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क़रीब 200 लोगों की दोषसिद्धि बरक़रार, पीड़िताओं को मुआवज़ा देने का निर्देश

भाषा |
धर्मपुरी अदालत ने 1992 में हुई घटना के संबंध में भारतीय वन सेवा (आईएफ़एस) के चार अधिकारियों समेत 126 वनकर्मियों, 84 पुलिसकर्मियों और राजस्व विभाग के पांच लोगों को दोषी क़रार दिया था।
 Madras High Court

मद्रास उच्च न्यायालय ने वन विभाग के अधिकारियों और पुलिसकर्मियों द्वारा एक छापेमारी के दौरान महिलाओं के यौन उत्पीड़न और आदिवासियों पर अत्याचार के करीब 30 साल पुराने एक मामले में निचली अदालत द्वारा 215 लोगों की दोषसिद्धि और सजा के आदेश को शुक्रवार को बरकरार रखा।

यह मामला तमिलनाडु के वाचथी गांव में 1992 में चंदन की लकड़ी की तस्करी के खिलाफ पुलिस और वन विभाग द्वारा की गई छापेमारी से संबंधित था जिससे समूचे राज्य में बड़े पैमाने पर आक्रोश फैल गया था। 

उच्च न्यायालय ने धर्मपुरी में एक निचली अदालत द्वारा 215 लोगों को दोषी ठहराए जाने के आदेश के खिलाफ दायर अपीलों को खारिज कर दिया। निचली अदालत ने दोषियों को एक से 10 साल तक की सजा सुनायी थी।

पीड़ितों की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि न्यायमूर्ति पी. वेलमुरुगन ने भी शुक्रवार को 18 महिलाओं को तत्काल 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया जो धर्मपुरी में हुई इस कुख्यात घटना के दौरान यौन उत्पीड़न का शिकार हुई थीं, जिससे समूचे राज्य में आक्रोश फैल गया था। अदालत ने इसके साथ ही बलात्कार के आरोपियों से पांच-पांच लाख रुपये वसूलने का भी निर्देश दिया।

बाद में सीबीआई को घटना की जांच का जिम्मा सौंपा गया था।

धर्मपुरी अदालत ने 1992 में हुई घटना के संबंध में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के चार अधिकारियों समेत 126 वनकर्मियों, 84 पुलिसकर्मियों और राजस्व विभाग के पांच लोगों को दोषी करार दिया था।

269 आरोपियों में से 54 की मुकदमे की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी।

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