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बिहारः बदहाल शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लिए फिर शुरू हुआ ‘सड़क पर स्कूल’ आंदोलन

सरकारी स्कूल की शिक्षा व्यवस्था को यदि ज़मीनी स्तर पर कारगर बना दिया जाए तो लोग निजी स्कूलों की शरण में नहीं जाएंगे।
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माना जाता है कि किसी भी राष्ट्र और समाज में लोकतंत्र की मज़बूती के लिए जनता की सक्रियता सबसे महत्वपूर्ण है जो सत्ता के साथ-साथ उसके समूचे तंत्र तक को जनता के हित में कार्यशील बनाने में अहम भूमिका निभाती है।

इसे इन दिनों चरितार्थ किया जा रहा है। बिहार के जन आंदोलनों की धरती भोजपुर में अगियांव विधान सभा क्षेत्र के नागरिक समाज के लोग भाकपा माले विधायक मनोज मंजिल की प्रेरणा से सरकारी स्कूल की शिक्षा व्यवस्था को ठीक करने के लिए ‘सड़क पर स्कूल’ का लगातार अभियान चला रहे हैं। इसके माध्यम से क्षेत्र के सरकारी स्कूलों की ख़स्ता हालत में तत्काल सुधार लाने व समुचित शैक्षिक वातावरण बहाल करने के लिए सरकार व उसकी मशीनरी को जनता का दबाव बनाकर काफी हद तक सक्रिय करने के लिए विवश किया जा रहा है।

सनद रहे कि प्रदेश की पिछली एनडीए गठबंधन सरकार के समय से ही इस क्षेत्र व ज़िले में ‘सड़क पर स्कूल’ आंदोलन को शुरू किया गया था। जिसके तहत उस समय अगियांव क्षेत्र के आरा-सासाराम मुख्य मार्ग पर सभी सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं व उनके अभिभावकों के साथ-साथ स्थानीय नागरिक समाज के लोगों ने भारी संख्या में एकजुट होकर ‘सड़क पर स्कूल’ चलाया था। इस दौरान सड़क पर ही घंटी बजाकर क्लास लगायी गयी और बच्चों को पढ़ाया गया था।

इस जन अभियान के माध्यम से सरकार एवं विभाग से मांग की गयी थी कि अविलंब सभी स्कूलों के भवन निर्माण इत्यादि बुनियादी ज़रूरतों को पूरा किया जाए तथा वहां समुचित शिक्षकों की उपलब्धता कर गुणवत्तापूर्ण सर्व शिक्षा सुनिश्चित की जाए। इस मांग को तात्कालिक तौर पर सरकार ने मान लिया था लेकिन उसके द्वारा ही अभियान में शामिल माले विधायक व नेताओं समेत कई लोगों पर फ़र्ज़ी मुक़दमे भी थोप दिए गए। इसके बावजूद आंदोलन जारी रखकर लोगों ने सरकार को अपना इरादा स्पष्ट कर दिया था कि अब वे अपने बच्चों के शैक्षिक भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होने देंगे।

इस बार भी 21 अक्टूबर को ज़िला मुख्यालय आरा से चंद किलोमीटर की दूरी पर पवना के आरा-सहार मुख्य मार्ग पर अस्थायी टेंट लगाकर ‘सड़क पर स्कूल’ अभियान चलाया गया। पिछली बार की ही तरह इस बार भी फिर से स्कूल टाइम पर घंटी बजी और छात्र-छात्राओं ने सामूहिक रूप से राष्ट्र गान और प्रार्थना किया। उसके बाद आम दिनों की तरह ही सभी वर्गों का पठन-पाठन कार्यक्रम हुआ।

इस कार्यक्रम में शामिल सभी छात्र-छात्राओं तथा उनके अभिभावकों ने माले विधायक मनोज मंजिल के प्रोत्साहन से उपस्थित जन समुदाय और प्रशासनिक अधिकारियों को अपनी सारी व्यथा सुनाई। छात्रा सिमरन ने रोते हुए बताया कि समुचित शिक्षकों के अभाव में हमारे कन्या मध्य विद्यालय के एक ही कमरे में छठी, सातवीं और आठवीं का एक साथ क्लास चलता है। चौथी व पांचवीं के सभी छात्र बरामदे में बैठकर तथा दूसरी व तीसरी के सभी छात्र बाहर पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ने को विवश हैं। छात्रा ने कहा कि स्कूल में न शौचालय है न पीने का स्वच्छ पानी ही उपलब्ध है। किसी दिन यादि सभी कक्षाओं के छात्र एक साथ उपस्थित हो जाते हैं तो आधे छात्रों को

वापस घर भेज दिया जाता है। ऐसे में हम कैसे पढ़ेंगे और आगे बढ़ेंगे!

कई प्राइमरी व मिड्ल स्कूल के छात्र-छात्राओं ने बताया कि क्लास रूम में बेंच-डेस्क नहीं होने के कारण उन्हें आज भी ज़मीन पर बैठकर पढ़ना पड़ता है। पूरे दिन सात घंटे ज़मीन पर बैठकर पढ़ने के कारण सभी की पीठ-कमर में दर्द होने लगता है।

इलाक़े के अनुसूचित जाति प्राथमिक विद्यालय के छात्र भूपेश ने बताया की क्लास पूरी तरह से जर्जर हो गया है जिसकी छत से हमेशा पानी टपकता रहता है और वो कभी भी भरभराकर गिर सकती है।

अनेक अभिभावकों ने बताया कि बरसात के दिनों में ठनका गिरने के डर से वे बच्चों को स्कूल नहीं जाने देते हैं। इस दौरान अभियान को संबोधित करते हुए विधायक मनोज मंजिल ने कहा कि उनके द्वारा विधान सभा में मुद्दे को उठाने पर दो वर्ष पूर्व ही तत्कालीन सरकार ने लिखित रूप से आदेश जारी कर दिया था। लेकिन बार बार आवेदन-ज्ञापन देने के बावजूद विभाग एवं प्रशासन के कानों पर जूं नहीं रेंगने के कारण ही उन्हें व क्षेत्र की जनता व छात्रों-युवाओं को लेकर आज सड़क पर स्कूल चलाने को मजबूर होना पड़ा है। उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार बिहार के साथ लगातार भेदभाव कर इसे विशेष राज्य का दर्ज़ा नहीं दे रही है। जिससे यहां की स्थिति लगातार भयावह होती जा रही है।

सुबह 10 बजे दिन से शुरू हुआ यह कार्यक्रम देर शाम तक चलता रहा। रस्म अदायगी के लिए स्थानीय बीडीओ व बीईइओ पहुंचे लेकिन प्रदर्शनकारी बड़े अधिकारियों को बुलाने पर अड़े रहे। आख़िरकार ज़िला डीएम के छुट्टी पर होने के कारण उनके प्रतिनिधि के तौर पर पहुंचे एसडीएम व डीईओ की मौजूदगी में बातचीत हुई। इस दौरान 5 नवंबर से उनकी सभी मांगों को पूरा करने के लिखित आश्वासन किये जाने के बाद इस अभियान को रोक दिया गया।

यह जन अभियान एक बार फिर से चर्चा का विषय बन गया है। जिसके ज़रिए जगह जगह लोगों के बीच यह संदेश जा रहा है कि बिहार के भोजपुर के ग़रीब बच्चों के पढ़ने और इसके लिए लड़ने के हौसले का ही नाम है ‘सड़क पर स्कूल’ का जनांदोलन!

इसके माध्यम से एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी सामने आ रहा है कि इस जन अभियान को मिली व्यापक जन स्वीकृति ने साफ़ दर्शा दिया कि सरकारी स्कूल की शिक्षा व्यवस्था को यदि ज़मीनी स्तर पर कारगर बना दिया जाए तो लोग निजी स्कूलों की शरण में नहीं जाएंगे।

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