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अररिया: दुष्कर्म पीड़िता के सहयोगियों को सुप्रीम कोर्ट से मिली ज़मानत, बिहार सरकार को नोटिस

दुष्कर्म पीड़िता सहित जन जागरण शक्ति संगठन के दो कार्यकर्ताओं को जेल भेजे जाने का यह मामला बीते कई दिनों तक लगातार सुर्खियों में रहा था। इस क़दम की देशभर में आलोचना हुई थी। जिसके बाद 17 जुलाई को बिहार की अररिया कोर्ट ने विशेष सुनवाई करते हुए पीड़िता को ज़मानत दे दी थी। लेकिन उनके दो साथियों को राहत नहीं मिली थी।
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Image Credit: Aasawari Kulkarni/Feminism In India

पिछले कई दिनों से चर्चा में रहे बिहार के अररिया सामूहिक दुष्कर्म मामले में पीड़िता को सहयोग करने वाले जन जागरण शक्ति संगठन के दोनों कार्यकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। उन्हें 10 हजार के निजी मुचलके पर जेल से छोड़ने का आदेश दिया गया है। साथ ही इस मामले पर राज्य सरकार को नोटिस भी जारी हुआ है।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यों की पीठ ने कल्याणी एवं तन्मय (जन जागरण शक्ति संगठन कार्यकर्ता) की ओर से दायर जमानत अर्जी पर सुनवाई के बाद दोनों को जमानत दे दी। इस दौरान जस्टिस मिश्रा ने इस मामले और रेप पीड़िता को जेल भेजने के फ़ैसले को 'इम्परमिसिबल' (अस्वीकार्य) बताया।

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बता दें कि दुष्कर्म पीड़िता सहित जन जागरण शक्ति संगठन के दो कार्यकर्ताओं को कोर्ट की अवमानना के आरोप में जेल भेजे जाने का यह मामला बीते कई दिनों तक लगातार सुर्खियों में रहा था। इस क़दम की देशभर में आलोचना हुई थी। बिहार राज्य महिला आयोग के साथ ही इस मामले को राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी संज्ञान में लिया था।

देशभर के 376 वकीलों और 63 संस्थाओं ने पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर पीड़िता और उनके दो सहयोगियों को रिहा करने की माँग की थी। पत्र में दुष्कर्म मामले में भी न्यायिक प्रक्रिया को तेज़ करने की बात कही गई थी।

इस मामले पर संज्ञान लेते हुए पटना हाईकोर्ट ने 17 जुलाई को सुनवाई की तारीख़ रखी थी। लेकिन बाद में अररिया सीजेएम आनंद कुमार सिंह की कोर्ट ने इस मामले में विशेष सुनवाई करते हुए दुष्कर्म पीड़िता को पीआर बॉन्ड पर ज़मानत दे दी थी। लेकिन उनके दो साथियों तन्मय और कल्याणी को ज़मानत नहीं मिली थी। जिसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।

क्या है पूरा मामला?

जानकारी के मुताबिक बिहार के अररिया जिले में 6 जुलाई की शाम एक 22 साल की लड़की के साथ कई लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया। इसके बाद वारदात के अगले दिन यानी 7 जुलाई को पीड़िता ने इसकी रिपोर्ट अररिया महिला थाने में दर्ज कराई।

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक ये मामला महिला थाने में कांड संख्या 59/2020, भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (डी) के तहत दर्ज किया गया है। इस एफ़आईआर में ज़िक्र है कि मोटरसाइकिल सिखाने के बहाने पीड़िता को एक परिचित लड़के ने बुलाया और फिर एक सुनसान जगह ले जाया गया। जहाँ मौजूद चार अज्ञात पुरुषों ने उसके साथ बलात्कार किया। इस दौरान पीड़िता ने अपने परिचित से मदद मांगी, लेकिन वो वहाँ से भाग गया।

पीड़िता के बयान के मुताबिक, गैंगरेप के बाद रात 10.30 बजे आरोपी उसे नहर के पास लाकर छोड़ गए, जिसके बाद उसने अररिया में ही काम करने वाले जन जागरण शक्ति संगठन (जेजेएसएस) के सदस्यों की मदद ली।

इस मामले में 7 और 8 जुलाई को पीड़िता की मेडिकल जाँच हुई। जिसके बाद 10 जुलाई को उसे बयान दर्ज कराने के लिए ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट में ले जाया गया। इसी दिन तकरीबन शाम 5 बजे पीड़िता और जेएसएस के दो सदस्यों को हिरासत में ले लिया गया और 11 जुलाई को उन्हें जेल भेज दिया गया।

आखिर क्या हुआ था मजिस्ट्रेट कोर्ट में?

जन जागरण शक्ति संगठन की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ के मुताबिक, पीड़िता और जन जागरण शक्ति संगठन के कार्यकर्ता 10 जुलाई को दोपहर 1 बजे अररिया ज़िला न्यायालय पहुंचे। जहां मजिस्ट्रेट मुस्तफा शाही के सामने पीड़िता का बयान दर्ज होना था। वहाँ इन लोगों ने कॉरीडोर में इंतज़ार किया। उस वक़्त केस का एक अभियुक्त भी वहीं मौजूद था। तकरीबन 4 घंटे के इंतज़ार के बाद पीड़िता का बयान लिया गया।

प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक़, "बयान के बाद जब पीड़िता को न्यायिक दंडाधिकारी ने बयान पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा, तो वो उत्तेजित हो गईं। उन्होंने उत्तेजना में कहा कि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। आप क्या पढ़ रहे है, मेरी कल्याणी दीदी को बुलाइए।"

कल्याणी और तन्मय निवेदिता जन जागरण शक्ति संगठन के कार्यकर्ता हैं, जो इस मामले में पीड़िता के मददगार भी हैं। कल्याणी के घर ही वारदात वाली रात से पीड़िता रह रही थी।

"बाद में, केस की जाँच अधिकारी को बुलाया गया, तब पीड़िता ने बयान पर हस्ताक्षर किए। बाहर आकर पीड़िता ने जेजेएसएस के दो सहयोगियों तन्मय निवेदिता और कल्याणी से तेज़ आवाज़ में पूछा कि 'तब आप लोग कहाँ थे, जब मुझे आपकी ज़रूरत थी।"

बाहर से आ रही तेज़ आवाजों के बीच ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने कल्याणी को अंदर बुलाया। कल्याणी ने पीड़िता का बयान पढ़कर सुनाए जाने की मांग की। जिसके बाद वहाँ हालात गंभीर हो गए।

न्यायिक दंडाधिकारी के साथ अभद्रता का आरोप

स्थानीय अखबार दैनिक भास्कर में छपी रिपोर्ट में लिखा है, " न्यायालय के पेशकार राजीव रंजन सिन्हा ने दुष्कर्म पीड़िता सहित दो अन्य महिलाओं के विरुद्ध महिला थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई है। दर्ज प्राथमिकी में बताया गया है कि पीड़िता ने बयान देकर फिर उसी पर अपनी आपत्ति जताई।"

रिपोर्ट में लिखा है कि, "न्यायालय में बयान की कॉपी भी छीनने का प्रयास किया गया। न्यायालय में इस तरह की अभद्रता से आक्रोशित न्यायिक दंडाधिकारी ने तीनों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया है।"

पीड़ित को प्रताड़ित करने का आरोप

जन जागरण शक्ति संगठन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि बार-बार एक ही घटना और उससे जुड़े स्थलों के निरीक्षण के बाद पीड़िता मानसिक रूप से बेहद परेशान सी हो गयी थी। उधर उसपर आरोपी पक्ष की ओर से लगातार शादी करने का दबाव भी बनाया जा रहा था।

संगठन के आशीष रंजन ने बताया, “दुष्कर्म पीड़िता अपनी मददगार की मौजूदगी में धारा 164 के तहत लिखित बयान पढ़वाना चाहती थी लेकिन, यह बात मजिस्ट्रेट साहब को नागवार लगी और पीड़िता समेत दोनों सामाजिक कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ ही कार्रवाई कर दी। उनपर आईपीसी की अलग-अलग धाराओं के साथ आईपीसी की धारा 188 भी लगायी गयी है, जिसके तहत उनपर महामारी रोग अधिनियम के अंतर्गत भी कार्रवाई की जा सकती है।”

आशीष रंजन ने जेल भेजे जाने की कार्रवाई पर हैरानी जताते हुए कहा था कि एक गैंगरेप पीड़ित न्यायालय में न्याय के लिए गई है, उस पर कोर्ट खफा हो जाता है और जो सामाजिक कार्यकर्ता उनकी मदद कर रहे हैं, उन पर कार्रवाई हो जाती है।

कानून क्या कहता है?

इस संबंध में वकील आर्शी जैन कहती हैं कि निचली अदालतों में कोर्ट की अवमानना का मामला नहीं चलाया जा सकता है। अगर लोअर कोर्ट में ऐसी कोई बात सामने आती है तो उसे उच्च न्यायालय के संज्ञान में लाना जरूरी होता है। अदालत की अवमानना के इस मामले में जिस तरह से जेल भेज दिया गया है वह प्रक्रिया कंटेंप्ट ऑफ़ कोर्ट के प्रावधान के उलट है।

आर्शी आगे बताती हैं, “निर्भया मामले के बाद साल 2013 में रेप संबंधित कानून क्रिमिनल लॉ एमेन्डमेंट एक्ट को महिला केंद्रित बनाया गया। इसका मतलब है कि अब कानून में पुरानी सेक्शुएलिटी हिस्ट्री डिस्कस नहीं करने की बात को मान्यता दी गई। विक्टिम की प्राइवेसी को महत्वपूर्ण माना गया। साथ ही ये भी प्रावधान किया गया कि अगर 164 का बयान (जो निजी होता है और उस दौरान वहाँ कोई और मौजूद नहीं रह सकता) दर्ज़ कराते वक़्त अगर पीड़िता सहज नहीं है और किसी 'पर्सन ऑफ कॉन्फिडेंस' (विश्वस्त व्यक्ति) को साथ में ले जाना चाहती है, तो इसकी अनुमति दी गई। इसमें बयान की कॉपी भी मिलने का प्रावधान किया गया।”

महिलावादी संगठनों ने उठाई थी रिहाई की मांग

इस घटना के सामने आने के बाद बिहार के महिलावादी संगठनों ने पीड़िता और जन जागरण शक्ति संगठन के कार्यकर्ताओं के समर्थन में आवाज़ उठाई थी। तीनों की जल्द रिहाई की मांग भी की गई थी।

अखिल भारतीय जनवादी महिला संगठन (एडवा) की राज्य अध्यक्ष रामपरी ने अपने एक बयान में पीड़िता और उनके सहयोगियों को जेल भेजे जाने के फैसले को अमानवीय बताया था।

रामपरी के अनुसार, “पीड़िता मानसिक तनाव की स्थिति से गुज़र रही थी। उसको कई बार घटना को बताना पड़ा, उसकी पहचान उजागर की गई। एक अभियुक्त और उसके परिवार के लोगों ने शादी का प्रस्ताव देकर मामले को रफ़ा-दफ़ा करने की कोशिश की, जिसको पीड़िता ने ठुकरा दिया। वो 22 साल की है, वयस्क है और अपना केस मज़बूती से लड़ना चाहती है, लेकिन उससे, उसके 'लीगल गार्जियन' के बारे में पूछा जा रहा है। कांउसलिंग की भी कोई सुविधा नहीं है। हम न्यायपालिका में विश्वास रखते हुए, न्याय की मांग और उम्मीद करते है।"

गौरतलब है कि बिहार में नीतीश सरकार भले ही सुशासन का दावा कर रही हो लेकिन आए दिन महिलाओं के खिलाफ हो रही अपराध की वारदातें राज्य में कानून व्यवस्था की पोल खोल देती हैं। पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों पर गौर करें, तो इस साल अप्रैल महीने तक दुष्कर्म की 404 घटनाएं घट चुकी हैं। यानी हर महीने 101 बलात्कार हो रहे हैं। इसके साथ ही इस दौरान 874 हत्याएँ हुई हैं।

2019 के आंकड़ों की बात करें तो बिहार में पिछले साल हत्या के कुल 3138 मामले दर्ज किए गए थे तो वहीं बलात्कार के 1450 मामले दर्ज हुए थे। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा जारी रिपोर्ट में साल 2018 में देश भर के 19 मेट्रोपॉलिटन शहरों में होने वाली हत्याओं में पटना को पहले स्थान पर बताया है, तो वहीं अपराध के मामले में बिहार पांचवे स्थान पर रहा। महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध में भी बढ़ोतरी हुई है जबकि दहेज के कारण होने वाली हत्या में भी पटना पहले स्थान पर था। जबकि उत्तर प्रदेश का कानपुर दूसरे स्थान पर था।

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