Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

#CAA #NRC : मेरे अपने मेरे होने की निशानी मांगें...

बहुत लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि नागरिकता क़ानून और नागरिकता रजिस्टर का विरोध क्यों हो रहा है। तो आइए आपको बेहद आसान भाषा में समझाते हैं कि क्या है CAA? क्या है NRC? और क्या इससे चिंतित होने की ज़रूरत है?
CAA Protest

नमस्कार। बहुत लोगों को नागरिकता संशोधन क़ानून यानी Citizenship Amendment Act (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी National Register of Citizens (NRC) को लेकर बहुत भ्रम है। बहुत लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि इनका विरोध क्यों हो रहा है। तो आइए आज मैं आपको बेहद आसान भाषा में समझाता हूं कि क्या है CAA और क्या है NRC और क्या इससे डरना और डराना चाहिए? क्या इससे चिंतित होना चाहिए?

मेरे साथ हैं मेरी बेटी जो अब 16 साल की हो रही है। और साथ में हैं मां जो करीब 85 साल की हैं। मेरी उम्र 46 साल है। अब अगर पूरे देश में NRC लागू होता है, जैसा कि हमारे गृहमंत्री अमित शाह संसद में घोषणा कर चुके हैं तो क्या होगा। तो होगा ये कि मुझे, मेरी बेटी को और मेरी मां तीनों को अपनी नागरिकता के काग़ज़ ज़मा करने होंगे।

अब ये काग़ज़ क्या होंगे इसको लेकर अभी साफ़ नहीं किया गया है। लेकिन इतना साफ है कि ये अभी हाल में बने आधार, वोटर आईडी कार्ड, पैन कार्ड, राशनकार्ड या पासपोर्ट मान्य नहीं होंगे। क्यों नहीं होंगे? क्योंकि सरकार का यही तो मानना है कि बहुत लोग जो बांग्लादेशी और पाकिस्तानी घुसपैठिए हैं वे यहां की आबादी में घुलमिल गए हैं और उन्होंने फर्जी तौर पर ये सब काग़ज़ बनवा लिए हैं। इसलिए नागरिकता के लिए नये नहीं पुराने काग़ज़ ही काम आएंगे। और ये पुराने काग़ज़ भी कितने पुराने और कौन से होंगे। वो सरकार द्वारा नागरिकता के लिए दी गई कट ऑफ डेट पर निर्भर करेगा।

IMG-20191220-WA0038_0.jpg

अभी एनआरसी की गाइड लाइन जारी नहीं हुई हैं। लेकिन असम का अनुभव हमारे सामने है। असम समझौते के मुताबिक प्रवासियों को वैधता प्रदान करने की तारीख़ 25 मार्च 1971 है। आपको बता दें कि 26 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान ने खुद को बांग्लादेश के तौर पर आज़ाद घोषित किया और असम में इससे एक दिन पहले की कट ऑफ डेट रखी गई। ताकि बांग्लादेश की आज़ादी से पहले आए लोगों को ही मान्यता मिल सके। उसके बाद आए लोगों को नहीं।

इस तरह पूरे देश में 1947 नहीं तो शायद 1971 कट ऑफ डेट होगी। ताकि असल घुसपैठिये पकड़ में आ सकें। अब आपको बताता हूं कि असम में क्या काग़ज़ मांगे गए। इस पर बहुत लोगों ने लिखा है। अभी वरिष्ठ पत्रकार गुरदीप सप्पल ने इसकी पूरी लिस्ट दी है। इस लिस्ट के मुताबिक

असम में सबको NRC के लिए 1971 से पहले के काग़ज़ात सबूत के तौर पर जमा करने थे। ये सबूत थे:

1. 1971 की वोटर लिस्ट में खुद का या माँ-बाप के नाम का सबूत; या

2. 1951 में, यानी बँटवारे के बाद बने NRC में मिला माँ-बाप/ दादा दादी आदि का कोड नम्बर

याद रखिए असम में 1951 में भी NRC हुआ था।

इन दो दस्तावेज़ों में से एक देना अनिवार्य है और इसी के साथ नीचे दिए गए दस्तावेज़ों में से 1971 से पहले का एक या एक से ज़्यादा सबूत:

1. नागरिकता सर्टिफिकेट

2. ज़मीन का रिकॉर्ड

3. किराये पर दी प्रापर्टी का रिकार्ड

4. रिफ्यूजी सर्टिफिकेट

5. तब का पासपोर्ट

6. तब का बैंक डाक्यूमेंट

7. तब की LIC पॉलिसी

8. उस वक्त का स्कूल सर्टिफिकेट

9. विवाहित महिलाओं के लिए सर्किल ऑफिसर या ग्राम पंचायत सचिव का सर्टिफिकेट

याद रखिए ये सब 1971 से पहले का मांगा गया।

अब इसे मेरे परिवार के तौर पर समझिए।

मेरी बिटिया का जन्म 2003 में हुआ। उसके पास बर्थ सर्टिफिकेट (जन्म प्रमाणपत्र) और आधार नंबर है। लेकिन ये उसके किसी काम नहीं आएंगे। उसे अपनी नागरिकता प्रमाणित करने के लिए अपने पिता यानी मेरे दस्तावेज़ की ज़रूरत होगी लेकिन मेरा जन्म भी 1971 के बाद 1973 में हुआ। यानी मेरे दस्तावेज़ भी न उसके काम आएंगे न मेरे।

उसे और मुझे दोनों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए अपने पूर्वजों यानी उसे अपने दादा-दादी और मुझे अपने मां और बाप के दस्तावेज़ चाहिए।

IMG-20191220-WA0039.jpg

अब मेरे पिता मेरे बचपन में ही गुज़र चुके हैं। वे एक सरकारी शिक्षक थे। चलिए उनके भी काग़ज़ मिल जाएंगे लेकिन सिर्फ़ पिता के काग़ज़ से काम नहीं चलेगा। मां के भी काग़ज़ देने होंगे। मां और बाप दोनों वैध भारतीय नागरिक होने पर ही आप वैध नागरिक माने जाएंगे।

मां की उम्र 85 साल है। उन्हें अपनी सही जन्मतिथि भी पता नहीं। अंदाज़े से बताती हैं कि जब देश आज़ाद हुआ था तो वे 14-15 साल की थीं। उस समय उनके पास न बैंक अकाउंट था, न मतदाता पहचान पत्र, न कोई ज़मीन-जायदाद। बहुत बाद में हमारी पैदाइश के बाद ये सब बना। मकान भी हम सब भाई-बहनों ने अपनी नौकरी के बाद खरीदे। वरना सन् 2000 के बाद तक हम किराये के मकानों में ही रहे। अब संकट मेरे या मेरी बेटी के सामने तो है ही मेरी मां के सामने भी है कि वह कैसे अपनी नागरिकता साबित करेगी। और उसकी नागरिकता साबित नहीं होगी तो मेरी कैसे होगी। और मेरी नागरिकता साबित नहीं होगी तो बेटी की कैसे होगी।

और बेटी को मेरी ही नहीं अपनी मां यानी मेरी पत्नी की भी नागरिकता के दस्तावेज़ चाहिए और उसे भी अपनी नागरिकता के लिए अपने मां-बाप के। असम में बहुत से ऐसे केस हुए हैं जहां पिता का नाम NRC में है। मां का नहीं। पति का है पत्नी का नहीं। बेटे का है, बेटी का नहीं।

सरकार ने जब एनआरसी की पहली ड्राफ्ट लिस्ट जारी की थी तो 40 लाख 37 हज़ार लोगों को इससे बाहर कर दिया था। इसके बाद एनआरसी से बाहर हुए लोगों ने अपनी नागरिकता के प्रमाण जमा करवाए। इसके बावजूद 31 अगस्त, 2019 को जारी अंतिम सूची से 19 लाख 6 हजार 657 लोग बाहर हो गए हैं। इनमें कई लोग तो वह हैं, जो सेना मेें रह चुके हैं।

ख़ैर आपको सब काग़ज़ मिल भी जाए। सारे वैध काग़ज़ आप जमा भी कर लो। हालांकि ये सब आसान नहीं है। और बेघर, गरीब और अपढ़ जनता के लिए तो और भी मुश्किल। दलित, वंचित, आदिवासी आदि के लिए भी लगभग नामुमकिन। चलिए यहां हम मान लेते हैं कि इन सबको भी मिल जाते हैं। हम मान लेते हैं कि कट ऑफ डेट 1971 नहीं, सन् 2000 या 2005 तय की जाती है और सब काग़ज़ मिल भी जाते हैं। तब भी इन्हें इकट्ठा करने, वैरीफाई कराने यानी सत्यापित कराने में कितने दिन, कितना समय, कितने पैसे और मेहनत लगेगी। जब असम में 3 करोड़ की आबादी को सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में ही करीब 6 साल लग गए। इस पूरी प्रक्रिया पर सार्वजनिक जानकारी के मुताबिक सरकार ने 1300 करोड़ रुपये खर्च किये जिसमें इसमें लगे हज़ारों कर्मचारियों का वेतन शामिल नहीं है। कुछ संस्थाओं का यह अनुमान है कि असम की जनता ने खुद की नागरिकता स्थापित करने के लिए लगभग 8000 करोड़ रुपये खर्च किये

इसे पढ़ें : NRC का राजनीतिक अर्थशास्त्र

देश की 130 करोड़ की आबादी एक साथ अपने डाक्यूमेंट ढूँढ रही होंगी। तो क्या होगा? हर विभाग के बाहर कितनी लम्बी लाइनें लगेंगी, कितनी चिरौरी करनी होगी, कितनी रिश्वत देनी होगी? कोई बताएगा।

नोटबंदी तो आपको याद होगी। बैंकों के बाहर कितनी लंबी लाइनें लगी थीं। कितने लोगं को जान गंवानी पड़ी। कितना काम धंधा ठप हुआ।

और ये सब आपने सहन भी कर लिया। सब काग़ज़ जुटा लिए जमा कर दिए तब भी जो असम में हुआ वही आपके साथ हुआ तो क्या होगा। वहां क्या हुआ? मैं आपको असम बीजेपी का ही बयान बताता हूं। उसका कहना है कि वैध काग़ज़ होने के बाद भी NRC में कुछ गड़बड़ रह गई है और इस वजह से बहुत से वैध नागरिकों को भी बाहरी यानी विदेशी घोषित कर दिया गया है।

IMG-20191220-WA0037_0.jpg

असम के मंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा ने ट्वीट करके कहा कि- "1971 से पहले बांग्लादेश से शरणार्थियों के रूप में आए कई भारतीय नागरिकों के नाम एनआरसी में शामिल नहीं किए गए हैं क्योंकि अधिकारियों ने शरणार्थी प्रमाण पत्र लेने से इनकार कर दिया था। कई लोगों ने आरोप लगाया है कि कई नामों को डेटा में हेरफेर करके लिस्ट में शामिल किया गया है।''

हिमंत बीजेपी असम के उन नेताओं में से हैं जिन्होंने पहले भी एनआरसी पर अपना असंतोष जताया था। उनका कहना था कि एनआरसी से अवैध शरणार्थियों को हटाने में कोई मदद नहीं मिल सकेगी।

बीजेपी नेताओं का ये कहना तब है जब वह असम की सत्ता में है और असम में एनआरसी का पूरा प्रोसेस (प्रक्रिया) सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चला था। वहां केवल करीब 3 करोड़ आबादी है। बावजूद इसके सत्ताधारी और एनआरसी की समर्थक पार्टी और उनके मंत्री ये आरोप लगा रहे हैं कि इसमें गड़बड़ी रह गई। ऐसा ही अब देश में होगा तो क्या होगा?

पत्रकार गुरदीप सप्पल ही लिखते हैं कि NRC में हर व्यक्ति की नागरिकता की जाँच करने प्लान है। हर परिवार नहीं, हर व्यक्ति की!

अगर किसी के परिवार में एक व्यक्ति के नाम ज़रूरी डाक्यूमेंट हैं, तब भी उस व्यक्ति के साथ परिवार के साथ हर व्यक्ति का रिश्ता सरकारी काग़ज़ों की मार्फ़त साबित करना होगा।

इसी नियम की वजह से देश के पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के परिवार के लोग असम NRC से बाहर हो गए। इसी नियम के कारण वहाँ एक BJP के MLA की बीवी का नाम, कारगिल युद्ध में शामिल फ़ौजी अफ़सर, कांग्रेस के पूर्व विधायक का नाम जैसे कितने ही जाने माने लोग NRC में नागरिकता साबित नहीं कर पाए।

इसे पढ़ें : सनाउल्ला मुद्दे पर राज्यसभा में उठी जवाबदेही तय करने की मांग

आपके साथ ये सब होगा तो क्या होगा? आपको डिटेंशन सेंटर यानी हिरासत केंद्र में भेजा जाएगा। आप कहेंगे इसके बाद अपनी नागरिकता साबित करने के और भी मौके मिलेंगे। एफटी यानी फॉरनर ट्रिब्यूनल हैं। हाईकोर्ट है। सुप्रीम कोर्ट है। तो आप बताइए आपसे में कौन इतनी लंबी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है। अपनी रोज़ी-रोटी जैसे तैसे कमा रहे किन लोगों के पास इतना समय और पैसा है कि वह अपना काम धंधा छोड़कर पहले अपने दस्तावेज़ जमा करेगा। उन्हें सत्यापित कराएगा। जमा करेगा। और फिर भी एनआरसी में नाम न आने पर ट्रिब्यूनल और कोर्ट के चक्कर काटेगा। और जब तक नागरिकता सही साबित न हो जाएगी। तब तक विदेशी घुसपैठिया, बांग्लादेशी, पाकिस्तानी होने का दंश झेलगा। NRC बनने, अपील की प्रक्रिया पूरी होने तक, फिर नए क़ानून के तहत नागरिकता बहाल होने के बीच कई साल का फ़ासला होगा।

CAA (नागरिकता संशोधन क़ानून)

अब आते हैं नागरिकता संशोधन क़ानून यानी Citizenship Amendment Act (CAA) की। आप कहेंगे कि आप तो सच्चे हिन्दू हैं इसलिए आपको क्या डरना है। आप कहेंगे कि आपको CAA का प्रोटेक्शन मिल जाएगा। क्योंकि आप मुसलमान नहीं है। अगर आप ऐसा सोचते या बोलते हैं तो आप खुद ही मोदी जी की पोल खोल देते हैं। खुद ही उनके क़ानून पर सवालिया निशान लगा देते हैं।

इसे भी पढ़े: वे 20 बिंदू जो नागरिक संशोधन बिल के बारे में सबकुछ बताते हैं

यही तो हमारी आपत्ति है कि CAA लाया ही इसलिए गया है कि मुसलमानों को छोड़कर सबको सुरक्षा मिल जाए। लेकिन ये भी एक धोखा है। कैसे इसे भी आगे बताऊंगा।

IMG-20191220-WA0036.jpg

CAA को लेकर विरोध के तीन तर्क हैं। पहला तर्क है कि ये संविधान विरोधी है। इस तर्क के तहत ये क़ानून संविधान की मूल भावना ख़ासकर अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है जो विधि के समक्ष किसी भी व्यक्ति से भेदभाव की इजाज़त नहीं देता।

संविधान का अनुच्छेद 14 कहता है, "राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। "

इसे अनुच्छेद 15 जिसपर आपने अभी आर्टिकल 15 फिल्म भी देखी। उसके साथ मिलाकर पढ़ा जाए तो बात और भी साफ हो जाती है कि ये क़ानून कैसे सिर्फ़ मुसलमान विरोधी नहीं, बल्कि संविधान विरोधी है और जो संविधान विरोधी है वो देश विरोधी है।

इसे पढ़ें : अनुच्छेद 14 और 15 को मिलाकर पढ़ेंगे तो नागरिकता संशोधन बिल हारता दिखेगा

दूसरा तर्क है कि अगर ये पड़ोसी देशों में धर्म के आधार पर प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागिरकता देने के लिए लाया गया है तो इसमें श्रीलंका के तमिल हिन्दुओं, म्यांमार के रोहिंग्या और नेपाल जो 2008 तक राजशाही के तहत हिन्दूराष्ट्र रहा वहां के अल्पसंख्यकों को क्यों नहींं शामिल करता। क्योंकि ये CAA 1950 से 2014 तक लागू होता है।

अब इसका एक और पक्ष समझते हैं, जैसे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी कहा कि CAA के तहत भारत सरकार बिना दस्तावेज़ के भी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के नागरिकों को नागरिकता देगी यानी उनके काग़ज़ बनाएगी और अपने ही नागरिकों के काग़ज़ मांगकर उन्हें देश से बाहर या डिटेंशन सेंटरों में भेजेगी। वे ये भी पूछते हैं और यह हर भारतीय नागरिक का भी सवाल है कि जब अपने लोगों के लिए आपके पास रोटी- रोज़गार नहीं तो उन्हें कहां से देंगे?

IMG-20191220-WA0034.jpg

इस मौके पर वही फिल्म का गाना याद आता है कि "गैरों पर करम, अपनों पे सितम...ये जाने वफ़ा ये ज़ुल्म न कर।”

और एक गाना है जो मोदी जी के बड़े समर्थक अनुपम खेर पर फिल्माया गया है कि "मेरे अपने मेरे होने की निशानी मांगे"

अब आप कहेंगे कि इस क़ानून की संवैधानिकता की जांच सुप्रीम कोर्ट करेगा, तो आप क्यों परेशान हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने इसकी वैधता जांचने के लिए 22 जनवरी, 2020 की तारीख़ मुकर्रर की है।

वो सब ठीक है। लेकिन लोकतंत्र में सारे फै़सले सिर्फ संसद और कोर्ट के भरोसे नहीं छोड़े जा सकते। जनता को जब सरकार चुनने का हक़ है तो उसके फ़ैसलों पर सवाल उठाने का भी हक़ है। ऐसा नहीं कि हम सब संसद और कोर्ट के भरोसे बैठकर अपनी नागरिक जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएं। लोहिया जी ने कहा था कि अगर सड़के ख़ामोश हो जाएंगी तो संसद आवारा हो जाएगी। आपको याद होगी सन् 1975 का आपातकाल यानी इमरजेंसी। आप तब पैदा न हुए हों तो पढ़ा तो ज़रूर होगा कि कैसे उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले को धता बताते हुए इमरजेंसी लगा दी थी और हमारे देश के प्रथम व्यक्ति यानी राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने बिना किसी आपत्ति के आधी रात को उसपर साइन कर दिए थे। और अगली सुबह 26 जून, 1975 को आकाशवाणी से इंदिरा जी ने क्या घोषणा की थी, कि राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है, लेकिन आपको घबराने की ज़रूरत नहीं है। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फ़ैसले पर मोहर लगा दी थी। लेकिन जब जेपी के नेतृत्व में जनता उठी तो इंदिरा की सत्ता धराशाही हो गई।

याद कीजिए उस समय आज की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी जो उस समय भारतीय जनसंघ के नाम से जानी जाती थी, ने भी तीखा विरोध किया था और उसके बड़े नेता जेल गए थे। उस समय जनता के विरोध का ही परिणाम था सन् 1977 में मध्याविधि चुनाव में इंदिरा की बुरी तरह हार हुई और जनता पार्टी की सरकार बनी। जिसमें जनसंघ भी अपना विलय करते हुए शामिल हुआ। इस सरकार ने इमरजेंसी की अविधि में इंदिरा गांधी ने जितने भी निर्णय लिए थे उसे संसद ने एक प्रस्ताव से खारिज कर दिया था। तो ये मत कहिए कि लोकतंत्र में सबकुछ सरकार या कोर्ट के भरोसे छोड़ दिया जाए और नागरिक होने की अपनी ज़िम्मेदारी को भुला दिया जाए।

अब आपको बताता हूं कि CAA मुसलमान विरोधी तो है ही हिन्दुओं को भी बहुत फायदा नहीं देगा। बल्कि उन्हें भी दोयम दर्जे का नागरिक बना देगा। अगर आप एनआरसी में न आ पाए यानी वैध नागरिक न पाए गए तो CAA के तहत आपको कैसे आवेदन करना होगा। आपको झूठ बोलना होगा कि आप पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफ़गानिस्तान से धर्म के आधार पर प्रताड़ित होकर भारत में आए या घुसे थे। अब आपको सरकार बिना दस्तावेज, बिना वैध डॉक्यूमेंट के भी नागरिकता देगी। लेकिन ठहरिए, समझिए अब आप पहले जैसे नागरिक नहीं रह जाएंगे।

अब आप एक घुसपैठिए होंगे जिनपर मोदी और शाह की सरकार एहसान करेगी और आपको भारत की नागरिकता देगी और जान लीजिए कि एक नए नागरिक को वही सब अधिकार नहीं मिल जाएंगे जो आपने सालों-साल भारत में रहते हुए भारत के नागरिक के तौर पर अर्जित किए हैं या आपका हक़ है जो आपको आपका संविधान देता है, बल्कि आप बाहर से आए एक नए नागरिक होंगे और आपको तुरंत प्रापर्टी के अधिकार, मतदान करने या अन्य सरकारी योजनाओं के अधिकार नहीं मिल जाएंगे।

हालांकि कानूनी तौर पर ये अधिकार मिल सकते हैं, लेकिन व्यावहारिक बात करें तो वास्तव में आप तब यह भी नहीं कह सकेंगे कि मुझे बुनियादी सुविधाएं बिजली, पानी नहीं मिल रहा है या मुझे या मेरे बच्चे को अच्छी शिक्षा या स्वास्थ्य चाहिए या नौकरी चाहिए। आपसे तुरंत कहा जाएगा- चुप रहिए, ये क्या कम है कि हमने आपको भारत में सर छुपाने की जगह दी और अब आपको रोटी चाहिए, काम का अधिकार चाहिए। इसलिए नए नागरिक के तौर पर तो आप उन अधिकारों को भूल ही जाइए जो एक भारतीय नागरिक को भी तमाम जद्दोजहद के बाद भी नहीं मिल पा रहे हैं। हां बस इन भारतीय नागरिकों पर सवाल करने और अपनी आवाज़ उठाने का अधिकार है, लेकिन नए नागरिक तो वो भी नहीं मिलेगा। आप देख ही रहे हैं कि अब तो नए-पुराने किसी भी नागरिक को सवाल उठाने में भी कितनी मुश्किल पेश आ रही है। सवाल उठाने पर तुरंत देशद्रोही करार दिया जा रहा है। कानून की आड़ में धरने-प्रदर्शन का अधिकार तक छीना जा रहा है। 

 

कुछ लोग कहेंगे कि प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने आश्वासन दिया है कि किसी भी नागरिक ख़ासतौर से भारत के मुसलमान को डरने की ज़रूरत नहीं। तो जान लीजिए कि मोदी जी ने ये भी कहा था कि अच्छे दिन आने वाले हैं। विदेशों में जमा काला धन भारत लाएंगे। हर साल एक करोड़ रोज़गार देंगे। मिला क्या?

मोदी जी ने तो नोटबंदी करते हुए ये भी ऐलान किया था कि इससे काले धन पर रोक लगेगी। आतंकवाद पर रोक लगेगी। नकली नोट बंद हो जाएंगे। पचास दिन दीजिए अगर सब ठीक न हुआ तो …

दरअसल मोदी जी को CAA लाने की ज़रूरत ही इसलिए पड़ी क्योंकि असम में उनकी योजना उल्टी पड़ गई। वहां जनता की ही मांग पर NRC लाई गई। हालांकि अब वहां भी इसे पक्ष में आंदोलन करने वाले अफ़सोस जता रहे हैं। ख़ैर, असम के लोगों की भाषा और संस्कृति की रक्षा के नाम पर एनआरसी लाई गई। पहले कहा गया कि इससे करीब एक करोड़ मुसलमान बाहर हो जाएंगे, जैसे अभी देश को लेकर प्रोपेगेंडा शुरू कर दिया गया है कि करीब 10 करोड़ मुसलमान बाहर हो जाएंगे और सबको रोज़गार मिलेगा और अन्य चीज़ें सस्ता हो जाएंगी।

ये बिल्कुल बेबुनियाद और बेहूदा तर्क है। ख़ैर असम में बीजेपी के मंसूबों से उलट नतीजा आया। वहां अंतिम एनआरसी से करीब 19 लाख लोग बाहर हुए। बताया जा रहा है कि इसमें करीब 13 लाख हिंदू और 6 लाख मुस्लिम/आदिवासी शामिल नहीं हो पाए यानी अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए। अब बीजेपी को समझ आया कि खेल पलट गया है। उसकी हिन्दूवादी छवि और हिन्दूराष्ट्र के सपने का क्या होगा? उससे तो 'उसके अपने' लोग भी नाराज़ हो जाएंगे। इसलिए CAA लाने की सूझी जिसे बड़ी मासूमियत से नागरिकता लेने वाला नहीं, नागरिकता देने वाला क़ानून बताया जा रहा है। लेकिन जैसे मैंने बताया कि अगर आप मोदी समर्थक भी हैं और अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए तो CAA आपको झूठ के आधार पर भारत में रहने का रास्ता तो देगा, लेकिन आप दोयम दर्जे के ही नागरिक होंगे। यानी अपने ही देश में बेगाने। दूसरों की कृपा पर निर्भर।

अब तय कर लीजिए कि ये हिन्दू-मुस्लिम सवाल है या देश और संविधान को बचाने का सवाल है।

अब आप खुद ही फ़ैसला कीजिए कि क्या CAA और NRC आपके हित में है या विरोध में।

कुछ लोग कह रहे हैं अभी तो NRC की कोई गाइड लाइन ही नहीं बनी। तो जान लीजिए कि CAA बन चुका है और गृहमंत्री जल्द से जल्द NRC लाने का देश की संसद में ऐलान कर चुके हैं यानी बाढ़ की चेतावनी जारी हो चुकी है तो क्या अब बाढ़ का पानी घर में घुस आने का इंतज़ार किया जाए?

(ये लेखक के निजी विचार हैं)  (सभी फोटो : मुकुल सरल)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest