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ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की आपात ज़रूरत, दुनिया के लिए ख़तरे की घंटी बजा रही हैं WMO और UNEP की रिपोर्ट

संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का विश्लेषण बताता है कि दुनिया अब 2।7 डिग्री सेल्सियस बढ़े हुए तापमान की दिशा में जा रही है, जिसके बेहद भीषण प्रभाव होंगे।
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Image Courtesy: pixabay

स्कॉटलैंड के ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र संघ की कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़-26 के पहले, उत्सर्जन स्तर और मौसम परिवर्तन के लक्ष्यों को हासिल करने से काफ़ी दूर रहने संबंधी कुछ रिपोर्ट प्रकाशित हुई हैं, जिन्हें नींद से जगाने वाले दस्तावेजों के तौर पर देखा जा रहा है। अगर उत्सर्जन पर अभी कटौती नहीं कई गई, तो इंसानियत को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा; रिपोर्टों का कहना है कि इस अहम मोड़ पर उत्सर्जन में कटौती से संबंधित समाधानों को आपात तरीके से लागू करना ही एकमात्र विकल्प मौजूद है।

ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन

इन रिपोर्टों में से एक WMO (वर्ल्ड मीटियेरोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन) द्वारा बनाई गई है। संगठन के ट्विटर अकाउंट से लिखा गया, "ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन अब रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुका है। 2020 में कार्बन डाइऑक्साइड का संक्रेंद्रण पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 149 फ़ीसदी रहा। कोविड-19 से आई आर्थिक मंदी का कुछ विशेष असर नहीं हुआ। अब हम पेरिस समझौते में तय किए गए लक्ष्य 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस से कहीं ज़्यादा बढ़ोत्तरी करने के रास्ते पर हैं।"

WMO का संदेश साफ़ और तेज है- हमारे पास मौसमी आपदा से बचने के लिए अब वक्त नहीं बचा है, हमें तुरंत गंभीर और कड़े कदम उठाने होंगे।

WMO की प्रमुख पेटेरी तालास ने इसी स्वर में कहा, "ग्रीनहाउस बुलेटिन ग्लासगो में होने वाले COP26 के लिए एक स्याह और वैज्ञानिक संदेश रखता है।"

उन्होंने कहा, "ग्रीनहाउस गैसों के संकेंद्रण में बढ़ोत्तरी की मौजूदा दर से हमें इस शताब्दी के अंत तक, पेरिस समझौते में तय किए गए 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य से कहीं ज़्यादा बढ़ा हुआ तापमान हासिल होगा। हम रास्ते से बहुत अलग जा रहे हैं।"

WMO की रिपोर्ट के मुताबिक़, 2020 में कार्बन डाइऑक्साइड का संकेंद्रण, पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में 149 फ़ीसदी के बेहद खतरनाक स्तर पर दर्ज किया गया। इसके साथ मीथेन संकेंद्रण 262 फ़ीसदी, नाइट्रस ऑक्साइड 123 फ़ीसदी दर्ज किया गया, दोनों ही ग्रीनहाउस गैसे हैं और ओजोन को नुकसान पहुंचाती हैं। 

हालांकि कोविड-19 में लगाए गए लॉकडाउन से थोड़े वक़्त के लिए उत्सर्जन में कुछ कमी आई थी, लेकिन वातावरण में मौजूद ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने में इसका बहुत प्रभाव नहीं पड़ा। बल्कि इन गैसों का संकेंद्रण लगातार बढ़ रहा है। रिपोर्ट कहती है, उत्सर्जन में हो रहे लगातार इज़ाफे के चलते वैश्विक ताप बढ़ना निश्चित है। 

सबसे अहम कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में लंबे वक़्त तक रहने वाली गैस है, अगर तेजी से आज इसका उत्सर्जन कुल शून्य भी हो जाए, तो भी मौजूदा तापमान स्तर बढ़ना जारी रहेगा। 

"पिछली बार पृथ्वी पर कार्बन डाइऑक्साइड का इस तरह का स्तर तीस से पचास लाख साल पहले हुआ था, तब तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा था और समुद्र स्तर 10-20 मीटर ज़्यादा था। लेकिन तब पृथ्वी पर 7.8 अरब लोग नहीं रहते थे।"

रिपोर्ट जोर देते हुए कहती है, "हमें अपनी प्रतिबद्धताओं को कार्रवाई में बदलना होगा, जिसका प्रभाव मौसम परिवर्तन करने वाली गैसों पर पड़े। हमें अपनी औद्योगिक, ऊर्जा और परिवहन तंत्र के साथ-साथ जीवन के पूरे तरीके पर फिर से नज़र डालनी होगी।"

रिपोर्ट दोहराती है, "जिन बदलावों की जरूरत है, वे आर्थिक और तकनीकी स्तर पर किए जा सकते हैं, अब वक़्त गंवाने का समय नहीं है।"

उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट:

एक दूसरी अहम रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने बनाई है, जिसमें भी ऐसी ही चेतावनी दी गई है। रिपोर्ट साफ़ कहती है कि उत्सर्जन कम करने की राष्ट्रीय योजनाएं, जरूरत से बहुत ज़्यादा कम हैं। "एमीशन गैप" रिपोर्ट कहती है कि जिन देशों ने इस शताब्दी में ताप में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने की शपथ ली थी, वह पूरी नहीं होगी। 

संगठन का विश्लेषण यह भी बताता है कि दुनिया 2.7 डिग्री सेल्सियस के उछाल की तरफ बढ़ रही है, जिसके बहुत भीषण प्रभाव होंगे। 

हालांकि रिपोर्ट यह भी कहती है कि अगर दीर्घकाल में "नेट-जीरो (कुल-शून्य)" लक्ष्यों को हासिल कर लिया जाए, तो तापमान बढ़ोत्तरी को बहुत हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। रिपोर्ट अपने 12वें साल में पहुंच चुकी है, इसमें COP 26 के पहले संयुक्त राष्ट्र में अलग-अलग देशों ने कार्बन उत्सर्जन में कमी के लिए जो NDC (नेशनली डिटर्माइंड कंट्रीब्यूशन) जमा किए हैं, उनका विश्लेषण किया है।

रिपोर्ट कहती है कि जब अलग-अलग NDC को जोड़ भी लिया जाता है, तब पांच साल पहले किए गए वायदे की तुलना में इससे 2030 तक गैस उत्सर्जन में इससे 7.5 फ़ीसदी की ही कटौती हो पाएगी। रिपोर्ट कहती है कि पेरिस समझौते में तए किए गए लक्ष्य, तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने के लिए जितनी जरूरत है, उससे यह काफी कम है।  

रिपोर्ट के मुताबिक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने के लिए 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 55 फ़ीसदी की भारी कटौती करनी होगी। 

UNEP के एक्जीक्यूटिव डॉयरेक्टर इंगेर एंडरसन के मुताबिक, "1.5 डिग्री सेल्सियस तक वैश्विक ताप को रोकने के लिए हमें करीब़ 8 साल तक अपने कार्बन उत्सर्जन को लगभग आधा करना होगा। हमारे पास योजनाएं बनाने, उन्हें लागू करने और कटौती करने के लिए सिर्फ़ 8 साल का समय है।"

संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के मुताबिक़, भिन्न देशों ने अभी जिस कटौती का वायदा किया है, वह इतनी कम हैं कि इनके बाद होने वाले उत्सर्जन से इस शताब्दी में ही करीब़ 2.7 डिग्री सेल्सियस ताप बढ़ जाएगा। यह पर्यावरण आपदा साबित होगी।

COP26 के पहले आई यह रिपोर्ट बेहद अहमियत रखती हैं, जहां अलग-अलग देश मौसम परिवर्तन को नियंत्रण में रखने के लिए अपनी-अपनी योजनाएं पेश करेंगे। इन विश्लेषणों से भिन्न-भिन्न देशों के नेताओं को उत्सर्जन को कम करने के अपने लक्ष्यों को निर्धारित करने के लिए गहराई मिलेगी।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Climate Crisis: WMO and UNEP Reports are Wake Up Calls to Curb Greenhouse Gas Emissions

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