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कोविड-19: नए अध्ययन से पता चला है कि प्राकृतिक इम्मुनिटी, वैक्सीन सुरक्षा से कहीं ज़्यादा मज़बूत

हालांकि अध्ययन के नतीजों के साथ चेतावनी भी दी गई है। मतलब अगर कोई एक बार संक्रमित हो चुका है, तो अध्ययन यह सलाह नहीं देता कि उसे कोविड को रोकने वाले व्यवहार को करना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि उसके पास बेहतर प्रतिरोधक क्षमता आ चुकी है।
कोविड-19

हाल में कोविड-19 से संबंधित सबसे ज़्यादा चिंताएं, बेहद संक्रामक डेल्टा वेरिएंट और इसके खिलाफ वैक्सीन कितनी कारग़र होगी, इस बात से जुड़ी हैं। हज़ारों लोगों पर किए गए एक नए अध्ययन में अब कुछ अहम बातें निकल कर सामने आई हैं। अध्ययन बताता है कि जो लोग SARS-CoV-2 से संक्रमित हुए थे, उनमें फाइजर बायोएनटेक वैक्सीन लेने वालों की तुलना में ज़्यादा प्रतिरोधक क्षमता मौजूद है।

medRxiv के प्री-प्रिंट सर्वर में छपा यह अध्ययन बताता है कि जिन लोगों को एक बार कोरोना हो चुका है, उनमें पूरे वैक्सीन डोज़ लेने वालों की तुलना में डेल्टा वेरिएंट का संक्रमण फैलने, बीमारी के गंभीर होने के चलते अस्पताल में भर्ती होने की संभावना भी कम है।

हालांकि अध्ययन के नतीज़ों के साथ चेतावनी भी दी गई है। संक्रामक रोग विशेषज्ञों का कहना है कि वैक्सीन ही कोरोना वायरस के खिलाफ़ प्रभावी प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करती है। अध्ययन के नतीज़ों से यह संदेश नहीं जाता है कि जो लोग संक्रमित हो चुके हैं, उन्हें कोविड-19 में अपनाया जाने वाला आदर्श व्यवहार छोड़ देना चाहिए। 

अध्ययन में यह भी पता चला कि 'जिन लोगों को पहले कोविड-19 हो चुका है और उन्हें वैक्सीन नहीं लगी है', उनकी तुलना में 'कोरोना से संक्रमित हो चुके ऐसे लोग, जिन्हें फाइज़र वैक्सीन की एक डोज़ लग चुकी है', वे डेल्टा वेरिएंट से ज़्यादा सुरक्षित हैं। इस नतीज़े ने एक और नई चिंता को जन्म दे दिया है- क्या पहले संक्रमित रह चुके लोगों को वैक्सीन की एक या दो, कितनी डोज़ देना चाहिए?

वैज्ञानिक तरीके से देखें, तो अध्ययन के बारे में अच्छी चीज रही कि यह इज़रायल में किया गया था, जो दुनिया में सबसे ज़्यादा टीकाकृत देशों में से एक है। दूसरी चीज, इस अध्ययन के लिए 1 जून से 14 अगस्त के बीच आए हजारों मरीज़ों के रिकॉर्ड का सहारा लिया गया। मतलब उनके संक्रमण, लक्षण और अस्पताल में भर्ती कराए जाने की जानकारी। गौर करने वाली बात है कि इस दौरान इज़रायल में डेल्टा वेरिएंट ही सबसे ज़्यादा संक्रमण फैला रहा था। अध्ययन का दावा है कि प्राकृतिक और वैक्सीन द्वारा कोरोना वायरस के खिलाफ़ उपलब्ध कराई जाने वाली प्रतिरोधक क्षमता से जुड़ा, यह अबतक का सबसे बड़ा अध्ययन है।

स्वीडन के डांडेरिड हॉस्पिटल में क्लिनिकल साइंस विभाग के इम्यूनोलॉजिस्ट चार्लोट्टे थालिन 'साइंस मैगजीन' से बात करते हुए अध्ययन के बारे में कहते हैं, "यह पहली बार है जब कोविड-19 से जुड़ी इस तरीके की चीजें दिखाई गई हैं।" हालांकि थालिन और दूसरे लोगों ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर वैक्सीन ना लगवाए हुए लोगों में जानबूझकर संक्रमण फैलाया जाता है, तो इससे उनमें गंभीर तौर पर बीमार पड़ने, मौत या लंबे समय के लिए कोविड का ख़तरा बढ़ जाएगा। 

इस अध्ययन में मैक्काबी हेल्थकेयर सर्विस के आंकड़े उपयोग किए गए हैं। मैक्काबी ने इज़रायल में 25 लाख लोगों को भर्ती किया था। तेल पाटालॉन और सिवान गैजिट के नेतृत्व में, इज़रायल के 'केएसएम इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च एंड इनोवेशन सेंटर' में की गई इस रिसर्च में पता चला कि जिन लोगों को कभी संक्रमण नहीं हुआ और उन्हें जनवरी से फरवरी के बीच वैक्सीन लगा है, तो जून, जुलाई और अगस्त में उनके संक्रमित होने की संभावना, 'पहले संक्रमित हो चुके लोगों' के दोबारा संक्रमित होने की तुलना में 6 से 13 गुना है।

32,000 मरीज़ों के अपने विश्लेषण में उन्होंने पाया कि कभी संक्रमित ना होने वाले, लेकिन वैक्सीन लगवा चुके लोगों में, लक्षणयुक्त कोविड संक्रमण होने की संभावना 27 गुना ज़्यादा है। वहीं अस्पताल में भर्ती होने की इन लोगों की संभावना 8 गुना ज़्यादा है। 

शोध में अब तक टीकाकरण ना करवाने वाले और पहले कोरोना वायरस का संक्रमण झेल चुके 14000 लोगों की तुलना, पहले संक्रमित हो चुके और फाइजर वैक्सीन का एक डोज़ लगवा चुके 14,000 लोगों से की गई। शोध में पाया गया कि टीका ना लगवाने वाले समूह की, एक टीका लगवाने वाले समूह की तुलना में, दोबारा संक्रमित होने की संभावना दोगुनी है।

स्क्रिप्स इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिक और फिजिशियन एरिक टोपोल ने कहा, "हम लगातार प्राकृतिक संक्रमण प्रतिरोधकता की अहमियत नज़रंदाज कर रहे हैं। खासकर तब जब संक्रमण हाल में मरीज़ के भीतर पहुंचा हो। फिर जब इसे आप वैक्सीन की एक डोज़ के साथ बढ़ावा देते हैं, तो यह उस स्तर पर पहुंच जाती है, जहां दुनिया की कोई भी वैक्सीन आज नहीं पहुंच सकती।"

लेकिन इस अध्ययन में कुछ खामियां भी हैं। अमेरिका की एमोरी यूनिवर्सिटी में बॉयो स्टेटिस्टीसियन नताली डीन कहती हैं, "यह देखना अहम होगा कि अध्ययन से आए नतीज़े दूसरी जगह भी वैसे ही पाए जाते हैं या खारिज होते हैं। इस अध्ययन की जो सबसे बड़ी सीमा है, वह यह है कि सार्स संक्रमण के लिए होने वाली जांच अब भी स्वैच्छिक चीज है- यह अध्ययन के डिज़ाइन का हिस्सा नहीं थी।"

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें। 

 

COVID-19: Natural Immunity Stronger than Vaccine Protection, Suggests New Study

 

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