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बिहार : “ये धुआं सा कहांं से उठता है”; जारी है सियासी पैंतरेबाज़ी

देखने वाली अहम् बात ये है कि यह सरगर्मी INDIA गठबंधन से अधिक NDA गठबंधन में दीख रही है।
Nitish Kumar

“ये धुआं सा कहांं से उठता है!”— उस्ताद शायर मीर तक़ी मीर के शेर की ये पंक्ति फ़िलहाल “दिल कि जां” से अधिक सत्ता-राजनीति के गलियारों में उठता हुआ अधिक दीख रहा है। जो कितना सच और सही है, के निष्कर्ष पर पहुंचना फ़िलहाल फायदेमंद नहीं होगा। क्योंकि मौजूदा सत्ता–राजनीति का चरित्र क्रिकेट के खेल जैसा “अनिश्चितताओं से भरा हुआ’ बनाया जा चुका है, कि जिसमें कब क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता है।   

फ़िलहाल सियासी “धुंध-धुआं” बना हुआ है बिहार में नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू के आतंरिक क्रिया-कलाप को लेकर। चंद रोज़ पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी जदयू में सांगठनिक फेर-बदल करके खुद को अध्यक्ष क्या बनाया कि बीत रहा 2023 का साल, बढ़ती सर्दी के बीच भी तीखी सियासी सरगर्मी दे गया। इसमें देखने वाली अहम् बात ये है कि यह सरगर्मी INDIA गठबंधन से अधिक NDA गठबंधन में दीख रही है। जिसमें भाजपा के आला नेताओं समेत इसके सभी घटक दलों के प्रवक्ताओं की ताबड़तोड़ बयानबाजी की झड़ी सी लगी हुई है। हर दिन नीतीश कुमार के बहाने INDIA गठबंधन के कमजोर होने से लेकर जदयू में टूट इत्यादि के विश्लेषण-भविष्यवाणियां मीडिया की सुर्ख़ियों में लगातार परोसी जा रहीं हैं।  

चर्चा उठाई गई कि जदयू के कद्दावर नेता ललन सिंह राजद के साथ मिलकर पार्टी में टूट करवाना चाहते थे। जिसे समय रहते नीतीश कुमार ने भांप लिया और उन्हें अध्यक्ष पद से हटाकर पार्टी पर कमांड के लिए खुद अध्यक्ष बन गए। इसे साबित करने के लिए कई स्थापित राष्ट्रीय चैनलों ने बज़ाब्ता अपने संवादाताओं की “एक्सक्लूसिव रिपोर्ट” में पूरे दावे के साथ ये खबर दिखाई कि- फलां जगह पर जदयू के कुछ विधायकों ने “गुप्त मीटिंग” की है। जिसमें परोक्ष रूप से ललन सिंह भी जुड़े हुए थे।

“धुएं” के इस सबसे बड़े ग़ुबार को तो खुद जदयू के पूर्व अध्यक्ष ललन सिंह ने ही काफ़ूर कर दिया, 31 दिसंबर को अपने संसदीय क्षेत्र मुंगेर में ताबड़तोड़ रैली और जनसंवाद कार्यक्रमों के माध्यम से। जिसे संबोधित करते हुए उन्होंने जदयू में टूट व INDIA गठबंधन के कमज़ोर होने की अफ़वाहों का ज़ोरदार खंडन करते हुए भाजपा पर पलटवार किया। आक्रामक अंदाज़ में बिहार सरकार और गठबंधन के ख़िलाफ़ मिथ्या प्रचार करने का आरोप लगाते हुए कहा कि- मीडिया द्वारा जिस झूठे नैरेटिव को स्थापित करने की कोशिश हुई, उसका सारा स्क्रिप्ट भाजपा मुख्यालय से तय किया गया। उन्होंने उनके ख़िलाफ़ झूठा नैरेटिव फैलाने वाले मिडिया समूहों के ख़िलाफ़ कानूनी कारवाई करने की धमकी भी दी है।  

ग़ुबार यह भी उठाया गया कि नीतीश कुमार जी फिर से “पाला बदल कर” NDA गठबंधन-भाजपा में शामिल हो सकते हैं। जिसके सबूत के तौर पर 29 दिसम्बर को दिल्ली में हुई पार्टी की बैठक में एक प्रमुख नेता के बयान- राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन नहीं होता, का हवाला दिया जा रहा है। जिसे पुष्ट करने के लिए और कोई तथ्यात्मक विवरण अभी तक सामने नहीं आया है।

ब्रेकिंग न्यूज़ में एक ग़ुबार यह भी चर्चाओं में लाया जा रहा है कि- राजद की ओर से तेज़स्वी यादव को ज़ल्द से ज़ल्द मुख्यमंत्री बनाने का दबाव बनाया जा रहा है। जिससे निपटने के लिए ही नीतीश कुमार विशेष रणनीति पर अमल कर रहें हैं। हालांकि इस बाबत भी राजद की ओर से आधिकारिक अथवा किसी नेता का कोई बयान नहीं सामने आया है। हाँ, तेजस्वी यादव के विदेश दौरे को अचानक रद्द किये जाने को मीडिया ने जिस तरह से जबरदस्त राजनीतिक तूल दिया कि लोगों में यही नैरेटिव जाय कि-राजद और जदयू में काफी तानातानी चल रही है, लेकिन इसका प्रभाव भी तात्कालिक ही दिखा।

अफ़वाह और कयासों के बीच, लालू प्रसाद यादव को नववर्ष की शुभकामना देने पहुंचे बिहार विधानसभा अध्यक्ष की शिष्टाचार मुलाकात को भी मीडिया ने काफ़ी तूल दिया। हालाँकि मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए विधान सभा अध्यक्ष ने दो टूक लहजे में साफ़ कहा कि- नव वर्ष की शुभकामना देने के अलावे, कोई राजनीतिक वार्ता नहीं हुई है। बाद में गठबंधन के अन्य दलों को भी अपनी शुभकामना देने के लिए वहां से निकल गए।   

इस दौरान, राजद के डिहरी विधायक द्वारा लगाए गए पोस्टर को लेकर भी भाजपा व उसके आला नेताओं द्वारा काफी विवाद पैदा किया जाना भी चर्चाओं में रहा। जिसमें लालू प्रसाद-राबड़ी आवास के सामने लगाए गए पोस्टर के माध्यम से उक्त विधायक ने- मंदिरों को अंधविश्वास और पाखण्ड का केंद्र बताते हुए लोगों से सावित्री बाई फूले के रस्ते पर चलने का आह्वान किया था।

फ़िलहाल नए साल की सियासी सरगर्मियों में INDIA गठबंधन के घटक दलों की ओर से नीतीश कुमार को गठबंधन का संयोजक बनाने के प्रस्ताव की ख़बर खूब वायरल कर, बताया जा रहा है कि- आज आ सकता है प्रस्ताव।

वरिष्ठ राजद नेता व राज्यसभा सांसद मनोज झा ने मीडिया बयान में कहा है कि- INDIA गठबंधन में नीतीश कुमार से ज्यादा अनुभवी कोई नहीं है। लिहाजा हम उन्हें ही संयोजक बनाना चाहते हैं। नीतीश कुमार तेजस्वी यादव के बीच मतभेद होने की ख़बरों का खंडन करते हुए कहा कि देर सबेर टारगेट में सबों को आना है।

जदयू के भी वरिष्ठ नेता व सरकार में मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा है कि- जब बात सामने आएगी तो स्वाभाविक रूप से पार्टी के वरिष्ठ नेतागण इस पर विचार करेंगे ही। वैसे इसमें भी कोई शक नहीं है कि नीतीश कुमार जी की पहल-प्रयासों से ही गठबंधन की बुनियाद मजबूत हुई है। 

बिहार में उठ रहे नित “सियासी धुएं” को लेकर कई ज़मीनी राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं-एक्टिविस्टों और विश्लेषकों की बातों पर गौर करना भी बेहद ज़रूरी होगा। इन्हें जानना-समझना इसलिए भी बेहद ज़रूरी है कि केंद्र की सत्ता में काबिज़ “राजनीति विशेष और विचारधारा”, पूरी ताक़त के साथ लगी-भिड़ी हुई है कि अपने विरोधी को हराने-गिराने के लिए “कुछ भी करना” उसका वर्चस्वपूर्ण अधिकार है। क्योंकि धर्म-ध्वजा उसके हाथ है और सदन में प्रचंड बहुमत उसके साथ है।

पटना से प्रकाशित होनेवाली “सबाल्टर्न” पत्रिका के प्रधान संपादक महेंद्र सुमन का स्पष्ट मानना है कि- नीतीश कुमार जी द्वारा “पल्टी मारने” की स्थिति अब नहीं रह गयी है। रहा सवाल पिछ्लेअध्यक्ष की राजद से नजदीकी होने का मामला, वो बिल्कुल गलत है। हाँ ये ज़रूर है कि हाल के दिनों में ललन सिंह भाजपा के ख़िलाफ़ मुखर नज़र आये हैं। जदयू में टूट की संभावना राजद की ओर से नहीं बल्कि भाजपा के जरिये होनी है। जो देर-सबेर कभी भी हो सकती है। क्योंकि इसके पहले भी पूर्व अध्यक्ष आर सीपी सिंह पर जदयू में रहकर भाजपा के लिए काम करने के आरोप लग चुके हैं।

हालाँकि महेंद्र सुमन का यह भी मानना है कि- भाजपा को लेकर नीतीश कुमार में कोई बहुत शत्रुतापूर्ण भाव नहीं रहा है। जो कई बार खुलकर सामने आया भी है। दूसरे, पूर्व में जनता दल व उसके बाद समता पार्टी से लेकर जदयू के निर्माण तक में “कांग्रेस विरोध” अहम् पहलू रहा है और ये पहली बार हुआ है कि INDIA गठबंधन के तहत वे कांग्रेस के साथ आये हैं।

नागरिक अधिकार कार्यकर्ता सरफराज़ का भी लगभग यही मानना है कि- मामला जदयू के टूटकर राजद में नहीं बल्कि भाजपा में जाने का है। 2024 का चुनाव सर पर है और भाजपा पक्ष की चालों के मुकाबले के लिए उनका खुद आगे आना, मज़बूरी बन गया है। दूसरे, नीतीश कुमार भी ये भली भांति जानते-समझते हैं कि भाजपा का फोकस उनके वोट जनाधार पर है। हालाँकि यह भी सच है कि “पाला बदलने” को लेकर नीतीश कुमार की जनता में साख़ बहुत अच्छी नहीं है।

ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम के कार्यकर्ता कमलेश शर्मा के अनुसार- संघ व भाजपा के साथ साथ मोदी जी की पूरी टीम के लिए बिहार के गैर भाजपा दलों का “महागठबंधन” एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। इसलिए इसे तोड़ने व कमज़ोर करने के लिए बिहार से लेकर केंद्र के स्तर पर हर जुगत भिड़ाई जा रही है और INDIA गठबंधन को लेकर मतदाताओं को गुमराह करने के लिए नित नए प्रपंच रचे जा रहें हैं।

बिहार महागठबंधन की सबसे बड़ी विशेषता है कि क्षेत्रीय दलों के साथ साथ इसमें संघ-भाजपा की राजनीति व विचारधारा को ज़मीनी-सामाजिक स्तर पर सीधे टक्कर देनवाले वामपंथी दल एक महत्वपूर्ण घटक हैं। पिछले दिनों पटना में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सरेआम ही फतवा दे दिया था कि उनकी पार्टी के राज में किसी भी क्षेत्रीय दल को प्रभावी नहीं रहने दिया जाएगा। जिसके विरोध में सबसे तीखी प्रतिक्रिया भी बिहार से उठी थी। ऐसे में आज की तारीख में किसी भी क्षेत्रीय पार्टी को NDA गठबंधन में जाने के लिए सोचना ही होगा।

उक्त पूरे प्रकरण में कमलेश शर्मा का यह कहना भी काफी मायने रखता है कि- आज देश को ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया गया है कि लोकतंत्र-संविधान और धर्मनिरपेक्षता को टिकाने-बचाने का कोई बीच का रास्ता नहीं रह गया है। आनेवाले 2024 के लोकसभा चुनाव इसी को लेकर होना है कि वो चाहे कोई भी राजनीतिक दल अथवा नेता हो, उसे सामने मौजूद दो पक्षों में से किसी न किसी एक पक्ष के साथ साक्षात-सीधे आना ही पडे़गा।

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