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छत्तीसगढ़: कर्मचारियों के बाद अब शिक्षक उतरे सड़क पर, 31 जुलाई से दी काम बंद करने की चेतावनी

भूपेश बघेल सरकार बीते कई महीनों से युवाओं, कर्मचारियों और महिलाओं के विरोध प्रदर्शन और हड़ताल का सामना कर रही है।
Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में संविदा कर्मियों की जारी हड़ताल के बीच अब प्रदेश के शिक्षकों ने भी अपनी मांगों को लेकर सत्ताधारी कांग्रेस और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इसी कड़ी में मंगलवार, 18 जुलाई को सभी जिलों से हज़ारों शिक्षक राजधानी रायपुर पहुंचे और उन्होंने सरकार के खिलाफ आक्रोश रैली निकाली। शिक्षकों ने हाथों में पोस्टर और नारों की गूंज के साथ ही सुनवाई न होने पर 31 जुलाई से हड़ताल पर जाने का अल्टीमेटम भी सरकार को दिया।

बता दें कि ये सभी शिक्षक बीते लंबे समय से एलबी संवर्ग के लिए पूर्व सेवा की गणना कर प्रथम नियुक्ति तिथि से सही वेतन का निर्धारण कर सहायक शिक्षकों की वेतन विसंगति दूर करने, क्रमोन्नत वेतनमान का निर्धारण कर कुल 20 वर्ष की सेवा अवधि में पुरानी पेंशन का लाभ प्रदान करने की मांग कर रहे हैं। इसे लेकर राज्य के पांच प्रमुख शिक्षक संगठनों ने मिलकर शिक्षक संघर्ष मोर्चा का गठन भी किया है, जिसके नेतृत्व में ये आंदोलन आगे बढ़ेगा।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ में सभी शिक्षाकर्मियों को साल 2018 में संविलियन के तहत नियमित नियुक्ति मिली। ये नियुक्ति भी साल 2017 में एक बड़े आंदोलन का ही परिणाम थी। हालांकि तब से लेकर अब तक इन शिक्षकों की कई समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। इन्हें वेतन विसंगति से लेकर पदोन्नती तक में रुकावट का सामना करना पड़ रहा है। यही नहीं राज्य सरकार की पुरानी पेंशन बहाली की स्कीम से भी ये लोग वंचित हैं, जिसका विरोध ये शिक्षक सालों से कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ शिक्षक संघर्ष मोर्चा के प्रदेश संचालक संजय शर्मा ने न्यूज़क्लिक को फोन पर जानकारी दी कि प्रदेश के लाखों शिक्षक इस समय वेतन विसंगति की समस्या से जूझ रहे हैं। 90 के दशक से स्कूलों में सेवा दे रहे शिक्षकों का 2018 में संविलयन हुआ और अभी भी उनकी सेवा की गिनती पहले से नहीं बल्कि 2018 से की जा रही है। यानी अगर कोई शिक्षक 1998 से लगा है और उसे 2018 में नियमित किया गया है तो उसके पुराने 20 सालों की गणना की ही नहीं जा रही, जिसके चलते ये सभी शिक्षक कई सुविधाओं और उचित वेतन से दूर हो गए हैं।

छत्तीसगढ़ शिक्षक संयुक्त मोर्चा के संचालक वीरेंद्र दुबे का कहना है कि ये शिक्षक संविलियन के बाद भी सालों से अपने हक़ के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। कई बार सरकार ने इनकी दिक्कतों को दूर करने का वादा किया है, आश्वासन दिया है लेकिन अब तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। अगर अब भी सरकार कुछ नहीं करती तो जल्द ही 31 जुलाई से ये सभी शिक्षक क्लासरूम छोड़कर अनिश्चितकालीन काम रोकने को मजबूर हो जाएंगे, जिसकी जिम्मेदार केवल सरकार ही होगी।

क्या हैं शिक्षकों की मांग?

*  पूर्व सेवा की गणना कर प्रथम नियुक्ति तिथि से सही वेतन का निर्धारण कर सहायक शिक्षकों की वेतन विसंगति दूर करें।

*  क्रमोन्नत वेतनमान का निर्धारण कर पुरानी पेंशन निर्धारित करें एवं कुल 20 वर्ष की सेवा में पूर्ण पुरानी पेंशन प्रदान किया जाए।

गौरतलब है कि प्राप्त जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ में साल 2018 से पहले स्कूलों में दो तरह के शिक्षक काम कर रहे थे। पहले स्कूल शिक्षा विभाग में नियुक्त नियमित शिक्षक। दूसरे पंचायत और नगरीय निकायों की ओर से नियुक्त शिक्षाकर्मी। शिक्षाकर्मी नियुक्ति नियमित नहीं थी और ये पैरा शिक्षक का पद था। इनका वेतन भी कम था और इन्हें राज्यकर्मी भी नहीं माना जाता था। साल 2017 में चुनाव पूर्व इन शिक्षार्मियों का एक बड़ा आंदोलन देखने को मिला था, जिसके बाद इन्हें स्कूल शिक्षा विभाग में नियमित कर दिया गया। हालांकि नियमितीकरण के बाद भी इनकी समस्याओं का निराकरण नहीं हुआ, जो एक बार फिर इस आगामी चुनाव में एक बड़ा मुद्दा देखने को मिल सकता है।

जाहिर है बढ़ती चुनावी गहमागहमी के बीच भूपेश बघेल सरकार बीते कई महीनों से युवाओं, कर्मचारियों और महिलाओं के विरोध प्रदर्शन और हड़ताल का सामना कर रही है। बीते दिनों सरकार की ओर से एस्मा भी लगाया गया था, जिसके बाद भी कर्मचारियों पर कोई खासा असर देखन को नहीं मिला। ऐसे में अब एक और प्रदर्शन और हड़ताल सरकार के लिए नई चुनौती जरूर होगी। 
 

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