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“झारखंड झुकेगा नहीं, INDIA रुकेगा नहीं”

INDIA गठबंधन 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के समय की तुलना में इस बार पूरी तरह से एकजुट होकर हर मोर्चे पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्शा रहा है।
jharkhand

लोकतंत्र के महापर्व 2024 के लोकसभा चुनाव का चौथा चरण भी संपन्न हो चुका है। झारखंड राज्य में 13 मई को चौथे चरण से शुरू हुआ चुनाव को अंतिम चरण तक होना है। इस प्रदेश में लोकसभा की कुल 14 सीटें हैं। जिनमें से 5 एसटी सुरक्षित (सिंहभूम, खूंटी, लोहरदगा, राजमहल व दुमका), एक एससी सुरक्षित (पलामू) सीट है, शेष 8 सीटें सामान्य हैं।

गौरतलब है कि 2019 में झारखंड में सिंहभूम की सीट छोड़कर शेष सभी सीटों पर भाजपा-एनडीए गठबंधन ने एकतरफा ढंग से सभी पर जीत हासिल किया था। सिंहभूम ही इकलौती सीट रही जिस पर कांग्रेस की गीता कोड़ा ने भाजपा प्रत्याशी को भारी मतों से हराकर जीत हासिल की थी।

लेकिन विचित्र विडंबना ही है कि इस बार के चुनाव में वही गीता कोड़ा ने “अचानक से” पाला बदलकर भाजपा की प्रत्याशी बन गयी हैं। चर्चा है कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे उनके पति पर जो भारी भ्रष्टाचार-घोटाले का मुकदमा चल रहा है, संभवतः उससे छुटकारा पाने के लिए ही वे “भाजपा वाशिंग मशीन” (विपक्षी दलों के अनुसार) की शरण में गयी हैं।

बहरहाल, 13 मई को संपन्न हुए लोकसभा के चौथे और झारखंड के लिए पहले चरण का चुनाव जिन चार संसदीय सीटों पर हुआ है, उनमें से तीन एसटी और एक एससी सीट है। राज्य चुनाव आयोग और मीडिया के अनुसार वोटिंग प्रतिशत 64.59% रहा है।

जिसमें सिंहभूम में तो वोटिंग प्रतिशत 66% से भी अधिक का बताया जा रहा है। जिसे लेकर आम चर्चा यही है कि जिन उम्मीदों से 2019 में इस क्षेत्र के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के लोगों ने गीता कोड़ा जी को भाजपा के ख़िलाफ़ अपना मुखर समर्थन दिया था, उसी भाजपा में उनके चले जाने से मतदाताओं में व्यापक नाराज़गी है। जो इस बार के उनके चुनाव प्रचार अभियान के दौरान जगह-जगह उनके ख़िलाफ़ आदिवासी महिलाओं के तीखे “सवाल-जवाब और विरोध” के रूप में दिखा भी। जिसे लेकर “गोदी मीडिया“ ने खूब प्रपंच-प्रचार भी चलाया कि गीता कोड़ा की जान को खतरा है।

इस बार यहां हुए वोटिंग को लेकर राज्य व इस क्षेत्र के चर्चित आदिवासी बुद्धिजीवी प्रेमचन्द मुर्मू जी का साफ़ मानना है कि “राज्य व प्रशासन” द्वारा “मावोवादी हिंसाग्रस्त” इलाका घोषित होने और उसके नाम पर हर पांच किलोमीटर की दूरी पर सीआरपीएफ कैम्प के दबावों से जूझते हुए भी हुए यहां के लोगों ने भरपूर मतदान किया है। सोशल मीडिया में वायरल कई वीडियो में तो यह भी दिखया गया कि कई स्थानों पर पोलिंग बूथ पर बैठे भाजपा कार्यकर्ता खुलेआम “मोदी जी की तस्वीर और कमल छाप” वाली पर्चियां बांट रहे हैं। कुछेक वीडियो तो ऐसे भी आये हैं, जिनमें दिखाया जा रहा है कि कैसे चुनाव विधि-व्यवस्था में लगे सुरक्षा बल के कतिपय जवान मतदाताओं से मोदी जी को वोट देने के लिए कह रहे हैं।

चर्चा-विवादों में हमेशा रहनेवाले खूंटी सुरक्षित क्षेत्र में हुए मतदान को लेकर इसी इलाके के निवासी और एआईपीएफ़ से जुड़े एक्टिविस्ट आदिवासी बुद्धिजीवी वाल्टर कंडूलना जी का तो यहां तक दावा है कि- यदि बैलेट से वोट हुआ रहता तो भाजपा प्रत्याशी और केन्द्रीय आदिवासी मंत्री अर्जुन मुंडा जी की भारी हार की अब तक घोषणा हो गई होती। क्योंकि इस बार भी यहां का ज़मीनी जनादेश उनके और भाजपा के ख़िलाफ़ ही है।

लेकिन देखिये “ईवीएम् का खेला” अगर हो गया तो कुछ नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि 2019 चुनाव के समय में भी “खेला” हुआ था कि वोटों की गिनती के बाद चुनाव अधिकारी ने कांग्रेस प्रत्याशी से कहा कि आप जीत गये हैं, जाकर बाहर बैठिये जीत का कागज़ भिजवाया जा रहा है। दो घंटे से अधिक समय तक बाहर इंतज़ार करवाने के बाद चुनाव अधिकारी ने कहा कि- पोस्टल-बैलेट की वोटिंग में आप तो हार गए है। जिसे लेकर काफी हल्ला-हंगामा भी हुआ लेकिन फ़ोर्स ने कांग्रेस प्रत्याशी समेत सभी लोगों को जबरन वहां से बाहर निकाल दिया था। इस तरह से भाजपा ने चुनाव मशीनरी के बल पर अपनी हार को जीत में बदल लिया था।

उक्त प्रसंगों की चर्चा इसीलिए है कि देश के कई क्षेत्रों की भांति झारखंड प्रदेश में भी ‘INDIA गठबंधन’ द्वारा भाजपा को कड़ी टक्कर मिल रही है। जिसका अंदाज़ा इसी से लगया जा सकता है कि हाशिये पर रहने वाले इलाकों में भी देश के गृहमंत्री से लेकर खुद प्रधानमंत्री जी तक को चुनावी प्रचार के लिए आना पड़ रहा है।

देश की आज़ादी के 75 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है जब कोडरमा सीट पर अपनी उम्मीदवार के लिए बगोदर विधान सभा क्षेत्र के बिरनी प्रखंड में प्रधानमंत्री जी को आकर जन सभा करनी पड़ रही है। यहां INDIA गठबंधन के भाकपा माले प्रत्याशी और राज्य के चर्चित जन विधायक विनोद सिंह से केन्द्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी को कड़ी चुनौती मिल रही है।

दुर्भाग्यपूर्ण विडंबना है कि राज्य के चर्चित आदिवासी नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जिनके ख़िलाफ़ कोर्ट में अभी तक कोई पुख्ता सबूत तक नहीं जमा किया जा सका है, सुप्रीम कोर्ट भी उन्हें जमानत नहीं दे रहा। वहीं, कर्नाटक में भाजपा गठबंधन प्रत्याशी रमन्ना जिनपर सैकड़ों महिलाओं के यौन-उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगे हैं उन्हें स्थानीय कोर्ट ने ही झट से “अंतरिम ज़मानत” देकर अपना “न्याय-दायित्व” दर्शा दिया है।

जानकारों के अनुसार ऐसे कई कई गंभीर सवाल हैं जिन्हें लेकर झारखंड प्रदेश के व्यापक आदिवासी, मूलवासियों और लोकतंत्रपसंद नागरिक समाज में भाजपा और मोदी सरकार के ख़िलाफ़ गुस्सा है। विशेषकर प्रदेश की गैर भाजपा सरकार के ख़िलाफ़ केंद्र का सौतेला व्यवहार और एक चुनी हुई सरकार को लगातार अस्थिर करने की जारी क़वायद से यहां के लोगों में काफ़ी नाराज़गी है। “आग में घी” डालने जैसा हुआ है “ईडी” द्वारा बिना किसी ठोस सबूत के हेमंत सोरेन को जेल में डाल देने का मामला। जो निश्चय ही इस बार के चुनाव में भाजपा विरोधी वोट के रूप में मुखर होगा ही।

इसी का असर 20 मई को होने वाले गांडेय विधान सभा के उपचुनाव में भी साफ़ दिख रहा है। जहां से हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना मुर्मू सोरेन ‘INDAI गठबंधन’ की प्रत्याशी के रूप खड़ी हुई हैं। बहुत कम ही समय में उनकी लगातार बढ़ती जन स्वीकार्यता व लोकप्रियता तमाम सियासी अटकलों को ज़मीनी जवाब देती हुई तो साफ़ दिख रही है।

“गोदी मीडिया” के चुनावी नैरेटिव के साथ साथ आम सियासी चर्चाओं में यही कहा जा रहा है कि झारखंड राज्य में भी इस बार का चुनाव बिलकुल आमने-सामने का होना है। जिसमें एक ओर, केंद्र की सत्ता में काबिज़ भाजपा-एनडीए-गठबंधन है तो दूसरी ओर, झामुमो-कांग्रेस-राजद और भाकपा माले का INDIA-गठबंधन है। जो 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के समय की तुलना में इस बार पूरी तरह से एकजुट होकर हर मोर्चे पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्शा रहा है। जिसका संकेत-सन्देश तो यही बता रहा है कि इस बार झारखंड का चुनावी नतीज़ा “एकतरफा” नहीं रहेगा।

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