बिहार शरीफ़ हिंसा: 113 साल पुराना मदरसा नफ़रत की भेंट चढ़ गया !

फ़ोटो साभार : Meer Faisal/ट्विटर। मदरसा अज़ीज़िया को देखते ईमाम साहब
हर्फ़ जल गए, लफ़्ज़ राख हो गए, किताबें कोयला बन गईं, इन स्वाहा हो चुकी किताबों को दिखाते हुए चेहरे की बेबसी बता रही है कि ये कुछ नहीं कर पाए बस यूं ही तालिम का ख़ज़ाना जल गया।
साभार- Meer Faisal Twitter ( जली हुई किताब दिखाते इमाम साहब )
तीन पायदान चढ़ कर इमारत में घुसने के लिए तीन बड़े गेट और उस गेट से बाहर झांकती आग की लपटों से बने स्याह निशान, ध्यान से देखने पर पता चलता है कि शायद इस पर कभी गुलाबी पुताई की गई होगी, कुछ मिटा, और लिखा जो दिखता है वे है बिहार शरीफ ( नालंदा), जबकि इसके ऊपर लगे बोर्ड पर उर्दू और इंग्लिश में लिखा है 'मदरसा अज़ीज़िया', वहीं अंदर की जो तस्वीर दिखाई देती है वे इस बात की तस्दीक करती है कि ये एक हेरिटेज बिल्डिंग है। इस कॉलोनियल हेरिटेड को साफ तौर पर पहचाना जा सकता है।
जिन अलमारियों में किताबें थीं उनका नाम-ओ-निशान मिट चुका था और किताबें लाश की मानिंद ढेर हो गई थीं, राख हो चुकी किताबों से उठता धुंआ बता रहा था कि नफ़रत ने इल्म का क़त्ल कर उसे जला डाला।
जिस लाइब्रेरी में दूधिया दीवारों के बीच बच्चियां बैठकर सेमिनार या दूसरे कार्यक्रम अटेंड किया करती थीं उसकी तस्वीर बदल चुकी है। दीवारें काली और ऊपर की मंजिल से झांकता अंधेरा चारों तरफ़ पसरा है।
मदरसा अज़ीज़िया की लाइब्रेरी की पुरानी और 31 मार्च के बाद की तस्वीर
क्या है मामला?
दरअसल ये बिहार शरीफ़ ( नालंदा) के मदरसा अज़ीज़िया की वो लाइब्रेरी है जिसे 31 मार्च को आग के हवाले कर दिया गया। आरोप है कि रामनवमी के मौक़े पर निकली शोभायात्रा के बाद भड़की हिंसा के दौरान इस मदरसे को भी निशाना बनाया गया। इस 113 साल पुरानी इमारत को ही नुक़सान नहीं हुआ बल्कि 4,500 ऐसी नायाब किताबें भी जलकर स्वाहा हो गईं जिन्हें दोबारा कभी भी हासिल नहीं किया जा सकता।
इस मामले पर हमने नालंदा थाना और नालंदा के एसपी अशोक मिश्रा से भी बात की
सवाल: मदरसा अज़ीज़िया से जुड़ी कोई जानकारी आपके पास है?
एसपी अशोक मिश्रा का जवाब: पहले दिन जो घटना हुई थी उसमें मदरसा अज़ीज़िया पर कुछ लोगों ने कोशिश की थी, वहां पर किताबें वगैरह जलाई गई थीं, जो भी है थोड़ा बहुत आगज़नी हुई थी ये बात सही है। लेकिन अभी स्थिति कंट्रोल में है वहां पर कोई इशू नहीं है लोगों ने उसे साफ करवा दिया है, पुलिस सुरक्षा में है।''
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जैसे ही मदरसा अज़ीज़िया की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई, राख हुई किताबों को देखकर हर किसी का दिल चाक हो गया और एक ही सवाल उठ रहा था कि आख़िर किताबों और तालीम से भी क्या किसी की दुश्मनी हो सकती है?
इस मामले पर हमने मदरसा अज़ीज़िया के सेक्रेटरी मुख़्तार-उल- हक से फोन पर बात की उन्होंने मदरसा के ऐतिहासिक महत्व के बारे में ज़िक्र ही किया था की इमोशनल होकर कहने लगे ''ऐसा लग रहा है कि मेरे पास शब्द ख़त्म हो गए हैं हम बात करते हुए लड़खड़ा जा रहे हैं जबकि हमारी ये आदत नहीं रही है।''
वे आगे कहते हैं कि, ''आपने सुना होगा कि नालंदा विश्वविद्यालय को बुरी तरह से जला दिया गया था, देखिए उसी को दोहरा दिया गया है, ये एक ऐतिहासिक मदरसा है, ख्यातिप्राप्त मदरसा इसको जलाने का मतलब है नालंदा विश्वविद्यालय की पुनरावृति, अगर कोई शैक्षणिक संस्थानों को जलाता है या नुक़सान पहुंचता है तो ये यूं समझ लीजिए कि किसी धर्म को नुक़सान नहीं पहुंचाया गया है बल्कि मुल्क को नुक़सान पहुंचाया गया है, ये गौतम बुद्ध, महावीर की ज़मीन है, ये अहिंसा, सहिष्णुता, भाईचारे, शांति के लिए जानी जाती है लेकिन अगर यहां ऐसी घटना होती है तो बहुत ही दुख की बात है।
क्या वाक़ई जिस भूमि पर गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी उसी बिहार में ज्ञान पाने के लिए सहेज कर रखी गई कीमती किताबों को स्वाहा कर दिया गया?
क्या वाकई नालंदा में इतिहास ने ख़ुद को दोहराया है? एक दौर था जब मगध के शहर नालंदा में एशिया के कई हिस्सों से स्कॉलर शिक्षा के लिए पहुंचा करते थे। माना जाता है कि दुनिया की पहली Residential University का निर्माण कुमार गुप्त ( 414-455 ) ने करवाया था। दुनियाभर की ख़ास किताबों से भरे शिक्षा के इस केंद्र को बख़्तियार ख़िलजी ने बर्बाद कर दिया था।( Source: Bihar Through the ages By- Ram Chandra Prasad )
एक बार फिर बिहार में शिक्षा के ऐतिहासिक मरकज़ को निशाना बनाया गया है।
कितना नुक़सान हुआ है?
सेक्रेटरी मुख़्तार उल हक कहते हैं कि पैसों से आंके जाने वाले नुक़सान को तो रहने दीजिए, यहां जो नुक़सान हुआ है उसकी भरपाई नहीं हो पाएगी।
लाइब्रेरी में 28 बड़ी-बड़ी अलमारियां थीं ( उसी वक़्त की जब मदरसा बना था) जिनमें नायाब ऐतिहासिक, पौराणिक और धार्मिक किताबें थीं। वे किताबें अमूल्य थीं। 1910 से लेकर अब तक छात्रों से जुड़े रिकॉर्ड थे, टीचिंग, नॉन टीचिंग स्टॉफ से जुड़े दस्तावेज़, मदरसे का अकाउंट सेक्शन, बैंक से जुड़ी सब जानकारी ख़त्म हो गई। जो किताबें थी वे अनमोल थीं, वे अब कहां से मिलेंगी, क्या पता किस तरह से आग लगाई कि कुछ नहीं बचा यहां तक की स्टील की अलमारी भी राख हो गई।
नुक़सान के बारे मदरसे के इंचार्ज प्रिंसिपल मोहम्मद शाक़िर बताते हैं कि, ''यहां की लाइब्रेरी में क़रीब 4500 किताबें थीं बेशकीमती नायाब किताबें, क़रीब 250 किताबें ऐसी थी जो हाथ से लिखी गई थीं, चूंकि ये इमारत 1910 में बनी थी तो बहुत सा फर्नीचर भी उसी वक़्त का था टेबल, अलमारियां, सब जल गया। किताबें तो जली ही साथ ही 1910 से लेकर अब तक जो यहां से पढ़कर निकले उनके रिकॉर्ड थे और सबसे अहम मदरसे का एफिलिएशन (affiliation) लेटर था वो भी जल गया वे बहुत ज़रूरी कागज था''।
जबकि मदरसे के पूर्व प्रिंसिपल का कहना है कि, ''यहां जो पुरानी अलमारियां थी 25 से 30 के बीच होंगी वे सतपुड़ा से लाई गई लकड़ी से बनी थीं। उनमें बहुत सी नायाब किताबें थीं, बहुत सी हाथ की लिखी हुई किताबें थी हमने एक बार सोचा भी था कि इन किताबों को पटना की ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी पहुंचा दिया जाए...।''
और ये कहते कहते मदरसे के पूर्व प्रिंसिपल ख़ामोश हो गए, शायद उन्हें एहसास हो गया कि बहुत देर हो गई।
मदरसा अज़ीज़िया का इतिहास
* 21 सितंबर 1896 में बीबी सोगरा (Bibi Soghra) ने वक्फनामा किया।
* इसी के साथ ही (1896 में ही) मदरसा अज़ीज़िया की स्थापना की गई, लेकिन पटना में।
* 1910 में बिहार शरीफ़ में मदरसा अज़ीज़िया बनाया गया (या कह सकते हैं कि शिफ्ट किया गया)
* आज भी सोगरा वक्फ स्टेट के द्वारा ही चलता है।
* 1930 में ये बिहार स्टेट मदरसा बोर्ड से एफिलिएट (affiliate) हुआ।
* बीबी सोगरा ने मदरसे की आलीशान इमारत बनवाई थी।
* तीन एकड़ में फैला है मदरसा, 18 क्लास रूम, मैदान और लाइब्रेरी के अलावा यहां तमाम ऑफिस भी बनाए गए थे।
मदरसा अज़ीज़िया के बारे में कुछ जानकारी
* आज की तारीख़ में मदरसा अज़ीज़िया में 500 बच्चे पढ़ रहे थे ( बच्चों के रहने की भी व्यवस्था है, लेकिन कोरोना के वक़्त उस व्यवस्था को बंद करना पड़ा।)
* यहां पहली से लेकर MA तक की पढ़ाई होती है। (दीनी और मॉर्डन दोनों ही तालीम की व्यवस्था है)
* सरकार की तरफ से यहां 15 सरकारी लोग नियुक्त किए जाते हैं जिनमें 12 टीचर और बाक़ी नॉन टीचिंग होते हैं।
* यहां पढ़ने और पढ़ाने वालों में कई बड़े नाम शामिल हैं।
इस मदरसे को क़ायम करने वाली आख़िर कौन थी बीबी सोगरा?
एक वेबसाइट Heritage Times के मुताबिक बीबी सोगरा (Bibi Soghra) नालंदा में 1815 में एक बेहद अमीर परिवार में पैदा हुई थीं। लोकल मदरसे में तालीम हासिल करने के बाद उन्होंने न सिर्फ़ उर्दू में बल्कि हिंदी, अरबी, फारसी और इंग्लिश में भी डिग्री हासिल की। 21 साल की उम्र में उनकी शादी मौलवी अब्दुल अज़ीज़ से हो गई, वे ब्रिटिश राज में एक सरकारी मुलाज़िम थे लेकिन 1857 के दौरान उन्होंने इस्तीफा दे दिया और क्रांति का हिस्सा बन गए। अब्दुल अज़ीज़ और बीबी सोगरा की एक बेटी हुई थी लेकिन टीबी (Tuberculosis) की बीमारी की वजह से वे दुनिया से रुखसत हो गई। बेटी के गम में अब्दुल अज़ीज़ भी बीमार पड़ गए और कुछ साल बाद वे भी दुनिया से चले गए। बेटी और पति की मौत के बाद बीबी सोगरा अकेली रह गईं और इन हालात से निकलने और ख़ुद को व्यस्त रखने के लिए उन्होंने दान-पुण्य (charity) से जुड़े काम करने शुरू कर दिए और 1896 में उन्होंने सोगरा वक्फ स्टेट की शुरुआत की। माना जाता है कि ये वक़्क बिहार के अलग-अलग हिस्सों में 28, 500 बीघा में फैला था। मतलब उस वक़्त सोगरा वक्फ स्टेट बिहार स्टेट का सबसे धनी स्टेट में से एक था।
Soghra Waqf Estate is considered one of the wealthiest waqf estates in Bihar with its assets spread across Nalanda, Nawada, Sheikhpura, Patna, Muzaffarpur and Samastipur districts. It operates various educational institutions, including government-aided Soghra… pic.twitter.com/EJv8LApsxI
— Lost Muslim Heritage of Bihar (@LMHOBOfficial) July 29, 2022
अपने पति की याद में बीबी सोगरा ने जिस वक्फ को बनाया उसने बहुत से नेक काम किए जिनमें से एक मदरसा अज़ीज़िया को खोलना भी था, इसमें कोई शक नहीं कि वे तारीख़ में दर्ज उन महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने इंसानों की ख़िदमत के लिए काम किया हालांकि उनके बारे में जानने वाले लोग कम ही हैं।
इसी बिहार की बीबी सोगरा ने इंसानी ख़िदमत के लिए मदरसा अज़ीज़िया खोला लेकिन इसी बिहार में नफ़रत में अंधे लोगों को ये भी दिखाई नहीं दिया की वे जिसे आग के हवाले कर रहे हैं वहां ज्ञान की रोशनी जलाई जाती है।
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इस मदरसा के प्रीसिंपल इंचार्ज बताते हैं कि इस मदरसे को केंद्र की तरफ से मॉडल मदरसे का दर्जा भी मिल चुका है वे हमारे साथ उन तस्वीरों को भी शेयर करते हैं जिसमें UNFPA ( United Nations Population Fund ) से जुड़े लोग इस मदरसे में पहुंचे थे जो उस वक्त पूरे बिहार में दो हज़ार मदरसों में छात्रों के सशक्तिकरण के लिए काम कर रहे थे।
मदरसे में आई UNFPA की टीम (ये तस्वीर स्कूल के प्रीसिंपल इंचार्ज ने दी है
मदरसा जल चुका है, नायाब क़ीमती किताबें राख हो चुकी हैं, कहां हैं वे लोग जिन्हें ये भी पता न चल पाया कि जिस जगह को वे आग के हवाले कर रहे हैं वो ज्ञान का मंदिर था।
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