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उत्पीड़न
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भारत
बॉक्सर लवलीना बोरगोहाईं की प्रताड़ना है खेलों में महिला संघर्ष की एक और कहानी
2022 राष्ट्रमंडल खेलों में लवलीना भारत की ओर से पदक की सबसे बड़ी दावेदारों में शामिल हैं। लेकिन इन खेलों से महज़ कुछ दिन पहले लवलीना ने बॉक्सिंग फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया के बड़े अधिकारियों पर सवाल उठाते हुए मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया है।
सोनिया यादव
26 Jul 2022
 Lovlina Borgohain

भारत वह देश है जहां आज भी महिला सशक्तिकरण के तमाम दावों और वादों के बावजूद लड़कियों को जन्म लेने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। अपनी पसंद और लीक से हटकर चलने के लिए न सिर्फ उन्हें मानसिक प्रताड़ना सहनी पड़ती है बल्कि जान तक गंवानी पड़ती है। खेल के मैदान में भी एक महिला खिलाड़ी को उसकी लैंगिक पहचान के कारण अलग-अलग तरीके से टार्गेट किया जाता है। हाल ही में 2022 राष्ट्रमंडल खेलों से महज़ कुछ दिन पहले सोमवार, 25 जुलाई को टोक्यो ओलंपिक में बॉक्सिंग में कांस्य पदक जीतने वाली लवलीना बोरगोहाईं ने मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया है। लवलीना ने बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के बड़े अधिकारियों पर सवाल उठाते हुए कहा है कि उन्हें बहुत प्रताड़ित किया जा रहा है और इस वजह से राष्ट्रमंडल खेलों की उनकी तैयारी को नुक़सान हो रहा है।

बता दें कि लवलीना इस समय बर्मिंघम में है और वो निकहत ज़रीन, नीतू घणघस, जैसमिन लंबोरिया के साथ 2022 राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने पहुंची हैं। लवलीना 70 किलोग्राम कैटेगरी की फाइट में हिस्सा लेंगी और भारत की ओर से मेडल के सबसे बड़ा दावेदारों में शामिल हैं। लवलीना बॉक्सिंग में ओलंपिक मेडल जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला बॉक्सर भी हैं।

क्या है पूरा मामला?

राष्ट्रमंडल खेल यानी कॉमनवेल्थ गेम्स के शुरू होने से महज़ तीन दिन पहले लवलीना ने बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (बीएफआई) पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने एक ट्वीट के जरिए लोगों के सामने अपना दर्द रखा। उन्होंने लिखा कि उनके दोनों कोच को अनुरोध के बाद भी बहुत देर से ट्रेनिंग कैंप में शामिल किया जाता है। लवलीना का कहना है कि उन्हें इस कारण ट्रेनिंग में बहुत परेशानियां उठानी पड़ती हैं और मानसिक प्रताड़ना तो होती ही है।

लवलीना ने ट्वीट किया, “आज मैं बहुत दुख के साथ कहती हूं कि मुझे प्रताड़ित किया जा रहा है। हर बार मैं, मेरे कोच जिन्होंने ओलंपिक में मेडल लाने में मेरी मदद की, उन्हें बार-बार हटाकर मेरी ट्रेनिंग प्रोसेस और कॉम्पटिशन में मुझे प्रताड़ित किया जा रहा है। इनमें से एक कोच संध्या गुरुंग जी द्रोणाचार्य अवॉर्डी भी है। मेरे दोनों कोच को कैम्प में भी ट्रेनिंग के लिए हज़ार बार हाथ जोड़ने के बाद बहुत देरी से शामिल किया जाता है। मुझे इस ट्रेनिंग में बहुत परेशानियां उठानी पड़ती है और मानसिक प्रताड़ना तो होती ही है। अभी मेरी कोच संध्या गुरुंग जी कॉमनवेल्थ विलेज के बाहर है। उन्हें एंट्री नहीं मिल रही है और मेरी ट्रेनिंग प्रोसेस गेम के ठीक आठ दिन पहले रुक गई है।"

🙏 pic.twitter.com/2NJ79xmPxH

— Lovlina Borgohain (@LovlinaBorgohai) July 25, 2022

अपनी बात आगे रखते हुए लवलीना ने लिखा, "मेरे दूसरे कोच को भी इंडिया वापस भेज दिया गया है। मेरी इतनी गुज़ारिश करने के बाद भी ये हुआ है इसने मुझे मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं गेम पर कैसे फोकस करूं। इसी की वजह से मेरी लास्ट वर्ल्ड चैम्पियनशिप भी खराब हुई और इस पॉलिटिक्स के चलते मैं अपना कॉमनवेल्थ गेम्स खराब नहीं करना चाहती हूं। आशा करती हूं कि मैं मेरे देश के लिए इस पॉलिटिक्स को तोड़ कर मेडल ला पाऊं। जय हिंद।"

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार लवलीना की पर्सनल कोच संध्या गुरुंग एक्रीडीशन नहीं होने के कारण खेल गांव में दाखिल नहीं हो सकीं। खबर के मुताबिक कॉमनवेल्थ गेम के दौरान लवलीना शायद अपने पर्सनल कोच एमी कोलेकर को साथ रखना चाहती थीं लेकिन लिस्ट में उनका नाम नहीं आया। हालांकि यहां ये बड़ा सवाल है कि लवलीना की इन परेशानियों को बॉक्सिंग फेडरेशन ने पहले क्यों नहीं सुलझाया। क्यों उनको आखिर में पूरी दुनिया के सामने ट्विटर पर अपना दर्द बयां करना पड़ा। क्या ऐसी शिकायत हमने कभी पुरुष खिलाड़ियों के संबंध में सुनी है।

बॉक्सिंग फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया ने दी प्रतिक्रिया

मामले के तूल पकड़ने के बाद बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (बीएफ़आई) ने लवलीना की शिकायत पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि एक्रीडीशन की प्रक्रिया इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन (आईओए) देखता है और उम्मीद जताई है कि ये मुद्दा जल्द ही सुलझा लिया जाएगा।

बीएफ़आई ने कहा, "आईओए और बीएफ़आई संध्या गुरुंग के एक्रीडीशन पर लगातार काम कर रही हैं। ये आईओए के हाथ में है लेकिन ये आज या कल तक पूरा हो जाएगा।"

भारत सरकार के खेल मंत्रालय ने इस मामले में अपना पक्ष रखते हुए कहा है, "हमने इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन से आग्रह किया है कि वे तत्काल लवलीना की कोच के एक्रीडीशन की प्रक्रिया पूरी करें।"

गौरतलब है कि भारत एक ऐसा देश है जहां पुरुष क्रिकेट को एक धर्म माना जाता है। बाकी खेलों को क्रिकेट जितनी तवज्जो नहीं मिलती। न तो खेल मंत्रालय से ही और न ही आम लोगों से। स्कूल और ज़िला जैसे ज़मीनी स्तर पर भी यही हाल है। स्थिति तब और ज्यादा खराब हो जाती है जब महिलाओं के खेल की स्थिति पर नज़र डालें। महिलाओं को न तो खेल में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और न ही उनके लिए खेल आयोजित होते हैं। पितृसत्तात्मक समाज में तो सार्वजनिक रूप लड़कियों का खेलना वर्जित है। पुलिस भर्ती के लिए दौड़ लगाती लड़कियां सुबह अंधेरे में ही दौड़ती हैं। इन सब असमानता के बावजूद खेल में महिला खिलाड़ियों की उपलब्धियां बढ़ रही हैं, बीते दो ओलंपिक हो या वर्तमान में अंतर्राष्ट्रिय स्तर की खेल प्रतियोगिताएं हर जगह महिला खिलाडियों ने जीत हासिल कर भारत को पदक दिला रही हैं।

खेलों में महिलाओं का संघर्ष

महिलाएं खेलों में पुरुषों के साथ बराबरी के लिए दशकों से लड़ रही हैं। कई सफल महिला खिलाड़ियों के इस संघर्ष ने खेलों की दुनिया को हिला के रख दिया, लेकिन कई क्षेत्रों में वो सफलता ज्यादा वक्त तक चली नहीं। एक कहावत है ‘उगते सूरज को सब सलाम करते हैं।’ यह बात पदक जीतने वाले तमाम खिलाड़ियों पर भी सटीक बैठती है। पदक जीतने के बाद महिला खिलाड़ियों को आईडिल बना कर उनकी वाहवाही तो आसानी से की जाती है लेकिन पितृसत्तात्मक समाज से उनके संघर्ष पर आंखें बंद कर ली जाती हैं। उनकी उपलब्धियों पर बाहें फैलाने वाला यहीं जोशीला समाज सबसे बड़ा बाधक होता है। जो गुमनामी के वक्त इन लड़कियों पर खेलने की रोक लगाता है। इन्हें सफर में टूर्नामेंट खेलते जाते वक्त ट्रेन से धक्का दे देता है। यह वक्त है इस बात को भी पूछने का कि आखिर क्यों उन्होंने ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

वैसे हमारा मीडिया भी इन महिलाओं के संघर्ष के क्रेडिट को खाने में पीछे नहीं रहता। वो पितृसत्तात्मक समाज में महिला खिलाड़ियों को ‘बेटी’ बनाकर उनका पिता बन रहा है। वह पिता जो बेटी को रोकता है, टोकता है उस पर बंदिश लगाता है। यही पितृसत्ता का पहला कदम है जैसे ही मीराबाई चानू, पी.वी. सिंधु, मैरीकॉम, रानी रामपाल के नाम आते हैं इनकी पहचान इनके खेल से न कर इन्हें ‘भारत की बेटियां’ बना दिया जाता है। ये लड़कियां भारत की नागरिक हैं, जिन्होंने खिलाड़ी बनना चुना है। जो अपने हुनर और मेहनत के दम पर विश्व में अपनी पहचान कायम कर रही हैं। बेटियों का तमगा इनके लिए सहानुभूति लाता है लेकिन इनके संघर्ष को नजरअंदाज कर देता है। इन खिलाड़ियों को बेटियां कहना इनके खिलाड़ी बनने तक के सफर को भुला देना है। दूसरी ओर ‘लड़कियां नहीं हैं लड़को से पीछे’ जैसी बात पुरुषों की श्रेष्ठता को बयान करती है। मतलब लड़कियों ने जो किया है वे लड़के पहले से ही करके आते हैं। लड़कों का ऐसा करना सामान्य और अधिकार है। अगर लड़कियां ऐसा कर रही है तो वे लड़कों से ही प्रेरणा लेती हैं, मतलब प्रेरणास्त्रोत हमेशा पुरुष ही होते हैं।

बात अगर कवरेज की हो तो वह महिला खिलाड़ियों की जीत को वह स्थान नहीं दिया जाता है जो पुरुष खिलाड़ियों को मिलता है। बीबीसी की एक रिसर्च में सामने आया है कि खेल जगत की खबरों में महिला खिलाड़ियों को 30 फीसद कम कवरेज मिलती है। वहीं, खेल में महिला खिलाड़ियों के लिए वेतन और स्पॉसर का मुद्दा भी है। खेल जगत में मैदानी संघर्ष के एलावा महिलाओं के उस संघर्ष को मत नकारिए जो उसने जातिवाद, गरीबी, लैंगिक भेदभाव और पितृसत्ता के कारण झेला है। पदक जीतने से पहले सालों-साल गुमनामी में जीती हैं, भेदभाव से लड़ती हैं, खेल जगत में होने वाले शोषण पर आवाज़ उठाती हैं तो कभी चुपचाप अपने खेल से जवाब देने की जिद में लग जाती है। ये उसका जुनून ही है जो हर मुश्किल को पार कर, तमाम सामाजिक बेड़ियों को तोड़ वो आज पुरुष प्रधान समाज में अपना परचम लहरा रही है।

Lovlina Borgohain
Boxer
Birmingham 2022 Commonwealth Games
Indian Olympic Association
women empowerment
Women's in Sports
Harassment

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