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कोविड-19:  वैक्सीन रक्षा के स्तर को मापने के लिए वैज्ञानिकों ने 'जैव-चिह्नों' की पहचान की

ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन बनाने वाली टीम ने वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल में भागीदारों की प्रतिरोधक प्रतिक्रिया का अध्ययन कर एक 'रक्षा के सहसंबंध' कारक की पहचान की है।
कोविड-19

यह कैसे पता किया जाए कि किसी वैक्सीन से कोई सुरक्षित होगा या नहीं?

मौजूदा हालातों में सबसे उलझाने वाले इस सवाल पर वैज्ञानिकों ने वैक्सीन और उसकी प्रतिरोधक क्षमता के कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए शोध किया है।

इस तरीके का विश्लेषण करने का एक तरीका 'बॉयोमार्कर (जैव-चिह्नों)' की खोज हो सकती है। ऐसे बॉयोमार्कर, जो हमें तुरंत बता सकें कि वैक्सीन संबंधित व्यक्ति की रक्षा करने में सक्षम है या नहीं। जैसे- अगर कोई डॉक्टर किसी टीका लगवा चुके शख़्स के खून का नमूना लेता है और कुछ प्रोटीन या जैविक तत्वों की मौजूदगी को मापकर यह अनुमान लगा सके कि क्या वैक्सीन संबंधित शख्स की रक्षा करेगी या नहीं? वैज्ञानिक, रक्षा क्षमता की पहचान करने वाले ऐसे ही बॉयोमार्कर की खोज कर रहे हैं।

ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का विकास करने वाले शोधार्थियों ने दावा किया है कि उन्होंने कुछ ऐसे ही बॉयोमार्कर की पहचान की है। टीम ने वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल में भागीदारों की प्रतिरोधक प्रतिक्रिया का अध्ययन कर 'रक्षा के सहसंबंधों (कोरिलेट ऑफ़ प्रोटेक्शन)' की पहचान की है। वैज्ञानिकों के मुताबिक़, खून के जैविक चिन्हों की पहचान होने से, वैक्सीन कार्यकुशलता जांचने वाली बड़ी ट्रायल का ख़र्च कम हो जाएगा।

यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में टीका विज्ञानी डेविड गोल्डब्लाट का कहना है, "हमारे पास एंटीबॉडी से संबंधित ऐसा तरीका आने की संभावना है, जो बहुत भरोसेमंद होगा। क्योंकि इससे नए वैक्सीन को लाइसेंस मिलने वाली प्रक्रिया तेज हो जाएगी।"

मैसाचुसेट्स के बोस्टन में बेथ इज़रायल डिअकोनेस मेडिकल सेंटर में सेंटर फॉर वॉयरोलॉजी एंड वैक्सीन रिसर्च के निदेशक डान बरूक ने अपनी टिप्पणी में कहा, "वैक्सीन में सहसंबंधों (कोरिलेट) की भूमिका बहुत गहरी है। अगर कोई भरोसेमंद सहसंबंध मौजूद है, तो उसका उपयोग क्लिनिकल ट्रायल में यह जांचने के लिए किया जा सकता है कि किस तरह का वैक्सीन काम करेगा, वैक्सीन का कौनसा रूप असरदार रहेगा या वैक्सीन कितने वक़्त तक काम करेगी।"

जैसे इंफ्लूएंजा वैक्सीन के मामले में, लोगों के छोटे समूह पर प्रयोग कर पता लगाया जाता है कि इन लोगों में मौजूद वायरस के भीतर प्रोटीन पर नई दवाई कितनी असरदार होगी। इससे वक़्त भी कम लगता है और बड़ी ट्रायल में आने वाली लागत भी बच जाती है। ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका टीम के बॉयोमार्कर नतीज़ों को मेडरिक्सिव जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

'रक्षा के सहसंबंधों (कोरिलेट ऑफ प्रोटेक्शन)' को खोजने का पारंपरिक तरीका वैक्सीन से सुरक्षित हुए लोगों की, उन भागीदारों से तुलना करना है, जिन्हें वैक्सीन लेने के बावजूद संक्रमण हो गया। जिन लोगों में वैक्सीन लेने के बाद भी संक्रमण फैल जाता है, उन्हें 'ब्रेक थ्रू केस' कहते हैं।

कोविड वैक्सीन के मामले में 'ब्रेक थ्रू' केसों के ज़रिए रक्षा प्रतीकों का पता नहीं चल पा रहा है। क्योंकि यहां कई वैक्सीन, बहुत उच्च कार्यकुशलता के साथ मौजूद हैं। ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका अध्ययन से पहले दूसरे शोधार्थियों द्वारा भी जैव चिन्हों को खोजने की कोशिश की गई है।

ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका अध्ययन ने एंटीबॉडी के उच्च स्तर और सुरक्षा के सहसंबंध की पुष्टि की है। इस अध्ययन में 1400 टीका लगवा चुके भागीदार, जिनमें लक्षणयुक्त संक्रमण विकसित नहीं हुआ, उनमें से 'ब्रेक थ्रू' केस वाले 171 लोगों में प्रतिरोधी तंत्र की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया गया।

शोधार्थियों ने पाया कि जिन भागीदारों में निष्क्रिय एंटीबॉडी का उच्च स्तर था, उनमें लक्षण वाले संक्रमण से ज़्यादा सुरक्षा थी। टीम ने एंटीबॉडी के स्तर की तुलना, वैक्सीन द्वारा सुरक्षा उपलब्ध कराए जाने वाले स्तर से करने के लिए भी एक मॉडल इस्तेमाल किया। इनके मॉडल में 50 से 90 फ़ीसदी तक सुरक्षा दर्ज की गई। अगर किसी दूसरी वैक्सीन द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सुरक्षा क्षमताओं का आंकलन करना हो, तो उसके लिए ऑक्सफोर्ड अध्ययन में शामिल किए गए मॉडल से वैक्सीन की तुलना की जा सकती है।

लेकिन वैज्ञानिकों ने कुछ आपत्तियां भी दर्ज कराई हैं। ऑस्ट्रेलिया में सिडनी की न्यू साऊथ वेल्स यूनिवर्सिटी से जुड़े इम्यूनोलॉजिस्ट माइल्स डेवनपोर्ट का कहना है कि 'ब्रेक थ्रू' वाले मामलों और वैक्सीन से सुरक्षा पाने वाले मामलों में बहुत ज़्यादा अंतर नहीं था। जैसे- ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि युवा संक्रमित होने के लिए ज़्यादा संवेदनशील होते हैं, क्योंकि उनका ज़्यादा सामाजिक संपर्क होता है। लेकिन उनमें एंटीबॉडी का स्तर भी ज़्यादा होता है।"

ऑक्सफोर्ड टीम ने इसके जवाब में भागीदारों के लिए जोखिम का अनुमान पेश किया। लेकिन डेवेनपोर्ट की चिंता तब भी दूर नहीं हुईं। उन्होंने कहा, "एंटीबॉडी स्तर में अंतर को निगरानी में रखकर पता लगाने के बजाए, अनुमानित जोख़िम के आधार पर एंटीबॉडी स्तर का पता लगाना चुनौती है। लेकिन निगरानी में रखकर तभी पता लगाया जा सकता था, जब वैक्सीन लगने के बाद भी संक्रमित हुए और संक्रमित ना हुए मामलों में साफ़-साफ़ अंतर होता।"

डेविड गोल्डब्लाट ने भी आलोचनात्मक टिप्पणी में कहा, "यह निश्चित नहीं है कि अध्ययन में स्थापित एंटीबॉडी स्तर वैक्सीन की सफलता का अनुमान लगा पाएंगे, खासकर अलग-अलग तकनीक से बनी वैक्सीनों के मामले में तो यह और भी ज़्यादा मुश्किल है। हम कोई ऐसी चीज नहीं बनाना चाहते जो सिर्फ़ एक वैक्सीन या एक तरह की वैक्सीन के लिए ही कारगर हो। दुनियाभर में अलग-अलग तरह के वैक्सीन निर्माता हैं, जो कई तरह के मंचों पर वैक्सीन बना रहे हैं।"

इस विषय में किए गए पुराने अध्ययनों में भी निष्क्रिय एंटीबॉडी स्तर और एक ही वैक्सीन द्वारा प्रदान किए जाने वाले रक्षा स्तर पर ध्यान केंद्रित किया गया है। रिपोर्टों के मुताबिक़, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन पर अमेरिका में भी ऐसा ही अध्ययन चल रहा है। मॉडर्ना के नतीज़े जल्द आने की संभावना है।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

COVID-19: Scientists Identify Biomarkers for Predicting Vaccine Protection

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