपस्थित सभी लोगों की स्मृतियों में फ़ादर स्‍टेन स्वामी का ऊर्जामयी व्यक्त्तित्व एकबारगी जीवंत हो उठा। जिनकी शहादत के शोक को संकल्प के रूप में बदल देने के लिए सभी इकट्ठे हुए थे। 

यह आयोजन था जन मुद्दों और अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाली ताक़तों का साझा मंच ‘हम पटना के लोग’ के तत्वाधान में ‘फ़ादर स्‍टेन  स्वामी स्मृति’ कार्यक्रम। जो 5 जुलाई को जन अधिकारों की मुखर आवाज़ कहे जानेवाले वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्त्ता व आंदोलनकर्मी फ़ादर स्‍टेन स्वामी की शहादत दिवस की स्मृति में आयोजित हुआ। 

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जिसके माध्यम से ये पुरज़ोर मांग उठाई गई कि- फ़ादर स्‍टेन  स्वामी की हिरासत में हुई “सत्ता प्रायोजित ह्त्या” के दोषियों को सज़ा दी जाय। साथ ही वर्षों से देश की जेलों में बंद सभी विचाराधीन राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं और आदिवासी-वंचितों को अविलंब रिहा करने के साथ साथ यूएपीए समेत राज्य-दमन के सभी कानूनों को निरस्त किया जाय।  

फ़ादर स्‍टेन के प्रति एक मिनट की मौन श्रद्धांजली देकर शुरू किये गए इस आयोजन को कई सामाजिक-सांस्कृतिक और वामपंथी दलों के प्रतिनिधियों ने संबोधित किया। पटना जसम के कलाकरों ने जनगीत गाये।

पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता सुधा वर्गीज़ ने फ़ादर स्‍टेन के आंदोलनकारी  व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए कहा कि - समाज के उन वंचित समुदाय के लोगों जिन्हें कभी न्याय नहीं मिलता है, फ़ादर स्‍टेन उनकी आवाज़ बनकर हमेशा खड़े रहे। आज भले ही जीवित काया के रूप में दमनकारी सत्ता ने उन्हें हमसे छीन लिया है लेकिन जन अधिकारों की सशक्त आवाज़ के रूप में उनके विचारों और संघर्ष की परंपरा को कभी भी नहीं दबाया जा सकेगा।

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पीयूसीएल बिहार के सचिव सरफ़राज़ ने फ़ादर स्‍टेन जैसे एक बुजुर्ग आंदोलनकारी को झूठे आरोपों में क़ैद कर उन्हें हिरासत में ही मार डालना, केंद्र में काबिज़ सत्ता के क्रूर-दमनकारी चरित्र का परिचायक है। जिसने अब तक की कारगुजारियों से यह भी साबित कर दिया है कि उसे लोकतंत्र पसंद नहीं है। इसीलिए आज भी वह किसी की कुछ सुनने को तैयार नहीं है। 

भाकपा माले केन्द्रीय कमिटी सदस्य व युवा एक्टिविस्‍ट अभ्युदय ने चर्चित युवा कवि अनुज लुगुन की कविता- यह सामूहिक शोक का समय है, के पाठ से अपनी बात रखते हुए आह्वान किया कि- समय आ गया है कि राजदंड दिखलाकर देश के संविधान और लोकतंत्र पर अपनी तानाशाही की थोप रही केन्द्र की मौजूदा सत्ता-शासन को हर स्तर पर एकजुट चुनौती दी जाय। बिहार से उठ रहे ज़मीनी विपक्ष में खुद को शामिल करें। इसकी ताक़त को विस्तार देते हुए फ़ादर स्‍टेन की “संस्थागत ह्त्या” समेत देश की जेलों में क़ैद उमर खालिद सरीखे जनता की आवाज़ आंदोलनकारियों पर किये जा रहे सत्ता-दमन का करारा जवाब दिया जाय। 

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता फ़ादर जोश ने फ़ादर स्‍टेन  स्वामी से जुड़े संस्मरण साझा करते हुए हुए कहा कि - सुख-सुविधापूर्ण जीवन को त्याग कर उन्होंने खुद का जीवन जन अधिकारों की आवाज़ उठाने के लिए लगा दिया। संविधान, लोकतंत्र और गरीबों-वंचितों-आदिवासियों के पक्ष में निर्भीकता से खड़े रहने के कारण ही सत्ता ने उन्हें दमन का निशाना बनाया। 

एनएपीएम के उद्वैन राय ने कहा कि फ़ादर स्‍टेन  को जिस तरह से टार्गेट किया गया, खुला सबूत है लोकतंत्र ख़त्म किये जाने के खिलाफ जनता को अधिकारों के प्रति सजग करनेवालों के साथ इस सत्ता का रवैया कैसा होगा। इसलिए आज सबसे बड़ी ज़रूरत बन गई है कि तानाशाही थोपने वाली सत्ता के खिलाफ और भी ज़ोरदार तरीके से सड़कों पर आवाज़ बुलंद की जाय। 

गया से पहुंचे सामाजिक कार्यकर्त्ता फ़ादर एंटो ने कहा की राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की भांति ही उनकी आवाज़ बहुत शांत थी लेकिन तब भी, जैसे अंग्रेजी हुकुमत के लिए गांधी जी चुनौती बन गए थे, फ़ादर स्‍टेन  भी देश की आज़ाद हुकूमत के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गये थे। उनकी शहादत को सलाम करते हुए इस बात पर जोर दिया कि - समय ऐसा आ गया है कि अब हम ‘मौन तमाशाई’ नहीं बने रह सकते हैं। 

भाकपा माले मीडिया प्रभारी कुमार परवेज़ ने अपने संबोधन में इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया कि- फ़ादर स्‍टेन  की मौत के खिलाफ पूरी दुनिया से लेकर इस देश तक में उठ रही आवाजें दिखला रहीं हैं कि इस सत्ता के दमन के खिलाफ भी विरोध का स्वर लगातार बढ़ता जा रहा है। 

इंसाफ मंच से जुड़ी सोशल एक्टिविस्‍ट आसमां खान व एसयूसीआई जितेन्द्र समेत कई अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार रखते हुए फ़ादर स्‍टेन  स्वामी की “संस्थागत मौत” के दोषियों को आज तक सज़ा नहीं दिए जाने का तीखा विरोध करते हुए “मोदी–शाह शासन” को मुख्य जिम्मेवार करार दिया। 

कार्यक्रम का संचालन करते हुए जसम व इंसाफ मंच के वरिष्ठ शिक्षाविद व बौद्धिक एक्टिविस्‍ट  जनाब ग़ालिब ने कहा कि फ़ादर स्‍टेन  की हिरासत में मौत से लेकर मणिपुर में जारी सांप्रदायिक जनसंहार की घटनाएं हमारे नागरिक दायित्व बोध को चुनौती दे रही हैं। समय रहते हम सबों को एकजुट होकर नफरत-हिंसा और विभाजन की सत्ता-राजनीति को कारगर जवाब देना होगा। 
फ़ादर स्‍टेन  स्वामी की कर्मभूमि झारखंड प्रदेश में भी कई स्थानों पर कार्यक्रम किये गये। 

रांची में ‘फ़ादर स्‍टेन  स्वामी न्याय मोर्चा’ के संयुक्त तत्‍वावधान में राजभवन-मार्च निकालकर राजभवन के समक्ष प्रतिवाद सभा की गयी। जिसमें सीपीआई, सीपीएम व भाकपा माले इत्यादि वाम दलों के सैकड़ों नेताओं-कार्यकर्त्ताओं समेत कई सामाजिक संगठनों के लोग व एक्टिविस्‍ट  शामिल हुए। 

प्रतिवाद सभा को संबोधित करते हुए फादर स्‍टेन  स्वामी के आंदोलनों में साथ रहनेवाली चर्चित आंदोलनकारी दयामनी बारला ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि- सारा सच खुलकर सामने आ गया है कि कैसे “भीमाकोरे गांव कांड” मामला मोदी सरकार प्रायोजित आधारहीन व फर्जी मुकदमा है। जिसका उद्देश्य शोषित वर्गों के पक्ष की बात करने वालों और इस सरकार की जनविरोधी नीतियों पर सवाल उठानेवालों को प्रताड़ित करना था। 

बाद में सभा की ओर से राज्यपाल को ज्ञापन भी सौपा गया। जिसके माध्यम से- फ़ादर स्‍टेन  स्वामी की मौत के दोषियों को सज़ा देने व उन समेत अन्य सभी आंदोलनकारियों पर सरकार द्वारा थोपे गए फर्जी मुकदमों को निरस्त्र कर जेलों में बंद - एक्टिविस्‍टों व विचाराधीन कैदियों की ज़ल्द से जल्द रिहाई की मांग की गयी। 

लौहनगरी जमशेदपुर में भी फ़ादर स्‍टेन  स्वामी शहादत दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसके तहत विभिन्न सामाजिक संगठनों के सदस्यों द्वारा हाथों में मोमबत्ती-तख्तियां लेकर मानव-श्रृंखला बनायी गयी। जिसके माध्यम से फ़ादर स्‍टेन  स्वामी की संघर्ष परंपरा को जारी रखने का संकल्प लिया गया। 

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