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गिग वर्कर्स को लेकर दिल्ली सरकार की घोषणा पर विवाद, अलग बोर्ड की उठी मांग

दिल्ली सरकार ने गिग वर्कर्स को ‘निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड’ के दायरे में लाने की बात कही है जिसे लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं। सीटू समेत कई संगठनों ने इसे ‘निराधार’ बताया। जानिए क्या है पूरा मामला।
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बीते कई सालों के दौरान देशभर में गिग वर्कर्स अपने श्रमिक होने के अधिकार और ख़ुद के साथ हो रहे 'शोषण' के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करते रहे हैं। उनके आंदोलन का ही असर है कि अब देश के कई राज्यों में गिग वर्कर्स की सुरक्षा पर चर्चा हो रही है और उनकी सुरक्षा को लेकर क़ानून भी बनाए जा रहे हैं। दिल्ली सरकार ने भी इनके 'हक़' में क़ानून बनाने की बात कही। हालांकि गिग वर्कर्स यूनियन समेत कई मज़दूर संगठनों ने सरकार की 'नीयत' को लेकर सवाल उठाए हैं। दिल्ली सरकार ने 'निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड' के तहत गिग वर्कर्स को सुरक्षा देने की बात कही है, जिसे लेकर विवाद हो गया। जानते हैं क्या है पूरा मामला।

कौन होते हैं गिग वर्कर्स?

गिग वर्कर वे लोग होते हैं जो निजी क्षेत्र में ऐप आधारित काम करते हैं। इनका किसी मालिक से सीधा संबंध नहीं होता है। इन्हें ऐप के आधार पर टास्क मिलते हैं जिन्हें पूरा करने के बाद इन्हें पहले से तय मानदेय मिलता है। ये वर्कर्स जिस कंपनी से जुड़े होते हैं वो इन्हें श्रमिक या मज़दूर नही बल्कि 'पार्टनर' कहती है। इनमें कुछ अंशकालिक जबकि अन्य पूर्णकालिक कर्मचारी हैं। इन श्रमिकों को नौकरी की सुरक्षा और कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) और भविष्य निधि (पीएफ) जैसे लाभ नहीं मिलते हैं। ये कम पैसे पर भी काम करते हैं और काम के घंटे भी तय नहीं होते हैं।

दिल्ली सरकार ने क्या कहा?

बीते गुरूवार, 19 अक्टूबर को गिग वर्कर्स एसोसिएशन और अमेज़न इंडिया वर्कर्स एसोसिएशन का एक प्रतिनिधि मंडल दिल्ली सरकार से मिला और अपना एक ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में राजस्थान की तरह ही दिल्ली में भी गिग वर्कर्स के लिए क़ानून बनाने की मांग की गई।

इस मीटिंग के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय के बयान के हवाले से अखबारों में छपा कि सीएम केजरीवाल ने अपनी कैबिनेट मंत्री आतिशी से इस बारे में जानकारी हासिल करने को कहा कि क्या ये गिग वर्कर्स, 'निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड' द्वारा प्रदान की गई श्रमिकों की परिभाषा के अंतर्गत आ सकते हैं।

बयान में कहा गया है, “सीएम ने एसोसिएशन को यह भी सुझाव दिया कि यदि गिग वर्कर्स, निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड के दायरे में नहीं आते हैं, तो उन्हें इस संबंध में केंद्र सरकार की मदद लेनी चाहिए। यदि केंद्र सरकार एक अधिसूचना जारी करती है तो यह संभावित रूप से गिग वर्कर्स के सामने आने वाली कई समस्याओं का समाधान कर सकती है। राज्य सरकार द्वारा अलग क़ानून की आवश्यकता अनावश्यक हो सकती है।” सीएम ने उल्लेख किया कि उन्हें यह स्पष्ट नहीं है कि राज्य सरकारों के पास कर (सेस) लगाने की शक्ति है या नहीं, इसके लिए आगे की जांच की आवश्यकता है।

दिल्ली के गिग वर्कर्स एसोसिएशन के सदस्यों के साथ एक बैठक में, मुख्यमंत्री केजरीवाल ने ये भी कहा कि अधिकांश राज्य सरकारों के पास निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड के तहत बड़ी मात्रा में धनराशि है, जिसका अक्सर उपयोग नहीं किया जाता है। मुख्यमंत्री कार्यालय ने सीएम के हवाले से एक बयान में कहा कि अगर गिग वर्कर्स को निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड के तहत शामिल किया जाता है, तो वे दिल्ली सरकार द्वारा प्रदान किए जाने वाले लाभों के हक़दार होंगे।

गिग वर्कर्स यूनियन और अन्य मज़दूर संगठन क्यों जता रहे हैं विरोध?

दिल्ली-एनसीआर में गिग वर्कर्स के साथ काम करने वाले 'मेहनतकश एसोसिएशन' के डायरेक्टर निर्मल गोरान ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि “दिल्ली सरकार को अभी गिग वर्कर्स और उनके मुद्दों की कोई समझ नही है। शायद इसलिए उन्होंने गिग वर्कर्स को निर्माण मज़दूरों के बोर्ड में शामिल करने या उस बोर्ड से मदद की बात कही है। ये संभव ही नहीं है। गिग वर्कर्स में निर्माण मज़दूर भी हैं लेकिन वहां सिर्फ निर्माण मज़दूर ही नहीं है। जिस तरह से अर्थव्यवस्था चल रही है, आने वाले समय में गिग इकॉनमी ही भविष्य दिख रहा है। इसलिए श्रमिकों की सुरक्षा के लिए अलग मज़दूर बोर्ड बनना चाहिए।” हालांकि अभी ये जो चर्चा हुई है वो बहुत शुरूआती है और इतनी जल्दी वो कोई नया क़ानून तैयार होते नही देख रहे हैं।

गुरूवार, 19 अक्टूबर को मुख्यमंत्री से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल मंजू गोयल जो कि अमेज़न इंडिया वर्कर्स एसोसिएशन की सचिव हैं, उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि “हमने दिल्ली सरकार को जो ज्ञापन दिया है उसमें साफ़ है कि हम दिल्ली में भी राजस्थान की तर्ज पर गिग वर्कर्स के लिए अलग क़ानून और बोर्ड चाहते हैं। हालांकि मुख्यमंत्री का सुझाव था कि क्या निर्माण मज़दूरों के बोर्ड में हमें शामिल किया जा सकता है, इस पर हमने साफ़ इनकार किया क्योंकि ये संभव ही नहीं है। इसका कारण ये है कि अधिकतर गिग वर्कर्स जहां काम करते हैं वो बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं, ऐसे में निर्माण बोर्ड में शामिल होने से हमारी कोई भी सुरक्षा संभव नहीं है।”

मंजू आगे कहती हैं, “दिल्ली सरकार ने चर्चा के बाद हमसे नए क़ानून बनाने को लेकर एक विस्तृत ड्राफ्ट देने को कहा है। हम इस पर काम कर रहे हैं और बहुत जल्द वो ड्रॉफ्ट सरकार को सौंप देंगे लेकिन हम साफ़ कहना चाहते हैं कि हमें अलग बोर्ड ही चाहिए क्योंकि हमारी समस्याएं बहुत अलग हैं।”

“गिग वर्कर्स से दिल्ली सरकार का किया गया वादा खोखला और निराधार”

दिल्ली सरकार द्वारा गिग वर्कर्स को लेकर की गई घोषणाओं पर सेंट्रल ट्रेड यूनियन, सीटू (सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन) की दिल्ली राज्य कमेटी ने भी आपत्ति जताई। आपको बता दें, सीटू निर्माण मज़दूरों और गिग वर्कर्स दोनो के साथ ही देशभर में काम करता है। सीटू, दिल्ली के महासचिव अनुराग सक्सैना ने एक लिखित विस्तृत बयान भी जारी किया। बयान में उन्होंने कहा कि “दिल्ली सरकार ने गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना के संबंध में एक खोखली घोषणा की है। कुछ गिग श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली की शिक्षा मंत्री आतिशी के साथ बैठक के बाद यह घोषणा सामने आई।”

“अरविंद केजरीवाल ने निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड के माध्यम से ऐसी योजना शुरू करने की संभावनाएं तलाशने की ज़रूरत बताई है। सबसे पहले यह रेखांकित करने की आवश्यकता है कि निर्माण कल्याण बोर्ड एक केंद्रीय क़ानून “भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम, 1996” के परिणामस्वरूप अस्तित्व में है। यह क़ानून लाभार्थियों के साथ-साथ पूरे ढांचे को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है - यह स्पष्ट है कि गिग वर्कर्स इस अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते हैं।”

सीटू ने दिल्ली सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा, “दिल्ली सरकार और उससे प्रेरित गैर सरकारी संगठनों ने पहले ही ऐसी स्थिति पैदा कर दी है, जिसमें निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड का लाभ वास्तविक निर्माण श्रमिकों तक नहीं पहुंच पा रहा है। ऐसे में आम आदमी पार्टी सरकार की यह कोरी घोषणा दिल्ली के गिग वर्कर्स को बेवकूफ़ बनाने की एक चाल के अलावा कुछ और नहीं है।”

सीटू ने आगे अपने बयान में कहा, “कंपनियां इस प्रक्रिया से सहमत हैं क्योंकि यह केवल आईडी ब्लाॅकिंग तथा अन्य श्रमिक विरोधी प्रथाओं के ख़िलाफ़ उठ रही गिग वर्कर्स की वास्तविक मांगों में अड़ंगा लगाने में मदद करती है। राज्य सरकार के लिए पूर्णकालिक श्रमिकों की पहचान करना और उन्हें मौजूदा श्रम क़ानूनों के दायरे में लाना समय की मांग है।”

अनुराग ने कहा, “आने वाले सालों में गिग वर्कर्स देश के मज़दूर वर्ग के सबसे बड़े क्षेत्रों में से एक बनने वाले हैं। मालिक-मज़दूर संबंधों को अदृश्य करना, शोषण जारी रखने और मौजूदा क़ानूनों को दरकिनार करने का मुख्य हथकंडा बन गया है। केजरीवाल सरकार की यह खोखली घोषणा, श्रमिकों के कल्याण के लिए बिल्कुल शून्य खर्च की उसकी नीति का नतीजा है। ध्यान दें कि निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड के पैसे में उपकर शामिल होता है जो श्रमिकों के संघर्षों के कारण अस्तित्व में आए क़ानून के आधार पर एकत्र किया जाता है। दिल्ली सरकार असंगठित श्रमिकों के अन्य हिस्सों के लिए अलग कल्याण बोर्ड बनाने की ट्रेड यूनियनों की मांग को लगातार नज़रअंदाज़ करती आ रही है।”

ट्रेड यूनियन के बयान के मुताबिक़, “राजस्थान सरकार द्वारा लाए गए हालिया क़ानून तथा झारखंड और कर्नाटक सरकारों द्वारा ऐसे क़ानून लाने की योजनाएं (इन क़ानूनों की सीमाओं के बावजूद) श्रमिकों के जुझारूपन और सीधी वर्गीय कार्रवाईयों के चलते ही संभव हो सका है। यहां दिल्ली एनसीआर में भी हमने गिग श्रमिकों द्वारा विरोध प्रदर्शनों में बढ़ोतरी देखी है, जिसमें सीटू से जुड़े ऑल इंडिया गिग वर्कर्स यूनियन के नेतृत्व में अर्बन कंपनी के श्रमिकों का चल रहा आंदोलन सबसे उल्लेखनीय है।”

बयान के अंत में सरकार से कहा गया कि वो सभी पक्षों से चर्चा करे: “हम केजरीवाल सरकार को स्पष्ट शब्दों में बताना चाहेंगे कि यदि वे वास्तव में गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक कल्याण योजनाएं लागू करने के बारे में गंभीर हैं तो इस दिशा में पहला क़दम इन श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करने वाले ट्रेड यूनियनों और अन्य संगठनों के साथ बातचीत करना है।”

दिल्ली सरकार द्वारा गिग वर्कर्स को लेकर जो चर्चा शुरू हुई है, उसमें कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं जो मज़दूर संगठन लगातार उठा रहे है। पहला ये कि यह चर्चा अभी बहुत ही प्रारंभिक है। दूसरा, मज़दूर संगठनों का कहना है कि अभी सरकार को इस मुद्दे को और गहनता से समझना होगा। तीसरा, मज़दूर संगठनों का कहना है कि सरकार अपने बजट से पैसा न देकर दूसरे मज़दूरों के कल्याण का पैसा गिग वर्कर्स पर खर्च करना चाहती है जो वर्तमान में व्यवहारिक नही लगता है। चौथा, इन वर्कर्स की मांग है कि अगर सरकार वाकई उन्हें लेकर गंभीर है तो उसे तत्काल व्यापक स्तर पर सभी पक्षों से खुले मन से चर्चा करनी चाहिए और देश के अन्य राज्यों में बने क़ानूनों का अध्ययन किया जाना चाहिए।

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