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NPR पर कैबिनेट की सहमति, NRC पर बढ़ी चिंताएं

केवल तीन राज्यों, राजस्थान, केरल और पश्चिम बंगाल ने ही NPR को लंबित रखने की बात कही है। NPR को NRC में बदलने की संभावनाएं प्रबल हैं।
Cabinet Nod for Updating NPR

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने मंगलवार को नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR) के लिए क़रीब 4000 करोड़ रुपयों का प्रावधान कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, NPR में लोगों से उनके जन्मस्थल की जानकारी ली जाएगी, यह बात लोगों में डर बढ़ा रही है।

हालांकि, NPR 2010 में बनाया गया था, जिसके तहत 2011 की जनगणना के लिए घरों की गिनती की जानी थी। इसके बाद इसे 2015 में अपडेट किया गया था। लेकिन इस बार NPR में जो सवाल शामिल हैं, उनके ज़रिये यह NRC के काफ़ी क़रीब आ गया है। बता दें NRC के ख़िलाफ़ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। मंगलवार को मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि NPR का NRC या बॉयोमेट्रिक-दस्तावेज़ से कोई लेना-देना नहीं है।

लेकिन मोदी सरकार ने ख़ुद NPR और NRC के जुड़े होने के बारे में माना है। 15 जुलाई, 2014 को लोकसभा को दिए लिखित जवाब में गृहमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था, ''नागरिकता अधिनियम 1955 के मुताबिक़ केंद्र सरकार आवश्यक तौर पर भारत के नागरिकों को दर्ज कर सकती है और उन्हें राष्ट्रीय पहचान पत्र (आईडी कार्ड) जारी कर सकती है। इसलिए सरकार नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीज़न (NRIC) बनाने जा रही है, जिसमें नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR) के ज़रिये नागरिकता की स्थिति की जानकारी ली जाएगी और सभी लोगों को नेशनल आईडी कार्ड दिए जाएंगे।''

लोकसभा में MNIC कार्ड पर एक और लिखित जवाब में मोदी सरकार ने दोबारा NRC और NPR के संबंध के बारे में बताया था। गृहमंत्रालय के मुताबिक़, ''नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर सामान्य रहवासियों का रजिस्टर है। इसमें नागरिक और गैरनागरिक दोनों होंगे। NPR बनाने का लक्ष्य एक निश्चित समय में देश में रह रहे लोगों की संख्या का पता करना है। यह एनआरआईसी को बनाने के लिए आंकड़ों के मूल स्त्रोत के तौर पर काम करेगा। एनआरआईसी के लिए NPR में शामिल लोगों की हर जानकारी सत्यापित कर उसका इस्तेमाल किया जाएगा।''

NPR के आंकड़ों को ऑफिस ऑफ रजिस्टर जनरल ऑफ इंडिया द्वारा इकट्ठा किया जाएगा। यह गृहमंत्रालय के अंतर्गत आता है। नए सवालों को अभी तक इसमें शामिल किए जाने की पुष्टि नहीं की गई है। NPR के लिए हमसे जो सवाल पूछे जाएंगे, जरूरी है कि उन्हें सार्वजनिक किया जाए।

पहले हुए NPR की जानकारियों से अलग है इस बार मामला

अभी तक NPR के दो राउंड हो चुके हैं, जिसमें 14 बिंदुओं वाले प्रश्नपत्र का इस्तेमाल किया गया था। इसमें जन्म, वैवाहिक स्थिति, माता-पिता के नाम, पेशा, पता और राष्ट्रीयता पूछी जाती थी। इन सबको ''घोषित''  माना जाता था। मतलब परिवार द्वारा यह जानकारी इकतरफा तौर पर दी जाती थी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, इस बार NPR के सवालों में आधार नंबर, मोबाइल नंबर, पासपोर्स नंबर और संबंधित व्यक्ति के माता-पिता का जन्मस्थल शामिल होगा। रिपोर्टों के मुताबिक़ इस डेटा को गुप्त तरीके से सुरक्षित किया जाएगा, जिसके चलते लोगों के मन में इसका गलत इस्तेमाल होने का डर बढ़ रहा है।

NRC के साथ क्या जुड़ाव है?

NPR एक देश में किसी निश्चित समय, आमतौर पर रहने वाले लोगों का रजिस्टर है। यहां ''आमतौर पर रहने वालों'' का मतलब है कि किसी स्थानीय निश्चित इलाके में महीनों या उससे ज्यादा समय से रहने वाले लोग, जो संबंधित जगह 6 महीने और रुकने वाले हैं। जैसा आंकड़े इकट्ठे करने वाले को बताया जाता है, वह सीधे इसी जानकारी को दर्ज कर लेता है।

दूसरी तरफ़ NRC नागरिकों का एक रजिस्टर है। NRC के मामले में नागरिकता को प्रमाणित करने के लिए दस्तावेज़ जमा करने होते हैं। इनकी सूची संबंधित नागरिकता कानून देता है। रजिस्ट्रार या स्थानीय स्तर पर इसके प्रतिनिधि इन दस्तावेज़ों का प्रमाणीकरण करते हैं। अगर उन्हें शक होता है, तो वे संबंधित शख़्स की नागरिकता को ''संशयपूर्ण'' करार दे सकते हैं। तब अपनी नागरिकता साबित करने का भार शख्स पर होगा। असम में संपन्न हुई NRC में इसी प्रक्रिया का पालन किया गया था।  

इसके ग़लत इस्तेमाल का शक इसलिए है क्योंकि मोदी सरकार ने 11 दिसंबर को नागरिकता संशोधन अधिनियम पास किया है, जिसमें अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले ''अवैध मुस्लिम प्रवासियों'' के लिए भेदभावकारी प्रावधान हैं। इस एक्ट के तहत बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान से आने वाले ''अवैध प्रवासियों'' को नागरिकता देने के नियमों में तेज़ी लाई जाएगी, लेकिन मुस्लिमों को छोड़कर। इससे न केवल हमारे संविधान के पंथनिरपेक्ष चरित्र पर हमला हो रहा है, बल्कि मौलिक अधिकारों में दिए गए संवैधानिक अधिकारों का भी हनन हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट में इस क़ानून के ख़िलाफ़ कुछ दर्जन याचिकाएं भी दाख़िल हुई हैं। 

NPR के लिए शुरू होने वाले नए कार्यक्रम में बिना कारण बताए माता-पिता के जन्मस्थान की जानकारी ली जा रही है। इससे शख़्स की नागरिकता पर ही सवाल खड़े हो जाएंगे। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि नागरिकता क़ानून के सेक्शन 3c(II) के मुताबिक़, अगर माता या पिता में कोई भी अवैध प्रवासी है तो उनकी संतान भी अवैध नागरिक होगी।

NPR बदलेगा NRC में?

ताज़ा NPR फ़ैसले के बाद ऐसा लगता है कि मोदी सरकार नागरिकता के कानून को अब पिछले दरवाजे से लाने की कोशिश में है। पंथनिरपेक्ष लोगों और अल्पसंख्यकों की यही चिंता है। NPR में भले ही अभी सबूत देने का प्रावधान नहीं है, लेकिन सरकार कभी भी इसके लिए सूबत लाना अनिवार्य कर सकती है। या सरकार दर्ज़ कर सकती है कि संबंधित जानकारी का कोई सबूत नहीं दिया गया। इसके बाद निशाना बनाकर लोगों की नागरिकता पर सवाल उठाए जा सकते हैं।

इस नए NPR फ़ैसले से अलग-अलग विपक्षी पार्टियों और मुख्यमंत्रियों की सोच का भी पता चल जाएगा। 8 मुख्यमंत्रियों ने NRC प्रक्रिया को अपने राज्यों में लागू न करने का ऐलान किया था। केवल पश्चिम बंगाल, केरल और राजस्थान ने ही NPR को भी लागू न होने देने की बात कही है। इसे फ़िलहाल लंबित रखा जाएगा। इस मुद्दे में आने वाले दिनों में लोगों की नाराज़गी बढ़ाने का दम है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Cabinet Nod for Updating NPR Triggers Fresh Fears on NRC

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