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केंद्र फूड किट मुहैया कराए, प्रवासी संकट कम करने के लिए पीडीएस को सार्वभौमिक बनाए

इसके प्रावधान पर आने वाली लागत भारत में महामारी पर नियंत्रण के लिए लगाये गये तालाबंदी से होने वाले भारी मानवीय नुकसान की तुलना में कम होगी।
केंद्र फुड किट्स मुहैया कराए, प्रवासी संकट को कम करने के लिए पीडीएस को सार्वभौमिक बनाए
चित्र केवल प्रतीकात्मक उपयोग के लिए

सर्वोच्च न्यायालय ने 13 मई को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रवासी कामगारों को आत्मनिर्भर भारत योजना या हरेक राज्य में लागू सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के अंतर्गत सूखा राशन मई महीने से ही मुहैया कराने के लिए केंद्र सरकार, और दिल्ली,  हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश की सरकारों 13 मई को एक अंतरिम आदेश जारी किया है। न्यायालय ने प्रवासी कामगारों के लिए सामुदायिक रसोई खोले जाने के अलावा अपने गांव जाने के इच्छुक कामगारों को परिवहन सुविधाएं भी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। 

राजधानी दिल्ली में, जहां पिछले साल प्रवासियों का एक विशाल सैलाब उमड़ आया था। भोजन अधिकार कार्यकर्ता राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकार से मुफ्त में राशन और तैयार भोजन  उपलब्ध कराने की मांग करते रहे थे।  लेकिन इन लोगों ने इस दिशा में खुद के कार्रवाई करने के बदले सुप्रीम कोर्ट के आर्डर का ही इंतजार किया। यह मिलने के बाद 14 मई को राशन के वितरण का एक नोटिस जारी किया। 

 इस साल कोविड-19  महामारी की दूसरी लहर  2020 की पहली लहर की तुलना में देश में जबरदस्त तबाही मचाई है। इस साल  कोरोना के संक्रमण ने कई सारे लोगों की जानें ली हैं।  एक बार फिर भारी तादाद में लोगों के काम-धंधे छूट गए हैं और उन्हें बहुत ही मामूली संसाधनों पर गुजारा करना पड़ रहा है। फिर से  भोजन जुटाने,  राशन का प्रबंध करने,  घर  लौटने-जैसे अस्तित्व बचाने की यही एक बुनियाद हो-की वही जद्दोजहद सतह पर उभर आई है। एक तरफ  हमने  सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की चरमराहट देखी है और वह प्रणालीगत विफलता भी, जहां मरीजों को ऑक्सीजन नहीं, बिस्तर नहीं, वेंटीलेटर तक नसीब नहीं है, जिनके कारण बड़़ी तादाद में लोगों की जानें गई हैं।

वहीं दूसरी ओर, हम सरकार को पीडीएस को प्रेरित करने और इस गंभीर संकट में लोगों को एक वक्त का भी खाना मुहैया कराने में सरकार की विफलता के गवाह रहे हैं।

तीन राज्यों-राजस्थान, केरल और उत्तराखंड-और कुछ सांसदों के प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत 80 करोड़ गरीबों को फ्री राशन देने की शुरुआत करने का केंद्र सरकार से अनुरोध करने के बाद उसने पीएमजीकेवाई -III योजना के तहत मई और जून दो महीने के लिए राशन बांटने की घोषणा की। 

इसके अलावा, पीडीएस (टीपी़डीएस) के तहत लक्षित 80 करोड़ लोगों को प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम की दर से नियमित मिलने वाले राशन के अलावा दो महीने के अतिरिक्त राशन का आवंटन राष्ट्रीय खाद्यान्न सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए)  के तहत किया गया है। इसके अलावा, इस साल राशन में दाल का प्रावधान नहीं किया गया है। जो एक तरह से पोषाहार के पहलू से समझौता करना है।

भोजन अधिकार कार्यकर्ता  महामारी से  आए अस्तित्वगत व्यापक मानवीय संकट को देखते हुए कम से कम  6 महीने तक लोगों को मुफ्त में राशन दिये जाने की मांग करते रहे हैं। दरअसल, 1 मई 2021 को  अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस के अवसर पर 10 केंद्रीय श्रमिक यूनियनों के संयुक्त मंच ने एक स्वर से सरकार से मांग की थी कि आयकर देने के दायरे में न आने वाले सभी परिवारों को प्रति महीने 7,500 रुपये और प्रति व्यक्ति10 किलो ग्राम खाद्यान्न  कम से कम 6 महीने तक मुहैया कराई जाए। 

 इसे अवश्य ही रेखांकित किया जाना चाहिए कि देश में 80 करोड़ लोगों के ही गरीब होने का यह अनुमान 2011 की जनगणना पर आधारित है, जो एनएफएसए, 2013 के तहत लाभान्वितों के दायरे में आते हैं। विशेषज्ञों ने इस अनुमान को बारहां गलत ठहराया है। ज्यां द्रेज, रीतिका खेड़ा और मेघना मुंगिकार  ने अपने अध्ययन में कहा है (इडिया स्पेंड, अप्रैल 2020 की रिपोर्ट) कि “व्यवस्था ने 100 मिलियन लोगों को इसकी पहुंच से बाहर छो़ड़ दिया है।” 

एनएफएसए के तहत, देश के ग्रामीण क्षेत्र की 75 फीसदी और शहरी क्षेत्र की 50 फीसदी आबादी को पीडीएस के दायरे में रखा गया है, जो देश की सकल आबादी का 67 फीसदी है। इनके मुताबिक “अखिल भारतीय स्तर पर 2020 के लिए प्राक्कलित 1,372 मिलियन आबादी के 67 फीसदी अनुपात को लागू करने पर आज पीडीएस के दायरे में लाभान्वितों की तदाद 800 मिलियन के बजाय 922 मिलियन होगी।”

अत: पीडीएस को सार्वजनीन बनाने की मजबूत मांग काफी समय से की जाती रही है। ऐसे कम आकलन को देखते हुए तो इस स्कीम को सार्वजनिक बनाने का दावा बहुत ही मजबूत हो गया है, जिसकी मांग  भोजन अधिकार कार्यकर्ता लगातार करते आ रहे हैं। 

हालांकि हाल में ही मोबाइल एप्प ‘मेरा राशन’, भारत सरकार के खाद्य सचिव सुधांश पांडेय ने कहा कि एनएफएसए के अंतर्गत लाभान्वित होने वालों की मौजूदा संख्या में संशोधन का कोई प्रस्ताव फिलहाल विचाराधीन नहीं है। हालांकि, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) के पुनर्गठन पर 2015 में शांता कुमार की रिपोर्ट में एनएफएसए के तहत लाभान्वितों के दायरे में संशोधन का सुझाव दिया गया था। 

पीडीएस को सार्वभौमिक बनाने की वकालत करते हुए रीतिका खेड़ा और अनमोल सोमांची (अगस्त 2020) में एक आकलन किया और बताया कि पूरे देश में 95 करोड़ लोग इस स्कीम के तहत लाभ पाने का अधिकार या पात्रता रखते हैं। एनएफएसए की लोगों तक अपर्याप्त पहुंच होने की वजह से कई राज्य केंद्रीय एनएफएसए के दायरे बाहर चले गये हैं और विस्तारित पीडीएस चलाते हैं। इस प्रकार, कुल मिला कर, इन 95 करोड़ लाभान्वितों में 1.) एनएफएसए लाभान्वितों, 2.) एनएफएसए के समान अधिकार या इसके अधिक, तथा 3.)एनएफएसए के विपरीत, कम हकदारी के दायरे में आने वाले लोग शामिल हैं। पीडीएस को व्यापक बनाने के मुताबिक, 40 करोड़ से अधिक लोगों को इसके दायरे में लाये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि उन्हें सरकार से किसी भी तरह की खाद्य सहायता नहीं मिलती। 

देश में खाद्यान्न का भंडारण इसके लिए तय सीमा से कहीं अधिक है और उसका उपयोग इस प्रयोजन के लिए किया जा सकता है। अप्रैल 2021 में, देश में खाद्यान्नों का कुल भंडारण 564.22 लाख टन था। इसमें, गेहूं 273.04 लाख टन और चावल 291.18 लाख टन का भंडार है। अप्रैल के खाद्यान्न भंडारण की सीमा 210.40 लाख टन निर्धारित थी। 

केरल का मामला अपवाद रहा है क्योंकि यह लोगों को मासिक फुड किट्स की आपूर्ति कर तथा सामुदायिक रसोई चला कर लोगों की आजीविका पर उत्पन्न संकट का हल निकाल लेने में सक्षम रहा है। केरल सरकार ने मार्च 2020 में इसे शुरू किया था और इसे लगातार जारी रखने तथा सार्वभौमिक बनाये जाने की घोषणा की। इस किट, जिसमें घर-परिवार में काम आने वाली बुनियादी वस्तुएं मुहैया करायी जाती हैं, जिनमें खाद्यान्न, दालें, मसाले इत्यादि शामिल रहते हैं, की कीमत एक महीने के लिए लगभग 900 रुपये होती है। लॉक डाउन में इस किट्स की कीमत 700 रुपये थी औऱ लॉक डाउन के बाद (अक्टूबर-नवम्बर में) 350 रुपये और 450 रुपये (दिसम्बर में) थी। 

केरल के अनुभव दोहराने की कीमत 

अगर केंद्र सरकार केरल मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर सभी एनएफएसए लाभान्वितों को लागू करने का प्रयास करे तो इसकी कितनी लागत आएगी?

जहां तक राशन कार्डों की कुल संख्या और राशन सुविधा के दायरे में आने वालों की कुल तादाद की बात है तो विभिन्न सरकारों के पोर्टल पर इनका आंकड़ा अलग-अलग दिया गया है। सभी एनएफएसए लाभान्वितों को फुड किट्स के प्रावधान के लिए संसाधनों की मांग के आकलन के क्रम में हम एनएफएसए के डैशबोर्ड पर अंकित आंकड़े को लेते हैं। इसमें 22.5 करो़ड़ राशनकार्ड या परिवार हैं और 75.5 करोड़ लाभान्वित हैं-ये आंकड़े 15 मार्च 2021 के मुताबिक हैं। 

अगर फुड किट्स के प्रावधान के लिए हम मोटे तौर पर प्रति परिवार प्रति महीने 700 रुपये का आंकड़ा रखते हैं,जो केरल सरकार द्वारा 2020 के शुरुआती लॉक डाउन में फुड किट्स की तय की गई अधिकतम कीमत है, तो 22.5 करोड़ परिवारों को छह महीने तक फुड किट्स मुहैया कराने पर केंद्रीय खजाने पर 94.5 करोड़ रुपये का भार पड़ेगा।
 
पीएमजीकेएवाई के अंतर्गत, 80 करोड़ परिवारों को दो महीने के खाद्यान्न (चावल और गेहूं) की आपूर्ति के लिए केंद्र पर 26,000 करोड़ रुपये दे रहा है, अगर हम यह सुविधा 75.5 करोड़ लाभान्वितों देते हैं तो इस पर अनुमानत: व्यय 24.4  हजार करोड़ रुपये होता है। छह महीने तक फुट किट्स मुहैया कराये जाने पर 75,000 करोड़ रुपये का खर्चा आएगा। यदि हम फुड किट्स पर आने वाले खर्चे को खाद्यान्न की आपूर्ति पर आने वाली लागत में से निकाल दें, जिसे कि सरकार पहले से ही एनएफएसए तथा पीएमजीकेएवाई के अंतर्गत लोगों को मुहैया करा ही रही है, तो पूरे भारत में एनएफएसए परिवारों को अन्य बुनियादी वस्तुएं छह महीने तक मुहैया कराने के लिए अतिरिक्त खर्चा 20 हजार करोड़ रुपये के लगभग आएगा। यह रकम सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), (2021-22) की महज 0.90 फीसदी होगी।

इसके अलावा, अगर इस योजना को सार्वभौमिक बनाया जाता है, तो इसको आगे 40 करोड़ लोगों (रीतिका खेड़ा एवं सोमांची (अगस्त 2020) के अध्ययन-अनुमान के मुताबिक)  या कहें कि लगभग 12 करोड़ परिवारों तक पहुंचाया जाना है। यदि 22.5 करोड़ परिवारों को छह महीने फुड किट्स पहुंचाने पर कुल व्यय 95,000 रुपये आता है तो 12 करोड़ परिवारों के लिए यह लागत 50,600 करोड़ रुपये होगी। इसका तात्पर्य यह हुआ कि फुड किट्स को सार्वभौमिक बनाने में जीडीपी (2021-22)  पर मात्र 0.23 फीसदी का अतिरिक्त भार पड़ेगा। 

1990 के दशक में, पीडीपी के लक्षित लाभान्वितों में से ऐसे परिवारों के नाम काटने देने के लिए एक अभियान चलाया गया था, जो खाद्यान्न खरीदने में समर्थ  थे पर जिनका नाम गलत तरीके से इस दायरे में रखा गया था। हालांकि, धीरे-धीरे यह देखा गया कि एक लक्षित प्रणाली की तरफ बढ़ते हुए जरूरतमंदों को ही लक्षित लाभान्वितों की सूची से बाहर (गलत तरीके से) कर दिया गया है। इसके साक्ष्य हैं, और विशेषज्ञों ने भी कहा है कि सार्वभौमिकता के लक्ष्य की तरफ बढ़ने के बजाय दायरे को ही सीमित कर दिया गया है। गलत तरीके से अपात्र लोगों के जोड़ने की तुलना में पात्र व्यक्ति-परिवारों को के नाम गलत तरीके से काटने में गलतियां ज्यादा हुई हैं। (स्वामीनाथन एवं मिश्रा, 2021,ईपीडब्ल्यू खंड 36, नम्बर.26)। जैसा कि स्वामीनाथन ने ध्यान दिलाया है कि पात्रता न रखने वाले व्यक्ति-परिवारों को गलत तरीके से सूची में नाम जोड़े जाने के चलते वित्तीय लागत की दृष्टि से ही घाटा उठाना पड़ा है जबकि पात्रता रखने वाले लोगों के नाम सूची से गलत तरीके से बाहर किये जाने की कीमत उन्हें अपर्याप्त खाद्यान्न-आपूर्ति, कुपोषण, खराब सेहत की वजह से समग्र कल्याण के लक्ष्यों की क्षति के रूप में उठानी पड़ी है। 

जैसा कि उपरोक्त मोटे अनुमान दिखाते हैं कि सार्वभौमिक खाद्यान्न सब्सिडी जीडीपी पर अधिक भार नहीं डालेगी किंतु एक लक्षित प्रणाली पात्र व्यक्ति-परिवारों को अपने दायरे से बाहर रखने की गलती करेगी। लाभान्वितों की लक्षित तादाद पहले से ही कम आकलन पर आधारित है। इस अभूतपूर्व मानवीय संकट, जिसका हम सब अभी सामना कर रहे हैं, के बीच ऐसी गलतियां सहन कर सकते हैं?

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Centre Should Provide Food Kits, Universalise PDS to Ease Migrant Distress

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