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“इलेक्शन होगा, तो पढ़ाई भी होगा” सासाराम में भड़के छात्रों का नारा

शहर के कोचिंग संस्थानों में पढ़ रहे बच्चे उस वक्त अचानक उग्र हो गये जब पुलिस उनके कोचिंग संस्थानों को बंद कराने पहुंची। छात्रों ने पुलिस पर हमला कर दिया, कलेक्ट्रेट में घुस कर तोड़-फोड़ की। पुलिस ने 16 छात्रों को गिरफ़्तार किया है।
“इलेक्शन होगा, तो पढ़ाई भी होगा” सासाराम में भड़के छात्रों का नारा
फोटो साभार: सोशल मीडिया

इस सोमवार 5 अप्रैल, 2021 को बिहार का सासाराम शहर अचानक भड़क उठा। शहर के कोचिंग संस्थानों में पढ़ रहे बच्चे उस वक्त अचानक उग्र हो गये जब पुलिस उनके कोचिंग संस्थानों को बंद कराने पहुंची। छात्रों ने पुलिस पर हमला कर दिया, कलेक्ट्रेट में घुस कर तोड़-फोड़ करने लगे। पुलिस बल की गाड़ियां क्षतिग्रस्त कर दीं और घंटों पूरे सासाराम जिले में वे हंगामा करते रहे। बहुत मुश्किल से उन्हें नियंत्रित किया जा सका। बाद में पुलिस ने 16 छात्रों की पहचान कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया है।

उग्र छात्र दरअसल बिहार सरकार के उस ताजा फैसले का विरोध कर रहे थे, जिसके मुताबिक राज्य सरकार ने कोरोना के बढ़ते खतरे को देखकर बिहार के सभी स्कूल, कॉलेज और कोचिंग संस्थानों को 11 अप्रैल 2021 तक के लिए बंद रखने का आदेश जारी किया है। प्रदर्शन कर रहे दो हजार से अधिक उग्र छात्र कह रहे थे कि जब कोरोना के संकट के बीच लाखों की भीड़ जुटाकर चुनावी रैलियों का आयोजन किया जा सकता है, तो फिर हम कुछ सौ-पचास लोग एक कमरे में बैठकर पढ़ाई क्यों नहीं कर सकते। क्या कोरोना का खतरा सिर्फ छात्रों को ही है, राजनेताओं और वोटरों को नहीं। 

सोमवार के प्रदर्शन में छात्रों ने कलेक्ट्रेट को घंटों अपने कब्जे में रखा, दर्जनों गाड़ियां क्षतिग्रस्त कर दीं और कई पुलिस अधिकारियों पर उग्र हमला किया। उस भयावह दृश्य को देखकर हर कोई चकित था कि आखिर पढाई-लिखाई करने वाले ये छात्र अचानक इतने उग्र क्यों हो गये। कोचिंग संस्थानों को बंद करने के फैसले का विरोध होगा यह सभी जानते थे, मगर विरोध इतना उग्र हो जायेगा इसका अंदाजा किसी को नहीं था।

छात्रों के इस तरह से उग्र होने के पीछे स्थानीय प्रशासन वजहों को तलाश रहा है। अगर वे लोग संवेदनशील तरीके से तफ्तीश करें तो छात्रों की पीड़ा समझी जा सकती है। उद्योग और रोजगार विहीन बिहार में यहां के छात्रों के लिए सरकारी नौकरी का आकर्षण सबसे अधिक है। इसलिए पूरे राज्य में हजारों कोचिंग संस्थान संचालित होते हैं, जो इन छात्रों को बैंकिंग, रेलवे, एसएससी आदि तीसरी और चौथी श्रेणी की सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी करवाते हैं। अमूमन राज्य के हर जिले में ऐसे दर्जनों कोचिंग संस्थान संचालित हो रहे हैं।

जिस सासाराम शहर में यह बवाल हुआ है, माना जाता है कि वहां भी तीन सौ से अधिक ऐसे कोचिंग संस्थान संचालित होते हैं। इसके अलावा सासाराम शहर में सरकारी नौकरियों की तैयारी के लिए बने सेल्फ स्टडी सेंटर भी काफी मशहूर रहे हैं। यहां प्लेटफॉर्म पर बैठकर तैयारी करने वाले छात्रों की कहानियां कई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों द्वारा प्रकाशित-प्रसारित की गयी है। 

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में राज्य में बेरोजगारी और सरकारी नौकरी का बड़ा मुद्दा बना था। चुनाव के दौरान विपक्षी दल के नेता तेजस्वी यादव ने सरकार बनने पर पहली ही कैबिनेट बैठक में दस लाख युवाओं को सरकारी नौकरी देने का वादा किया था। पहले तो सत्ता पक्ष की तरफ से इस घोषणा की खिल्ली उड़ाई गयी, मगर जब तेजस्वी की इस घोषणा का असर युवाओं पर दिखने लगा तो डैमेज कंट्रोल करते हुए एनडीए की तरफ से भी चार लाख सरकारी नौकरियां और 17 लाख युवाओं को रोजगार से जोड़ने की घोषणा की गयी।

मगर एनडीए की दुबारा सरकार बने हुए भी चार महीने बीत चुके हैं, अभी तक उस घोषणा के बरअक्स और बेरोजगार युवाओं के पक्ष में सरकार ने कोई गंभीर फैसला नहीं लिया है। उल्टे इस नये फैसले से इन युवाओं को नाराज किया है।

राजधानी पटना के एक कोचिंग संचालक अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं कि कोरोना के बाद 2020 के पूरे साल राज्य में कोचिंग संस्थान बंद रहे। जबकि इसी बीच बिहार में विधानसभा चुनाव भी हुए। बहुत दबाव और हंगामे के बाद चार जनवरी, 2021 से कोचिंग संस्थानों को खोलने की इजाजत मिली। इन सरकारी नौकरियों की तैयारी कराने वाले कोचिंग संचालक अमूमन वे छात्र ही होते हैं जिन्हें प्रतिभा के बावजूद सरकारी नौकरी नहीं मिल पायी थी। वे छोटी पूंजी से कोचिंग चलाते हैं। ये एक तरह का छोटा-मोटा रोजगार ही है। पिछले एक साल से कोरोना की वजह ऐसे तमाम कोचिंग संचालकों की कमर टूट गयी है। कुछ कोचिंग संचालकों ने खुदकुशी कर ली। 

वे कहते हैं, जब तक कोचिंग नहीं खुले थे, हमारे पास लगातार छात्रों के फोन आते थे। अब जब कोचिंग चलने लगे तो छात्र भी थोड़े खुश हुए और हमारी आजीविका भी पटरी पर आ गयी। मगर अभी हम अपनी तैयारी कर ही रहे थे कि अचानक बिहार सरकार ने यह फैसला सुना दिया। 

राज्य भर के कोचिंग संचालक बिहार सरकार के इस फैसले के विरोध में हैं। चार अप्रैल को ही कोचिंग एसोसियेशन ऑफ बिहार (सीएबी) ने घोषणा कर दी थी कि वे हर हाल में कोचिंग संस्थानों को खुला रखेंगे और राज्य सरकार के इस आदेश को नहीं मानेंगे। एक शिक्षक ने तो आत्मदाह की चेतावनी दे दी थी। इन वजहों को देखते हुए यह सहज ही लगता है कि सासाराम में छात्रों के उग्र होने की वजह क्या है।

सासाराम में हुई इस घटना पर टिप्पणी करते हुए युवा हल्ला बोल के संस्थापक अनुपम कहते हैं, इस  बवाल के लिए बिहार सरकार की असमंजस भरी दोहरी नीतियां ज़िम्मेदार हैं। इसमें कोई शक नहीं कि शुरू से ही कोरोना को लेकर सरकार की नीति समझ से परे रही है। आज भी जहाँ एक तरफ बाज़ारों और सब्ज़ी मंडियों में भारी भीड़ उमड़ रही है, वहीं उन कोचिंग और शैक्षणिक संस्थानों को जबरन बंद करवाया जा रहा है जिनमें काफी हद तक नियमों का पालन संभव है। एक तरफ पड़ोस के राज्य में बड़ी बड़ी रैलियां हो रही हैं तो दूसरी तरफ मास्क न पहनने पर आम लोगों का चालान काटा जा रहा है। 

प्रधानमंत्री खुद दो गज दूरी का नारा देकर बिना मास्क चुनावी प्रचार में भीड़ को संबोधित करने पहुँच जाते हैं।

सरकार के निर्देश और नीतियों की सफलता तभी रहती है जब आमजन में इसका इक़बाल रहे। सरकार को बिना कोई तैयारी किये तुग़लकी फ़रमानों के जरिए कोचिंग और शैक्षणिक संस्थानों को बंद करने से बचना चाहिए। कोरोना की रोकथाम से संबंधित फैसले सिर्फ तर्क और वैज्ञानिक आधार पर लिया जाना चाहिए, न कि अफसरों और नेताओं के मूड पर। इसी कारण से देशभर की सरकारों पर आरोप लग रहा है कि कोरोना को एक बहाना बना दिया गया है अपने मनमुताबिक किसी भी तरह का बेतुका नियम लागू करने का।

(पटना स्थित पुष्यमित्र स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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