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केंद्र सरकार की वैक्सीन नीति अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है

केंद्र की नई वैक्सीन नीति अनुच्छेद 21 (यानी जीने के अधिकार) का पूरी तरह से उल्लंघन है जिसमें स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है, क्योंकि वैक्सीन को आम आदमी की ख़रीद की शक्ति से दूर कर दिया गया है। यह नीति अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन करती है क्योंकि केंद्र सरकार उसी वैक्सीन को राज्यों की ख़रीद के मूल्य के मुकाबले आधे दाम पर ख़रीद रही है।
केंद्र सरकार की वैक्सीन नीति अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है

केंद्र सरकार ने राज्यों को 300 रुपये में कोविशील्ड वैक्सीन और भारत बायोटेक की कोवैक्सिन को 400 रुपये में बेचने के लिए सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक को अनुमति देकर भारी मुनाफा कमाने की मंजूरी या सुविधा प्रदान की है। विशेष रूप से, एसआईआई इस बात पर सहमत हो गया कि वह अपनी वैक्सीन के उत्पादन का 50 प्रतिशत केंद्र को 150 रुपये में बेचेगा, जिसमें उसका लाभ का मार्जिन भी शामिल है। 

सवाल उठता है कि आखिर केंद्र ने निजी कंपनियों को राज्यों के साथ भेदभाव करने की अनुमति क्यों दी? इस तरह का संवैधानिक अत्याचार, वित्तीय असमानता पूरे भारत के स्वास्थ्य कल्याण के खिलाफ है, क्योंकि राष्ट्र राज्यों से बनता है और केंद्र के पास कुछ केंद्र शासित प्रदेशों को छोड़कर विशेष क्षेत्र नहीं आते है।

एक निजी कंपनी को वैक्सीन की दोगुनी कीमत चुकाने के लिए राज्य के लोगों के पैसे का इस्तेमाल क्यों किया जाना चाहिए? केंद्र की यह नीति अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का पूरी तरह से उल्लंघन है जिसमें स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है, क्योंकि वैक्सीन की पहुंच को आम आदमी तक अनुचित रूप से अक्षम बना दिया गया है। यह अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन है क्योंकि केंद्र उसी वैक्सीन को राज्यों को बेचे जाने की तुलना में आधी कीमत पर खरीद रहा है।

कोविड-19 वैक्सीन पर व्यापार नीति

केंद्र सरकार ने हाल ही में "उदारीकृत मूल्य निर्धारण और त्वरित राष्ट्रीय कोविड-19 टीकाकरण रणनीति" नामक एक नीति की घोषणा की है, जो पैरा 7 में कहती है: "अपने तीसरे चरण-III में, राष्ट्रीय वैक्सीन रणनीति का उद्देश्य वैक्सीन के मूल्य निर्धारण को उदार बनाना और टिकाकरण के कवरेज का विस्तार करना है। यह नीति एक तरफ, वैक्सीन निर्माताओं को उत्पादन को तेज करने के लिए प्रोत्साहित करेगी और दूसरी ओर, यह नए वैक्सीन निर्माताओं को भी देश में आने के लिए आकर्षित करेगी।”

उपरोक्त नीति की विफलता इस तथ्य से स्पष्ट हो जाती है कि कोविशील्ड वैक्सीन के लिए अलग-अलग कीमतें तय करने का पूरा प्रोत्साहन देने और लाभ-कमाने के लिए मूल्य निर्धारित करने की स्वतंत्रता देने के बाद भी अदार पूनावाला अन्य देशों के लिए वैक्सीन बनाने के लिए देश छोड़ कर चले गए हैं। 

1 मई, 2021 से प्रभावी इस नीति का पैरा 7 आगे कहता है, "यह नीति टीकों के मूल्य निर्धारण, खरीद और टिकाकरण को अधिक लचीला बनाएगी और वैक्सीन उत्पादन को बढ़ाने के साथ-साथ देश में टीकों की व्यापक उपलब्धता सुनिश्चित करेगी।" वैक्सीन निर्माता अपनी मासिक केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला (सीडीएल) द्वारा तैयार खुराक का 50 प्रतिशत उत्पादन भारत सरकार को आपूर्ति करेंगे और शेष 50 प्रतिशत खुराक राज्य सरकारों और भारत सरकार के चैनल के अलावा अन्य को आपूर्ति करने के लिए स्वतंत्र होंगे।

उदार मूल्य निर्धारण की नीति का नतीजा भिन्न दरें

भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने जवाब में तर्क दिया है कि कीमतें "बाजार की ताकतों" द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए। वर्तमान में राज्य सरकारों को कोविशील्ड (एसआईआई) की कीमत 300 रुपये प्रति खुराक देनी है और बीबी की कोवैक्सिन के लिए 400 रुपये प्रति खुराक की कीमतें अदा करनी हैं; निजी संस्थाओं को इसके लिए क्रमशः 600 रुपये और 1,200 रुपये प्रति खुराक अदा करना होगा, जो कीमतें विकसित देशों द्वारा भुगतान की जा रही कीमतों से कहीं अधिक है। एसआईआई वैक्सीन की कीमत यूरोपीय बाजार में (यूएसडी 2.15) 160 रुपये प्रति डोज है, जीएवीआई (वैक्सीन एलायंस) की कीमत (यूएसडी 2.10) 210 रुपये प्रति डोज है, जबकि इंगलेंड में (यूएसडी 3) 222 रुपये और अमेरिका में (यूएसडी 4) यानि 297 रुपए पर उपलब्ध है।

सवाल यह है कि एसआईआई द्वारा खुले तौर पर घोषित कीमतों से पता चलता है कि वे केंद्र सरकार द्वारा भुगतान की गई कीमत के मुक़ाबले 200 से 800 प्रतिशत अधिक कीमत वसूलने जा रहे हैं। भारत जैसा कल्याणकारी राज्य कैसे किसी निजी कंपनी को महामारी संकट के दौरान और आम लोगों की पीड़ा और बीमारी पर मुनाफाखोरी करने की अनुमति दे सकता है? लोगों के शोषण की यह अनुमति क्यों दी गई? इससे शासकों को क्या लाभ या मुनाफा होगा?

एडवोकेट आनंद ग्रोवर ने बार और बेंच में लिखे अपने एक लेख में बताया कि कीमतों का अंतर कैसे असंवैधानिक है, उन्होंने कहा, “राज्यों के लिए कोविशील्ड की कीमत 300 रुपये और कोवैक्सिन की 400 रुपये, अकेले कंपनियों द्वारा निर्धारित नहीं की गई हैं बल्कि उन्हें केंद्र सरकार का पूरा समर्थन मिला है। केंद्र और राज्यों के बीच एक ही टीके की कीमत में इतना भारी अंतर का कोई औचित्य नहीं है। सबसे अधिक गंभीर परिणाम इसके ये होंगे कि यदि राज्यों को केंद्र सरकार की कीमत का दोगुना भुगतान करना पड़ता है, तो राज्यों को अपने  कीमती संसाधनों को अनावश्यक रूप से अन्य स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों से हटाना होगा। यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।"

अनुच्छेद 39 कहता है कि सरकार, विशेष तौर पर, अपनी नीति को इस बात को सुनिश्चित करने की दिशा में कदम उठाए ताकि- (सी) आर्थिक प्रणाली के संचालन से धन और उत्पादन के साधनों का सामान्य नुकसान न हो। लेकिन केंद्र ठीक इसके उलट काम कर रहा है।

अनुच्छेद 47 कहता है कि, राष्ट्र लोगों के पोषण के स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार लाने के अपने प्राथमिक कर्तव्यों का पालन करेगा। 

प्रविष्टि 29 की सातवीं अनुसूची की सूची III केंद्र सरकार को "संक्रामक रोगों के अंतरराज्यीय प्रसार को नियंत्रित करने के लिए" राज्यों की सहायता करने के लिए बाध्य करती है। हमारे संविधान का अनुच्छेद 21 सभी के लिए आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल के सामान अवसर, सेवाओं और सुविधाओं को "उपलब्ध और सुलभ" बनाने का दायित्व केंद्र को सौंपता है, और अनुच्छेद 14 कहता है कि 'बिना किसी भेदभाव के' यह सब किया जाना चाहिए। सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति और अंतर्राष्ट्रीय दायित्व भी इसे अनिवार्य बनाते हैं। हालांकि, केंद्र सरकार की मौजूदा वैक्सीन नीति इस दायित्व के पूरी तरह से त्याग को दर्शाती है।

नीति के पैरा 8 (v) में कहा गया है कि, "भारत सरकार से वैक्सीन की खुराक पाने के लिए जनसंख्या समूहों के पात्र व्यक्तियों के लिए सरकारी कोविड टीकाकरण केंद्रों में कोविड-19 टीकाकरण मुफ्त जारी रहेगा।"

यह प्रावधान इस बात को भी स्पष्ट नहीं करता है कि वे टीके बनाने वालों से खरीदी गई 50 प्रतिशत खुराक को कहाँ वितरित किया जाएगा और अन्य 50 प्रतिशत का क्या होगा? जो एकतरफा नीति की कमियों को दर्शाती है।

पैरा 8 (vii) कहता है: टीका डिवीजन केंद्र सरकार को 50 प्रतिशत टीकों की आपूर्ति करेगी, और सभी टीका निर्मित कंपनियाँ बाकी 50 प्रतिशत को सरकारी चेनल को समान रूप से लागू करेंगी। 

जब विभिन्न श्रेणियों के लिए अलग-अलग मूल्य हैं तो सबको "समान रूप" का क्या अर्थ है?

ये इन दो वैक्सीन निर्माताओं द्वारा उत्पादित 50 प्रतिशत स्टॉक क्या करेगा? उनका कैसे वितरण किया जाएगा और कहाँ किया जाएगा? क्या यह केवल केंद्र शासित प्रदेशों तक ही सीमित रहेगा? यदि वे उन्हें राज्यों में वितरित करते हैं, तो वे कैसे करेंगे? अगला पैरा केंद्र को भारी शक्तियाँ देता है।

पैरा 8 (ix) कहता है कि, "भारत सरकार, अपने हिस्से से, राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को उनके प्रदर्शन के मानदंड (प्रशासन की गति, औसत खपत), के आधार पर, संक्रमण की सीमा (सक्रिय कोविड मामलों की संख्या) के आधार पर टीके आवंटित करेगा। यह एक और भेदभावपूर्ण प्रक्रिया है जो किसी कानूनी रूप से स्वीकार्य फॉर्मूले पर आधारित नहीं है, जिसे पूरी तरह से कुछ मंत्रियों या मंत्रियों के प्रति वफादार कुछ बाबुओं के मनमाने विवेक पर छोड़ देती है। यह अनुच्छेद 14 का एक और उल्लंघन है।

सबसे पहले पैरा 8 (vii) इसे समान रूप से सुलभ बनाने के लिए बाध्य करता है। इसके तुरंत बाद पैरा (ix) आता है जो अपने आप में काफी विरोधाभासी है और टीके की समान पहुंच को  असंभव बनाता है। यह नीति पिछले 70 वर्षों से सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) की  प्रचलित प्रणाली के खिलाफ है, जिसमें भारतीय टीका खरीद प्रणाली केंद्रीय रूप से वित्त पोषित है और निर्माताओं (सार्वजनिक और निजी) से सभी टीकों की खरीद की वकालत करती है और उन्हें राज्यों के माध्यम से सभी व्यक्तियों को नि:शुल्क वितरित करती है।

आनंद ग्रोवर ने ठीक ही कहा है कि “केंद्र सरकार द्वारा सबके लिए सभी टीकों की खरीद से  वैक्सीन आपूर्तिकर्ताओं से थोक खरीददारी से कीमतों को कम करने में अपनी शक्ति का उपयोग करने से काफी फायदा होता है। फिर भी, बिना किसी स्पष्ट कारण के, केंद्र सरकार ने केंद्र द्वारा टीके खरीदने की नीति को त्याग दिया है। इस प्रकार केंद्र ने खरीद के फायदे को त्याग दिया  है, और राज्य सरकारों को वैक्सीन आपूर्तिकर्ताओं से स्टॉक को खरीदने के लिए व्यक्तिगत रूप से बातचीत करने और एक-दूसरे और निजी क्षेत्र के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए मजबूर किया कर दिया है।”

पूर्व स्वास्थ्य सचिव सुजाता के॰ राव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की नीति कोविड-19 वैक्सीन निर्माताओं को बिना बातचीत के कीमतें तय करने की अनुमति देना "पूरी तरह से हास्यास्पद" है, टीके "कोई लक्जरी नहीं हैं" बल्कि इसे स्वतंत्र रूप से और व्यापक रूप से सबको उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

यदि “केंद्र के बजट में कोविड-19 टीकाकरण के लिए 35,000 करोड़ रुपये अलग रखे गए हैं, तो राज्यों को अब टीकाकरण के लिए फंड क्यों देना चाहिए? यह एक ऐसा सवाल है जिसे "मेरे अलावा हर कोई पूछ रहा है"। अगर निर्माताओं के साथ कीमत पर कोई सौदा नहीं होता है और वैक्सीन के लिए आधारभूत मूल्य 400 रुपये या उससे अधिक प्रति खुराक रखा जाता है, तो भारत को लगभग 60,000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी, ”उन्होने अनुच्छेद 14 को दिए हाल ही के एक साक्षात्कार में उक्त बातें बताई थी। 

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को तकनीकी सहायता देने वाले संस्थान, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र की गवार्निंग बॉडी की सदस्य और लेखक सुजाता राव ने कहा कि मेरी नज़रों में, "यह शायद सबसे दुर्भाग्यपूर्ण नीति के डिजाइनों में से एक है जिसे मैंने अपने करियर में देखा हैं? क्या हम भारत की स्वास्थ्य प्रणाली की कद्र करते हैं?

केंद्र की सरकार पिछले सात वर्षों से हर चीज़ को केंद्रीकृत कर रही है, लेकिन उसने इस महत्वपूर्ण काम को राज्यों की तरफ धकेल दिया है, जिससे पूरी तरह से अराजकता और भ्रम पैदा हो गया है। ग्रोवर कहते हैं, "खरीदार का बाजार से खरीदना, जो केंद्रीय खरीद का परिणाम है, केंद्र सरकार ने इसे विक्रेता बाजार बना दिया है। विक्रेता - सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) और भारत बायोटेक (बीबी) - उचित लाभ से अंधी मुनाफाखोरी की ओर बढ़ रहे हैं।"

एसआईआई अन्य देशों में वैक्सीन का उत्पादन करेगा

एसआईआई के अदार पूनावाला, जिनकी सालाना 100 करोड़ वैक्सीन खुराक के उत्पादन की क्षमता है, ने भारत छोड़ दिया है और कथित तौर पर इसे अन्य देशों में उत्पादन करने की योजना बना रहा है। कथित तौर पर, उन्होंने शिकायत भी की है कि उन्हें भारत में इस हद तक धमकी दी गई थी कि अगर वैक्सीन की खुराक का उत्पादन और आपूर्ति नहीं की गई तो उनका सर क़लम कर दिया जाएगा। उन्होंने अभूतपूर्व आक्रामकता और गंभीर प्रभावों के बारे में बात की। उन्होंने बताया, "मैं यहां अधिक समय के लिए रहूँगा क्योंकि मैं वापस उस स्थिति में नहीं जाना चाहता हूँ।" फिर एसआईआई अपना उत्पादन कैसे बढ़ाएगा और वह राज्यों को आपूर्ति के बारे में कैसे आश्वस्त कर सकता है?

वैक्सीन के आविष्कार का वित्तपोषण किसने किया?

इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने कौवैक्सीन के लिए तकनीक विकसित की जिसे उसने भारत बायोटेक के साथ साझा किया था। ग्रोवर इस पर टिप्पणी करते हैं कि, "बीबी का दावा है कि उसने क्लिनिकल ट्रायल पर 300 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। जबकि वैक्सीन को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के सहयोग से सामूहिक रूप से विकसित किया गया है। बीबी द्वारा वित्त पोषित और सरकारी संस्थानों में सुविधा वाले नैदानिक जाँचों ने प्रक्रिया को तेज करने में साहयता प्रदान की थी।  बीबी को जुलाई तक वैक्सीन की 90 मिलियन खुराक की आपूर्ति करने अग्रिम 1,500 करोड़ रुपये दिए गए हैं। केंद्र सरकार ने उत्पादन बढ़ने के लिए धन उपलब्ध कराने के लिए यह असाधारण निर्णय लिया है। फिर भी बीबी राज्य सरकारों से 400 रुपये चार्ज कर रही है।”

यूके में हाल ही में किए गए एक अध्ययन का निष्कर्ष यह है कि "ChAdOx प्रौद्योगिकी के विकास और अनुसंधान एवं विकास और सार्स-कोविड-2 पर इसके इस्तेमाल के लिए जिसे ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय ने विकसित किया है पर सार्वजनिक वित्तपोषण से 97.1-99.0 प्रतिशत निधि का योगदान किया है।" जबकि इसके लिए 2 प्रतिशत से भी कम की फंडिंग निजी उद्योग से आई है। यहां तक कि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय भी सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित संस्थान है। एसआईआई ऑक्सफोर्ड की मदद से वैक्सीन का निर्माण कर रही है।

ग्रोवर समझाते हैं कि, "एसआईआई को एस्ट्रा जेनेका से समझौता करने से तकनीक और अन्य जानकारी मिली है, जिसने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा तैयार वैक्सीन का लाइसेंस इस उद्देश्य से दिया था कि एसआईआई कम आय वाले देशों के लिए टीकों की एक अरब खुराक का उत्पादन करेगा। उत्पादन के विस्तार और अंतरराष्ट्रीय जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत में अपनी विनिर्माण इकाई का विस्तार करने के लिए इसे गावी (GAVI) से 300 मिलियन अमरीकी डालर (22,000 करोड़ रुपये) का अनुदान भी मिला है। उत्पादन बढ़ाने की सुविधा के लिए इसे अभी-अभी 3000 करोड़ रुपये का एक अभूतपूर्व अग्रिम खरीद सौदा भी मिला है।”

लागत पर वैक्सीन बनाने के लिए एसआईआई को काफी आर्थिक समर्थन मिला है। अदार पूनावाला ने एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में यहां तक स्वीकार किया था कि 150 रुपए प्रति खुराक पर भी वे लाभ कमा रहे हैं। फिर भी, केंद्र सरकार राज्यों को बहुत अधिक कीमतों पर खुराक खरीदने की निजी कंपनियों की शर्त पर सहमत हो गई और निजी क्षेत्र को अधिक मूल्य निर्धारण की अनुमति दे दी। जब अनुसंधान या तो लोगों के लिए या उनके द्वारा वित्त पोषित है, तो फिर केंद्र सरकार मर रहे लोगों की कीमत पर निजी कंपनियों को अंधा मुनाफा कमाने की इज़ाजत कैसे दे सकती है?

(लेखक पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त और बेनेट विश्वविद्यालय में क़ानून के प्रोफ़ेसर हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।)

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Centre’s Vaccine Policy is Anti-Democratic and Unconstitutional

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